अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने विभिन्न कामों पर जन्नत में जाने की गारंटी दी है, उनमें से कुछ का वर्णन निम्न में किया जा रहा हैः
1- हर फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल-कुर्सी पढ़नाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
من قرأ آيةَ الكرسيِّ دُبُرَ كلِّ صلاةٍ لم يمنعْه من دخولِ الجنَّةِ إلَّا أن يموتَ – صحيح الجامع: 6464
“जिस व्यक्ति ने हर अनिवार्य नमाज के बाद आयतुलकुर्सी पढ़ने को अपना अमल बना लिया तो जन्नत में प्रवेश में एक ही बाधा है और वह उसकी मौत है।” [सहीहुल जामिअः 6464]
2- शर्मगाह और जबान की सुरक्षाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
من يضمَنْ لي ما بين لَحيَيْه وما بين رِجلَيْه أضمنُ له الجنَّةَ – صحيح البخاري: 6474
“जो मुझे अपनी शर्मगाह और जबान दो चीजों की रक्षा की जिम्मेदारी देता है तो उसे जन्नत की गारंटी देता हूँ।” [बुखारीः 6474]
3- रास्ते से कांटेदार शाखा को हटानाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
مرَّ رجلٌ بغُصنِ شجرةٍ على ظَهْرِطريقٍ ، فقالَ : واللَّهِ لأُنَحِّينَّ هذاعنِ المسلِمينَ لا يؤذيهم فأُدْخِلَ الجنَّةَ – صحيح مسلم: 1914
“एक व्यक्ति ने मुसलमानों के रास्ते में एक कांटेदार शाखा को देखा तो उसने कहा कि अल्लाह की क़सम मैं इसे मुसलमानों के रास्ते से साफ कर दूंगा ताकि किसी मुसलमान को असुविधा न हो तो अल्लाह ने इस प्रक्रिया के बदले उसे जन्नत में प्रवेश कर दिया।” [मुस्लिम: 1914]
4- जो झगड़ा छोड़ दे, झूठ छोड़ दे और जिसके आचरण अच्छे हों:
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
أنا زعيمٌ ببيتٍ في رَبَضِ الجنَّةِ لمن ترك المِراءَ وإن كان مُحقًّا وأنا زعيمٌ ببيتٍ في وسطِ الجنَّةِ لمن ترك الكذبَ وإن كان مازحًا وأنا زعيمٌ ببيتٍ في أعلى الجنَّةِ لمن حسُن خلُقُه. – سنن أبي داؤد: 4800
“मैं उस व्यक्ति को जन्नत के किनारे घर की बशारत देता हूँ जो झगड़ा छोड़ दे चाहे अपने आपको सही समझता हो। और जन्नत के बीच में घर की बशारत देता हूँ जो झूठ छोड़ दे चाहे मज़ाक में ही क्यों न हो। और उस व्यक्ति को जन्नत के उच्च स्तरों में घर की बशारत देता हूँ जिसके आचरण अच्छे हों।” [अबू दाऊद: 4800]
5- सैयदुल-इस्तिग़फार पढ़नाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः”सैयदुल-इस्तिग़फार यह है कि तुम कहोः
اللَّهمَّ أنتَ ربِّي لا إلَهَ إلَّا أنتَ ، خَلقتَني وأَنا عبدُكَ ، وأَنا على عَهْدِكَ ووعدِكَ ما استطعتُ ، أعوذُ بِكَ من شرِّ ما صنعتُ، أبوءُ لَكَ بنعمتِكَ عليَّ، وأبوءُ لَكَ بذنبي فاغفِر لي، فإنَّهُ لا يغفرُ الذُّنوبَ إلَّا أنتَ – صحيح البخاري: 6306
जो व्यक्ति सुबह के समय ईमान के साथ एक बार सैयदुल इस्तिगफार पढ़ ले और उस दिन में उसकी मृत्यु हो जाए तो वह जन्नती है और अगर शाम में ईमान के साथ पढ़ ले और रात में मृत्यु हो जाए तो वह जन्नती है।” [बुखारीः 6306]
6- हज्जे मबरूर करनाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
الحجُّ المبرورُ ليسَ له جزاءٌ إلا الجنةَ .- صحيح الجامع: 3170
“मक़बूल हज का बदला जन्नत है।” [सहीहुल जामिअः3170]
7- अनाथ का प्रयोजन करने वालाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
أنا و كافلُ اليتيمِ في الجنةِ هكذا و قال بإصبعيْهِ السبابةِ و الوسطى – صحيح الأدب المفرد:101
“मैं और अनाथ का प्रयोजन करने वाला जन्नत में ऐसे होंगे, फिर आपने अपनी शहादत की उंगली और बीच वाली उंगली को मिलाया।” [सहीहुल-अदब अल-मुफ्रदः 101]
8- मौत के समय ज़बान पर ला इलाहा इल्लल्लाह जारी होनाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
من كان آخر كلامه لا إله إلا الله دخل الجنة – سنن أبي داود: 3116
“जिसका अंतिम शब्द ला इलाहा इल्लल्लाह होगा, वह जन्नत में प्रवेश कर जाएगा।” [अबू दाऊदः3116]
9- बेटे की वफात पर सब्र करनाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
إذا مات ولدُ العبدِ قال الله لملائكته : قبضتُم ولدَ عبدي ؟ فيقولون : نعم . فيقول : قبضتم ثمرةَ فؤاده فيقولون : نعم . فيقول : ماذا قال عبدي ؟ فيقولون : حمدك واسترجع، فيقول اللهُ : ابنوا لعبدي بيتًا في الجنةِ وسموه : بيتَ الحمدِ – سنن الترمذي: 1021
