नमाज़ पढ़ने से प्रथम छोटी और बड़ी पाकी (पवित्रता ) प्राप्त करना अनिवार्य है। जो व्यक्ति नापाक (अपवित्र) हो तो वह नमाज़ नहीं पढ़ सकता जब तक कि वह वुज़ू कर ले या ग़ुस्ल (स्नान) कर लें फिर नमाज़ आरम्भ करे। इसी लिए वुज़ू का तरीका बयान किया जाता है।
वुज़ू करने का तरीका़
हदीस
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) के निकट से गुज़रे और वह वुज़ू कर रहे थे (और पानी का अत्यधिक प्रयोग कर रहे थे) आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहाः यह क्या अपब्यय है ? तो उन्हो ने कहाः क्या वुज़ू में अपब्यय है ? आप ने कहाः हाँ ! और यघपि तुम बहते नदी पर ही क्यो न हो ?” (इब्ने माजः)
- (1) नीयतः
वुज़ू आरंभ करें तो सब से पहले वुजू़ की नीयत करें और नीयत का स्थान ह्रदय है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया << निःसंदेह हर प्रकार का कर्तव्व नीयत पर आधारित है। >> (बुखारी तथा मुस्लिम)
- (2) ” बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ” कहना , जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा हैं। “ बिना वुजू़ के नमाज़ नहीं और बिना अल्लाह का नाम लिये वुजू़ नहीं। ” (सुनन तिर्मिज़ी)
- (3) अपने हथैली को तीन बार धुलें और उंगलियों के दरमियानी भाग को दुसरे हाथ की उंगलियों से रगढ़ें।
- (4) कुल्ली करें, तीन बार पानी मुंह में डालें और हिला कर फेंक दें और वुज़ू के बीच दांतून करना अच्छा है।
- (5) तीन बार नाक में पानी डाल कर नाक साफ करें और दायें हथैली से नाक में पानी डालना और बायें हाथ से नाक साफ करना अच्छा है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रमाणित है।
- (6) अपने चेहरे को तीन बार धुलें, पैशानी के बाल से ठोढ़ी के नीचे तक और दायें कान की लौ से बायें कान की लौ तक और यदि घनी दा़ढ़ी हो तो पानी से खिलाल करें और खिलाल पानी से तर उंगलियों को दाढ़ी के बीच दाखिल करने का नाम है।
- (7) तीन बार अपने दायें हाथ को कोहनी तक धुलें फिर तीन बार अपने बायें हाथ को कोहनी तक धुलें और वुजू़ के अंगो का रगढ़ना मुस्तहब है।
- (9) अपने दायें पैर को टखनें तक तीन बार धुलें फिर इसी तरह बायें पैर धुलें और पैर की उंगलियों के बीच खिलाल करें और टखनों के ऊपर तक धौना मुस्तहब है।
- (10) वुजू़ के अंत में यह दूआ पढ़ना सन्नत है ” अश्हदो अल्लाइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू ला शरीक़ा लहू व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू, अल्लाहुम्मजअल्नी मिनत्तव्वाबीना वजअल्नी मिनल मुतत़ह्हिरीन ” ( सुनन तिर्मिज़ी)
जिन चीज़ों से वुज़ू भंग हो जाता है।
- 1. गुप्तांग से निकलने वाली जीज़ों से वुज़ू टूट जाता है जैसे शैच, मूत्र, ख़ून या हवा जैसा कि अल्लाह का फरमान है।“ …. या तुम में से कोई शौच कर के आए, ….. ” (सूरः निसाः 43)
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ अल्लाह तआला तुम में से किसी ह़दस़ वाले व्यक्ति की नमाज़ स्वीकार नहीं करेगा जब तक कि वह वुज़ू न बना ले। हज़्रमौत निवासी एक व्यक्ति ने कहा, ऐ अबू हुरैरा ह़दस़ क्या चीज़ है ? तो उन्हों ने उत्तर दिया। पाद या मानव के गुप्तांग से निकलने वाली हवा” (सही बुखारीः 135, मुस्लिमः 225)
मानव के गुप्तांग से निकलने वाली वस्तुओं को इसी पर क़ियास (अनुमान) लगाया जाएगा और वह वस्तु वुज़ू तोड़ने का कारण बनेगा चाहे वे वसतु पवित्र हो या अपवित्र
- 2- गहरी निन्द से सोने से वुज़ू भंग हो जात है।
कोई हल्की निन्द बिना टेक लगाए सोया हो या कोई बैठे बैठे ही ओंघ रहा हो तो उसका वुज़ू नहीं टूटेगा।
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ जो व्यक्ति निन्द से सो कर उठा तो वह वुज़ू कर ले।” – सुनन अबू दाऊदः 203
इस ह़दीस़ से प्रमाणित हुआ कि निन्द से सोने से वुज़ू टूट जाता है, क्योंकि निन्द से सोने की स्थिति में शरीर से कुछ निकलने के कारण मालूम नहीं होता है और हल्की निन्द या ओंघ आने से वुज़ू नहीं टूटता है जैसा कि ह़दीस़ में वर्णन है जिसे अनस (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत हैः “ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ईशा की नमाज़ की प्रतिक्षा करते हुए ओंघते थे और उन के सर झुकते थे और फिर वे नमाज़ पढ़ते और वुज़ू नहीं करते थे।” – सुनन अबू दाऊदः 200
- 3- बुद्धिहीन होने से वुज़ू टूट जाता है।
बुद्धिहीन होने से वुज़ू भंग हो जाता है। चाहे बुद्धिहीन, बेहोश या किसी रोग या पागल होने के कारण हुआ हो।
- 4- गुप्तांग को बिना किसी आड़ के छूने से वुज़ू टूट जाता है।
जिन चीज़ों के लिए वुज़ू करना अनिवार्य हो जाता है।
- 1- नमाज़
जब कोई नमाज़ पढ़ने का इरादा करे तो वह अपने पवित्र होने का निश्चित कर ले फिर यदि उस का वुज़ू नहीं है तो वुज़ू कर ले जैसे कि अल्लाह का फ़रमान है। “ ऐ ईमान वालो, जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने मुंह और हाथ कुहनियों तक धो लो और सिरों पर हाथ फेर लो और पाँव टखनों तक धो लिया करो,……” (सूरः माइदाः 6
- 2. काबा शरीफ़ के चारों ओर का तवाफ़ करनाः
क्योंकि काबा का तवाफ़ नमाज़ की तरह एक इबादत है और इस में वुज़ू अनिवार्य होता है।
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमयाः “ काबा शरीफ़ के चारो ओर का तवाफ़ करना नमाज़ पढ़ने की तरह है मगर अल्लाह ने तवाफ़ करते समय बात चीत की अनुमति दी है, तो जो व्यक्ति तवाफ़ करते समय बात चीत करना चाहे तो केवल भलाई ही की बातें करे।” (सुनन तिर्मिज़ीः 960, मुस्तद्रक हाकिमः 459/1)
- 3- क़ुरआन करीम को छूना या उठाना
अल्लाह का कथन है। “ जिसे पवित्रों के सिवा कोई छू नहीं सकता ” (सूरः अल-वाक़िआः 79
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ क़ुरआन करीम को केवल पवित्र लोग ही छूते हैं।” (तारुतु कुत्नीः 459/1)