तौहीद का महत्व

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तौहीद शब्द अरबी भाषा का शब्द है, वह्हद युवह्हिदु का मस्दर (स्रोत) है, जिसका अर्थः एक मानना, यकता समझना होता है।

इस्लामी परिभाषा में तौहीद अल्लाह तआला को उसके वजूद में, उसके प्रभुत्व में, उसकी उपासना में तथा उसके नामों और गुणों में उसे एक जानने का नाम है।

इस परिभाषा के अनुसार तौहीद में अल्लाह के वजूद पर ईमान लाना भी शामिल है, उसके रब होने पर ईमान लाना भी शामिल है, उसके लिए इबादत के सारे कामों को विशेष करना भी शामिल है, और उसको उसके पवित्र नामों और गुणों में उसे एक जानना भी शामिलहै।

तौहीद प्रत्येक मानव के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। क्योंकि अल्लाह ने तौहीद के लिए ही  धरती और आकाश को बनाया, इसी के लिए इनसानों और जिनों को पैदा किया, इसी के लिए जन्नत और जहन्नम बनाया, इसी के लिए संदेष्टाओं को भेजा, इसी के लिए किताबें उतारी, मानो तौहीद के वजूद से दुनिया का वजूद है और दौहीद का नष्ट होना दुनिया की समाप्ती की घोषना है। 

1- अल्लाह तआला ने आकाश और धरती की रचना केवल तौहीद के लिए की है, जैसा कि अल्लाह का आदेश  हैः

إِنَّ رَبَّكُمُ اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مَا مِنْ شَفِيعٍ إِلَّا مِنْ بَعْدِ إِذْنِهِ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ- سورة يونس:  3

निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान होकर व्यवस्था चला रहा है। उसकी अनुज्ञा के बिना कोई सिफ़ारिश करने वाला भी नहीं है। वह अल्लाह है तुम्हारा रब। अतः उसी की बन्दगी करो। तो क्या तुम नसीहत प्राप्त नहीं करते ? –  (सूरः युनूस-10: 3)

2- तौहीद के लिए ही अल्लाह ने सर्व मानव तथा जिन्न की रचना की, जैसा की अल्लाह का कथन हैः

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ- (سورة الذاريات: 56 )

मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत (पूजा) करे।  (51- सूरः अज्ज़ारियातः 56)

दुसरी आयत में अल्लाह का फरमान हैः

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ- الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ– (سورة البقرة: 21)

ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको; –  वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ । (2- सूरः अल-बकराः 22)

3-  प्रत्येक नबियों ने अपनी अपनी क़ौम को सब से पहले तौहीद की ओर ही बुलाया, जैसा कि अल्लाह का फरमान हैः

وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ– (سورة الانبياء: 25)

हमने तुमसे पहले जो रसूल भी भेजा, उसकी ओर यही प्रकाशना की कि मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तुम मेरी ही बन्दगी करो।” ( सूरः अन्बियाः 25)

4- तौहीद की शिक्षा के प्रचलण के लिए अल्लाह तआला ने आसमानी पुस्तकें उतारी, जैसा कि अल्लाह का कथन हैः

الر كِتَابٌ أُحْكِمَتْ آيَاتُهُ ثُمَّ فُصِّلَتْ مِنْ لَدُنْ حَكِيمٍ خَبِيرٍ – أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنَّنِي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ – (سورة هود: 2)

अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। (इन अक्षरों की माना अल्लाह ही जानता है) यह एक किताब है जिसकी आयतें पक्की है, फिर सविस्तार बयान हुई हैं; उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, पूरी ख़बर रखनेवाला है (1) कि “तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मैं तो उसकी ओर से तुम्हें सचेत करनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला हूँ।” – (11-सूरः हूदः 2)

5-  तौहीद  मानव को मानव की दास्ता से निकाल कर अल्लाह की दास्ता के रास्ते पर अग्रसर कर  देता है।

6- तौहीद पर अमल करने से पाप क्षमा कर दिये जाते हैं।

7- जो लोग तौहीद के अनुसार जीवन बिताते हैं, उन्हें पूर्ण रुप से अमन मिलता है और  शान्ति प्राप्त होती है, जैसा कि अल्लाह का फरमान हैः

الَّذِينَ آمَنُوا وَلَمْ يَلْبِسُوا إِيمَانَهُمْ بِظُلْمٍ أُولَٰئِكَ لَهُمُ الْأَمْنُ وَهُمْ مُهْتَدُونَ- سورة الأنعام: 82

“जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान में किसी (शिर्क) ज़ुल्म की मिलावट नहीं की, वही लोग हैं जो भय से मुक्त है और वही सीधे मार्ग पर हैं।”    (6-सूरः अन्आमः 82)

8- तौहीद पर अमल करने से ही अल्लाह बन्दों के नेक कर्म स्वीकार करेगा और उसका अच्छा परिणाम देगा। क्योंकि शिर्क करने वालों के अमल बर्बाद और नष्ट हो जाते हैं। उसे अपने कर्मों का कल क़यामत के दिन कोई लाभ मिलने वाला नहीं है, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन हैः

وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ – بَلِ اللَّهَ فَاعْبُدْ وَكُنْ مِنَ الشَّاكِرِينَ – (سورة الزمر39- 66)

अर्थः तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, उनकी ओर भी वह्य की जा चुकी है कि ” यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया-धरा अनिवार्यतः अकारथ जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़नेवालों में से हो जाओगे।” (65) नहीं, बल्कि अल्लाह ही की बन्दगी करो और कृतज्ञता दिखानेवालों में से हो जाओ। (सूरः अल्ज़ुमरः 66)

ऊपर की आयत में अल्लाह तआला ने स्पष्ट कर दिया कि तौहीद पर अमल से अल्लाह परसन्न होता है और शिर्क करने वाले के नेक कर्म को नष्ट कर देता है यधपि वह नबी या रसूल हो।

