भाग्य (क़िस्मत) के अच्छे या बुरे पर ईमान

Fatalism

(6)   ईमान का छठा स्तम्भः   भाग्य (क़िस्मत) के अच्छे या बुरे पर ईमान है।

भाग्य का अर्थात यह कि अल्लाह ने अपने पुर्व कालिन ज्ञान और अपनी हिक्मत के बिना पर इस काइनात की रचना की है और इन सब को लौट कर अल्लाह की ओर जाना है। अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तु का स्वामी है और सब पर उस की शक्ति है। जो चाहता है करता है। उसने अपने ज्ञान से सर्व मनुष्य के भाग्य में अच्छा या बुरा लिख दिया है। अब वैसा ही होगा जैसा कि अल्लाह तआला ने लिख दिया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।

” ما اصاب من مصيبة في الأرض ولا في السماء ولا في أنفسكم إلا في كتاب من قبل أن نبرأها- إن ذلك على الله يسير – لئلا تاسوأ على ما فاتكم ولا تفرحوا بما أتاكم  ” – الحديد:32

इस आयत का अर्थातः “ कोइ भी मुसीबत, संकट, परेशानी एसी नहीं है जो धरती में या तुम्हारे ऊपर उतरती है और हम ने उस को पैदा करने से पहले एक किताब में लिख न रखा हो, एसा करना अल्लाह के लिए बहुत ही सरल कार्य है?  ताकि जो कुछ भी हाणि तुम को पहुंचे उस पर तुम्हारा दिल छोटा न हो, और जो कुछ भी लाभ तुम को पहुंचे उस पर तुम फूल न जाओ ”

भाग्य के चार दर्जे हैं।

 इन चारों पर ईमान लाना जरूरी है।

(1)  अल्लाह के अज्ली इल्म पर ईमान लाना जो कि प्रति वस्तु को सम्मिलित है और घेरे हुए है।

” ألم تعلم أن الله يعلم ما في السموات و الأرض ” – الحج:70

“ क्या तुम जानते नहीं कि आकाश और धरती की हर चीज़ अल्लाह के ज्ञान में है। सब कुछ को एक किताब में अंकित किया है। अल्लाह के लिए यह बहुत सरल है।“  (सूरः अल-हज्जः 70)

(2) अल्लाह ने अपने इल्म की बिना जो नसीब में लिख दिया है। उस पर ईमान लाया जाए। अल्लाह तआला का कथन है।

” ما فرطنا في الكتاب من شيئ ”  – الأنعام: 38

अर्थः “ हम्ने भाग्य के लेख में कोइ कमी नहीं छोड़ी है।” (सूरः अन्आमः 38)

रसूल स0 अ0 स0 ने फरमाया

” كتب الله مقادير الخلائق قبل أن يخلق السموات و الأرض بخمسين ألف سنة، قال وعرشه على الماء “- صحيح مسلم: 2653

अर्थः “ अल्लाह तआला ने आसमानों और धरती के रचने से पचास हज़ार वर्ष पुर्व ही सर्व मानव के भाग्य को लिख दिया है। आप ने फरमायाः और उस (अल्लाह ) का अर्श (सिंहासन) पानी पर था।” (सही मुस्लिमः 2653)

(3)   हर चीज़ अल्लाह की इच्छा और चाहत से होती है। बिना उस के अनुमति के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, इसी बात पर कठोर विश्वास रखा जाए। अल्लाह तआला फरमाता है।

” و ما تشاؤون إلا أن يشاء الله رب العالمين ” – التكوير: 29

 आयत का अर्थः “ और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता जब तक सारे संसार का स्वामी अल्लाह न चाहे” (सूरः अत-तक्वीरः 29)

(4)  अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तु का उत्तपादक तथा रचनाकर्ता है। उसने प्रति वस्तु को मनुष्य के प्रयोग के लिए पैदा किया और मनुष्य को अल्लाह की इबादत के लिए पैदा किया है। अल्लाह तआला का कथन है।

” الله خالق كل شيئ وهو على كل شيئ وكيل ” – الزمر:62

आयत का अर्थः “ अल्लाह हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वही हर चीज़ पर निगह्बान है।”(सूरः अज़्-ज़ुमरः 62)

 

भाग्य तीन प्रकार के हैं।

(1) वह भाग्य जिस के खत्म करने या लौटाने की शक्ति बन्दो को नहीं है। उदाहरण स्वरुपः आकाश तथा धरती में आने वाले संकट, भूकंप, वर्षा का होना, जीविका का कम या अधिक प्राप्त होना, संतान का जन्म, मानव को रोग या स्वस्थ में लिप्त होना तथा मानव का देहांत पाना, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَمَنْ زُحْزِحَ عَنِ النَّارِ وَأُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ – سورة آل عمران: 185

इस आयत का अर्थः “प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखनेवाला है, और तुम्हें तो क़ियामत के दिन पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। अतः जिसे आग (जहन्नम) से हटाकर जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, वह सफल रहा। रहा सांसारिक जीवन, तो वह माया-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं।” (सूरः आले इम्रानः 185)

