आधुनिक युग का सबसे स्वादिष्ट मांस ( भाग 1)
अधिकांश लोग अपने खाने में सब से ज्यादा मांस पसंद करते हैं, और यदि मांस का सेवन सामूहिक रूप में हो तो उसका स्वाद कुछ ज्यादा ही होता है, लेकिन यही मांस यदि बासी हो या उसमें सड़ांध पैदा हो चुका हो, या अवैध पशु का हो तो इनसानी स्वभाव में उससे अजीब तरह की नफरत पैदा हो जाती है। अब आप विचार कीजिए कि यदि यह मांस किसी इनसान का हो और… इनसान भी अपना सगा भाई हो तो क्या किसी इनसान का स्वभाव उसे सेवन करने पर संतुष्ट होगा…? लेकिन खेद की बात यह है कि हमारे समाज में कितने ऐसे दुर्भागी हैं जो अपने सगे भाई के शरीर को नोच नोच कर बड़े आनंद से उसका मांस खाते हैं और उनको अपनी गलती पर जरा बराबर शर्मिंदगी नहीं होती। यह समाचार BBC लंदन का नहीं, न टाइम्स ऑफ इंडिया का है बल्कि हमारे पास ऐसे स्रोत से पहुंचा है जिस पर हमारा सौ प्रतिशत विश्वास है।
तो लीजिए इस समाचार का सुत्र पढ़िए: आज से साढ़े चौदह वर्ष पहले अल्लाह ने अपनी किताब में यह सूचना दी हैः
وَلَايَغْتَب بَّعْضُكُم بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَن يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّـهَ إِنَّ اللَّـهَ تَوَّابٌ رَّحِيمٌ. الحجرات: 12
अनुवाद ” और न तुम में से कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे – क्या तुम में से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह अपने मरे हुए भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगी ही। – और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा स्वीकार करने वाला, अत्यन्त दयावान है। ( सूरः अल-हुजरात 12)
उपर्युक्त आयत में अल्लाह ने समाज में प्रचलित आपदाओं में से एक खतरनाक आपदा का वर्णन किया है जिसे ग़ीबत कहते हैं।
ग़ीबत क्या है?
किसी की पीठ पीछे उसकी निन्दा करना, और उस में पाई जाने वाली कमियों को बयान करना ग़ीबत कहलाती है। एक बार नबी सल्ल.ने अपने सहाबा से पूछा: तुम जानते हो ग़ीबत किसे कहते हैं? लोगों ने कहा: अल्लाह और उसके रसूल ही अधिक जानते हैं. आपने फरमायाः तुम्हारा अपने भाई का इस प्रकार उल्लेख करना जो उसे बुरा लगे, लोगों ने पूछा: यदि मेरे भाई में वह दोष है जो बयान कर रहा हूं तब…? आपने फरमायाः अगर उसमें वास्तव में वह दोष पाया जाता है तभी तो गीबत है, अगर उस में वह दोष पाया ही नहीं जाता तब तो यह बोहतान (आरोप) है “. (सही मुस्लिम)
ग़ीबत करना मानो अपने सगे भाई का मांस खाना हैः
अल्लाह ने ग़ीबत से रोकते हुए उसकी बुराई इस प्रकार बयान की जिसकी कल्पना करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं, एक ऐसे इंसान की कल्पना जो अपने मृतक भाई का मांस खा रहा हो, मृतक का गोश्त खाना स्वयं ही घिनाउनी बात है, जिस से हर मानव के स्वभाव में नफरत होती है, फिर मांस किसी मृतक जानवर का नहीं बल्कि इंसान का, और इंसान भी कोई अन्य नहीं बल्कि अपना भाई, कल्पना करें कि किसी का सगा भाई उसके सामने हो, वह उसका मांस नोच नोच कर खा रहा हो’…क्या ऐसे स्वभाव का कोई व्यक्ति मिल सकता है, नहीं कदापि नहीं. लेकिन ग़ीबत कर के एक व्यक्ति वास्तव में ऐसा ही अपराध करता है। दिल दहला देने वाली मिसाल बयान कर के अल्लाह ने इस अपराध की बुराई से दूर करना चाहा है। लेकिन खेद की बात यह है कि आज हमारी बैठकों में लोगों का सबसे स्वादिष्ट मांस यही समझा जाता है, मज़े ले ले कर अपने सगे भाई का मांस नोच कर खाते और डकार लगाते हैं, हमें इतना आनंद मिलता है कि बार बार खाने के बावजूद मन नहीं भरता, मुंह से शव का खून टपक रहा होता है, घिनाऊनी गंध आ रही होती है लेकिन नशा ऐसा कि उतरने का नाम नहीं लेता।
