ज़बान की सुरक्षा

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अल्लाह तआला ने मानव के शरीर को बहुत से अनमोल अंग से जोड़ दिया है जो अपने अपने स्थान पर बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य अन्जाम देते हैं और उस अंग के बिना मानव का शरीर अधूरा माना जाता है। उन्ही में से जबान भी अत्यन्त महत्वपूर्ण शरीर का एक भाग है, जो मानव को मृत्यु के पक्षपात या तो जन्नत में दाखिल करेगा या जहन्नम में प्रवेश होने का मुख्य कारण बनेगा।

जीभ के माध्यम से बहुत सी इबादतें की जाती हैं, अल्लाह की प्रशंसा और उसका जिक्रु अज़्कार किया जाता है। अल्लाह का शुक्र अदा किया जाता है। इसी प्रकार ज़बान से अल्लाह का कुफ्र तथा उसके साथ शिर्क किया जा सकता है, अल्लाह की अवज्ञा और बहुत से महा पाप अन्जाम दिये जा सकते हैं।

इसी लिए इस्लाम ने जीभ की सुरक्षा की ओर मानव को बहुत ज़्यादा उत्साहित किया है, बोले जाने वाली प्रत्येक बात को फरिश्ते सुरक्षित कर लेते हैं और कियामत के दिन उसी के अनुसार प्रतिफल दिया जाएगा। जैसा कि अल्लाह तआला ने कुरआन में लोगों को चेतावनी दी है। अल्लाह तआला का कथन है।

” إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ – مَّا يَلْفِظُ مِن قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَ‌قِيبٌ عَتِيدٌ ” ( سورة ق: 18

(और हमारे इस प्रत्यक्ष ज्ञान के अलावा) दो लिखने वाले उसके दाएँ और बाएँ बैठे हर चीज़ अंकित कर रहें हैं, कोई शब्द उसके मुख से नहीं निकलता जिसे सुरक्षित करने के लिए एक उपस्थित रहने वाला निरक्षक मौजूद न हो। (सुरः काफ.18)

पवित्र कुरआन की यह आयत स्पष्ट रूप से सुचित करती है कि मानव के जीभ से निकलने वाले प्रत्येक शब्द पर बदला दिया जाएगा। उसके बोलने वाले शब्द के अनुसार अच्छा बदला या बुरा बदला मिलेगा।

कर्म के प्रति जीभ की महत्वपूर्णता इस हदीस के अनुसार अधिक बढ़ जाती हैं। जैसाकि अबू सईद खुद्री (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः

إذا أصبح ابنُ آدمَ فإنَّ الأعضاءَ كلَّها تُكفِّرُ الِّلسانَ فتقول: اتَّقِ اللهَ فينا، فإنما نحن بك، فإن استقَمتَ استقَمْنا، و إن اعوَجَجْتَ اعْوجَجْنا. –  صحيح الجامع: العلامة الألباني: 351

 जब मानव का सुबह होता है, तो मानव के शरीर के सम्पूर्ण अंग जीभ से कहने लगते हैं, तुम हमारे प्रति अल्लाह से डरते रहो, हम तुम्हारे पीछे हैं, यदि तुम सही रास्ते पर चलते हो, तो हम भी सही रास्ते पर चलेंगे और यदि तुम गलत रास्ते पर चलने लगोगे, तो हम भी गलत रास्ते पर चलेंगे। (सही अल्जामिअः अल्लामा अलबानीः 351)

जब कोइ मानव अपने जीभ को सही तरीके से काबू में रखता है, तो वह उसका हृदय और उसका ईमान भी सही रास्ते पर अगरसर रहता है। जैसाकि अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः

لايَسْتَقِيمُ إِيمانُ عبدٍ حتى يَسْتَقِيمَ قلبُهُ، ولايَسْتَقِيمُ قلبُهُ حتى يَسْتَقِيمَ لسانُهُ، ولا يدخلُ رجلٌ الجنةَ لا يَأْمَنُ جارُهُ بَوَائِقَهُ. (صحيح الترغيب: الألباني: 2554

किसी दास का ईमान सही नहीं होगा,जब तक कि उसका हृदय सही न हो जाए और उसका हृदय सही नहीं होगा, जब तक कि उसकी जबान ठीक न रहे। व्यक्ति जन्नत में दाखिल नहीं होगा, जब तक कि उसका पड़ोसी उस के षड़यन्त्र से सुरक्षित न रहे। (सही अत्तर्गीबः अल्लामा अलबानीः 2865)

जबान से बहुत लोगों को खुश किया जाता है, तो बहुत लोगों को नाराज किया जाता है, परन्तु हम इन्सान को खुश करने के बजाए हमेशा अल्लाह को खुश करने का लक्ष्य रखें। क्योंकि अल्लाह की खुशी में ही दुनिया और आखिरत की खुशी आधारित है। जैसाकि हदीस उम्मुल मूमिनीन आईशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से वर्णित हैं। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः

