क्या हमने अल्लाह की उकारों पर खुशी का इज़हार किया ? अगर हम चाहते हैं कि हमारी खुशियां बाकी रहें बल्कि उसमें अधिकता आए तो हमें इन नेमतों का सम्मान करना होगा।
जब कोई व्यक्ति आपका कोई मामूली काम कर देता है तो तुरन्त आपकी ज़बान पर ” धन्यवाद ” के शब्द आ जाते हैं क्योंकि मानव प्रकृति में यह यह बात पाई जाती है कि मोहसिन को धन्यवाद दिया जाए और उसे श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाए , हालांकि दुनिया के एहसानात मामूली और अस्थायी होते हैं, तो फिर अस्ली मोहसिन के साथ हमारा कैसा मामला होना चाहिए जिसके एहसानों तले हम सर से पैर तक डूबे हुए हैं।
तुच्छ वीर्य से पैदा होने वाला मनुष्य कभी कुछ नहीं था, अल्लाह ने उसे नौ महीने तक माँ के पेट में रखा , फिर उसे एक तंग स्थान से निकाला, उस पर हर प्रकार का उपकार किया, उसे देखने के लिये दो आंखें दीं , सुनने के लिये दो कान दिए , चलने के लिये दो पैर दिया, पकड़ने के लिये दो हाथ दिए, सूंघने के लिये नाक दिया, बोलने के लिये ज़बान दी , समझने के लिए बुद्धि और ज्ञान से सुसज्जित किया. उसी प्रकार माल दौलत, कपड़े, पोशाक, घर , मकान, जलवायु, दाना पानी, स्वास्थ्य, बीवी बच्चे, समृद्धि और सबसे बढ़कर ईमान के अनुकम्पा से परिपूर्ण किया।
फिर हम इस विषय पर भी विचार कर के देखें कि आज हम जिस तरह सम्पन्न जीवन बिता रहे हैं कुछ वर्षों पहले हम इस से वंचित थे . जाहिर है कि यह तौफीक उसी अल्लाह ने दी जिसके आधार पर हम कुछ कमाने के योग्य हुए और हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी होती गई .
अब जरा दिल को टटोलें और मन से पूछें कि इन उपकारों से लाभांवित होते हुए क्या हमारे अंदर कृतज्ञता की भावनायें पैदा हुईं ? क्या हमने अल्लाह की उकारों पर खुशी का इज़हार किया ? अगर हम चाहते हैं कि हमारी खुशियां बाकी रहें बल्कि उसमें अधिकता आए तो हमें इन नेमतों का सम्मान करना होगा।
शुक्र की भावना जागृत रखें :
हमारे अंदर शुक्र की भावना हर समय जागरूक रहनी चाहिये. हमारे दिल में उन नेमतों का महत्व हमेशा बैठा होना चाहिए, हमारी ज़बान पर हमेशा अल्लाह की स्तुति हो. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“ إِنَّ اللَّهَ لَيَرْضَى عَنِ الْعَبْدِ يَأْكُلُ الأَكْلَةَ فَيَحْمَدُهُ عَلَيْهَا ، أَوْ يَشْرَبُ فَيَحْمَدُهُ عَلَيْهَا ” . (رواه مسلم )
” निःसंदेह अल्लाह ऐसे बंदे से खुश होता है जो एक लुक़मा खाए तो अल्लाह की स्तुति बयान करे और एक घोंट पिए तो अल्लाह की स्तुति बयान करे .” (मुस्लिम)
अल्लाह तआला की अपार नेमतों का उल्लेख और उसकी कृपा का उल्लेख भी करना चाहिए लेकिन अहंकार और गर्व के रूप में नहीं बल्कि अल्लाह की कृपा और उसके अनुग्रह का आभारी होते हुए और उसकी शक्ति से डरते हुए कि कहीं वे हमें इस नेमत से वंचित न कर दे . अल्लाह ने मनुष्य को संबोधित करते हुए कहा :
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّـهِ عَلَيْكُمْ ۚ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللَّـهِ يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖفَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ (سورة فاطر 3)