हदीसों में ग़ीबत की निन्दाः
पहली हदीसः अल्लाह के रसूल के सेवक अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि अरबों में यह चलन था कि यात्रा में एक दूसरे का सहयोग करते थे, एक यात्रा में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हज़रत अबु बकर और हज़रत उमर रज़ीयल्लाहु अन्हुमा थे और इन दोनों सज्जनों ने अपनी सेवा के लिए एक व्यक्ति को साथ ले रखा था, रास्ते में किसी जगह पड़ाव डाला गया, जहां दोनों आराम करने के लिए लेटे और सो गए, उम्मीद थी कि जब जागेंगे तो भोजन तैयार रहेगा, लेकिन हुआ यह कि सेवक भी आराम के लिए लेटा और उसकी भी आंख लग गई, जब अबू बकर और उमर दोनों की आँखें खुलीं तो देखा कि सेवक खाना तैयार नहीं किया है बल्कि वह बेखबर सो रहा है, यह देख कर उन में से एक ने अपने साथी से कहा, यह तो ऐसा सो रहा है मानो कोई अपने घर पर संतुष्टि से सोता है. फिर दोनों ने उसे जगाया और कहाः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जा कर उन से हमारा सलाम कहना और अनुरोध करना कि अबू बकर और उमर सालन मांग रहे हैं, सेवक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम की सेवा में जाकर आवेदन प्रस्तुत किया तो आपने कहा, जाओ उन दोनों से मेरा सलाम कहना और बता देना कि तुम दोनों ने सालन खा लिया है। सेवक ने जब आकर दोनों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का संदेश सुनाया तो वह दोनों घबरा गए और आप की सेवा में जल्दी से उपस्थित हो कर कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल! हमने आपके पास सालन के लिए भेजा था, आपने जवाब में कहा कि तुम दोनों ने सालन खा लिया है, आखिर वह कौन सा सालन है जिसे हमदोनों ने खाया है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: अपने भाई का मांस सालन के रूप में तुम दोनों ने इस्तेमाल किया है [अर्थात तुम दोनों ने उसकी ग़ीबत की है] उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, मैं उसका मांस अभी भी तुम्हारे दांतों में देख रहा हूँ, यह सुन कर दोनों ने पूछा! ऐ अल्लाह के रसूल! हम से ग़लती हो गई, आप हमारे लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करें, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: जाओ अपने उस भाई से जिसकी ग़ीबत की है कहो कि वह तुम्हारे लिए क्षमा की प्रार्थना करे।. [अल-सहीहः अल्बानी: 2608]
दूसरी हदीसः उसी प्रकार अल्लाह के रसूल सल्ल. के युग की प्रसिद्ध घटना है कि हज़रत माइज़ अस्लमी रज़ि. जिन से व्यभीचार हो गया था, लेकिन किसी ने व्यभीचार करते देखा तक नहीं था, फिर भी वह स्वयं अल्लाह के रसूल सल्ल. की सेवा में उपस्थित हुए, व्यभीचार करने को स्वीकार किया और अपने लिए सज़ा की मांग की, तब अल्लाह के रसूल सल्ल. के आदेश से उनको संगसार किया गया अर्थात् मृत्यु तक पत्थर से मारा गया, जब उनको संगसार किया जा रहा था तो उसी बीच अल्लाह के रसूल सल्ल. ने दो व्यक्तियों को परस्पर बातें करते हुए सुना जिन में से एक अपने साथी से कह रहा थाः “इस आदमी को देखो कि अल्लाह ने उस पर पर्दा डाल दिया था लेकिन उसका नफ्स उसको उकसाता रहा यहां तक कि कुत्ते की मौत मारा गया”, अल्लाह के रसूल सल्ल. वहां से चले, जब आप का गुज़र एक गधा के शव से हुआ जिस से सड़ांध आ रही थी, आप वहां उतरे और फरमायाः कहां है फ़लाँ और फंलाँ…? तुम दोनों उतरो और इस गधे के शव से खाओ…उन दोनों ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल: आख़िर कौन ऐसा इनसान होगा जो इस मृतक गधे के शव से खाएगा। आपने फरमायाः
ما نلتما من عرض أخيكما آنفاً أشد من أكل منه
“अभी तुमने अपने भाई की जो इज़्ज़त पर आक्रमण किया है, अर्थात् ग़ीबत की है इस ) गधे के शव (से खाने से अधिक कठिन है।
