यदि कोई व्यक्ति किसी पाप में लीन है तो स्वाभाविक रूप में उसे पाप की गंभीरता का अनुभव तो होता है लेकिन शैतान के बहकावे में आकर और नफ़्स की इच्छा की पूर्ति के लिए निरंतर पाप करता जाता है। लेकिन सवाल यह है कि पाप से बचने का उपाय क्या हो, क्या करे कि पाप से बच सके और अल्लाह का आज्ञाकार बन सके…? तो इस सम्बन्ध में सब से पहले यह कहानी पढ़ें:
एक व्यक्ति इब्राहीम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह के पास आया और उन से अनुरोध कियाः ऐ अबू इस्हाक़! मैं बहुत बड़ा पापी हूं, अपने नफ्स पर बहुत अत्याचार करता हूं, मुझे कुछ सुझाव दीजिए कि मेरी सुधार हो सके।
इब्राहीम बिन अदहम रहिमहुल्लाह ने फ़रमाया: यदि तुम पाँच बात स्वीकार कर लो और उस पर जम जाओ तो पाप तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। आदमी ने कहा: बताइए वह पांच बातें क्या हैं?
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: (सब से पहली बात यह है कि ) जब तुम अल्लाह की अवज्ञा करो तो उसकी दी हुई जीविका से मत खाओ।
आदमी ने कहा: तो फिर कहाँ से खाऊं जबकि पृथ्वी की सारी जीविकायें उसी की उत्पन्न की हुई हैं।
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: ऐ व्यक्ति! क्या तुम को यह शोभा देता है कि तू उसी की जीविका से खाए और उसी की अवज्ञा करे?
व्यक्ति ने कहा: बिल्कुल नहीं….दूसरी बात बताइए।
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फ़रमाया: जब तुम अल्लाह की अवज्ञा करो तो उसके देश में मत रहो.
व्यक्ति ने कहा: यह बड़ा कठिन काम है, फिर रहने कहाँ जाएं….?
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: ऐ व्यक्ति! क्या तुम्हें शोभा देता है कि तू उसी की जीविका खाए, उसी की धरती पर रहे और उसी की अवज्ञा करे?
व्यक्ति ने कहा: बिल्कुल नहीं….तीसरी बात बताइए
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: ” जब तुम उसी की जीविका खा रहे हो, और उसी की पृथ्वी पर रह रहे हो तो अल्लाह की अवज्ञा करने के लिए ऐसी जगह चले जाओ जहाँ वह तुम्हें न देख रहा हो”.
व्यक्ति ने कहा: हम उस अल्लाह से कैसे छुप सकते हैं जब कि वह हर समय हमारी निगरानी कर रहा है।
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: ऐ व्यक्ति! क्या तुम्हें शोभा देता है कि तुम उसी की जीविका खाओ, उसी की जमीन पर रहो फ़िर इसी के समझ उसकी अवज्ञा करो, जो तुम्हें देख रहा है और तेरी एक एक हरकत से अवगत है?
व्यक्ति ने कहा: बिल्कुल नहीं, चौथी बात बताइए
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: जब मृत्यु का फ़रिश्ता तेरी रूह (आत्मा) निकालने आए तो उस से कहो कि थोड़ा समय दो ताकि तौबा कर के मरनोप्रांत जीवन की तैयारी कर लूं।
व्यक्ति ने कहा: (फ़रिश्ता तो) मेरी गुजारिश स्वीकार नहीं करेगा….
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: जब तुम पश्चाताप करने के लिए मौत को कुछ देर के लिए भी टाल नहीं सकते और जान रहे हो कि मौत का फरिश्ता आया तो एक सेकंड के लिए भी देरी नहीं हो सकती, तो मुक्ति की आशा क्यों कर रखते हो….?
व्यक्ति ने कहा: पांचवीं बात बताइए
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: जब जहन्नम (नरक) का दारोग़ा तुम्हें नरक की ओर ले जाने के लिए आये तो उस के साथ जाने से इनकार कर देना।
व्यक्ति ने कहा: वह तो मेरी एक न सुनेगा।
इब्राहिम बिन अद्हम रहिमहुल्लाह ने फरमाया: तो फिर मुक्ति की आशा कैसे रखते हो…?