” ऐ लोगो! अल्लाह की तुम पर जो अनुकम्पा है, उसे याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और पैदा करने वाला है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो तुम कहाँ से उलटे भटके चले जा रहे हो? ” ( सूरःअल-फातिर3)
और अपने नबी को संबोधित करते हुए कहा किः “
وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ ﴿الضحى: 11)
” और जो तुम्हें रब की अनुकम्पा प्राप्त है, उसे बयान करते रहो ” . ( सूरः अल-ज़ुहा 11)
अल्लाह के बंदों का हक़ निकालें :
माल अल्लाह का अनुकम्पा और उसका उपहार है जिस से आज हम समृद्ध हैं तो कई लोग वंचित हैं , यह अल्लाह की बहुत बड़ी तत्वदर्शिता है कि उसने किसी को मालदार बनाया तो किसी को गरीब रखा लेकिन यह सिद्धांत बताया कि मालदारों के मालों में ग़रीबों का हक़ है . इसी लिए कहा :
( وَآتوھُم مِن مَالِ اللّٰہِ الَّذِی آتاکُم ( النور33
” उन (निर्धनों) को अल्लाह के माल में से दो जो उसने तुम्हें दिया है ” . पता यह चला कि माल अल्लाह का अनुकम्पा है , और उसको बाक़ी रखने के लिये आवश्यक है कि हम उसमें से ग़रीबों का हक़ निकालें ताकि गरीबों की सहानुभूति हो सके और हमारा माल भी आपदा से बच जाए।
पूरा मानव इतिहास गवाह है कि जिन धनवानों ने निर्धनों और गरीबों की अनदेखी की उनकी नेमतें कुछ वर्षों में उनके हाथ से निकल गईं , हम अपने समाज में देख सकते हैं कि कल जो धनी थे आज गरीब हैं और कल जो गरीब थे आज धनी हैं, ऐसा केवल इसलिए हुआ कि मालदारों ने अपने मालों की कद्र नहीं की और गरीबों को भुला बैठे .
मुस्लिम समाज में आज कितने ऐसे गरीबा हैं जो एक रात की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं , कितनी विधवाएं हैं, कितने अनाथ बच्चे हैं जिन्हें सूखी रोटी भी प्राप्त नहीं है , कितनी मुस्लिम लड़कियाँ हैं जिनकी शादी न होने के कारण उनकी जवानी ढलती जा रही है, कितने गरीब माता पिता हैं जो अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दिलाने से भी असमर्थ हैं .
अब हम बस तनिक अपने अतीत की ओर झांक कर देखें और दिल पर हाथ रख कर जवाब दें कि जब हम नोकरी में न थे , जब हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी न थी तो हम पर कैसा बीत रहा था …. ? बिल्कुल आज वैसा ही गुजर रहा है मुस्लिम समाज के उन गरीबों , निर्धनों और भिखारियों पर…. इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने पैसे पर सांप बनकर न बैठें बल्कि उन्हें अल्लाह की इनायत समझें और कम से कम उनकी ज़कात जरूर निकालें ताकि मुस्लिम समाज के वे कमजोर लोग जो आर्थिक संघर्ष में पीछे रह गये हैं जीवन की सांस ले सकें .
खर्च में संतुलन अपनायें :
नेमतों के उपयोग में हमेशा संतुलन अपनाना चाहिए, लेकिन आज मुसलमानों का धनी वर्ग भी अन्य समुदायों के कंधे से कंधा मिलाकर अनावश्यक वस्तुओं में अपने पैसे पानी की तरह बहा रहा है, शादी विवाह में लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं , घर बनाने में लाखों का ख़र्च आता है , सजावट और बनावट के पदार्थों में फुज़ूल खर्ची से काम लिया जाता है . हालांकि अगर उन्होंने अपनी आय से हल्की सी कटौती कर ली होती तो कितने गरीबों का भला हो सकता था . बल्कि हमें कहने दिया जाए कि अगर आज यदि धनवान संतुलन और योजना के साथ खर्च करते और माल को अल्लाह का उपहार समझते हुए इसमें से गरीबों का हक़ निकालते तो मुस्लिम समाज में एक गरीब भी न रहता .