तीसरी हदीसःएक तीसरी हदीस में आता है, अल्लाह के रसूल सल्ल. की पत्नी हज़रत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा नाटी थीं, एक बार आपकी दूसरी पत्नी हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मुहम्मद सल्ल.से बातों बातों में कह दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल ! सफिया का ऐसा वैसा होना आपके लिए काफी है. ( इस से उन्हों ने नाटी होने की ओर संकेत किया था ) यह सुन कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
لقد قلت کلمة لو مزجت بماء البحر لمزحتہ۔ ترمذی
अनुवादः “तूने ऐसी बात कह दी है कि अगर उसे समुद्र के पानी में मिला दिया जाए तो सारा पानी खराब हो जाए”.(तिर्मिज़ी)
ग़ीबत पर उभारने वाले कामः
अब प्रश्न यह है कि आखिर एक इंसान ग़ीबत की बुराई को जानने के बावजूद इस संबंध में कोताही क्यों करता है…? मूल रूप में इसके चार कारण होते हैं, सब से पहले दीन की कमजोरी, बुरे दोस्तों की संगत, जलन और ईर्ष्या, सरदारी की इच्छा और अपने से बड़े की चापलोसी, उसी प्रकार मनोरंजन और हंसी मज़ाक़ हेतु किसी की ग़ीबत करना आदि।
ग़ीबत का परिणामः
ग़ीबत करने वाला सब से पहले सांसारिक जीवन में अपमानित होता है और लोगों की दृष्टि से गिर जाता है, बल्कि अल्लाह स्वयं उसको अपमानित करता हैं
एक दिन अल्लाह के रसूल सल्ल. ने मिम्बर पर चढ़ कर उंचे स्वर में फरमायाः
يا معشر من آمن بلسانه ولم يفض الإيمان إلى قلبه ، لا تؤذوا المسلمين ولا تعيروهم ولا تتبعوا عوراتهم ، فإنه من تتبع عورة أخيه المسلم تتبع الله عورته ، ومن تتبع الله عورته يفضحه ولو في جوف رحله ) رواه الترمذي (2032) وابن حـبان (5763) البـغوي في شرح السنة (3526 : ضعيف)
“ऐ वह लोगो जो अपनी ज़बान से ईमान लाए हो और दिल तक ईमान न पहुंच सका है, मुसलमानों को कष्ट मत पहुंचाओ, उनको शर्मिंदा मत करो, उनकी टोह में मत लगो, इस लिए कि जो कोई अपने भाई के परदे की टोह में लगा अल्लाह उसके परदे की टोह में लगता है, और जिसके परदे की टोह में अल्लाह लग जाए उसे अपमानिक करके रहता है यधपि उसने कोई काम धर के कंधेरे में क्यों न किया हो। ( तिर्मिज़ी, यह हदीस ज़ईफ है)
और विदित है कि जिसका दुनिया में ऐसा गोश्त खाने का स्वभाव बन गया हो, मरने के पश्चात इस से कैसे वंचित रखा जाता… लेकिन वहाँ तो कोई व्यक्ति मिलेगा नहीं कि उस पर आकम्रण करे, अतः वहां वह अपना ही चेहरा नोचता फिरेगा… ज़रा इस हदीस पर चिंतन मनन कीजिए, अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः
لما عرج بي مررت بقوم لهم أظفار من نحاس يخمشون وجوههم وصدورهم فقلت: من هؤلاء يا جبريل؟ قال : هؤلاء الذين يأكلون لحوم الناس ويقعون في أعراضهم (رواه احمد في مسنده 13340)
“मेराज की रात मेरा गुज़र एक समूह से हुआ जिसके नाखून तांबे के थे, उन से वह अपने चेहरे और सीनों को नोच रहा था, मैं ने जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा: यह कौन लोग हैं? कहा: यह वह लोग हैं जो लोगों का मांस खाते थे अर्थात् उनकी पीठ पीछे उनके दोषों को बयान करते थे।”(मुस्नद अहमद 13340)
उसी प्रकार ऐसे लोगों को क़ब्र में भी अज़ाब होता है, एक दिन अल्लाह के रसूल सल्ल. का गुज़र दो समाधियों से हुआ तो आपने ने फरमायाः
إنهما ليعذبان ، وما يعذبان في كبير ، أما أحدهما فيعذب البول ، وأما الآخر فيعذب بالغيبة (متفق عليه)
इन दोनों को क़ब्र की यातना हो रही है, और किसी बड़े पाप के कारण नहीं, बल्कि उनमें से एक पेशाब की छींटों से नहीं बचता था जबकि दूसरा ग़ीबत करता था।( बुखारी, मुस्लिम)
ग़ीबत सुनने वाले को क्या प्रक्रिया अपनाना चाहिए?