व्यक्ति ने कहा: इब्राहीम! मेरे लिए इतना काफी है, मैं आज ही तौबा करता हूँ और अल्लाह से अपने पापों की क्षमा का सवाल करता हूं। उसके बाद उसने सच्ची तौबा की और अपना पूरा जीवन अल्लाह की इबादत और उपासना में गुज़ारा।
इस कहानी पर विचार करें तो आपके समक्ष विदित होगा कि एक व्यक्ति उस अल्लाह की अवज्ञा करता है जिसके उपकारों में वह सर से पैर तक डूबा हुआ है, उसी ने उसे तुच्छ वीर्य से बनाया, सुंदर शरीर प्रदान किया, बुद्धि और ज्ञान दिया, फ़िर वही उसको जीविका पहुंचा रहा है, उसी की पैदा की हुई ज़मीन पर चलता है, उसी की ज़मीन पर रहता है, फिर उसकी निगरानी में भी है, एक छण के लिए भी उसकी निगरानी से निकल नहीं हो सकता, वह उसे देख रहा है, उसकी बातों को सुन रहा है, उसका ज्ञान रखता है, उसके हृदय में उत्पन्न होने वाल बातों को भी जानता है और उसकी गरदन की रग से भी अधिक निकट है। उसके बावजूद क्या उसे शोभा देता है कि उसी के समक्ष उसकी अवज्ञा करे…? हालांकि वह अपनी मौत का मालिक नहीं, एक दिन उसे अचानक मृत्यु आ कर रहेगी, और वह फ़रिश्तों को भी धोखा नहीं दे सकता। तो फिर तुच्छ वीर्य से पैदा होने वाला इंसान पापों की साहस कैसे कर पाता है…?
अब आइए हम उन उपायों का विस्तृत रूप में वर्णन करते हैं जिनको सामने में रखते हुए एक व्यक्ति पाप से बच सकता है, यदि एक व्यक्ति निम्नलिखित उपायों को ध्यान में रखे तो किसी सूरत में पाप का साहस नहीं कर सकता जो कुछ यू हैं:
(1) यह अनुभव कि अल्लाह सुन रहा है और देख रहा है:
यदि आप यह अनुभव करें कि हम जो कुछ बोलते और करते हैं अल्लाह उसे सुन रहा और देख रहा है तो हम आसानी के साथ पाप से बच सकते हैं। यधपि आपने अपने कमरे का द्वार बंद कर रखा है आप एकांत में नहीं हैं अल्लाह आपको देख रहा है, जब एक व्यक्ति किसी इनसान के पास हो तो पाप करने का साहस नहीं कर पाता तो फिर संसार के सृष्टा के सामने में उसकी ग़ैरत को चुनौति देना क्यों कर उचित हो ककता है। कुरआन में बड़े स्पष्ट शब्दों में यह आदेश हैः
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّـهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ مَا يَكُونُ مِن نَّجْوَىٰ ثَلَاثَةٍ إِلَّا هُوَ رَابِعُهُمْ وَلَا خَمْسَةٍ إِلَّا هُوَ سَادِسُهُمْ وَلَا أَدْنَىٰ مِن ذَٰلِكَ وَلَا أَكْثَرَ إِلَّا هُوَ مَعَهُمْ أَيْنَ مَا كَانُوا ۖ ثُمَّ يُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ ﴿٧سورة المجادلة 7 ﴾
क्या तुमने इसको नहीं देखा कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कभी ऐसा नहीं होता कि तीन आदमियों की गुप्त वार्ता हो और उनके बीच चौथा वह (अल्लाह) न हो। और न पाँच आदमियों की होती है जिसमें छठा वह न होता हो। और न इससे कम की कोई होती है और न इससे अधिक की भी, किन्तु वह उनके साथ होता है, जहाँ कहीं भी वे हो; फिर जो कुछ भी उन्होंने किया होगा क़ियामत के दिन उससे वह उन्हें अवगत करा देगा। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है (सूरः अल- मुजादला 7)
