मुस्नद अहमद की रिवायत है हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ से फारिग़ होते तो धीरे से कुछ बोलते, जिसे हम समझ नहीं पाते थे और न आप हमें बताते थे। एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमसे कहा: अफतिनतुम ली? यानी क्या तुम ने मुझे समझ लिया कि मैं धीरे से कोई बात बोलता हूँ जिसे तुम सुन नहीं पाते और न ही समझ पाते हो? फिर आपने उसकी वजह बताई कि आखिर ऐसा क्यों करता हूँ, आप ने कहा कि
إني ذكرت نبياً من الأنبياء أعطي جنداً من قومه فأعجب بهم، فقال: من لهؤلاء الجند؟ أو قال: من يقوم لهؤلاء؟
मुझे याद आया नबियों में से एक नबी का किस्सा जिन्हें अपने लोगों की शक्तिशाली सेना दी गई थी, एक दिन उन्हें अपनी सेना की ताक़त भली लगी, उन्होंने कहा: कौन है जो हमारी सेना का मुकाबला कर सके। या कौन है जो उन्हें हरा सके?
अपनी सेना की अधिकता और शक्ति पर उन्हें अहंकार का एहसास हुआ, तब अल्लाह ने उन्हें वह्य भेजी कि तीन दंड में से कोई एक दंड अपनायें, वह महानता रखने वाले नबी थे, लेकिन अपनी सेना की अधिकता और शक्ति पर बड़ापन का अनुभव हुआ तो अल्लाह की ओर से यह सज़ा तै की गई कि तीन दंड में से कोई एक दंड अपनायें:
إما أن نسلط عليهم عدواً من غيرهم، أو الجوع، أو الموت
या तो हम उन पर उनके किसी दुश्मन को उन पर ताक़त दे दें जो उन्हें तबाह कर दें, या भुखमरी का शिकार बना दें या मौत तारी कर दें।
उस समय नबी ने अपने सहयोगियों से परामर्श किया, साथियों ने कहा: आप अल्लाह के नबी हैं, निर्णय करने का सारा अधिकार आपको प्राप्त है, इस प्रकार नबी नमाज़ के लिए खड़े हुए और जब वह किसी तरह की घबराहट महसूस करते तो नमाज़ की ओर लपकती थे। जब नमाज़ समाप्त हुई तो अल्लाह से कहा, हे मेरे रब! कोई हमारा दुश्मन हम पर हमला करे और हमें नष्ट कर दे ऐसा हम नहीं चाहते, और न ही यह चाहते हैं कि भुखमरी से हम मार दिए जाएँ, लेकिन हम मौत को अपनाते हैं। मृत्यु तो एक दिन आनी ही है। इसलिए अल्लाह ने उन पर मौत थोप दिया और इस तरह उनके सत्तर हजार सैनिक उस दिन मर गए।
जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने साथी को यह किस्सा सुना चुके तो आपने उन्हें वह दुआ बताई जिसे वह हर नमाज़ के बाद धीरे से पढ़ा करते थे, दुआ यह थी:
((اللهم بك أقاتل، وبك أصاول، ولا حول ولا قوة إلا بالله))
“हे अल्लाह मैं तेरी ही सहायता से क़िताल करता हूँ, तेरी ही सहायता से हावी होता हूं और तेरे सिवा कोई शक्ति और ताकत नहीं”।
यह हदीस सही है जिसे इमाम अहमद रहिमहुल्लाह ने अपने मुस्नद में वर्णित किया है।
व्याख्या: विनम्रता ऐसा गुण है जिस से हर मुसलमान को सुसज्जित होना चाहिए और उसे पता होना चाहिए कि मदद अल्लाह की ओर से आती है और एक मुसलमान जब ईमानदारी से काम लेता है, अल्लाह पर भरोसा रखता है, और अपनी शक्ति और ताकत पर नहीं उतराता, तो अल्लाह अवश्य उसकी मदद करते हैं। इस लिए दास को चाहिए कि अपनी ताकत पर न इतराए बल्कि अल्लाह से मदद चाहने वाला बने। इसी लिए हर नमाज़ के बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ करते थे:
((اللهم بك أقاتل، وبك أصاول، ولا حول ولا قوة إلا بالله))
“हे अल्लाह मैं तेरी ही सहायता से क़िताल करता हूँ, तेरी ही सहायता से हावी होता हूं और तेरे सिवा कोई शक्ति और ताकत नहीं”।
उपर्युक्त हदीस में अपनी ताकत पर घमंड करने और अहंकार का शिकार होने वाले इंसान का अंजाम बताया गया है, अन्यथा अहंकार जीवन के हर चरण में गलत है और आपदा का कारण है, जब एक आदमी अपने धन और सम्पत्ति पर अहंकार का शिकार होता तो वही होता है जिसका उल्लेख अल्लाह ने सूरः कहफ़ में किया है कि उसका सारा बागीचा जल भुन गया। जब आदमी ज्ञान के मामले में अहंकार का शिकार होता है तो ज्ञान की कमी का अनुभव पैदा करने के लिए अल्लाह मूसा अलैहिस्सलाम को ख़िज़्र अलैहिस्सलाम के पास पहुंचाता है और उन्हें आदेश देता है कि ख़िज़्र अलैहिस्सलाम से ज्ञान प्राप्त करें।
उसी तरह सुलैमान अलैहिस्सलाम को देखें कि शारीरिक शक्ति के मामले में जब अपने आप पर भरोसा किया और इन शा अल्लाह कहे बिना यह कसम खाई कि वह अपनी सौ पत्नियों के पास एक रात में जाएंगे, उनमें से हर एक योद्धा (मुजाहिद) को जन्म देगी जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद करेगा। लेकिन उसे अल्लाह की इच्छा पर नहीं छोड़ा जिसके कारण उन्हें सजा यह मिली कि उन में से एक को छोड़ कर कोई गर्भवती न हुई, और उसने भी आधा बच्चा जन्म दिया।
इसलिए एक दास को जीवन के हर मामले में अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए, पद हो, धन सम्पत्ति हो, ज्ञान हो, शक्ति हो प्रत्येक मामले में अल्लाह से अनुग्रह मांगना चाहिए। प्रत्येक खूबी उसी की दी हुई है इस लिए किसी भी खूबी को अपनी मेहनत और प्रयास का परिणाम समझने की बजाय अल्लाह की ओर पल्टाना चाहिए।