مَنْ أرْضَى الناسَ بسخَطِ اللهِ وكَلَهُ اللهُ إلى الناسِ، و مَنْ أسخَطَ الناسَ برضااللهِ كفاهُ اللهُ مُؤْنَةَ الناسِ. (صحيح الجامع: 6010

जो व्यक्ति अल्लाह की नाराजगी में लोगों को खुश करने में लगा रहता है, तो अल्लाह उसे लोगों के हवाले कर देता है और जो व्यक्ति अल्लाह की खुशी प्राप्त करने में लोगों को नाराज़ कर देता है, तो अल्लाह उसके रोज़ी की ज़िम्मेदारी ले लेता है। (सही अल्जामिअः 6010)

क़ियामत के दिन मानव के मुक्ति और नजात का मूल कारण भी जीभ की सुरक्षा बनेगा। जैसाकि हदीस वर्णन हुआ है।

و عن عقبة بن عامر: قلتُ: يا رسولَ اللَّهِ ما النَّجاة ؟ قال:أمسِكْ عليْكَ لسانَكَ، وليسعْكَ بيتُكَ ، وابْكِ على خطيئتِكَ.   (صحيح الترمذي: 2406

उक्बा बिन आमिर(रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन हैः मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न कियाः ऐ अल्लाह के रसूल! कियामत के दिन मुक्ति कैसे प्राप्त होगी ?, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दियाः अपने जीभ को अपने कन्ट्रोल में रखो, और (फितनों के समय में) अपने घर को लाज़िम पकड़ो और अपने पापों पर आंसू बहाओ। (सुनन तिर्मिज़ीः 2406)

बेकार की शैखी बगाढ़ने वाले और अपनी बातों में गर्व करने वाले कियामत के दिन नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से बहुत दूर कर दिये जाएंगे। जैसाकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने स्वयं ही सुचित कर दिया है।

إنَّ مِن أحبِّكم إليَّ وأقربِكُم منِّي مجلسًا يومَ القيامةِ أحاسنَكُم أخلاقًا، وإنَّ مِن أبغضِكُم إليَّ وأبعدِكُم منِّي يومَ القيامةِ الثَّرثارونَ والمتشدِّقونَ والمتفَيهِقونَ، قالوا: يا رسولَ اللَّهِ، قد علِمنا الثَّرثارينَ والمتشدِّقينَ فما المتفَيهقونَ؟ قالَ: المتَكَبِّرونَ. (صحيح الترمذي: 2018

निः संदेह तुम में से वह मेरे पास ज्यादा प्रिय और बैठक के अनुसार ज्यादा नज्दीक होगा जो अच्छा और उत्तम आचरणवाले हो, और मेरे पास सब से अधिक अप्रिय और क़ियामत के दिन मुझ से दूर कर दिया जाएगा जो बहुत ज़्यादा बेकार की बातें करता है और जो अपनी भाषा शैली पर घमंड करते हुए बहुत बात करता और दुसरों को बात करने नहीं देता और जो गुरूर करने वाला और अहंकारी है। (सही तिर्मिज़ीः अलबानीः 2018)

जो व्यक्ति आवश्यक्तानुसार अच्छी बात करता है और बिना ज़रूरत के बात चीत नहीं करता बल्कि खामूश रहता है। तो ऐसा व्यक्ति बहुत बड़ी भलाइ में है। क्योंकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमानरखने वाले व्यक्तियों को अच्छी बात या खामूश रहने का सलाह दिया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमायाः

من كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فلا يؤذي جارَه ومن كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فليكرمْ ضيفَه . ومن كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فليقلْ خيرًا أو ليسكتْ . وفي روايةٍ : فليحسنْ إلى جارِه. (صحيح مسلم: 47)

जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता है, वह अपने पड़ोसी को कष्ट न पहुंचाएऔर जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है, तो उसे चाहिये कि अपने अतिथि की अच्छी तरीके से मेहमान नवाजी करे और जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है, तो उसे चाहिये कि अच्छी बात करे या खामूश रहे। (एक दुसरी रिवायत में वर्णन है) तो अपने पड़ोसियों के साथ एहसान का मामला करे। (सही मुस्लिमः 47)

वास्तविक मुस्लिम के हाथों और ज़बान के परेशानियों से दुसरे मुसलमान सुरक्षित रहता है। अर्थात् सही मुसलमान तो वह है जो किसी दुसरे मुसलमान को किसी भी प्रकार से परेशान नहीं करता, उन्हें तक्लीफ नहीं देता, उन्हें कष्ट और पीड़ा में ग्रस्त नहीं करता है। जैसा कि एक मुस्लिम की परिभाषा यही की गइ है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है।