एक दूसरे स्थान पर अल्लाह ने फ़मायाः
يَعْلَمُ خَائِنَةَ الْأَعْيُنِ وَمَا تُخْفِي الصُّدُورُ (سورة الغافر 19 )
वह निगाहों की चोरी तक को जानता है और उसे भी जो सीने छिपा रहे होते है (सूरः ग़ाफ़िर 19)
(2) यह एहसास कि फ़रिश्ते (स्वर्गदूत) रिकॉर्ड तैयार कर रहे हैं:
पापों से बचने का एक उपाय यह हो सकता है कि आदमी यह सोचे कि फरिश्ते उसकी एक एक हरकत को नोट कर रहे हैं, उसके दायें और बायें कंधे पर फ़रिशते निर्धारित किये गए हैं जो उसके एक एक काम को नोट कर रहे हैं। अल्लाह ने फ़रमायाः
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ ۖ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ ﴿١٦﴾ إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ ﴿١٧﴾ مَّا يَلْفِظُ مِن قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ﴿١٨﴾ سورة ق 16
हमने मनुष्य को पैदा किया है और हम जानते है जो बातें उसके जी में आती है। और हम उससे उसकी गरदन की रग से भी अधिक निकट है (सूरः क़ाफ़ 16)
هَـٰذَا كِتَابُنَا يَنطِقُ عَلَيْكُم بِالْحَقِّ ۚ إِنَّا كُنَّا نَسْتَنسِخُ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴿سورة الجاثية 29 ٢٩﴾
“यह हमारी किताब है, जो तुम्हारे मुक़ाबले में ठीक-ठीक बोल रही है। निश्चय ही हम लिखवाते रहे हैं जो कुछ तुम करते थे।” (सूरः अल-जासिया 29)
(3) यह ख्याल कि हमारे एक एक अंग हमारे खिलाफ गवाही देंगेः
क़यामत के दिन हमारे अंग हमारे खिलाफ गवाही देंगे कि हमने जिन अंगों के सहयोग से अपनी अवैध इच्छाओं की पूर्ति की थी वही अंग (हाथ, पैर, कान, आँख आदि) अल्लाह के सामने हमारे खिलाफ गवाही देंगे। अल्लाह ने फ़रमायाः
حَتَّىٰ إِذَا مَا جَاءُوهَا شَهِدَ عَلَيْهِمْ سَمْعُهُمْ وَأَبْصَارُهُمْ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴿ سورة فصلت 20﴾
तो उनके कान और उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन बातों की गवाही देंगी, जो कुछ वे करते रहे होंगे (सूरः फ़ुस्सिलत 20)
(4) यह विश्वास कि धरती हमारे विरोध गवाही देगीः
जिस धरती पर हमने पाप किया है वह धरती भी कल क़यामत के दिन हमारे विरोद्ध अल्लाह के पास गवाही देगी।
अल्लाह तआला ने सूरः ज़िलज़ाल में फरमायाः
إِذَا زُلْزِلَتِ الْأَرْضُ زِلْزَالَهَا ﴿١﴾ وَأَخْرَجَتِ الْأَرْضُ أَثْقَالَهَا ﴿٢﴾وَقَالَ الْإِنسَانُ مَا لَهَا ﴿٣﴾ يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبَارَهَا ﴿٤﴾ بِأَنَّ رَبَّكَ أَوْحَىٰ لَهَا ﴿٥﴾
जब धरती इस प्रकार हिला डाली जाएगी जैसा उसे हिलाया जाना है,(1) और धरती अपने बोझ बाहर निकाल देगी, (2) और मनुष्य कहेगा, “उसे क्या हो गया है?” (3) उस दिन वह अपना वृत्तांत सुनाएगी, (4)
क़ुरआन के अधिकतर व्याख्याकारों का विचार है कि धरती की वृत्तांत से अभिप्राय यह है कि जो कुछ अच्छाई और बुराई उसकी पीठ पर की गई होगी धरती को ज़बान दे दी जाएगी जो सारी वृत्तांत बयान करेगी। ( इब्ने कसीर 4/697)
