तौहीदे रुबूबियत

अल्लाह समुन्दर में सोनामी लाता है।

हम अपने मालिक और सृष्टिकर्ता को तौहीदे रुबूबियत, तौहीदे उलूहियत और तौहीदे अस्मा व सिफ़ात के माध्यम से पहचान सकते हैं। क्योंकि प्रत्येक मानव पर अनिवार्य है कि वह अपने मालिक और सृष्टिकर्ता की पहचान प्राप्त करने की कोशिश करे और अपने मालिक की पहचान प्राप्त करने के बाद केवल उसकी इबादत  करे।

रब्ब का अर्थ क्या है ?

अरबी भाषा में रब्ब शब्द विभिन्न अर्थों में  प्रयोग होता है, जैसे मालिक, सरदार, पालने वाला और नेमत प्रदान करने वाला इत्यादि

परन्तु रब्ब शब्द अल्लाह के अलावा किसी अन्य के लिए इज़ाफत के साथ प्रयोग होता है। उदाहरण- स्वरूप, रब्बुद्दार ( घर का मालिक) , रब्बुद्दाब्बाः (मवैशी का मालिक) आदि लेकिन यदि रब्ब बिना किसी इज़ाफत के प्रयोग हो तो केवल अल्लाह के लिए प्रयोग होगा क्योंकि प्रत्येक वस्तु का वास्तविक मालिक अल्लाह ही है, जिसका कोई भागीदार नहीं।

तौहीदे रूबूबियत का मतलब क्या है ?

अल्लाह तआला को उसके कामों में तन्हा और यकता समझना तौहीदे रूबूबियत कहलाता है। मतलब यह कि मानव यह दृढ़ विश्वास रखे कि अल्लाह ही अकेला हर चीज़ का रब्ब है और वही उसका वास्तविक मालिक है। अल्लाह ही सम्पूर्ण वस्तुओं का सृष्टिकर्ता है। वह तन्हा सब को जीवन प्रदान करता है, और मृत्यु देता है। वह अत्यन्त शक्तिशाली और प्रत्येक सृष्टियों को रोज़ी प्रदान करता है।  वह तन्हा ही दुनिया के सम्पूर्ण व्यवस्था को चलाने वाला है। वही तन्हा काइनात में प्रत्येक प्रकार का परिवर्तन करता है। उस का कोई भागीदार नहीं। वह एकेले दुनिया का प्रबन्ध चलाता है, कोई उसका साझीदार नहीं, वही किसी को सत्ता देता है और किसी से सत्ता छीन लेता है, कोई उसा साझीदार नहीं, वही किसी को इज़्ज़त देता है और किसी को अपमानित करता है। उस की रुबूबियत में कोई उसका साझीदार नहीं।  

अल्लाह तआला सम्पूर्ण वस्तुओं का रब और पालन पोषक है जैसा कि अल्लाह का फरमान है। “ आकाशों और धरती का रब और जो कुछ उन दोनों के बीच है उसका भी, यदि तुम विश्वास रखने वाले हो- उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं; वही जीवित करता और मारता है; तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादों का रब है। (सूरः अद्दुखान-44: 8)

अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तुओं का सृष्टिकर्ता है और उनकी रचना में उसका कोई भागीदार नहीं, अल्लाह का फरमान हैः

निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया- फिर अर्श पर विराजमान हुआ। वह रात को दिन पर ढाँकता है जो तेज़ी से उसका पीछा करने में सक्रिय है और सूर्य, चन्द्रमा और तारे भी बनाए, इस प्रकार कि वे उसके आदेश से काम में लगे हुए है। सावधान रहो, उसी की सृष्टि है और उसी का आदेश है। अल्लाह सारे संसार का रब, बड़ी बरकतवाला है।   ( सूरः अल-आराफः 54)

अल्लाह ही मानव और उसके कर्मों की रचना करने वाला है, अल्लाह का फरमान हैः

“अल्लाह ने तुम्हें भी पैदा किया है और उनको भी, जिन्हें तुम करते हो?” (सूरः अस्साफ्फातः 54)

 हुजैफा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः बेशक अल्लाह ने हर बनाने वाले को और उसकी बनाई हुई चीज़ को पैदा किया है। (सहीहुल्-जामिअः शैख अल्बानीः 1777)

प्रत्येक वस्तुओं में केवल उसी का आदेश चलता है, हर चीज़ उस के आदेश और आज्ञा का पालन करती है, प्रत्येक जीवधारी की रोज़ी का वही जिम्मेदार है। धरती और समुद्र पर बसने वाले सब को रोजी देने की जिम्मेदारी अल्लाह ने उठा रखी है, अल्लाह का फरमान हैः  धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है, उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह जानता है जहाँ उसे ठहरना है और जहाँ उसे सौपा जाना है। सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है।  (सूरः हूदः 6)