अगर हमने इन नेमतों को पाकर अपने अंदर शुक्र की भावना पैदा किए रखा, अपने मालों में से गरीबों का हक़ निकाला, और खर्च करने में संतुलन अपनाया तो जहाँ हमें बहतु सारा पुण्य मिलगा वहीं हमारी नेमतों में बढ़ोतरी भी होगी , यह अल्लाह का वादा है :
وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّكُمْ لَئِن شَكَرْتُمْ لَأَزِيدَنَّكُمْ وَلَئِن كَفَرْتُمْ إِنَّ عَذَابِي لَشَدِيدٌ ﴿ابراهيم: 7﴾
जब तुम्हारे रब ने सचेत कर दिया था कि ‘यदि तुम कृतज्ञ हुए तो मैं तुम्हें और अधिक दूँगा, परन्तु यदि तुम अकृतज्ञ सिद्ध हुए तो निश्चय ही मेरी यातना भी अत्यन्त कठोर है।’ ( सूरः इब्राहीम 7)
यही नहीं बल्कि अल्लाह सारी सृष्टी से अपनी सज़ाओं को रोक लेगा , यह भी अल्लाह का वादा है
مَّا يَفْعَلُ اللَّـهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَآمَنتُمْ وَكَانَ اللَّـهُ شَاكِرًا عَلِيمًا﴿النساء: 147 ﴾
” अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ? अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जानने वाला है” . ( सूरः निसा 147)
जैसी करनी वैसी भरनी
कहते हैं कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ भोजन करने बैठा उसके सामने पूरी भूनी हुई मुर्गी थी, उसी समय एक भिकारी द्वार पर आकर कुछ माँगने लगा, उसने दरवाज़ा खोला और भिकारी को डाँट कर भगा दिया। अल्लाह का करना ऐसा हुआ कि कुछ ही दिनों में वह व्यक्ति भी निर्धन हो गया, सारी सम्पत्ती जाती रही यहाँ तक कि उसने अपनी पत्नी को तलाक़ भी दे दिया, उस महिला ने किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह कर लिया। एक दिन जब अपने दूसरे पति के साथ जलपान हेतु बैठी तो उसी समय एक भिखारी दरवाज़े पर आ गया। दोनों के सामने पूरी भूनी हुई मर्ग़ी थी, भिखारी की आवाज़ सुनते ही पति ने पत्नी से कहा : द्वार खोलो और यह मुर्गी उस भिखारी को दे दो । पत्नी भिखारी को भुनी मुर्गी देने जब द्वार पर आई तो यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि भिखारी कोई दूसरा नहीं बल्कि उसी का पहला पति है ( जिसने भिखारी को डाँट कर भगाया था) मुर्गी उसे दे दिया और रोती हुई अपने पति के पास लौटी, जब पति ने रोने का कारण पूछा तो बोली : भिखारी मेरा पहला पति था, फिर उसने सारी घटना सुनाई कि किस प्रकार उसके पति ने एक भिखारी को डाँट कर भगा दिया उसके तुरन्त बाद उसकी सारी समपत्ती जाती रही यहाँ तक कि उसने हमें तलाक़ दे दिया, और मैंने आप से विवाह कर लिया, पति ने कहा : वह पहला भिखारी मैं ही था।
इस लिए हमें चाहिए कि अल्लाह ने हमें जितना दिया है उस पर अल्लाह का शुक्र अदा करते रहें और निर्धनों और ग़रीबों का भी ख्याल रखें।