व्यापार और व्यवसाय द्वारा अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना हर इंसान की इच्छा होती है, लेकिन यह व्यापार जिससे धन प्राप्त होता है सांसारिक जीवन की नेमतें हैं, आँखें बंद होंगी और हम अपने अर्जित किए हुए धन को छोड़कर यहां से चले जाएंगे, लेकिन एक व्यापार ऐसा है जिसका लाभ दुनिया में भी मिलता है और आख़िरत में भी मिलने वाला है, आज हम इसी व्यापार के संबंध में बात करेंगे, और यह व्यापार नेक कामों द्वारा हो सकता है, नमाज़ व्यापार है, उपवास व्यापार हैं, दान व्यापार है, कुरआन का पठन व्यापार है, ज़िक्र व्यापार है और हर अच्छे काम व्यापार हैं। आज हमारी बहुत बड़ी विडंबना है कि हम ने ईमान को अमल से और अमल को ईमान से बिल्कुल दूर रखा है, हालांकि ईमान और अमल दोनों का अभिन्न और गहरा रिश्ता है। कुरआन की 80 से अधिक आयात में नेक अमल का उल्लेख आया है जिन में 73 आयात में ईमान को अमले सालिह के साथ मिलाकर उल्लेख किया गया है, जिस से यह संदेश मिलता है कि ईमान बिना अमल के स्वीकार्य नहीं और न अमल बिना ईमान के स्वीकार्य है।
नेक अमल का क्या महत्व है उसे समझना हो तो केवल इस बात पर विचार करें कि एक दिन हमें इस दुनिया से विदा होना है, जिसका समय निश्चित नहीं, मौत एक ऐसी अटल सच्चाई है जिसका न किसी ने आज तक इनकार किया है और न इनकार कर सकता है। हमारा जीवन बर्फ के समान पिघल रहा है, एक दिन पूरी तरह पिघल जाएगा, फिर जब हम इस दुनिया से विदा होंगे तो हमारे ही रिश्तेदार हमें स्नान करायेंगे, कफ़न पहनाएंगे, कंधे पर लादेंगे और तंग और तारिक कोठरी में लाकर सुला देंगे। वहां हमारा कमाया हुआ माल हमारा साथ नहीं दे सकता, हमारी पत्नियाँ और हमारे बच्चे हमारा साथ नहीं दे सकते। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
يتبعُ الميِّتَ ثلاثٌ ، فيرجِعُ اثنانِ ويبقَى واحدٌ : يتبعُهُ أهْلُهُ ومالُهُ وعملُهُ ، فيرجِعُ أهْلُهُ ومالُهُ ، ويبقَى عملُهُ . البخاري: 6514 مسلم: 6960
मुर्दे के साथ उसके पीछे तीन चीज़ें जाती हैं, उसके परिवार के लोग, उसका अमल और उसका माल, फिर दो चीज़ें वापस लौट आती हैं और एक ही चीज़ उसके साथ बाक़ी रहती है, उसके घर वाले और उसका माल वापस आ जाता है और उसका अमल उसके साथ बाक़ी रहता है। (बुखारी: 6514 मुस्लिम: 6960)
मानो हमारी कब्र में हमारा साथ देने वाला यही अमल है जिसकी ओर हम आपको आमंत्रित कर रहे हैं। हमारे बच्चे जिनके लिए वैध और अवैध की परवाह नहीं करते हमारा साथ नहीं दे सकते, यह संपत्ति जिसके लिए सुबह से शाम तक परिश्रम करते हैं हमारा साथ नहीं दे सकती, हमारे परिवार के लोग हमारे लिए जान दे सकते हैं लेकिन बस इसी दुनिया में, हमारा माल हमें काम आ सकता है लेकिन इसी दुनिया में, कब्र में काम आने वाला एक ही साथी है और वह है हमारा अमल। इसी लिए इमाम इब्नि क़य्यिम रज़ियल्लाहु अन्हु ने रौज़-तुल मुहिब्बीन में लिखा है कि एक हकीम से पूछा गया:
أی الأصحاب أبر ؟
कौन सा साथी सबसे वफादार है?
