वन्दे मातरम् बंगला भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचंद्र चटर्जी की उपन्यास ‘आनंदमठ’ मैं शामिल है। मूल रूप में यह उपन्यास इस्लाम शत्रुता पर आधारित है और उसमें अंग्रेज़ों को अपना सुरक्षक और मसीहा सिद्ध किया गया है। वन्दे मातरम् उपन्यास का एक भाग है। उपन्यास में विभिन्न पाट यह गीत “दुर्गा” के समक्ष गाते हैं जो हिन्दू भाईयों में माँ का स्थान रखती है और इस गीत में भारत को “दुर्गा माँ” सिद्ध किया गया है। यही कारण है कि स्वतंत्रता से पूर्व ही यह विवादस्पद बन गया था, वन्दे मातरम् भी उसी नाविल का एक भाग है औऱ उसमें भारत को दुर्गा के समान सिद्ध किया गया है। इसी लिए जवाहर लाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस और डा0 लोहिया जैसे महान नेताओं ने इस गीत का विरोद्ध किया, और जब भारत के राष्ट्रीय गीत के चयन की बात आई तो एक समूह की कोशिश के बावजूद इस गीत को राष्ट्रीय गीत नहीं बनाया गया बल्कि बंगला कवि रविंद्रनाथ टैगोर के गीत को भारत का राष्ट्रीय गीत बनाया गया जो देश-भक्ति की भावनाओं से परिपूर्ण है, जिसमें देश की प्रशंसा की गई है और किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई गई है।
यदि एक मुस्लिम वन्दे मातरम् के अनुवाद पर ही चिंतन मनन कर ले तो उसे पता चल जाएगा कि यह इस्लाम की मूल आस्था एकेश्वरवाद ही को गिरा देता है। तो लीजिए वन्दे मातरम् का प्रमाणित उर्दू अनुवाद प्रस्तुत हैः
तेरी इबादत करता हूं ऐ मेरी अच्छे पानी, अच्छे फल, भीनी भीनी खुश्क जुनूबी हवाओं और शादाब खेतों वाली मेरी माँ /हसीन चाँदनी से रौशन रात वाली, शगुफ़्ता फूलों वाली, गंजान दरख्तों वाली/ मीठी हँसी, मीठी ज़बान वाली, सुख देने वाली, बर्कत देने वाली माँ/ मैं तेरी इबादत करता हूं ऐ मेरी माँ / तीस करोड़ लोगों की पुरजोश आवाज़ें, साठ करोड़ बाज़ुओं में समेटने वाली तलवारें / क्या इतनी ताक़त के बाद भी तू कमज़ोर है ऐ मेरी माँ/ तू ही मेरे बाज़ुओं की क़ुव्वत है, मैं तेरे क़दम चूमता हूं ऐ मेरी माँ/ तू ही मेरा इल्म है, तू ही मेरा धर्म है, तू ही मेरा बातिन है, तू ही मेरा मक़्सद है / तू ही जिस्म की रूह है, तू ही बाज़ुओं की ताक़त है, तू ही दिलों की हक़ीक़त है / तेरी ही महबूब मुर्ति मन्दिर में है/ तू ही दुर्गा, दस मुसल्लह हाथों वाली, तू ही कम्ला है, तू ही कंवल के फूलों की बहार है / तू ही पानी है, तू ही इल्म देने वाली है / मैं तेरा ग़ुलाम हूँ, गुलाम का ग़ुलाम हूँ/ गुलाम के ग़ुलाम का ग़ुलाम हूँ/ अच्छे फलों वाली मेरी माँ, मैं तेरा बन्दा हूं, लहलहाते खेतों वाली मुक़द्दस मोहनी, आरास्ता पैरास्ता बड़ी क़ुदरत वाली क़ाएम व दाएम माँ/ मैं तेरा बन्दा हूँ ऐ मेरी माँ मैं तेरा ग़ुलाम हूँ।
( उर्दू अनुवाद, प्रकाशित: आल इंडिया दीनी,तालीमी कोंसल लखनऊ)
वन्दे मातरम् वह गीत है जिसे राष्ट्रीय गीत के रूप में पेश किया जा रहा है। गीत के शब्दों से सर्वथा विदित है कि यह एक धार्मिक गीत तो हो सकता है राष्ट्रीय गीत नहीं हो सकता। इसमें मात्र-भूमि को दुर्गा माँ मान कर उसे प्रत्येक उपकारों का स्रोत सिद्ध किया गया है। ज्ञान, शक्ति, ताक़त हर विशेषता उसी के साथ सम्बन्धित की गई है और पढ़ने वाला उसके क़दमों में वंदना के लिए झुका जाता है बल्कि वह प्रत्यक्ष रूप में इस बात को स्वीकार करता है कि मैं तेरी वंदना करता हूँ।
जिस गीत में यह सब कुछ कहा गया हो मुसलमान उसे कैसे पढ़ सकते हैं। कोई भी मुस्लिम इसे भलीभांति जान लेने के बाद इसका समर्थन नहीं कर सकता। जिन को पता नहीं है अथवा उन्हों ने मात्र सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया है वही इस का समर्थन कर सकते हैं। क्योंकि यह तो एक मुस्लिम की मूल आस्था के विरोद्ध है। मुसलमान उपने देश को प्रिय समझता है परन्तु पुज्यनीय कदापि नहीं समझ सकता।
