अल्लाह के नामों और सिफात के आदर-सम्मान करने के कुछ तरीके

अल्लाह के नामों तथा सिफात का आदर करनाअल्लाह तआला के सम्पूर्ण अच्छे नामों और सिफात (विशेषताएँ) का आदर-सम्मान करना प्रत्येक मुस्लिम पर अनिवार्य है। ईमान का तकाज़ा है कि अल्लाह के नामों और सिफात के अनुसार जीवन व्यतीत की जाए। ताकि हमें ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह के नामों तथा विशेषताएँ के माध्यम से बरकत हासिल हो।

अल्लाह तआला के नामों एवं विशेषताएँ के आदर-सम्मान की कुछ हालातें निम्न में बयान किया जाता है। जिस पर अमल करके हम पुण्य तथा नेकियां कमा सकते हैं क्योंकि बहुत से लोग अल्लाह के नामों एवं विशेषताएँ के प्रति लापरवाही बरतते हैं और अल्लाह के नामों एवं विशेषताएँ का अज्ञानता के कारण अपमान कर देते हैं।

  • 1-  अल्लाह के नामों और सिफात (विशेषताएँ) को गैरूल्लाह के लिए न रखा जाए और न ही किसी मानव को अल्लाह के नामों तथा सिफात से पुकारा जाए। ताकि अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात (विशेषताएँ) का आदर तथा सम्मान हो सके। क्योंकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक सहाबी की कुन्नियत बदल दी जिनकी कुन्नियत अल्लाह तआला की सिफत पर थी। सुनन अबू दाऊद में हदीस अंकित है कि कुछ लोगों का एक  दल रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की खिदमत में उपस्थित हुआ तो लोगों ने उन में से एक व्यक्ति को अबूल हकम कह कर आवाज़ दी तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उस व्यक्ति को बुलाया और फरमायाः अल्लाह ही हकम है और प्रत्येक हुक्म उसी की ओर लोटती है और तुम्हें अबूल हकम कह कर, क्यों बुलाया जाता है ? तो उसने उत्तर दियाः जब मेरी कौम के लोगों के बीच किसी समस्या में मतभेद होता तो वह मेरे पास आते थे। मैं उनके बीच न्याय के साथ फेसला कर देता था जिस कारण दोनों पक्ष खुश हो जाते थे जिस कारण मुझे अबूल हकम कहने लगे। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः तुम कितना अच्छा करते थे। क्या तुम्हारे पास संतान है ?, तो उसने कहा। जी हाँ, शुरैह, मुस्लिम और अब्दुल्लाह। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः उन में से बड़ा कौन है ?, तो उसने उत्तर दिया, शुरैह तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायः तुम अबू शुरैह हो। (अल्लामा अलबानी ने इस हदीस को सही कहा, सुनन अबू दाऊदः 4955)

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उस सहाबी (रज़ियल्लाहु अन्हु) की कुन्नियत बदल दिया। क्योंकि उनकी कुन्नियत अल्लाह के सिफत (विशेषता) पर था।

गोया कि अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात को किसी मख्लूक के लिए रखना जाइज़ नहीं, इसी प्रकार अल्लाह के नामों तथा सिफात के आदर-सम्मान में से है कि अल्लाह के नामों तथा सिफात (विशेषताएँ) को अपमान और दुर्राचार से सुरक्षित रखा जाए। उदाहरणः उन नियुज पेपर्स तथा पेपर्स को दस्तरखान के लिए प्रयोग न किया जाए जिस पर अल्लाह तआला का नाम और सिफात लिखा हुआ हो। इस से अल्लाह तआला के नामों और सिफात का अपमान होता है।

  • 2-  अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात (विशेषताएँ) को किसी मख्लूक से न जोड़ा जाए, अल्लाह की सिफात में किसी दुसरे को भागीदार और हिस्सेदार न बनाया जाए बल्कि किसी को अल्लाह के साथ समानता न दी जाए। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सेवकों और खिदमत करने वालों को दास तथा दासी कह कर बुलाने से मना फरमया। क्योंकि इस से अल्लाह के साथ समानता प्रकट होता है। इस हदीस पर गम्भीरता से विचार करें।

لا يقلْ أحدُكم : أطعم ْربَّك ، وضئ ربّك ، اسق ربَّك ، وليقلْ : سيدي مولاي ، ولا يقلْ أحدُكم : عبدي أمتي ، وليقلْ : فتاي وفتاتي وغلامي. (صحيح البخاري: 2552 وصحيح مسلم: 2248)

तुम में से कोई हरगिज न कहे, अपने रब्ब को खिलाओ, अपने रब्ब को वुज़ू कराओ और अपने रब्ब को पानी पिलाओ और कहे, अपने सरदार और मालिक को खिलाओ ,पिलाओ, और तुम में से कोई हरगिज न कहेः मेरा दास, भक्त और मेरी दासी, भक्ती बल्कि कहे, मेरा बालक तथा बालिका और मेरा गुलाम। (सही बुखारीः 2552, सही मुस्लिमः 2248)

इस हदीस में रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रब्ब के साथ मानव को समानता देने से मना फरमाया, कि सेवक और सेविका तथा खिदमत गुज़ार, अपने सरदार को रब्ब कहे, इसी प्रकार मालिक भी अपने सेवक को दास न कह कर बुलाए।  क्योंकि हर एक मानव केवल अल्लाह तआला का दास और दासी है। अल्लाह तआला का कोई साझीदार नहीं है। क्योंकि यह अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात (विशेषताएँ) के आदर-सम्मान के विपरीत है बल्कि अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात का अपमान है।

