आधुनिक युग का सब से स्वादिष्ट मांस भाग 2
आधुनिक युग का सब से स्वादिष्ट मांस अपने भाई का मांस खाना है अर्थात् अपने भाई की पीठ पीछे उसके दोषों को बयान करना है, इस सिलसिले के दूसरे भाग में हम ग़ीबत से बचाव के उपाये प्रस्तुत करेंगे तथा उन स्थितियों पर भी प्रकाश डालेंगे जिन में ग़ीबत करनी जायेज़ होती हैं:
ग़ीबत से कैसे बचें?
अब प्रश्य यह है कि हम वह कौन सा तरीक़ा अपनाएं कि ग़ीबत से बच सकें…तो इस सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:
(1) अल्लाह का डर और उस से लज्जा की भावना: यदि हमारे दिल में अल्लाह का डर और उस से लज्जा की भावना पैदा हो जाए तो हम किसी सूरत में किसी अन्य की ग़ीबत करने का साहस न कर सकें।
(2) ग़ीबत के फलस्वरूप दुनिया और आखिरत के नुकसान को याद करनाः सही मुस्लिम की हदीस है:
एक दिन अल्लाह के रसूल सल्ल. ने अपने साथियों से पूछाःक्या तुम जानते हो मुफ्लिस किसे कहते हैं ? लोगों ने कहा: हमारे बीच मुफ्लिस वह समझा जाता है जिसके पास सामान और रुपय न हों। आपने फरमायाः कल क्यामत के दिन मुफ़्लिस वह होगा जो नमाज़, रोज़े, और ज़कात के साथ आएगा, लेकिन किसी को गाली दी होगी, किसी पर (व्यभीचार का) आरोप लगाया होगा, किसी का माल खाया होगा, किसी का खून बहाया होगा, इस प्रकार उसकी नेकियाँ एक एक कर के हक़दारों को दे दी जाएंगी, जब उसकी नेकियां समाप्त हो जाएंगी और अभी हक़दार बाक़ी रह जायेंगे तो हक़दारों के पाप उसके सर थोप दिए जाएंगे फिर उसे नरक में डाल दिया जाए। (सही मुस्लिम)
हसन बसरी रहिमहुल्लाह के बारे में आता है, उन से कहा गयाः फ़लाँ व्यक्ति ने आपकी ग़ीबत की है, तो आपने उसके पास एक प्लेट में खुजूर भेजा और कहा कि मुझे पता चला है कि आपने अपनी नेकियां मुझे उपहार में दी हैं मेरी इच्छा हुई कि उसके बदले मैं आपकी सेवा में कुछ प्रस्तुत करूं मुझे माफ कीजिएगा कि इकसा पूरा बदला न दे सका।
(3) अपनी कोताहियों और दोषों को याद करना और उसके सुधार में लगना जिस से दूसरों के दोष स्वयं छुप जाएंगे।
(4) अच्छी संगत: संगत यदि अच्छी हो तो आदमी अच्छा होता है और संगत यदि बुरी हो तो आदमी बुरा बनता है, इस लिए अच्छी संगत अपनाने का प्रयास करें।
(5) नेक लोगों की जीवनी का अध्ययनः अबू आसिम अल-नबील कहते हैं:
ما اغتبت مسلما منذعلمت أن اللہ حرم الغیبة
“जब से मुझे पता चला कि अल्लाह ने ग़ीबत को हराम ठहराया है तब से अब तक मैंने किसी मुसलमान की ग़ीबत नहीं की।“
(6) इन सारे इलाजों के बावजूद अगर सुधार न हो रही हो तो ग़ीबत पर खुद के लिए सजा निर्धारित करें। इमाम ज़हबी ने लिखा हैः हरमला कहते हैं: मैंने इब्ने वहब को फरमाते हुए सुनाः मैंने मिन्नत माना कि जब किसी की ग़ीबत करूं तो एक रोज़ा रखूंगा। अतः जब किसी की ग़ीबत करता तो जुर्माने के रूप में एक रोज़ा रखता, फिर नीयत किया कि ग़ीबत करने पर एक दिरहम दान करूंगा, इस प्रकार दिरहम की मुहब्बत में मैंने ग़ीबत करना छोड़ दिया। इसके बाद इमाम ज़हबी रहि. लिखते हैः ” अल्लाह की क़सम ऐसे ही उलमा होते थे, और यही लाभदायक इल्म का प्रतिफल है।”
(7) संदेह की जगह से दूरी: एक मुसलमान को चाहिए कि वह संदेह के स्थानों से दूर रहे ताकि दूसरों के लिए ग़ीबत का कारण न बने. इस संबंध में हमें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन से मार्गदर्शन मिलता है, अल्लाह के रसूल सल्ल.एक बार एतकाफ में बैठे हुए थे, आपकी पत्नी हज़रत सफिया रज़ि. आईं, आधी रात को जब आप से विदा होने लगीं तो आप उन्हें अलविदा करने के लिए साथ आए, रास्ते में दो सहाबी से मुलाक़ात हो गई, जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा तो दोनों ने तेजी की, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: तुम धीरे चलो, यह सफ़िया बिन्ते हुय्य हैं, दोनों ने कहाः “सुब्हानल्लाह”हम अल्लाह की पवित्रता बयान करते हैं ऐ अल्लाह के रसूल, उन दोनों पर यह बात सख़्त गुज़री, तो आपने फरमायाः
إن الشيطان يبلغ في الإنسان مبلغ الدم ، وخشيت أن يقذف في قلوبكما شيئاً
“निःसंदेह शैतान इनसान के शरीर में खून के समान दौड़ता है, मुझे भय हुआ कि तुम दोनों के दिलों में भी कुछ डाल दे।”
ग़ीबत कब जाइज़ है ?