अल्लाह तआला ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि और मानव को रोजी देने का बयान कर के अपनी रुबूबियत पर प्रमाण प्रस्तुत किया है, अल्लाह का फरमान हैः अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को ठहरने का स्थान बनाया और आकाश को एक भवन के रूप में बनाया, और तुम्हें रूप दिया तो क्या ही अच्छे रूप दिया, और तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी दी। वह है अल्लाह, तुम्हारा रब। तो बड़ी बरकत वाला है अल्लाह, सारे संसार का रब। (सूरः ग़ाफिरः 64)

दुनिया की व्यवस्था में अल्लाह का आदेश चलता है, क्योंकि अल्लाह ही प्रत्येक वस्तुओं का मालिक है, वही बादशाहों का बादशाह है, वह जिसे चाहता है सत्ता देता है, और जिस से चाहता है सत्ता छीन लेता है, जिसे चाहता है दुनिया में आदर-सम्मान देता है और जिसे चाहता है रूसवा करता है, जैसा कि अल्लाह का फरमान हैः कहो, “ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है (26) “तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, बेहिसाब देता है।” (  सूरः आले-इम्रानः 27)

अल्लाह ही धरती में भूकंप लाता है और सागर में सोनामी लाता है, आकाश से वर्षा लाता है, और धरती में हरयाली उत्पन्न करता है, और आकाल भी लाता है। तात्पर्य यह कि दुनिया में होने वाले प्रत्येक प्रकार का बदलाव केवल उसी के आज्ञानुसार होता है।

एक मोमिन का सब से महान धन उसका ईमान है, उसे अपने ईमान के प्रति गम्भीरता से विचार करना चाहिये कि वह अपने ईमान के साथ शिर्क का संमिश्रण तो नहीं कर रहा है। अल्लाह के साथ शिर्क कर के अपनी नेकियों को नष्ट तो नहीं कर रहा है। क्योंकि ईमान और शिर्क एक साथ एकत्र नहीं हो सकता, चाहे शिर्क अल्लाह की उलूहियत में किया जाए या रुबूबियत में या अल्लाह के नामों और गुणों में,  अल्लाह तआला ने मोमिनों को शुभसूचना सुनाई जो अपने ईमान को शिर्क से बचाते हैं ः

الَّذِينَ آمَنُوا وَلَمْ يَلْبِسُوا إِيمَانَهُمْ بِظُلْمٍ أُولَٰئِكَ لَهُمُ الْأَمْنُ وَهُمْ مُهْتَدُونَ –  سورة الأنعام: 82 

“जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान में किसी (शिर्क) ज़ुल्म की मिलावट नहीं की, वही लोग है जो भय मुक्त हैं और वही सीधे मार्ग पर हैं।” (सूरः अन्आमः 82)

अल्लाह तआला के साथ किसी भी प्रकार का शिर्क करना सब से बड़ा पाप है और शिर्क करने वाले को अल्लाह तआला कभी भी क्षमा नहीं करेगा।

 अल्लाह का फरमान हैः

أَمَّنْ يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَنْ يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ أَإِلَٰهٌ مَعَ اللَّهِ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ –   سورة النمل: 63 

या वह जो थल और जल के अँधेरों में तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और जो अपनी दयालुता के आगे हवाओं को शुभ-सूचना बनाकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? उच्च है अल्लाह, उस शिर्क से जो वे करते है।   ( सूरः अन-नमलः 63)

तौहीदे रुबूबियत के लाभः

अल्लाह तआला को उसकी रुबूबियत में यकता मानने से बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं उन में से कुछ का वर्णन निम्न में किया जा रहा है:

(1) तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से अल्लाह की महानता का ज्ञान होता है।

(2) तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से हृदय को सुकून, शान्ति और सन्तुष्टि मिलती है कि हमारा रब्ब बहुत ज़्यादा शक्तिशाली और महान है जिसका कोई साझीदार नहीं।

(3) तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से मोमिन के अन्दर नरमी पैदा होती है।

(4)  तौहीदेरुबूबियत के ज्ञान से अल्लाह पर भरोसा और विश्वास दृठ होता है।

(5)  तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से अल्लाह की मदद आती और सहायता मिलती है।

(6)  तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से अल्लाह पर भरोसा दृढ़ होता है कि अल्लाह ही हर प्रकार की परेशानी को दूर करने वाला है। 

(7)  तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से अल्लाह के साथ होने का एहसास होता है। 

(8)  तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से मोमिन निर्भय और बे-खौफ होता है कि अल्लाह ही लाभ और हानि का मालिक है।

(9)  तौहीदे रुबूबियत के ज्ञान से मूमिन प्रत्येक कार्य केवल अल्लाह की प्रसन्नता और खुशी के लिए करता है।

अल्लाह हमें दीन की सही समझ प्रदान करे और दुनिया तथा आखिरत में सफलता दे। आमीन।

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