इस गीत में देश की मिट्टी के लिए ग्यारह ऐसी विशेषताएं सिद्ध की गई हैं जो इस्लामी दृष्टीकोण से अल्लाह के अतिरिक्त अन्य के लिए सिद्ध नहीं की जा सकतीं। वह विशेषताएं यह हैं (1) सुख देने वाली (2) बर्कत देने वाली (3) तू ही हमारे बाज़ुओं की शक्ति है (4) तू ही मेरा ज्ञान है (5) तू ही मेरा परोक्ष है (6) तू ही मेरा उद्देश्य है (7) तू ही शरीर के अंदर की जान है (8) दिलों के अंदर तेरी ही वास्तविकता है (9) बड़ी शक्ति वाली (10) क़ाएम व दाएम (11) मुक़द्दस
इस गीत में बार बार वतन की मिट्टी का दास होने को स्वीकार किया गया है जबकि एक मुस्लिम मात्र अल्लाह का दास हो सकता है। इसी लिए मुसलमानों के लिए अब्दुन्नबी (नबी का दास),अब्दुर्रसूल(रसूल का दास) और अब्दुल मसीह(मसीह का दास) नाम रखना सही नहीं है। इस गीत में मन्दिरों की प्रत्येक मुर्तियों को खाके वतन का स्रोत कहा गया है। उसी प्रकार इस गीत में खाके वतन को दुर्गा देवी और कमला देवी समझा गया है। इस गीत में वतन की मिट्टी ही को धर्म कहा गया है। इस गीत में वतन की मिट्टी के सामने वन्दना की जाती है अर्थात् सर झुका कर, हाथ जोड़ कर सलाम किया जाता है। यह सब इस्लामी आस्था के सर्वथा विरोद्ध है। इसलिए मुसलमान को इस के लिए विवश न किया जाए, इसे समझने की कोशिश की जाए।
वन्देमातरम् को आधार बनाकर मुसलमानों के देश प्रेम पर शक करना बिल्कुल ग़लत है। इतिहास उठा कर देख लो किस प्रकार मुसलमानों ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जाएं गंवाइ हैं। हम भारत की मिट्टी से टूट कर प्रेम करते हैं। बल्कि देश से प्रेम करने की शिक्षा हमें स्वयं इस्लाम देता है। क्योंकि देश से प्रेम स्वाभाविक होता है और इस्लाम प्राकृतिक धर्म है इसी लिए इस्लाम ने इस पर प्रतिबंध नहीं लगाई। तात्पर्य यह कि हम अपने देश को टूट कर चाहते हैं उसके लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं जैसा कि हमारे पूर्जवों ने दिया भी है परन्तु जिस सृष्टा ने हमारी रचना की है, जिसने हम पर ना ना प्राकार का उपकार किया है, जो इस धरती को चला रहा है, जिसके उपकारों से एक सिकंड के लिए भी विमुख नहीं हो सकते, जो यधपि देखाई नहीं देता परन्तु उसके वजूद की निशानियाँ सम्पूर्ण संसार में फैली हुई हैं, जो अकेला है, जिसके पास माता पिता और सन्तान नहीं, जिसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती और जिसका कोई भागीदार नहीं। भाइयो! वह ईश्वर ( अल्लाह ) सारे संसार का ईश्वर है, मात्र मुसलमानों का नहीं, उसने हमें इस बात की कदापि अनुमति नहीं दी कि हम उसकी पूजा में किसी अन्य को भागीदार ठहराएं।
ईश्वर की पूजा में उसका किसी को भागीदार ठहराना मात्र इस्लाम में वर्जित नहीं बल्कि हिन्दू धर्म में भी वर्जित है इसी लिए जब डा0 ज़ाकिर नाइक से एक सभा में पूछा गया कि वन्दे मातरम् मुसलमान क्यों नहीं पढ़ते ? तो आपने उत्तर देते हुए कहा था कि ” वन्दे मातरम् मात्र मुसलमानों के धर्म के विरोद्ध नहीं है अपितु यह हिन्दू धर्म के भी विरोद्ध है, हिन्दुओं को भी चाहिए कि वह वन्दे मातरम् न पढ़ें क्योंकि हिन्दू धर्म में भी एकेश्वरवाद की शिक्षा है और धरती पूजा से रोका गया है लेकिन इस गीत में धरती की पूजा करने की शिक्षा दी गई है।” उन्हों ने कहा कि देश अल्लाह तआला से महान नहीं हो सकता, चाहे वह सऊदी अरब हो अथवा पाकिस्तान, किसी भी देश के लोगों को यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह अपने देश की पूजा करें। इस लिए मुसलमान ऐसा नहीं कर सकता है”। उन्होंने कहा कि मुसलमान देश से प्रेम करता है लेकिन उसकी पूजा नहीं करता।”
यदि हिन्दू भाई अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन न कर के वन्दे मातरम् गाते हैं तो गाएं, हमें उस पर कोई आपत्ति नहीं परन्तु मसलमानों को इसके लिए विवश न किया जाए क्योंकि यह मुसलमानों की मूल आस्था के विरोद्ध है जिस पर किसी प्रकार का विवाद नहीं है। जो लोग इसका समर्थन करते हैं उनको इसका सही ज्ञान नहीं है। भारत विभिन्न धर्मों का सुंदर स्तवक है उसकी पहचान ही इस चीज़ में है कि इस देश में हर धर्म के लोगों को पूरी स्वतंत्रता के साथ अपनी आस्थाओं के अनुसार जीवन बिताने का अवसर प्रदान किया गया है इस लिए मुसलमानों से अपनी पहचान खोने और अपना धर्म त्याग करने का मुतालबा न किया जाए।