इस्लाम एक माडर्न और अप टु डेट धर्म है
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इस्लाम एक माडर्न और अप टु डेट धर्म है, माडर्न इतना कि दुनिया की सारी माडरनीटी इस्लाम की माडरनीटी के सामने फेल है, और अप टु डेट इतना कि इसके किसी भी क़ानून में Expiry Date नहीं।
इस्लाम मानवता के सामने जो नियम और संविधान प्रस्तुत करता है चाहे उसका सम्बन्ध जीवन के किसी भी क्षेत्र से हो, वह मानव स्वभाव के बिल्कुल अनुकूल है, इस्लामी शास्त्र में एक विद्वान कहीं भी देशी छाप या गरोही रंग न पाएगा, आस्था हों, पूजा पाट हों, मामलात हों, नैतिकता हों, राजनितिक, सामाजिक, और आर्थिक जीवन व्यवस्था हो, तात्पर्य यह कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस्लामी शिक्षाएं विश्वव्यापी हैं। यह मात्र दावा नहीं है बल्कि प्रमाण है, और प्रमाण ही नहीं बल्कि इसी शिक्षा के आधार पर इस्लामी शासन की स्थापना हो चुकी है जिसकी छाया में मुस्लिम और ग़ैरमुस्लिम सब ने शान्तिपूर्ण जीवन बिताया है।
अतः जब अत्याचार पीड़ीत समाज “न्याय न्याय” की आवाज़ लगाता है तो वहाँ क़ुरआन कहता है:
“न्याय करो, इस लिए कि अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है।”(क़ुरआन, सूरः अल-हुजरात 9)
एक दूसरे स्थान पर मित्र और शत्रु सब के साथ न्याय का आदेश देते हुए क़ुरआन कहता हैः
“ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है।” (सूरः अल- माइदा 8)
जब समाज में हत्या औऱ ख़ून ख़राबा होने लगे तो क़ुरआन कहता है:
“ जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया।” (सूरः अल-माइदा 32)
जब नैतिक मूल्य का हनन होने लगता है तो कुरआन कहता है:
“और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है ” (सूरः अल-इस्रा 32)
जब समाज में जातपात, भेदभाव और जातीय जनजातिय घृणा की बात होती है तो क़ुरआन कहता हैः
“वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुम में सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है, जो तुम में सब से अधिक डर रखता है।”. (सूरः अल-हुजरात 13)
इस्लाम की इन्हीं सार्वभौमिक शिक्षाओं के आधार पर जब इस्लामी शासन की स्थापना हुई तो मानवता शांति और सुकून से सुसज्जित हुई, महिलाओं को उनका खोया हुआ अधिकार मिला, समाज में न्याय का बोल बाला हुआ, अश्लीलता और बुराई का खात्मा हुआ, जातीय घृणा और छूतछात की प्रथा मिटी।
जी हाँ! यह दिव्य प्रणाली थी जिस में विभिन्न देशों, समुदायों, पीढ़ियों, और रंगों के लोग जमा हो गए थे, न कोई ऊंच नीच थी, न किसी प्रकार की छूतछात, सभी न्याय और एकता की बंधन में बंधे थे, सारी प्राणियों को उनके मूल अधिकार मिल रहे थे, समाज में न्याय स्थापित था, लोग भाई भाई बनकर प्रेम का जीवन गुजार रहे थे, यह सारी बातें इतिहास के पन्नों में सुरक्षित हैं, जिन से प्रभावित होकर गांधी जी ने आजादी से पहले कहा था “जब हमारा देश स्वतंत्र होगा तो हम भी यहां वैसा ही शासन लाएंगे, जैसा शासन अबू बक्र सिद्दीक़ और उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने स्थापित किया था ”.
इस्लामी शिक्षायें हर युग में और हर जगह के लिए अमल योग्य हैं, ज़माने के बदलने से उसकी शिक्षाओं में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता, क्योंकि मुहम्मद सल्ल. को जो शरीयत दी गई मानव विचार में पूरी प्रगति आने के बाद ही दी गई है, आज भी विभिन्न प्रकार की समस्साओं में उलझी मानवता के लिए कल्याण और शान्ति का संदेश यदि कहीं है तो इस्लाम ही में है। आइए कुछ मुद्दों की चर्चा करके देखते हैं कि कैसे इस्लाम आज के यग की भी ज़रूरत हैः
1-निर्धनता की समस्याः आज दुनिया की सबसे गंभीर समस्या गरीबी है, कितने ऐसे देश हैं जहां लोग भूख से मर रहे हैं, धनवान धनवानतर होता जा रहा है और निर्धन निर्धनतर होता जा रहा है। इस्लाम ने ज़कात की जो प्रणाली पेश की है उस में निर्धनता का उत्तम इलाज मौजूद है, इस्लामी कानून के अनुसार हर वह व्यक्ति जो निसाब का मालिक हो, जिसके पास पचासी ग्राम सोना या 595 ग्राम चांदी या उनकी मात्रा में नकदी सिक्के हों उसके लिए जरूरी है कि साल में एक बार अपने माल से ढाई प्रतिशत ज़कात निकाले, अगर दुनिया का हर धनवान गंभीरता के साथ सही तरीक़े से अपने माल की ज़कात निकालना शुरू कर दे तो पूरे तौर पर संसार से गरीबी समाप्त हो जाएगी और उसका कहीं निशान नहीं रहेगा।