तो उसने कहा: नेक कर्म।
जी हाँ! नेक अमल तब भी साथ देता है जब हमें कफन में लपेट कर कब्र की गोद में डाल दिया जाता है, वहाँ यह नेक अमल हमारे पास आता है और हमारी हिम्मत बंधाता है। मुस्नद अहमद (18534) की रिवायत है, हज़रत बराअ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु की एक लंबी हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि उसके पास एक आदमी आता है जिसका चेहरा सुंदर पोशाक सुंदर और खुशबू शुद्ध होती है, वह कहता हैः
أَبْشِرْ بِالَّذِي يَسُرُّكَ، هَذَا يَوْمُكَ الَّذِي كُنْتَ تُوعَدُ
“तुझे सुसमाचार है इस बात की जो तुझे खुश करने वाली है, यही वह दिन है जिसका तुमसे वादा किया गया था।”
दास कहेगा: तुम कौन हो, तुम्हारा चेहरा तो भलाई की पहचान लग रहा है? तब वब कहेगा:
أنا عملک الصالح
“मैं तुम्हारा नेक अमल हूं।”
प्रिय भाइयो और बहनो! आज हमें नेक अमल का महत्व समझ में नहीं आ रहा है, और बच्चों और धन सम्पत्ति में फंसे हैं, लेकिन जिस दिन आँखें बंद होंगी उस दिन पूरी तरह से समझ में आ जाएगा, इसी लिए हदीस में आता है कि जब जनाज़ा रखा जाता है और लोग उसे अपने कंधों पर उठा लेते हैं तो अगर मृत नेक होता है तो कहता है कि
قدمونی قدمونی
क़द्दिमूनी क़द्दिमूनी!
आगे को चलो, मुझे बढ़ाए चलो। और अगर नेक नहीं होता तो कहता है:
يا ويلها أين يذهبون بها. يسمع صوتها كل شىء إلا الإنسان، ولو سمعها الإنسان لصعق
” हाय रे मेरी बर्बादी! मेरा जनाज़ा कहां लिए जा रहे हो, उस आवाज को मनुष्य को छोड़कर सभी प्राणियाँ सुनती हैं, अगर आदमी सुन ले तो बेहोश हो जाए।
यह अहादीस हमें इस बात की दावत देती हैं कि दुनिया में अच्छे काम का बहुत महत्व है, और सफल व्यापार वास्तव में यही है, अल्लाह तआला ने फरमाया:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَىٰ تِجَارَةٍ تُنجِيكُم مِّنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ تُؤْمِنُونَ بِاللَّـهِ وَرَسُولِهِ (سورۃ الصف: 10-11)
“ऐ ईमान वालो! मैं बताऊँ तुम्हें वह व्यापार, जो तुम्हें एक दर्दनाक यातना से बचा दे? ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूल पर।”
इस लिए समझदार वही है जिसने अपने नफ्स का आत्मनिरीक्षण किया और मृत्यु के बाद के जीवन के लिए तैयारी शुरू कर दी और मूर्ख वह है जो मन की मानने में लगा रहा और अल्लाह से उमीदें बांधे रखा। इस लिए अगर हमने अच्छे काम के महत्व को समझ लिया है तो उसे अंजाम देने के लिए समय को बहुमूल्य समझना होगा। समय ही जीवन है, समय सोना है, हमारा जीवन कुछ वर्षों, कुछ महीनों, कुछ दिनों, कुछ घंटों और कुछ सिकंडों से इबारत है। हसन बसरी रहिमहुल्लाह ने कहा:
يـا ابن آدم، إنما أنت أيام، كلما ذهب يوم ذهب بعضك – حلية الأولياء: 2/148
ऐ आदम की संतान! वास्तव में तुम्हारा शरीर कुछ दिनों से इबारत है, जब एक दिन गुजर जाता है तो समझ लो कि तुम्हारे शरीर का कुछ भाग च गया।
इंसान की उम्र सीमित है, जीवन कुछ दिनों का खेल है, यह ज़ींदगी बर्फ के जैसे धीरे धीरे पिघल रही है, एक दिन पूरी तरह पिघल जाएगी, इस लिए हमें जो अवसर मिला है इससे आख़िरत के लिए तोशा तैयार कर लेना चाहिए और अच्छे कर्म कर के अपनी आख़िरत को संवारने के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए।
अब सवाल यह है कि कोई भी अमल “नेक” कब कहलाएगा? तो याद रखें कि कोई भी नेक “नेक” इसी समय कहलाएगा जबकि उसमें दो शर्तें पाई जायें।
पहली शर्त: इख़लास(शुद्धता) यानी उसे सिर्फ अल्लाह के लिए अंजाम दिया जाए और इसमें किसी तरह की रयाकारी और दिखलावा न पाया जाए। और दूसरी शर्त: मुताबअत यानी उसे अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीके के अनुसार अंजाम दिया जाए।
