इस्लाम में मानवता की मुक्ति है

शैख़ नबील अल- अवज़ी

अनुवाद : सफात आलम तैमी

imagesएक दिन मैं IPC में बैठा था,  गर्मी का मौसम था, एक आदमी इस्लाम स्वीकार करने के लिए आया, उसकी स्थिति उन अन्य लोगों के समान थी जो अल्लाह की कृपा से IPC में दाखिल होकर इस्लाम स्वीकार करते हैं. इस्लाम स्वीकार करने के बाद वह फूट फूट कर रोने लगा….

दाई ने पूछा : आखिर बात क्या है कि आप इतना रो रहे हैं? क्या इसलिए कि इस्लाम स्वीकार करने के बाद आपको शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है? .

व्यक्ति का जवाब थाः मामला उससे भी बड़ा है…. मेरी माँ और मेरे पिता….”?

दाई ने पूछा : आपके माता पिता का क्या हुआ ?

व्यक्ति ने कहा : मेरे पिता इस्लाम में प्रवेश करने से पूर्व ही मर गए,  उनका परिणाम क्या होगा? अल्लाह का शुक्र है कि मैं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और मेरे रब ने पथभ्रष्ठता से मुझे बचा लिया लेकिन मेरे माता पिता इस्लाम का परिचय प्राप्त करने से पहले ही प्रलोक सुधार गए .

वह निरंतर रोता रहा और हम सब से पूछता रहा कि ” भाइयो! अल्लाह के वास्ते मुझे बताओ कि मेरे माता पिता का जिम्मेदार कौन होगा जो इस दुनिया से चले गए लेकिन उन तक इस्लाम न पहुंच सका, अल्लाह ने मुझे तो मुक्ति दे दी लेकिन मेरे माता पिता…. इसका क्या समाधान है? उनके लिए मैं क्या कर सकता हूँ ? “

सवाल बड़ा मुश्किल था…. इस स्थिति में मुझे अल्लाह के रसूल सल्ल. की वह हदीस याद आ गई जब आपने अपनी मां की कब्र का दर्शन करते हुए कहा था : मैं ने अपने प्रभु से अपनी माँ के लिए माफी की अनुमति मांगी तो मुझे अनुमति नहीं मिली लेकिन मैंने उनकी कब्र की ज़ियारत की अनुमति मांगी तो मुझे अनुमति मिल गई. ” ( सहीह मुस्लिम 976)

एक व्यक्ति प्रभावित होता है और अपने माता पिता के बारे में सोचता है …. आज अरबों इंसान इस्लाम से कोसों दूर हैं, लोग अल्लाह की नहीं इंसानों की पूजा करते हैं, मुसलमान दुनिया की आबादी का छठा भाग हैं, शेष पांच भाग अन्य धर्मों के मानने वाले हैं,  कितने मूर्तियों की पूजा करते हैं, कितने गायों की पूजा करते हैं, कितने पत्थर की पूजा करते हैं, कितने अल्लाह के अस्तित्व के मुनकिर हैं. हमनें उनके लिए क्या किया और उनके प्रति क्या जिम्मेदारी निभाई ? अल्लाह तआला ने इस उम्मत के सम्बन्ध में कहा है :

 كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَتُؤْمِنُونَ بِاللَّـهِ ۗ  سورة آل عمران 110

“तुम एक उत्तम समुदाय हो जिसे लोगों के समक्ष लाया गया है, तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। ” (अले इम्रान आयत 110)

जी हाँ ! तुम सबसे उत्तम समुदाय हो…. किसके लिए पैदा किए गए हो….? लोगों के लिए पैदा किए गए हो. हम मुसलमानों को अन्य समुदायों पर प्रधानता इसलिए प्राप्त है कि हम लोगों को अल्लाह की ओर बुलाते हैं, भलाई का आदेश देते हैं, बुराई से रोकते हैं और लोगों की सुधार चाहते हैं।

इस नव मुस्लिम के आंसुओं का मंजर भूल नहीं सकता …. उसते सवाल की आवाज अब तक मेरे कानों में गूंज रही है.

आखिर उन हजारों बल्कि लाखों इंसानों का जिम्मेदार कौन है जो दैनिक मर रहे हैं, जिनकी अधिक संख्या अल्लाह पर यक़ीन नहीं रखती? अल्लाह ने फरमाया :

وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ   سورة آل عمران 85

जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा (आले इमरान 85)

 महा प्रलय के दिन कुछ लोग आएंगे जो कहेंगे: “हे हमारे रब, मेरे पास कोई डराने वाला नहीं आया “. यदि हम उन तक इस्लाम की दावत पहुंचाई होगी तो हम पर अल्लाह का आदेश सच्चा साबित होगा:

   وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِّتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا سورة البقرة 142

” और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, ” (सूरः अल-बक़रः 142)

 यह उस समय होगा जब हम इस्लाम के प्रचार की जिम्मेदारी निभाए होंगे…. लेकिन अगर किसी व्यक्ति ने इस्लाम का प्रचार नहीं किया, सुधार का काम नहीं किया और लोगों को अल्लाह का दीन नहीं सिखाया तो आखिर वह उन पर कैसे गवाह बन सकेगा . कल प्रलय के दिन वही लोग कहेंगे:

 मेरे पास कोई डराने वाला नहीं आया…. मेरे पास कोई दाई नहीं आया….मेरे पास कोई उपदेशक नहीं आया …. मेरे पास कोई धर्म प्रचारक नहीं आया…. मेरे पास कोई शिक्षक नहीं आया…. मेरे पास धर्म का आदेश देने वाला बुराई से रोकने वाला नहीं आया…. कोई ऐसा व्यक्ति नहीं आया जो हमें कलमा तय्येबा सिखा सके.

यह व्यक्ति…. अपने माता पिता पर अफसोस से रो रहा है, और आज कितने ऐसे इंसान हैं जो अपने माता पिता पर हसरत से रोते हैं? हम अगर चाहें तो हर मिनट पर एक आदमी को कुफ्र पर मरने से बचा सकते हैं.

तो आएं हमारी मंजिल है…. मुहम्मद सल्ल. के संदेश की वैश्विक शिक्षा सभी मनुष्यों तक पहुंचाना ताकि उन्हें इंसानों की इबादत से निकाल कर इनसानों के रब की पूजा करने वालों में शामिल किया जा सके .

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