विश्व आर्थिक संकट में दुनिया ने देख लिया कि पूंजीवाद व्यवस्था ब्याज पर आधारित होने के कारण ऐसे मुंह के बल गिरा कि होश ठिकाने लग गए और फिर दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने इस्लामी अर्थ व्यवस्था की सराहना की थी जो ब्याज से बिल्कुल खाली है।
यूरोप की एक महिला “स्वाति तानिजा” लिखती हैं : “अमेरिका की अर्थ व्यवस्था संकट इस्लामी आर्थिक प्रणाली के लिए शुभ अवसर है जो ब्याज के कारोबार से बिल्कुल खाली है।”
और फ्रांसीसी पत्रिका challenges के संपादक ने लिखाः
“अगर हमारे अर्थशास्त्रियों ने क़ुरआन की शिक्षाओं का सम्मान किया होता और उनके प्रकाश में अर्थव्यवस्था संकलित की होती तो हम इस संकट के शिकार न होते।”
2- महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ः उसी प्रकार आज समाज में महिलाओं के साथ छेड़-छाड़, अत्याचार और बलात्कार की घटनायें प्रति-दिन अखबारों मैं छपती रहती हैं। इस्लाम के संदेश में इसका उत्तम इलाज मौजूद है, इस्लाम ने पुरुषों और स्त्रियों के लिए पर्दे के अलग आदेश दिए हैं, यदि उन पर अमल किया जाए तो महिलाओं के साथ बलात्कार और उन का यौन शोषण समाप्त हो जाएगा।
तात्पर्य यह कि इस्लाम एक माडर्न और अप टू डेट धर्म है, माडर्न इतना कि दुनिया की सारी माडरनीटी इस्लाम की माडरनीटी के सामने फेल है, और अपटूडेट इतना कि इसके किसी भी क़ानून में Expiry Date नहीं, समय और स्थान के अंतर से इसकी शिक्षाओं में कभी बदलाव नहीं आ सकता।
इस्लामी नियम में बदलाव की आवश्यकता क्यों नहीं ?
इनसानों के बनाए हुए नियम समय और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं, क्योंकि वह बदलते हुए हालात, संसाधन और कारणों को सामने रखकर तैयार किए जाते हैं, इस लिए वह समय और परिस्थितियों के पदचिह्न प्राचीन और out of Date हो जा ते हैं, क्यों कि परिवर्तन Style Of Life अर्थात् जीवन बिताने के तरीका में आता है, मूल्यों और values में नहीं आता। इस्लामी शिक्षायें मूल्यों पर आधारित हैं, इस्लाम में मनुष्य और उसके स्वभाव को मद्देनजर रखा गया है, यह एकेश्वरवाद, ईश्दुतत्व और मरनोपरांत जीवन की बौद्धिकता बयान करता है। शिर्क, कुफ्र, मूर्ति पूजा और मानव के समक्ष शीश झुकाने से मना करता है, अच्छे कामों का आदेश देता और बुरे कामों से रोकता है, अच्छे आचरण पर उभारता और बुरे आचरण की निंदा करता है, विदित है कि इन शिक्षाओं की ज़रूरत पहले भी थी, अभी भी है और महाप्रलय के दिन तक रहेगी। इस प्रकार स्थिति और युग के परिवर्तन का इस्लामी शरीयत पर कोई प्रभाव नहीं होता, हां सांस्कृतिक और औद्योगिक क्रांति के पदचिह्न ऐसी समस्याएं पैदा होती हैं जिनका स्पष्ट आदेश शरीयत में नहीं होता, ऐसी स्थिति में इस्लामी कानून में ऐसा लचीलापन मौजूद है कि क़ुरआन और हदीस के अनुसार आदेश निकल जाता है।
इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किसी चीज़ का पुराना होना उसके बेफाइदा होने का प्रतीक नहीं है, दुनिया में विभिन्न चीजें हैं जिनके पुराना होने से उनकी उपयोगिता कम नहीं हुई, सूर्य चंद्रमा, धूप, हवा और पानी की उपयोगिता, पेड़ पौधे और साग सब्जी की जरूरत एक समय बीतने के बावजूद कम न हुई है और न हो सकती है।
फिर इस्लामी शिक्षायें ब्रह्मांड के निर्माता की उतारी हुई हैं जो “जो कुछ हुआ और जो कुछ भविष्य में होने वाला है” सब को जानता है। अपनी रचना के हित का सब से अधिक ज्ञान रखता है, जो मानव स्वभाव से अवगत है:
“ क्या वही न जाने जिसने पैदा किया और वह बारीकी को जानने वाला औऱ ख़बर रखने वाला है ”।(सूरत मुल्क 14)
इसी लिए ऊपर वाले हमारे निर्माता और पालनकर्ता के पास यदि कोई धर्म विश्वसनीय है तो वह मात्र इस्लाम है:
“वास्तव में (सत्य) धर्म अल्लाह के पास इस्लाम ही है.” (सूरः आले इमरान 19)
एक दूसरे स्थान पर क़ुरआन ने कहाः
“जो कोई इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म को अपनाएगा वह उस से स्वीकार न किया जाएगा और वह भविष्य में घाटा उठाने वालों में से होगा.” (सूरः आले-इमरान 85)
यह वही धर्म है जिसका वर्णन वेदों और पुराणों में ही नहीं अपितु आज के प्रसिद्ध प्रत्यक धार्मिक ग्रन्थों में आया है। अतः मानव की ज़िम्मेदारी बनती है कि अपनी धरोहर की खोज करे जो उसके निर्माता ने उसके लौकिक और पारलौकिक हित के लिए उतारा है।