“सुब्हानल्लाह, वल-हम्दुलिल्लाह, व ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर”
1- यह चार कलिमात अल्लाह की नज़र में सब से प्यारे हैं। (सही मुस्लिमः 2137)
2- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नज़र में दुनिया और उसकी सारी चीज़ों से बिहतर हैं। (सही मुस्लिमः 2695)
3- 100 बार सुब्हानल्लाह कहना 100 ग़ुलाम आज़ाद करने के जैसे, 100 बार अल-हम्दुलिल्लाह कहना 100 लगाम कसे घोड़े अल्लाह के रास्ते में दान करने के जैसे,100 बार अल्लाहु अक्बर कहना 100 ऊंट ख़र्च करने के जैसे है। और 100 बार ला इलाह इल्लल्लाह कहने का सवाब आसमान और ज़मीन के बीच के हिस्सा को भर देता है और किसी की नेकी इतनी संख्या में नहीं उठाई जाती सिवाए इसके कि वह भी इतना अमल कर ले। ( अस्सहीहाः 3/303)
4- यह शब्द पढ़ने और अन्त में ला हौ,ल व ला क़ुव्व,त इल्ला बिल्लाह कहने से प्रत्येक पाप मिटा दिए जाते हैं चाहे समुद्र की झाग के बराबर क्यों न हों। (सुनन अत्तिर्मिज़ीः 3460)
5- यह चार कलिमात जन्नत का पौधा हैं। ( सुनन अत्तिर्मीज़ीः 3462)
6- अल्लाह के पास कोई व्यक्ति ऐसे मोमिन से उत्तम नहीं हो सकता जो अधिक से अधिक सुब्हानल्लाह, वल-हम्दुलिल्लाह, व ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर कहता हो। ( मुस्नदः 1/163, अस्सहीहाः 654)
7- अल्लाह ने शब्दों में से इन चार शब्दों को चुन लिया है और हर शब्द पर 20 नेकियाँ लिखी जातीं और 20 पाप मिटा दिए जाते हैं। जबकि अल-हम्दुलिल्लाह पर 30 नेकियाँ लिखी जातीं और 30 पाप मिटा दिए जाते हैं। ( मुस्नदः 2/302, सहीहुल जामिअः 1718)
8- यह जहन्नम से ढ़ाल हैं, और कल क़्यामत के दिन मुक्ति प्रदान करने वाले और आगे आगे आने वाले होंगे और यह बाक़ी रहने वाली नेकियाँ हैं। ( मुस्तदरक हाकिमः 1/541, सहीहुल जामिअः 3214)
9- यह चार कलिमात अर्श के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और शहद की मक्खी के जैसे आवाज़ निकालते और पढ़ने वाले का नाम लेते हैं। हम में से हर आदमी की यह चाहत होगी कि उसे यह सम्मान मिले या अर्श के पास उसका नाम लिया जाता रहे। (मुस्नदः 4/268, 271 सुनन इब्नि माजाः 3809)
10- अमल के मीज़ान पर यह शब्द भारी पड़ जायेंगे। ( अल-मुस्तदरकः 1/511, 512)
11- हर शब्द के बदले सदक़ा और दान करने का सवाब मिलता है। “सुब्हानल्लाह कहना सदक़ा है, अल-हम्दुलिल्लाह कहना सदक़ा है, ला इलाह इल्लल्लाह कहना सदक़ा है और अल्लाहु अक्बर कहना सदक़ा है।” ( सही मुस्लिमः 1006)
12- एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मैं क़ुरआन पढ़ नहीं सकता, कोई ऐसी चीज़ सिखा दीजिए जो हमारे लिए काफी हो। तो आप ने कहा कि यूं कहोः सुब्हानल्लाह, वल-हम्दुलिल्लाह, व ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर व ला हौ,ल व ला क़ुव्व,त इल्ला बिल्लाह। (सुनन अबी दाऊदः 832)
शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक अल-बदर इन चार कलिमात का महत्व बयान करने के बाद लिखते हैं:
” जो व्यक्ति इन कलिमात के गुज़रे हुए फज़ाइल पर विचार करेगा वह पायेगा कि यह कलिमात बहुत महान हैं, इनका बहुत महत्व है, इनकी शान बुलंद है और मोमिन बन्दे पर इन कलिमात के अधिक लाभ और प्रभाव पड़ते हैं। इन कलिमात के इतने बड़े महत्व के पीछे शायद रहस्य यह है जैसा कि कुछ विद्वानों ने बयान किया है कि अल्लाह के सारे नाम इन्हीं चारों कलिमात के अंतर्गत आते हैं। अतः सुब्हानल्लाह अल्लाह को हर दोष से पवित्र करने से संबन्धित नामों को शामिल है जैसे अल-क़ुद्दूस अस्सलाम आदि। अल-हम्दुलिल्लाह अल्लाह के लिए पूर्ण नाम और गुण साबित करने से संबन्धित है। अल्लाहु अक्बर में अल्लाह की बड़ाई और उसकी महानता बयान की गई है कि कोई उसकी प्रशंसा को शुमार नहीं सकता, और जिस महिमा की शान ऐसी हो उसके अलावा किसी अन्य की पूजा नहीं की जा सकती।
इस प्रकार “सुब्हानल्लाह” में अल्लाह की ज़ात को हर दोष से पवित्र माना गया है, “अल-हम्दुलिल्लाह” अल्लाह के नामों गुणों और उसके कामों में पूर्णता को सिद्ध करता है, और “ला इलाह इल्लल्लाहु” अल्लाह के लिए एख़लास और तौहीद को साबित करता और शिर्क से बराअत का इज़हार करता है। और “अल्लाहु अक्बर” अल्लाह की महानता को साबित करता है कि उस से बड़ी कोई चीज़ नहीं।
इस प्रकार यह कलिमात बड़े महान हैं, इनकी शान बहुत बुलंद है और इनके द्वारा हमें बहुत सारी भलाइयाँ प्राप्त होती हैं। अल्लाह से हम दुआ करते हैं कि हमें इनकी सुरक्षा करने और इनको अपने जीवन में बरतने की तौफीक़ प्रदान करे, और हमें उन लोगों में बनाये जिनकी ज़ुबान इन कलिमात से तर रहती हैं, निःसंदेह वह इसका मालिक है और उसे हर प्रकार की शक्ति प्राप्त है।”
(फज़ाइलुल कलिमात अल-अर्बअ, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक अल-बदर 27- 29)