“जब किसी बंदे का बेटा मर जाता है तो अल्लाह तआला अपने फरिश्तों से पूछता हैः तुमने मेरे बंदे के बेटे की जान निकाल ली ? वह कहते हैं: जी हाँ! अल्लाह तआला फरमाता हैः तुमने मेरे बंदे के लड़के को मौत दे दी? वह कहते हैं जी हाँ। अल्लाह तआला पूछता हैः तब मेरे बंदे ने क्या कहा ? वह जवाब देते हैं कि उसने तेरा शुक्र अदा किया और इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन पढ़ा। तो अल्लाह फरमाता हैः तुम मेरे बंदे के लिए जन्नत में एक घर बना दो और उसका नाम रख दो शुकराने का घर।” [तिर्मिज़ीः 1021]
10- फर्ज़ नमाज़ों से पहले और बाद की सुन्नते मुअक्किदाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
ما من عبدٍ مسلمٍ يصلِّي للهِ تعالى في كلِّ يومٍ ثِنْتي عشرةَ ركعةً تطوُّعًا غيرَ فريضةٍ إلا بنى اللهُ تعالى له بيتًا في الجنَّةِ ، أو : إلا بُنِيَ له بيتٌ في الجنَّةِ :أربعًا قبلَ الظهرِ ، و ركعتَين بعدَها ، وركعتَين بعد المغربِ ، و ركعتَين بعد العشاءِ ، و ركعتَين قبلَ صلاةِ الغَداةِ – صحيح الترغيب: 579
“जो मुसलमान बंदा दिन और रात में 12 रकआत सुन्नत नमाज़ें पढ़े उसके लिए जन्नत में एक घर बना दिया जाता है। ज़ुहर से पहले 4 और उसके बाद दो, मग़्रिब के बाद 2, इशा के बाद 2 और फजर से पहले 2 रकआत।” [तिर्मिज़ीः 415]
11- चाश्त की नमाज़ पढ़नाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
مَنْ صلِّى الضُّحَى أربعًا وقبلَ الأولَى أرْبَعًا بُنِيَ لَهُ بيتٌ في الجنةِ – السلسلة الصحيحة: 2349
“जो व्यक्ति चाश्त के समय 4 रकअतें पढ़े और पहली नमाज़ नमाज़े ज़ुहर से पहले भी 4 रकअतें पढ़े तो उसके लिए जन्नत में एक घर बना दिया जाता है।” [अस्सिलसिला अस्सहीहाः 2349]
12- अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए मस्जिद बनानाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
مَن بَنى مَسجدًا للَّهِ كمِفحَصِ قَطاةٍ ، أو أصغرَ ، بَنى اللَّهُ لَهُ بيتًا في الجنَّةِ – صحيح ابن ماجه: 609
जो व्यक्ति अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने के लिए मस्जिद बनाए चाहे वह पक्षी के घोंसले के समान या उससे भी छोटी क्यों न हो तो अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में घर बना देता है। ( सहीह सुनन इब्ने माजाः 609)
अगर कोई पूरी मस्जिद बनवाने की शक्ति नहीं रखता तो उसको कुशादा करके भी यह सवाब हासिल कर सकता है, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को जिन दिनों घर में क़ैद कर दिया गया था उन्हों ने बलवाइयों से अपना महत्व बयान करते हुए कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया था कि कौन है जो इस जगह को खरीदे और उसे मस्जिद में शामिल कर दे। उसके बदले में उसके लिए जन्नत का एक घर है, अतः मैंने उसे ख़रीदा और मस्जिद में उसे शामिल कर दिया। (मुसन्नफ इब्नि अबी शैबाः 7/492)
13- दस बार सूरः इख़लास पढ़नाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
من قرأ { قُلْ هُوَ اللهُ أَحَدٌ } حتى يختمَها عشرَ مراتٍ بنى اللهُ له قصرًا في الجنَّةِ ومن قرأها عشرين مرةً بني له قصرانِ ومن قرأها ثلاثينَ مرَّةً بُنِيَ له ثلاثٌ – السلسلة الصحيحة: 2/136
“जो व्यक्ति मुकम्मल सूरः इख़्लास 10 बार पढ़े अल्लाह उसके लिए जन्नत में एक भवन बना देता है और जो 20 बार पढ़े उसके लिए दो भवन बना देता है और जो 30 बार पढ़े उसके लिए तीन भवन बना देता है।” ( अस्सिलसिला अस्सहीहाः 2/136)
14- मरीज़ की इयादत करनाः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
مَن عادَ مريضًا ، نادى مُنادٍمنَ السَّماءِ: طِبتَ ، وطابَ مَمشاكَ ، وتبوَّأتَ مِنَ الجنَّةِ منزلًا – صحيح ابن ماجه: 1192
“जो व्यक्ति बीमार की इयादत करे तो आसमान से एक एलान करने वाला एलान करते हुए कहता है कि तुम्हें समृद्धि मिले, तुम्हारा चलना बहुत अच्छा है और तुमने जन्नत में एक घर बना लिया है।” (सही इब्निमाजाः 1192)
?अल्लाह हम सबको इन कामों की तौफीक़ प्रदान करे। आमीन या रब्बलआलमीन