और नेक अमल में प्रथम स्थान इस्लाम के फ़राइज़ और अनिवार्य कार्य का दर्जा आता है, इसी लिए हदीसे क़ुदसी में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया
وما تقرَّب إليَّ عبدي بشيءٍ أحبَّ إليَّ مما افترضتُه عليه – صحیح الجامع: 782
मेरा दास जिन चीजों द्वारा मुझसे निकटता प्राप्त करता है उनमें मेरे पास सब अधिक पसंदीदा मेरे फ़राइज़ (अनिवार्य काम) हैं। (सहीहुल जामिअः 782)
इस लिए फ़राइज़ को प्राथमिकता प्राप्त होगी, कितने लोग बहुत सारे भलाई का काम कर रहे होते हैं लेकिन फ़राइज़ का एहतमाम नहीं करते, बल्कि इस्लाम की महत्वपूर्ण उपासना नमाज़ में लापरवाही बरत रहे होते हैं। हालांकि नमाज़ तो एक मुसलमान की पहचान और इस्लाम और कुफ्र के बीच सीमा है। बहरकैफ इस्लाम पहले हम से फ़राइज़ (कर्तव्यों) की मांग करता है, उसके बाद ही सुन्नतों और नवाफिल का दर्जा आता है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दिन और रात में कुल मिलाकर चालीस रकअत पढ़ते थे जैसा कि इमाम इब्ने क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने स्पष्ट की है जिन में सत्रह रकअतें फ़राइज़, बारह रकअतें सुननि मुअक्कदा और ग्यारह रकआत तहज्जुद है।
नेक काम अंजाम देने से संबंधित एक महत्वपूर्ण बिंदु ज़िहन में बैठायें कि अमल कम हो लेकिन उस पर हमेशगी बरती जाए, ऐसा नहीं होना चाहिए कि कुछ दिनों खूब इबादत की फिर थक हार कर इबादत को भुला बैठे, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा की पवित्र जीवनी से हमें यही पाठ मिलता है कि इबादत कम हो लेकिन उस पर हमेशगी बरतें। सय्येदा आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ज़ींदगी भर आठ रकआत चाशत की नमाज़ पढ़ती रहीं, उम्मि हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने 12 रकआत सुनन मुअक्कदा जीवन में कभी नहीं छोड़ा, हज़रत अली और फातिमा रज़ियल्लाहू अन्हुमा आजीवन तस्बीहे फातमी का एहतमाम करते रहे। हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर महीने तीन रोज़ा, वित्र की नमाज़ और चाश्त की नमाज़ की वसीयत की थी, अतः वह जींदगी भर उन की अदाएगी करते रहे।
बेहतर इंसान वही है जिसकी उम्र लंबी हो और उसका अमल अच्छा हो। फिर अच्छी मौत नसीब होना भी सौभाग्य की बात है कि अच्छे कर्म करते हुए इस दुनिया से चला जाए, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
إنَّما الأعمالُ بالخواتيمِ – صحيح ابن حبان: 340
कर्म का आधार अंत पर है। नेक काम अंजाम देते समय इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि हम जो भी नेक काम अंजाम दे सके हैं उन पर न इतरायें न घमंड करें बल्कि उनकी स्वीकृति के लिए अल्लाह से दुआ करें और हमेशा चिंतित रहें कि अल्लाह हमारी नेकियाँ स्वीकार कर ले।
नेक कामों के बारे में एक अंतिम बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हम इस दनिया में रहकर कुछ ऐसे काम भी करते रहें कि यहां से जाने के बाद कब्र की ज़ींदगी में उनका हमें अज्र और सवाब मिलता रहे। कितने ऐसे लोग हैं जो कब्र में दफन हो चुके हैं लेकिन उन्हें नेकियाँ मिल रही हैं और कितने ऐसे लोग हैं जो ज़मीन की पीठ पर चल फिर रहे हैं और बेफिक्र हो कर पाप पर पाप किए जा रहे हैं।
(रेडियो कुवैत के साप्ताहिक धार्मिक कार्यक्रम “बातें! जिन से ज़ींदगी संवरती है” पर प्राथमिक शब्द के रूप में प्रस्तुत किया गया लेख जिसे शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक अल-बदर हफ़िज़हुल्लाह की पुस्तक “अल-मताजिर अर्राबिहा” से तैयार किया गया है। दिनांक 27 जनवरी 2017)