दुसरी आयात में अल्लाह तआला ने रोजी के वितरण के प्रति फरमाया है और जो लोग अपने रोज़ी से कुछ मात्रा गरीबों तथा ज़रूरतमन्दों को दान करता है तो अल्लाह उसे अधिक रोज़ी प्रदान करता है। जैसा कि अल्लाह का फरमान है।

قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ – سورة: سبا: 39

इस आयत का अर्थः “कह दो, “मेरा रब ही है जो अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। और जो कुछ भी तुमने ख़र्च किया, उसकी जगह वह तुम्हें और देगा। वह सबसे अच्छा रोज़ी देनेवाला है।” (सूरः सबाः 39)

(2)  इस भाग्य को समाप्त करना मानव की शक्ति से बाहर है। परन्तु मानव इस की मार्गदर्शन कर सकता है और इस की तेजी को कम करने की शक्ति है, उदाहरण के तौर पर , इन्सानी भावना, मेल-जोल, वातावरण, और पुर्वज से प्राप्त परंपरा और रीति-रेवाज आदि.

भावनाओं और मानव अवश्यक्ता को बिल्कुल समाप्त करने का आज्ञा हमें नहीं दिया गया है और नहीं यह हमारी शक्ति में है। बल्कि इन चीज़ों का अच्छा मार्गदर्शण करना ही हमारे लिए मुक्ति का कारण बनेगा और अनुमित वस्तु का प्रयोग हमारे लिए लाभदायक होगा। जैसा कि अल्लाह तआला के नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “  तुम अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना भी पुण्य का कार्य है।”

मानव लोगों के साथ मैल-जौल कर रहना पसन्द करता है। अल्लाह तआला ने भी इसी का आज्ञा दिया है। कि हम अच्छे , सच्चे लोगों को सोथ रहें , मूल आदर्श के मालिक व्यक्ति को साथी बनाया जाए और बुरे लोग, करपटाचारी लोगों से दूर तथा अलग थलग रहा जाऐ, नहीं तो तुम भी गलत समझे जाओगो,

” يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله وكونوا مع الصادقين  ” – سورة التوبة: 119

“ ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो, और सच्चे लोगों के साथ रहो।” (सूरः तौबाः 119)

तो इन दोनों भागय में  उपस्थित होने वाली चीज़ों पर बदला नहीं है बल्कि इन चीजों के अच्छे या बुरे प्रयोग पर बदला दिया जाएगा।

(3)   वह कार्य जिस के करने या न करने का मानव को इख्तियार और शक्ति दी गई है। चाहे तो वह कार्य करे और चाहे तो न करे, इसी भाग्य पर मानव से प्रश्न किया जाएगा, अल्लाह की आज्ञाकारी पर पुरस्कार मिलेगा और अवज्ञाकारी पर डंडित किया जाएगा। अल्लाह तआला अपने आज्ञा के अनुसार जीवन बिताने के लिए मानव के बीच अपने ग्रन्थों और रसूलों को भेजा और इन रसूलों और पुस्तकों के माध्यम से आदेश दिया कि मानव इन रसूलों और पुस्तकों के शिक्षानुसार जीवन गुज़ारे, जो लोग इन रसूलों और पुस्तकों के शिक्षानुसार जीवन गुज़ारेंगे, वह सवर्ग में प्रवेश होंगे और जो लोग इन रसूलों और पुस्तकों के शिक्षा के अवज्ञाकारी करेंगे, तो उन्हें नरक में डाला जाएगा। इसी भाग्य के प्रति मानव से बाज़ पुर्स किया जाएगा।

जिन लोगों ने अप्राध किया ,पाप किया, परन्तु अल्लाह के साथ शिर्क न किया होगा तो आशा है कि अल्लाह चाहे तो उसे क्षमा कर देगा या चाहे तो कुछ सजा दे।

भाग्य के अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1)   मेहनत और उपाए करते हुए अल्लाह पर विश्वास रखा जाए, क्यों कि मेहनत का फल अल्लाह की चाहत पर निर्भर करता है।

(2)  हृदय को हर हाल में शान्ति प्राप्त होगी। यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ तो भी अल्लाह का शुक्र अदा किया जाए। और यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त न हुआ तो भी अल्लाह के दी हुई भाग्य पर सन्तुष्टी मिलेगी।

(3)   यदि मेहनत का अच्छा और उत्तम फल मिला है तो इस पर न इतराए और घमंड न करे बल्कि अल्लाह का एह्सान माने और अल्लाह का शुक्र अदा करे।

(4) किसी अप्रिय वस्तु के प्रकट होने या लक्ष्य को प्राप्त न करने पर या मेहनत का अच्छा फल न मिलने पर ग़म या परेशान न हो, बल्कि इस बात पर परसन्न हो कि यह अल्लाह का निर्णय था और अल्लाह का निर्णय हो कर ही रहेगा, इस पर सब्र करे, और अल्लाह से पुण्य की आशा रखे।

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