हिजरी कलेंडर के अनुसार महीने के 13, 14, 15 तिथि के रोज़ों में वैज्ञानिक चमत्कार
अय्यामे बीज़ के रोज़ों में नबवी चमत्कार
आज विज्ञान ने खोज द्वारा सिद्ध किया है कि जब चाँद पूर्ण हो जाता है तो उस अवधि में मानव शरीर भी इससे प्रभावित होता है, इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा इन दिनों में इंसान के अंदर भावुकता आ जाती है, उत्तेजना पैदा हो जाती है, सहवास में उबाल आने लगता है तथा इन दिनों अपराध में अधिकता आ जाती है। इसी अवधि में अर्थात् हिजरी महीने की 13-14-15 तिथि को अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने हमारे लिए रोज़ा (उपवास) का फार्मूला पेश किया है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने तीन सहाबा हज़रत अबू हुरैरा, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर बिन आस और हज़रत अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हुम को वसीयत की थी कि अय्यामे बीज़ के रोज़ों का विशेष रूप में एहतमाम करें।
बुख़ारी व मुस्लिम की रिवायत है हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहाः
मुझे मेरे दोस्त (नबी) ने तीन चीज़ों की वसीयत की है, मृत्यु तक मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता, हर महीने तीन दिन के रोज़े, चाश्च की नमाज़, और वित्र पढ़ कर सोना। (बुख़ारी 1124, मुस्लिम 721)
और हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर बिन अल-आस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अहैहि व सल्लम ने कहाः तुम्हारे लिए काफी है कि हर महीना तीन दिन के राज़े रखो, तुम्हारे लिए एक नेकी के बदले दस नेकियाँ हैं। इस प्रकार यह हमेशा रोज़ा रखने के जैसे होगा। (बुख़ारी 1874, मुस्लिम 1159)
और हज़रत अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः जब तुम महीने में किसी दिन रोज़ा रखना चाहो तो 13, 14 और 15 तिथि के रोज़े रखो। (तिर्मिज़ी 761, नसाई 2424, इस हदीस को इमाम तिर्मिज़ी ने हसन कहा है और इमाम अलबानी ने इरवाउल ग़लील 947 में इसका समर्थन किया है।
और हम जानते हैं कि रोज़ा इच्छाओं को नियंत्रण में रखने में मुख्य भूमिका निभाता है। इस हैसियत से अय्यामे बीज़ के रोज़े आज हमारे लिए चमत्कार की हैसियत रखते हैं।
डा. मुहम्मद अली अल-बार ने एक अमेरिकी विशेषज्ञ मनोविज्ञान डॉ लेबर का दृश्य नोट किया है कि
“चाँद के पूर्ण होने और हिंसात्मक गतिविधियों में वृद्धि आने के बीच गहरा संबंध पाया जाता है. मादक पदार्थ के जिज्ञासा, अपराधियों और हिंसकों की गतिविधियों में तेज़ी पैदा हो जाती है। वह मानसिक और बौद्धिक गंभीरता से खाली हो जाते हैं।
तथा सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त किए गये बयान, शफ़ाखानों में वारदात के दफ़ातिर, पुलिस चौकियों की रिपोर्ट से पता चलता है कि अक्सर अपराध अय्यामे बीज़ के दिनों में घटित होते हैं। मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार और बुजुर्ग पुरुष एवं महिलाएं भी इन दिनों में अधिक प्रभावित होते हैं, उसी तरह तलाक की घटनाएं और बड़े झगड़ों का अनुपात इन दिनों में बढ़ जाता है।
अब सवाल यह है कि चंद्रमा के पूर्णसीमा में पहुंचने और मानव मनोविज्ञान में परिवर्तन होने के बीच आखिर क्या तालमेल है?
तो इस संबंध में विज्ञान कहती है कि जिस अवधि में चांद पूरा होता है इस अवधि में उसका प्रभाव पृथ्वी पर विदित होता है और पृथ्वी और मनुष्य के शरीर के बीच भी गहरा संबंध पाया जाता है। मानव शरीर की बनावट 80 प्रतिशत पानी और बाकी सख्त पदार्थ से हुई है। मतलब यह कि मानव शरीर और जमीन का आपस में गहरा संबंध पाया जाता है। और पता है कि मिट्टी ज़मीन का ही हिस्सा है तो जिस तरह चाँद के प्रभाव ज़मीन पर पड़ते हैं उसी तरह मानव शरीर पर भी पड़ते हैं। मानव शरीर और जमीन पर चाँद के प्रभाव इस समय चरम पर पहुंच जाते हैं जबकि चाँद पूर्णता की सीमा पर पहुंच जाता है। और यही अवधि उजले दिनों के रोज़ों की है। इस लिए इन दिनों में समुद्र का उतार-चढ़ाव अपनी चरम पर पहुंच जाता है और मानव पर इसके प्रभाव परेशानी, टेंशन और मानसिक तनाव की स्थिति में दिखाई देते हैं। भूमि से संबंधित इसकी मिसाल देखनी हो तो आप समुद्र तट पर जाकर देख सकते हैं कि समुद्र का उतार-चढ़ाव इन दिनों में अपनी चरम पर पहुंच चुका होगा। और मनुष्य से संबंधित इसकी मिसाल देखनी हो तो पुलिस चौकियों, कोर्ट कचहरी का दौरा कर के या दैनिक समाचार पत्रों का अध्ययन कर के देख सकते हैं कि अपराध, आत्म-हत्या, और एक्सिडेंट की घटनायें इन दिनों में चरम सीमा को पहुंच जाती हैं।
यहीं पर हमें उजले दिनों के रोज़ों में नबवी चमत्कार का अक्स दिखाई देता है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन दिनों के रोज़ों का आदेश देकर वास्तव में इस हिंसा, उत्तेजना और मानसिक तनाव का इलाज किया जो उन दिनों में मनुष्य के अंदर पैदा होते हैं। इस तरह रोज़ा से एक व्यक्ति के अंदर मानसिक शान्ति और सुकून पैदा होता है क्योंकि रोज़ा से जहां एक तरफ इबादत है, सवाब का काम है वहीं बचाउ है, शान्ति है, दया है, और स्वास्थ्य की सुरक्षा का कारण है।