” المسلم من سلم المسلمون من لسانه ويده ” – صحيح البخاري: 6484

 “ मुसलमान वह है जिस के हाथ तथा ज़बान के षड़यंत्र से दुसरे मुसलमान सुरक्षित रहे”। (सही बुखारीः 6484)

हम पारस्परिक हंसी मज़ाक में लोगों का मज़ाक उड़ाते हैं। लोगों को परेशान करते हैं और इसे मामूली समझते हैं। कभी भी हंसी मज़ाक में किसी की दिलआज़ारी के प्रति गम्भीरता से विचार नहीं करते कि इस हंसी मज़ाक का गुनाह और पाप क्या हो सकता है ? परन्तु अल्लाह के पास प्रत्येक वह शब्द जो हमारी ज़बान से निकलती है, उसका हिसाब देना पड़ेगा। इस हदीस पर विचार करें।

आईशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से फरमायाः सफीया को छोड़िये। वह ऐसी ऐसी है, अर्थात वह तो नाटी है..तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः तुमने ऐसा (गंदा) शब्द प्रयोग किया कि यदि उसे सागर में मिश्रण किया जाए तो सारा सागर गंदा हो जाए। (तख्रिज मिश्कातुल मसाबीहः 4781)

उपर्युक्त हदीस से स्पष्ट होता है कि मामूली बात भी बहुत बड़े गुनाह का कारण बन जाता है। इस लिए हम या तो अच्छी बात करें या खामूश रहें। इसी में हमारी सफलता भी है और मुक्ति भी।

बल्कि जो लोग भी अपने जीभ की रक्षा करते हैं और यदि कोई व्यक्ति उस पर ज़्यादती करते हुए नाहक उसे बुरा भला कहते है और वह खामूश रहकर सबर करता है। तो फरिश्ते खामूश रहने वाले की ओर से अत्यचारक पर शाप देते हैं। इस हदीस पर विचार करें।

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने साथियों के साथ पधारे हुए थे। तो एक व्यक्ति ने अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को बुरा भला कहा, और उसे पीड़ा पहुंचाया, तो अबू बकर खामूश रहे, फिर दुसरी बार उस व्यक्ति ने अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को बुरा भला कहा, और उसे पीड़ा पहुंचाया, तो अबू बकर खामूश रहे, फिर तीसरी बार उस व्यक्ति ने अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को बुरा भला कहा, और उसे पीड़ा पहुंचाया, तो अबू बकर ने उसके बुरा भला का जवाब दिया तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)वहां से उठ गए तो अबू बकर ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! आप मुझ से नाराज़ हो गए ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)ने फरमायाः जब व्यक्ति तुम पर अत्याचार कर रहा था, तो एक फरिश्ता आकाश से उतर कर उसे झुटला रहा था, तो जब तुम ने अपने ओर जवाब दिया तो शैतान तुम दोनों के बीच पड़ गया तो शैतान के दख्ल देने के बाद मैं नहीं बैठुंगा।  (सही अबू दाऊदः 4896)

उपर्युक्त हदीस पर विचार करें, तो स्पष्ट होता है कि अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) हक्क पर होने के बावजूद खामूश रहते हैं तो आकाश से फरिश्ता उतर कर उनकी ओर से अत्यचारक व्यक्ति के विरोध बद्दुआ करता है। परन्तु जैसे ही अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) अपनी ओर से जवाब देते हैं, फरिश्ते हट जाते हैं और शैतान दोनों के बीच आ जाता है। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सुचित किया।

गौया कि हक्क पर होने के बावजूद खामूश रहने से हक्क पर होने वाले व्यक्ति की मदद फरिश्ता करता है और खामूश रहने वाले का सवाब और पूण्य ज़्यादा होता रहता है और यह भी ज्ञान प्राप्त हुआ कि लोगों के पारस्परिक झगड़ों में शैतान का बहुत बड़ा दख्ल होता है। शैतान हमेशा झगड़ों को बढ़ावा देता है। इस लिए शैतान की इस चाल से हमेशा चौकन्ना रहना चाहिये और ऐसा न हो कि शैतान हमें पीड़ित से अत्याचारक बना दे। इस लिए हमेशा किसी के विरूद्ध किसी प्रकार का आक्रमण करने से पहले विचार करना चाहिये कि यह आक्रमण से हमें क्या प्राप्त होने वाला है, सवाब या पाप और पाप की स्थिति में उस आक्रमण से बचना चाहिये, क्योंकि दुनिया आखिरत की खेती है। आखिरत मे सफलता प्राप्त करना हम सब की मूल जिम्मेदारी है।  अल्लाह हम सब को शैतान की षड़यन्त्रों से सुरक्षित रखें। आमीन।

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