9-  नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) क़ियाम के दिन तौहीद पर अमल करने वालों की सिफारिश अल्लाह तआला से करेंगे और नबी की सिफारिश के यही लोग हक्कदार होंगे। जैसा कि हदीस में वर्णन हैः अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूंछा, ऐ अल्लाह के रसूल! क़ियामत के दिन आप की सिफारिश का सब से अधिक हक़्कदार कौन होगा ? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ऐ अबू हुरैरा, मुझे पूरा अनुमान था कि यह प्रश्न सर्व प्रथम तुम ही करोगे, क्योंकि मैं तुम्हें हदीस के प्रति वहुत व्याकुल पाता हूँ। क़ियामत के दिन मेरी सिफारिश का हक्कदार वही व्यक्ति होगा जिसने केवल एक अल्लाह की इबादत की प्रतिज्ञा और उसके अनुसार अमल सच्चे हृदय के साथ किया हो। (सही बुखारीः हदीस संख्याः 99)

10- तौहीद ही जन्नत में दाखिल होने का कारण बनता है। यदि कोइ व्यक्ति अपने पापों के कारण जहन्नम में प्रवेश होता है तो अपने तौहीद के कारण जहन्नम से निकाल कर जन्नत में दाखिल किया जा सकता है। परन्तु शिर्क करने वाले लोग हमेशा जहन्नम में रहेंगे जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमायाः जाबिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः तौहीद पर अमल करने वाले कुछ लोगों को जहन्नम में यातनाऐं दी जाएंगी यहाँ तक कि वह कोएले हो जाऐंगे। फिर अल्लाह की दया उन्हें पहुंचेगी। तो वह लोग जहन्नम से निकाले जाऐंगे और जन्नत के द्वारों पर डाल दिये जाऐंगे और जन्नत वासी उन पर जन्नत के पानी का छींटा मारेंगे तो उन के शरीर बहुत तेज़ी से नशू नुमा होने लगेगा। फिर वह लोग जन्नत में दाखिल किये जाऐंगे। (सुनन तिर्मिज़ीः हदीस क्रमांकः 2597)

इन के अलावा भी तौहीद की बहुत सी फज़ीलत है। जिन के कारण तौहीद का ज्ञान और तौहीद के अनुसार कर्म करना ही प्रत्येक मुस्लिम पर सर्व प्रथम अनिवार्य है।

तौहीद को तीन विभागों में विभाजित किया गया हैः

 (1)  तौहीद रुबूबियत का अर्थः यह है कि आदमी दृढ़ विश्वास रखे कि अल्लाह ही संसार और उसकी हर वस्तु का मालिक और स्वामी है, वही सम्पूर्ण संसार की रचना करने वाला है, वही सब को जीविका देता है, वही सब को मृत्यु देता है, वही सब को जीवित करता है। इसी चीज़ को याद दिलाते हुए अल्लाह तआला फरमाता है।

” رب السموات و الأرض و مابينهما إن كنتم مؤقنين– لا إله إلا هو يحي ويميت ربكم ورب آباءكم الأولين ” –  الدخان: 8

अर्थातः वह आकाशों और धर्ती का रब और हर उस चीज़ का रब जो आकाशों और धर्ती के बीच हैं यदि तुम लोग वास्तव में विश्वास रखने वाले हो, कोई माबूद उसके सिवा नहीं है। वही जीवन प्रदान करता है और वही मृत्यु देता है। वह तुम्हारा रब है और तुम्हारे उन पुर्वजों का रब है जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं।”   (सूरः दुखानः 8)

(2)  तौहीद उलूहियत का अर्थः यह है कि बन्दा इस बात का प्रतिज्ञा करे कि इबादत और उपासना की सम्पूर्ण क़िस्में केवल अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह तआला ने अपनी इबादत के लिए ही आकाशों और धरती की रचना की और फिर मनुष्य तथा जिन्नों को इस पर बसाया ताकि वह केवल एक अल्लाह की पूजा करे अल्लाह ही से आशा लगाए, अपनी हर संकट और परेशानियों में अल्लाह ही को पुकारे, अल्लाह के लिए बलिदान दे, तो जो उसके आज्ञानुसार चलेगा, उसको पुरस्कार देगा और जो उस के आज्ञा के विरूद्ध चलेगा ,उसको डंडित करेगा। अल्लाह तआला ने मनुष्य तथा जिनों के उत्पन्न का लक्ष्य अपनी इबादत ही बयान किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र क़ुरआन में है।

و ما خلقت الجن والإنس إلا ليعبدون”  – الذاريات:56

आयत का अर्थः मैं ने जिन और मनुष्य को इसके सिवा किसी काम के लिए पैदा नहीं किया कि वह मेरी बन्दगी करे ” (सूरः अज़्ज़ारीयातः 56)

 (3)  तौहीद अस्मा व सिफातः अर्थात्  अल्लाह तआला को उनके नामों और विशेषताओं में एक माना जाऐ और अल्लाह के गुनों और विशेषताओं तथा नामों में कोई उसका भागिदार नहीं है। इसी तरह अल्लाह के इन विशेषताओं और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जिस तरह अल्लाह ने उसको अपने लिए बताया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेषता के बारे में खबर दिया है और उन सिफात  (विशेषताओं) और गुनों को न माना जाऐ जिस विशेषता का इन्कार अल्लाह ने अपने से किया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेषता का इन्कार किया है ।  जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र क़ुरआन में है।

ليس كمثله شيء وهوالسميع البصير-  الشورى- 11

अल्लाह के जैसा कोई नहीं है और अल्लाह तआला सुनता और देखता है।”  (सूरः अश्शूराः 11)

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