कुछ स्थितियाँ ऐसी हैं जिन में ग़ीबत वैध होती हैं उन्हें हम निम्न में बयान कर रहे हैं:
(1) अन्याय की शिकायतः एक व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित होता है और अपने पड़ोसी के दुर्व्यवहार की शिकायत करता है, आप सल्ल. ने फरमायाःजाओ और अपना सामान बाहर निकाल कर रख दो.( उसने ऐसा ही किया) अब जो व्यक्ति भी उधर से गुज़रता और सामान बाहर रखने का कारण पूछता तो वह अपने पड़ोसी की शिकायत करता, इस प्रकार हर सुनने वाला कहताः उस पर अल्लाह की लानत हो, अल्लाह उसे अपमान करे। (अल-अदबुल मुफ़रद)
(2)फतवा हेतु ग़ीबतः हज़रत अबू सुफयान की पत्नी हज़रत हिन्द बिन्ते उत्बा रज़ि. अल्लाह के रसूल सल्ल. की सेवा में उपस्थित हो कर कहती हैं:अबू सुफयान कंजूस आदमी हैं, वह मुझे मेरे और मेरे बच्चों का पूरा खर्च नहीं देते तो मैं उनको बताए बिना उनके माल से अपनी आवश्यकतानुसार ले सकता हूँ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें उसकी अनुमति देते हुए फरमाया ” तुम्हें और तुम्हारे बच्चे को जितना काफी हो सके उतना आदत के मुताबिक ले लो”। (सही बुखारी, सही मुस्लिम)
{3} बुराई दूर करने के लिए: शरीअत के विरोध कामों को रोकने और बुराई के दोषी को सही रास्ते पर लाने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति से किसी की बुराई की जा सकती है जो बुराई को रोकने की शक्ति रखता हो या बुराई रोकने में उसकी सहायता कर सकता हो।
{4} मुसलमानों की हितैषी और बुराई व फित्ना वालों से सावधान करने के लिएः इसी क्रम में हदीस के रावियों के दोष और उनकी कमज़ोरियां बयान करना भी आता है, वक्ताओं तथा लेखकों की त्रुटियों का बयान भी इसी में शामिल है, किसी बिदअती से सचेत करना भी इसी में आता है और किसी अधिकारी और वाली जो विलायत के योग्य न हो या विलायत में अमानत दारी से काम नहीं करता उसकी शिकायत उच्च अधिकारी से करना भी इसी हुक्म में आता है। .
{5} सलाह के अवसर परः हज़रत फ़ातिमा बिन्ते क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हा नबी सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हुईं और कहा कि अबू जहम और मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हुमा दोनों ने मुझे शादी का पैग़ाम भेजा है, अब आप हमें किसके पैग़ाम को स्वीकार करने की सलाह देते हैं? रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:मुआविया तो दरिद्र हैं उनके पास धन नहीं है और अबू जह्म {बड़े कठोर स्वभाव के हैं} वह अपनी लाठी अपने कंधे से नहीं उतारते {महिलाओं को बहुत मारते हैं} लेकिन तुम उसामा बिन ज़ैद से विवाह कर लो। (बुखारी, मुस्लिम)
{6} पापी और बिदअती की ग़ीबत: जैसे कोई व्यक्ति खुल्लम खुल्ला गुनाह या बिदअत करता है, कोई खुले आम शराब पीता है, लोगों का माल ले लेता है तो वापस नहीं करता, रिश्वत लेता है आदि. हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि एक व्यक्ति ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आने की अनुमति चाही तो आपने फरमाया: उसे अनुमति दे दो, यह अपने समुदाय का बुरा व्यक्ति है, फिर जब अंदर आया तो आपने उसके साथ बड़ी विनम्रता से बातें कीं {जब वह चला गया तो} मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! आपने उसके बारे में सब कुछ कहा फिर भी उसके साथ इतनी विनम्रता से बात की? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: सबसे बुरा आदमी वह है जिसकी बुराई से बचने के लिए लोग उसे छोड़ दें। (सही बुखारी, सही मुस्लिम)
ग़ीबत से माफी क्यों कर संभव है?
किसी भी पाप से माफी के लिए पश्चाताप शर्त है और तौबा की स्वीकृति के लिए तीन शर्तें हैं, सर्वप्रथम पाप को त्याग दे, उस पाप पर उसे लज्जा का अनुभव हो, तथा भविष्य में ऐसा न करने का दृढ़ संकल्प करे, और यदि उसका संबंध इनसानों के अधिकार से है तो उनके अधिकार को अदा कर दे अथवा क्षमा मांग ले। ग़ीबत से माफी के लिए इन चार शर्तों को अपनाना अति आवश्यक है।
तो आइए! आज से हम सब संकल्प करते हैं कि किसी भी स्थिति में अपने मृतक भाई का मांस न खाएंगे अर्थात् किसी की ग़ीबत न करेंगे। अल्लाह हमें इसकी तौफ़ीक़ दे. आमीन