सब्र का महीना रमज़ान

सब्र का महीना रमज़ान

सब्र का महीना रमज़ान

बेशक सब्र बहुत ही उच्च और उत्तम आदत है। प्रत्येक बुराई एवं पाप से सुरक्षित रहने का एक शक्तिशाली किला है। और अल्लाह की प्रसन्नता के लिए अपने मन, तन और धन को रोके रखना है। जो व्यक्ति सब्र करता है, तो वह बहुत बड़ी इबादत में ग्रस्त रहता है। बल्कि प्रत्येक इबादत के साथ सब्र का सम्बन्ध है। परन्तु रमज़ान के महीना के साथ सब्र का सम्बन्ध बहुत गहरा है। क्योंकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रमज़ान के महीने को सब्र का महीना कहा है और उस के रोजें रखने का आदेश दिया है। इस हदीस में दुसरे भी लाभ बयान किया गया है।

أسلمتُ فأتيتُ النبيَّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ فأخبرتُه بإسلامي فمكثتُ حَولًا وقد ضَمُرْتُ ونحلَ جسمي ثم أتيتُه فخفضَ فيَّ البصرَ ثم رفَعه قلتُ أما تعرِفُني قال ومن أنتَ قلتُ أنا كَهْمَسُ الهلاليُّ قال فما بلغ بكَ ما أرى قلتُ ما أفطرتُ بعدَك نهارًا ولا نمتُ ليلًا فقال ومن أمرك أن تُعذِّبَ نفسَك صُمْ شهرَ الصَّبرِ ومن كلِّ شهرٍ يومًا قلتُ زِدْني قال صُمْ شهرَ الصَّبرِ ومن كلِّ شهرٍ يومَينِ قلتُ زِدْني أجدُ قُوةً قال صُمْ شهرَ الصَّبرِ ومن كلِّ شهرٍ ثلاثةَ أيامٍ. (السلسلة الصحيحة: 6/245).

कह्मस अल्हिलाली(रज़ि0) कहते हैं कि मैं ने इस्लाम स्वीकार किया और नबी(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया। तो उन्हें अपने इस्लाम स्वीकार करने की सूचना दिया। तो एक वर्ष तक मैं मदीना में ठहरा रहा और मैं कम्ज़ोर हो गया और मेरा शरीर दुब्ला पत्ला हो गया। तो मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा। तो मैं ने पूछा! क्या आप मुझे पह्चान नहीं रहें हैं?, तो आप (सल्ल0) ने फरमायाः तुम कौन हो?, मैं ने कहाः मैं कह्मस अल्हिलाली हूँ। तो आप (सल्ल0) ने फरमायाः तुम ने यह क्या हालत बना रखी है?, तो मैं ने कहाः आप से मुलाकात के बाद मैं दिन में हमेशा रोज़ा रखा और रात में तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा हूँ। तो आप (सल्ल0) ने फरमायाः यदि तुम अपनी आत्मा को प्रशिक्षण देना चाहते हो तो सब्र के महीना के साथ प्रत्येक महीने में एक दिन रोज़ा रखो। तो मैं ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! और ज़्यादा की जीये, मैं इस से अधिक की क्षमता रखता हूँ। तो आप (सल्ल0) ने फरमायाः सब्र के महीना के साथ प्रत्येक महीने में दो दिन रोज़ा रखो। तो मैं ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! और ज़्यादा की जीये, मैं इस से अधिक की क्षमता रखता हूँ। तो आप (सल्ल0) ने फरमायाः तो सब्र का महीना के साथ प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़ा रखो। (अस्सिल्सिला अस्सहीहाः 245/6)

रसूल (सल्ल) ने रमज़ान महीने को सब्र का महीना कहा और उसका रोज़ा रखने का लाभ भी बयान फरमायाः

صَومُ شهرِالصَّبرِ، و ثلاثةِ أيامٍ من كلِّ شهرٍ، يُذْهِبْنَ وحَرَالصَّدْرِ. (صحيح الترغيب: 1032

अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि0) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल) ने फरमायाः सब्र के महीना के साथ प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़ा रखो, क्योंकि यह रोज़े सीने की तन्गी को दूर कर देता है। (सही अत्तरगीबः 1032)

 सब्र की तीन क़िस्में हैं:

(1) अल्लाह का अनुसरण करने में सब्र करनाः

(1) अल्लाह की अवज्ञा से बचने में सब्र करनाः

(1) जीवन में आने वाली दूर्घटनाओं पर सब्र करनाः

चूंकि रमज़ान का महीना प्रशिक्षण का सब से अच्छा महीना है। जिस में अल्लाह की इबादत के लिए प्रत्येक प्रकार के प्रोत्साहन स्थिति उपस्थित होतीं है। नबी (सल्ल) ने खबर दिया है कि जो लोग अल्लाह के लिए सब्र करता है तो अल्लाह तआला भी ऐसे लोगों को सब्र करने शक्ति प्रदान करता है। इस हदीस पर विचार करें।