  • 3- जब कोई मानव किसी व्यक्ति से अल्लाह के नामों तथा सिफात के माध्यम से मांगे तो उसे दिया जाए। शरण मांगे तो उसे शरण दिया जाए। ताकि अल्लाह के नामों तथा सिफात का आदर-सम्मान किया जा सके, जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमारा मार्गदर्शन किया है।

مَنِ استعاذَ باللَّهِ فأعيذوهُ، ومن سألَكُم باللَّهِ فأعطوهُ، ومنِ استجارَ باللَّهِ فأجيروهُ، ومَن آتى إليكُم معروفًا فَكافئوهُ، فإن لم تَجِدوا فادعوا لَهُ حتَّى تعلَموا أن قد كافأتُموهُ. (صحيح سنن النسائ: 2566)

अबिदुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जो तुम से अल्लाह के नाम से पनाह मांगे,तो उसे पनाह दे दो, जो तुम से अल्लाह के नाम से प्रश्न करे , तो उसे वह चीज़ दे दो, जो तुम से अल्लाह के नाम से शरण मांगे तो उसे शरण दे दो और जो तुम्हारे साथ कोई भलाई करे तो तुम उसे उस भलाई का बदला दो, यदि तुम उसे उस भलाई का बदला नहीं दे सकते तो तुम उस के लिए इतनी ज़्यादा दुआ करो कि तुमे विश्विस हो जाए कि तुम ने उसे उसकी भलाई का बदला चुका दिया है। (सही सुनन नसईः 2566)

परन्तु कोई अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात (विशेषताओं) के माध्यम से ऐसा प्रश्न करे जिस में बुराइ हो या रिश्तेदारी को खत्म करने का कारण हो, या उसे बड़े परेशानी का कारण हो तो उसे नहीं दिया जाएगा। क्योंकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” न स्वयं नुक्सान उठाओ और न दुसरे को नुक्सान पहुंचाओ।”  (सही इब्ने माजाः 1909 एवं सहीहुल-जामिअः 7517)

  • 4- अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात का आदर-सम्मान करते हुए, अल्लाह के नामों तथा सिफात के माध्यम से जन्नत के अलावा का सवाल न किया जाए। क्योंकि मानव की जीवन का लक्ष्य ही जन्नत को प्राप्त करना है। इस लिए जन्नत को हासिल करने और जहन्नम से मुक्ति के लिए अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात का वसीला इख्तेयार करे। परन्तु नबियों यी वलियों का वसीला न इख्तेयार करे। क्योंकि अल्लाह के अलावा का वसीला इख्तेयार करने से बिदअत और शिर्क के दलदल में गिरने की सम्भावना बहुत है। इस लिए केवल अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात का ही वसीला इख्तेयार किया जाए।
  • 5-  अल्लाह तआला के नामों तथा सिफात का आदर-सम्मान करते हुए ज़्यादा अल्लाह के नामों तथा सिफात का कसम न खाया जाए। क्योंकि इस की आदत होने से अल्लाह का भय और हैबत और जलालत कम हो जाता है और ज़्यादा कसम खाने की आदत होने के कारण मानव झुटी बातों पर अल्लाह की कसम खाने से सुरक्षित न रह पाता और बहुत बड़े गुनाह में लिप्त हो जाता है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने व्यापार में ज़्यादा कसम खाने से मना फरमायाः

खरीदने तथा बेचने में ज़्यादा कसम खाने से बचो, क्योंकि यह साम्ग्री के बेचने में सहायक होता है परन्तु बरकत को मिटा देता है। (सही मुस्लिमः 1607)

परन्तु जो लोग झुटी कसम खा कर अपना सामान बेचते हैं तो ऐसे लोगों को अल्लाह तआला क़ियामत के दिन तीन प्रकार के अज़ाब में ग्रस्त करेगा। जो कि बहुत ही कष्टनायक होगा। ध्यानपूर्क रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस प्रवचन पर विचार करें।

ثلاثةٌ لا يُكلِّمُهمُ اللهُ يومَ القيامةِ ولا يَنظرُ إليهِمْ ولا يُزكِّيهِمْ ولهمْ عذابٌ أليمٌ : الْمُسبِلُ إزارَهُ ، والمنّانُ الَّذي لا يُعطِي شيئًا إلَّا مَنَّهُ ، والْمُنفِقُ سِلْعَتَهُ بالحَلِفِ الكاذِبِ. – صحيح الجامع, العلامة الألباني: 3067

अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः तीन प्रकार के लोगों से अल्लाह तआला क़ियामत के दिन बात नहीं करेगा और उनकी ओर नहीं देखेगा और न ही उन्हें पाक-साफ करेगा और उन्हें दर्दनाक यातनाओं में ग्रस्त करेगा। टखने के नीचे कपड़ा पहनने वाले और दुसरों के साथ इहसान कर के इहसान जताने वाले और अपने व्यापार सामग्री को झुटी कसम खा कर बेचने वाले। (सहीहुल-जामिअः अल्लामा अलबानीः 3067)

क्योंकि अल्लाह की झुटी कसम खाने वालों ने अल्लाह तआला के नाम का अपमान किया है और लोगों को अल्लाह के नाम से धोखा देकर लोगों का माल नाहक खाया है। इस लिए ऐसे लोगों को अल्लाह तआला ने सख्त अज़ाब की धमकी सुनाया है।

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