इस सम्बन्ध में हज़रत अबू हुरैरा से वर्णित सुनन तिर्मिज़ी की एक हदीस भी बयान की जाती है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस आयत की तिलावत की फिर पूछाः क्या तुम जानते हो धरती की वृत्तांत क्या है ? लोगों ने कहाः अल्लाह और उसके रसूल अधिक जानते हैं। इसकी वृत्तांत यह है कि जिस पुरुष एवं स्त्री ने धरती की पीठ पर जो अच्छा या बुरा काम किया होगा इसके सम्बन्ध में सूचना देगी कि उसने फ़लाँ फ़लाँ दिन फ़लाँ फ़लाँ काम किया। ( तिर्मिज़ीः इस हदीस को अल्लामा अल-बानी ने ज़ईफ़ कहा है।
(5) पाप की गंभीरता का अनुभवः
पाप करते समय एक व्यक्ति को इस बात का भी अनुभव होना चाहिए कि पाप के कारण आदम और हव्वा स्वर्ग से निकाल दिये गये तो पाप में लिप्त होने के कारण हम स्वर्ग में प्रवेश कैसे कर सकते हैं और दुनिया में हमारे आने का उद्देश्य ही यही है कि हम स्वर्ग प्राप्त कर लें। फिर पाप का प्रभाव पापी के शरीर पर भी पड़ता है कि इसके कारण उसका चेहरा काला हो जाता है, उसका हृदय सख्त हो जाता है, उस पर दुनिया की सारी सृष्टि शाप देती है यहाँ तक कि जब अकाल पड़ता है तो जानवर शाप देते हुए कहते हैं कि यह इनसानों के पापों का परिणाम है। बल्कि पाप के कारण इनसान उस जीविका से वंचित कर दिया जाता है जो उसे मिल रही होती है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः
إن العبد يحرم الرزق بالذنب يصيبه رواه أحمد
एक बन्दा पाप के कारण अपनी जीविका से वंचित कर दिया जाता है जो उसे मिल रही होती है।
फिर इस बात का अनुभव कि यदि इसी स्थिति में हमारी मृत्यु हो गई तो हम अल्लाह को क्या मुहं देखाएंगे। अतः पाप करने से पहले मौत को याद करना पाप से बचने का उत्तम उपाय है।
(6) अच्छे लोगों की संगत अपनायें :
पाप में पड़ने का मूल कारण बुरी संगत होती है, कि सदैव इनसान अपने मित्र का तरीक़ा अपनाता है, इस लिए हमेशा एक व्यक्ति को अच्छी और नेक संगत अपनानी चाहिए और बुरी संगत से बचना चाहिए कि अच्छी संगत से इनसान अच्छे काम करने वाला बनता है और बुरी संगत से इनसान बुरे काम करने वाला बनता है। तब ही तो अल्लाह के रसूल सल्ल. ने अच्छी संगत को सुगंध बैजने वाले के समान बताया कि उस से एक व्यक्ति या तो सुगंध खरीद लेता है या वह उसे कुछ दे देता है, वरना वहाँ रहने से उसे अच्छी खुशबू अवश्य मिलती है और बुरी संगत को भट्टी धूंकने वाले लोहार से तश्बीह दी कि या तो वह तुम्हारे कपड़े जला देगा या वहाँ रहने के कारण तुझे अप्रिय गंध मिलेगी।
(7) एकांत में रहने से बचें :
बुराई से बचने का एक सरल तरीक़ा यह है कि हम एकांत में रहने से बचें क्योंकि जब एक व्यक्ति एकांत में होता है तो शैतान का दबाव उस पर सख्त हो जाता है, शैतान उसके समक्ष बुराई को अच्छा से अच्छा बना कर प्रस्तुत करता है और उसे बार बार बुरे काम पर उभारता है यहाँ तक कि पाप करने वाले के मन में बुराई से मुहब्बत पैदा होने लगती है।