हमारा जीवन सीमित है, हम चाहें या न चाहें एक दिन हमें मरना है, और मरने के बाद कब्र तंग और अंधेरी कोठरी में पहुंचना है। मरते ही दुनिया से हमारे अमल का सिलसिला कट जाएगा, बरज़खी जीवन में हम एक एक अमल के मोहताज होंगे, इच्छा के बावजूद कुछ न कर सकेंगे। लेकिन अल्लाह ने कुछ संबंध ऐसे रखे हैं जिनके द्वारा कब्र में भी कुछ लाभ मिल सकता है। इन में मुख्य रूप से दो चीज़ें हैं:
मृतक के व्यक्तिगत कार्य:
यानी वे अच्छे काम जो मृतक ने अपने जीवन में किए थे, जब तक कि लोग उन से लाभ उठाते रहेंगे, उनका पुण्य मुर्दे को मिलता रहेगा, जैसे इल्म है जिसे उसने सिखाया और उसे फैलाया, उसी तरह सदक़ा जारिया, जैसे कुरआन मजीद की प्रतियां बांटी, मस्जिद बनवादी, यात्री गृह बनवा दिया, नहर खुदवा दी, मदरसा बनवा दिया, दावत के लिए ज़मीन समर्पित कर दी।
सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ” जब मनुष्य मर जाता है तो उससे इसके अमल का सिलसिला कट जाता है, सिवाय तीन चीज़ों के: सदक़ा जारिया या वह ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाए, या नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे”। ये सारे वे काम हैं जिनके लाभ मुर्दे को कब्र में मिलते रहते हैं। इस लिए हमें चाहिए कि मौत से पहले इस दुनिया में अपने लिए कुछ कर जाएं। कुछ दान कर दें, कुछ समर्पित कर दें ताकि कब्र में उसका पुण्य हमें मिलता रहे।
दूसरों के किए नेक काम:
यानी मृतकों के लिए किए गए दूसरों के कार्य जिनसे मृतक को लाभ पहुंचता है। जिन में पहले स्थान पर दुआ है। दुआ मुर्दे को पुण्य पहुंचाने में बहुत महत्व रखती है, मृतक के जनाज़े की नमाज़ पढ़ते हुए उसके लिए दुआ करना, मृतक को कब्र में दफन करने के बाद कब्र के पास खड़े होकर दुआ करना, कब्रिस्तान की यात्रा के समय मस्नून दुआ करना, बच्चों का माता पिता के लिए दुआ करना, यह वह दुआएं हैं जिनका पुण्य मुर्दे को मिलता है।
सुनन इब्ने माजा की हदीस है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जन्नत में एक व्यक्ति का पद ऊंचा किया जाता है तो वह आश्चर्य के साथ पूछता है: मुझे यह पद कैसे मिला? तो उससे कहा जाता है: तेरे मरने के बाद तेरे लिए तेरी संतान ने जो दुआ की है उसके कारण तुम्हारा पद बुलंद किया गया है।
इसलिए हमें चाहिए कि हमारे माता पिता अगर मर चुके हैं तो उनके लिए हम अधिक से अधिक दुआयें करते रहें।
दूसरे नंबर पर मृतक के ऋण का भुगतान: सही बुखारी की रिवायत है, अल्लाह के संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
نفس المومن معلقۃ بدینہ حتی یقضی عنہ
“मोमिन की आत्मा उसके ऋण के कारण लटकी रहती है, यहाँ तक कि उसकी ओर से वह कर्ज का भुगतान कर दिया जाए।” यहाँ तक कि यदि पत्नी का महर अदा नहीं किया था तो यह पति के जिम्मे ऋण होता है जिसका भुगतान मौत के बाद भी आवश्यक है, हां अगर पत्नी अपना अधिकार माफ कर देती है तो यह अलग बात है।
यहाँ पर इस बिंदु को भी समझना बहुत उचित है कि कितने लोग शादी के समय मुहर तय कर लेते हैं, और उनकी नीयत भी भुगतान करने की नहीं होती, बल्कि कहीं-कहीं पर तो शक्ति पर मुहर का निर्धारण होता है इस आशंका से कि ऐसा न हो कि बेटी को तलाक दे दे। मानो उनका उद्देश्य महर प्राप्त करना नहीं होता बल्कि खुशी और नाखुशी हर हालत में वैवाहिक रिश्ते को बांध कर रखना होता है, ऐसे सारे लोगों को निम्न हदीस पर विचार करना चाहिए:
सही अत्तरग़ीब वत्तरहीब की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: जो व्यक्ति किसी स्त्री से अधिक या कम महर के बदले शादी करता है, लेकिन दिल में महर का भुगतान करने का इरादा नहीं रखता, तो वह उसे धोखा दे रहा है, और यदि महर अदा किए बिना मर गया तो वह महा प्रलय के दिन अल्लाह के सामने व्यभिचारी व्यक्ति के रूप में पेश होगा, और जिसने किसी से ऋण लिया और उसका लौटने का इरादा न हो तो वह ऋणदाता को धोखा दे रहा है, यहां तक कि वह उस से अपना माल प्राप्त कर ले, और अगर वह मर गया तो क़यामत के दिन एक चोर के रूप में अल्लाह की अदालत में पेश होगा।
उसी तरह यदि मृतक पर अनिवार्य रोज़ा हों या नज़र का रोज़ा हो और उन्हें अदा किए बिना वह मर गया तो इस फर्ज़ या नज़र के रोज़े यदि घर वाले रखते हैं तो मुर्दे से वे अनिवार्य उपवास माफ हो जाएंगे और मुर्दे को इसका पुण्य मिलेगा। सही बुखारी और सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
من مات وعلیہ صیام صام عنہ ولیہ
“जो व्यक्ति का इस हाल में निधन हो जाए कि इसके जिम्मे रोज़े हों, तो उसकी ओर से उसका अभिभावक रोज़ा रखेगा”।
उसी तरह यदि मृतक पर हज अनिवार्य था और वह हज किए बिना मर गया, तो उसकी ओर से हज किया जाएगा। सही बुखारी और सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से एक महिला ने पूछा था: “मेरी माँ हज करने की नज़र मानी थी, लेकिन वह मृत्यु तक हज न कर सकी, मैं उसकी ओर से हज कर सकती हूं? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: तुम उसकी ओर से हज करो, फिर कहा: ज़रा बताओ! अगर तुम्हारी माँ पर ऋण होता तो क्या तुम उसे अदा करती? अल्लाह का हक़ अदा करो, क्योंकि अल्लाह ज्यादा हकदार है कि उसका हक़ अदा किया जाए”।
प्रिय मित्रो! ये सारे वे काम हैं जिन्हें करके मुर्दे को सवाब पहुंचाना जाइज़ है। उनके अलावा बहुत सारे ऐसे काम हैं जिन्हें मुस्लिम समाज में मृतकों को सवाब पहुंचाने के लिए किया जाता है परन्तु वे साबित नहीं, जैसे तीजा, दसवां, बीसवाँ, चालीसवां और बरसी आदि।