أنَّ ناسًا منَ الأنصارِ سَألوا رسولَ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ فأعطاهم ثمَّ سَألوهُ فأعطاهم حتَّى إذا نفِدَ ما عندَهُ قالَ ما يَكونُ عِندي من خيرٍ فلن أدَّخرَهُ عنكُم ومن يستَعفِفْ يعفَّهُ اللَّهُ ومن يستَغنِ يُغنِهِ اللَّهُ ومن يتَصبَّريُصبِّرهُ اللَّهُ وما أعطى اللَّهُ أحدًا من عطاءٍ أوسعَ منَ الصَّبرِ. (صحيح أبي داؤد: 1644

बेशक अन्सार के कुछ लोग ने नबी (सल्ल) से मांगा तो आप (सल्ल) ने उन्हें दान दिया फिर कुछ लोगों ने मांगा तो आप ने उन्हें दान दिया और जो कुछ भी था, सब खत्म हो गया तो आप (सल्ल) ने फरमायाः मेरे पास जो कुछ भी माल होता है, तो उसे मैं जमाखोरी नहीं करता हूँ। और जो मांगने से बचता है तो अल्लाह उसे बचाता है, और जो बेनियाजी करता है तो अल्लाह उसे बेनियाज कर देता है और सब्र करने की कोशिश करता है तो अल्लाह उसे सब्र करने की क्षमता प्रदान करता है और अल्लाह ने किसी को कोई सब से उत्तम वस्तु प्रदान की है तो वह सब्र ही है।   (सही अबू दाऊदः 1644)

जो लोग भी अल्लाह का अनुसरण और अल्लाह के आज्ञा का पालन करने में सब्र करते हैं और नेक कार्यों के करने में धैर्य से लगे रहते हैं, शैतान के बहकावा में नहीं आते, सुस्ती और आलस को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते हैं। और सब्र का महीना रमज़ान सब से उत्तम अवसर है कि लोग सब्र करते हुए रमज़ान के महीने में नेकियों से अपने दामन को भर लें।

तो ऐसे ही लोग प्रशंसा के योग्य हैं और अल्लाह के पास बहुत ही उत्तम पुरस्कार के हक्कदार है। यही लोग अल्लाह तआला के पास सफल होंगे। जैसा कि अल्लाह ने मुसलमानों को सब्र करने का आदेश दिया है।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ  [آل عمران:200

ऐमूमिनों! धैर्य से काम लो और (मुक़ाबले में) बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओऔर जुटे और डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको। (आले इम्रानः 200)

बल्कि अल्लाह तआला ने अपने बन्दों को नमाज़ और सब्र के माध्यम से अल्लाह से मदद मांगने का आदेश दिया है और बेशक सब्र करने वालों और धैर्य से काम करने वाले के साथ अल्लाह तआला की सहायता होती है। अल्लाह तआला अपने ऐसे बन्दों की मदद करता है। जैसा कि अल्लाह तआला ने वादा किया है। अल्लाह तआला का फरमान है।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ‌ وَالصَّلَاةِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ مَعَ الصَّابِرِ‌ينَ. [البقرة:153

ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है। (सूरह अल्बक़राः 153)

इसी प्रकार बुराइयों और पापों से अपने आप को दूर रखने में सब्र कना भी बहुत बड़ा पुण्य का कार्य है और जो लोग भी बुराइयों से दूर रहने में अपने मन की इच्छाओं को लगाम लगाने में सफल होते हैं और धैर्य से काम लेते हैं, तो ऐसे लोग भी बहुत सवाब कमाते हैं। रसूल (सल्ल) ने फरमायाः

واعلم أنَّ في الصبرِ على ما تكرَهُ خيرًا كثيرا وأنَّ النصرَ مع الصبرِ وأن الفرجَ مع الكربِ وأنَّ مع العسرِ يسرًا. (مسند أحمد: 4/287

ज्ञान प्राप्त कर लो! बेशक नापसन्दीदगी के बावजूद सब्र करने में बहुत ज़्यादा पुण्य तथा बदला है और सब्र के साथ मदद आती है और बेशक परेशानी और कष्ट के बाद परेशानी से निकलने का रास्ता बनता है और बेशक तन्गी के बाद सरलता है। (मुस्नद अहमदः 287/2)

साबिर वही व्यक्ति है, जो प्रत्येक स्थिति में धैर्य से काम लेते हैं और सब्र करते हैं, चाहि इबादत पर हमेशगी बरतते हुए या पापों से दूर रहते हुए और खुशी और परेशानी सर्व स्थिति में। जैसा कि अल्लाह तआला ने अपने सब्र करने वाले बन्दों की तारीफ बयान किया है।

وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ أُولَئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ.  [البقرة:177

और निर्धनता और रोग तथा युद्ध की स्थिति में धैर्यवान रहे। यही लोग सच्चे हैं, तथा यही (अल्लाह से) डरते हैं।  (सूरह अल-बक़्राः 177)

जो लोग भाग्य के अप्रिय निर्णय आ जाने के बाद सब्र करते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं, तो ऐसे लोगों को अल्लाह तआला बहुत उत्तम बदला देता है। अल्लाह का फरमान है।

الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ – أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ  [البقرة: 157- 156

जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है,” निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।-यही लोग है जिन पर उनके रब्ब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भीऔर यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं। (अल-बक़राः 157)

रमज़ान का महीना इन तीनों प्रकार के सब्र को शामिल है। जिस में एक सही रोज़ेदार इन तीनों प्रकार के सब्र पर अमल करता है। क्योंकि रमज़ान करीम तक़्वा और अल्लाह से भय तथा डर का महीना है। जिस में अल्लाह की प्रसन्नता के खातिर मानव अपने मन की इच्छा को लगाम लगा देता है। बहुत से वैध कार्य को रमज़ान के कारण त्याग देता है और दिन भर खाने पीने, पति पत्नि की आवश्यकता को त्याग देता है। ताकि अल्लाह खुश हो।

अल्लामा इब्ने कय्यिम अल्जोज़ीया (रहिम0) ने सब्र के प्रति क्या ही उत्तम बात बयान किया हैः

आत्मा (नफ्स) में दो प्रकार की क्षमता होती है। किसी काम के करने की शक्ति और किसी चीज़ से रुकने की शक्ति होती है। तो सब्र और धैर्य की वास्तविक्ता यही है कि मानव अपने कार्य करने की शक्ति का प्रयोग उन चीज़ों में करे जो उसे लाभ पहुंचाए और परहेज करने की शक्ति का प्रयोग हाणिकारण वस्तु से दूर रहने में किया जाए। तो कुछ लोगों के पास लाभदायक वस्तुओं के करने पर सब्र करने की क्षमता अधिक होती हैं और वह बराबर सब्र करते हुए नेक कार्य करते हैं, परन्तु उन में बराइयों और पापों से सुरक्षित रहने की क्षमता कम होती, जिस कारण वे बुराइयों और पापों से सुरक्षति नहीं रह पाते। और कुछ लोगों के पास बुराइयों और पापों से सुरक्षित रहने की क्षमता बहुत अधिक होती है, परन्तु नेक कार्य करने की शक्ति कम होती है, जिस कारण वे नेक कार्य करने पर सब्र और धैर्य नहीं रख पाते हैं और कुछ लोगों के पास दोनों पर धैर्य रखने की क्षमता कम होती है। परन्तु सब से सर्वश्रेष्ट मानव वह है जो दोनों शक्ति पर सब्र करने की क्षमता रखता हो।तो बहुत से लोग हमेशा तहुज्जुद की नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने में बहुत सब्र से काम लेते हैं परन्तु वे वर्जित वस्तुओं के देखने से अपने आप को रोकने पर सब्र नहीं कर पाते हैं और बहुत सारे लोग वर्जित वस्तुओं और अवैध छवि देखने से सुरक्षित रहने पर सब्र की क्षमता रखते हैं, परन्तु भलाइ की दावत देने और बुराइ से रोकने और काफिरों तथा मुनाफिकीन से जिहाद करने पर सब्र करने की क्षमता नहीं रखते हैं। और उनके पास यह शक्ति बहुत ही कम होती है। और ज़्यादा तर लोग उन दोनों में से किसी एक पर बहुत कम ही सब्र करते हैं। और उन दोनों पर सब्र करने पर क्षमता रखने वालों की संख्या बहुत मामूली है। (उद्दतुस्साबिरीन व ज़ख़ीरतुश्शाकिरीनः 37)

तो जो लोग नेक कार्य करने पर सब्र करते हैं और बुराइ और पाप से सुरक्षित रहने पर सब्र करते हैं और किस्मत और नसीब के फेस्ले पर सब्र करते हैं। तो ऐसे लोगों के लिए अल्लाह तआला ने बहुत ही उत्तम और असिमित सवाब और पुण्य तैयार कर रखा है। यह अल्लाह का वादा है।

قُلْ يَا عِبَادِ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا رَ‌بَّكُمْ ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَـٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۗ  وَأَرْ‌ضُ اللَّـهِ وَاسِعَةٌ ۗ  إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُ‌ونَ أَجْرَ‌هُم بِغَيْرِ‌ حِسَابٍ.  [الزمر:10

कहदो कि ” ऐ मेरे बन्दो, जो ईमान लाए हो! अपने रब्ब का डर रखो। जिन लोगों नेअच्छा करके दिखाया, उनके लिए इस संसार में अच्छाई है, और अल्लाह की धरतीविस्तृत है। सब्र करने वालों को तो उनका बदला बेहिसाब दिया जाएगा। (सूरह अज़्जुमरः 10)

सब्र की वास्तविकता यह है कि सब्र कमज़ोरी या किसी काम के करने का अवसर प्राप्त न होने नाम नहीं बल्कि शक्ति होने और अवसर प्राप्त होने के बावजूद अवैध काम से दूर रहना और नेक काम के करने को जारी रखना ही सब्र की असल है।

अल्लाह तआला हम सब लोगों को रमज़ान के महीने को अच्छे तरीके और सब्र के साथ नेकी करने की शक्ति प्रदान करे। हमारे नेक कार्य और रोज़े और नमाज़ को स्वीकार करे। आमीन।

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