जिस प्रकार ग़ीबत करना अवैध है उसी प्रकार ग़ीबत का सुनना भी अबैध है, हज़रत मैमून रहि. के पास कुछ लोग बादशाह की ग़ीबत कर रहे थे और वे चुपके से सुन रहे थे, रात को सपने में देखा कि कोई व्यक्ति उन से कह रहा है कि तूने एक हब्शी का सड़ा हुआ सड़ा हुआ बदबूदार मांस खाया, पूछाः यह कैसे ? कहाः ग़ीबत के कारण, फरमाया कि ग़ीबत तो दूसरों ने की थी, मैंने तो भला या बुरा कुछ भी नहीं कहा था। उस व्यक्ति ने उत्तर दियाः तुमने भी तो उसकी बुराई को सुना और राज़ी रहे। इस लिए यदि हमारे सामने किसी की ग़ीबत की जाए तो हमें चाहिए कि हम निम्न काम करें
(1) हमें रोकना और मना करना चाहिए: नबी करीम सल्ल. की हदीसों में हमें यही सबक दिया गया है, एक बार नबी सल्ल.के पास किसी का वर्णन हुआ तो उनके बारे में लोगों ने कहा कि [वह बहुत आलस्य है] जब तक खाना नहीं पेश किया खाता नहीं और जब तक उसकी सवारी तैयार न की जाए सवार नहीं होता, यह सुनकर आप सल्ल. ने कहा: तुम लोगों ने उसकी ग़ीबत की, लोगों ने कहाः अल्लाह के रसूल! हमने तो वही बात कही है जो उस में पाई जाती है, आप सल्ल. ने फरमायाः ग़ीबत होने के लिए यही काफी है कि तू अपने भाई का वह दोष बयान करे जो उस में पाया जाता है। (सही अल-तर्ग़ीब 3/78)
(2) हम उसी बैठक में उस व्यक्ति की ओर से दिफाअ (बचाव) करें जिसकी ग़ीबत की जा रही है और यह बहुत बड़े पुण्य का काम है, हज़रत अस्मा बिन्ते यज़ीद रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
من ذب عن لحم أخيه بالغيبة كان حقا على الله أن يعتقه من النار. رواه احمد في مسنده، الطبراني في الكبير
“जो अपने भाई की पीठ पीछे उसके मांस की रक्षा करेगा [उसकी ग़ैबत का जवाब देगा] तो अल्लाह पर यह हक़ है कि उसे नरक से मुक्त कर दे।” ( मुस्नद अहमद और तबरानी कबीर)
(3) उसकी सराहना करें: इमाम इब्न सीरियन के सम्बन्ध में मशहूर है कि अगर उनके पास कोई किसी की बुराई करता तो उस व्यक्ति का गुणगान करना शुरू कर देते थे। (सियर आलामुन्नुबला 4/615)
(4) अगर हम यह न कर सकें या हमारी बात नहीं सुनी जाती तो हम वहाँ से उठ कर चले जाएं।