मैं ने इस्लाम क्यों क़ुबूल किया ?
अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जो बहुत दयावान और अत्यन्त कृपालु है।
मेरा नाम इबराहीम (पुर्व नामः पदम सिंह राई) है। मैं नेपाल के सारदा नगर ,पालिका चितवन से संबंधित हूँ।
मैं हिन्दू परिवार में जन्म लिया। मैं अपने सर्व कार्य वैसे ही करता था जैसा कि परिवार के सदस्य करते हैं। जैसे कि मूर्ती, पत्थर आदि की पूजा करना और रोज़ा भी रखता था परन्तु रोज़ा का ढ़ंग अलग होता है। मैं जब भी अपने परिवार वालों के साथ मूर्ती की पूजा करता परन्तु हृदय असंतुष्ठ रहता था, दिल में शान्ति नहीं था।
हृदय में विचार आता था कि यह पत्थर, मूर्ती और पेड़ पौदा आदि कुछ भी लाभदायक नहीं है। यह देख नहीं सकते, यह बोल नहीं सकते, यह चल नहीं सकते, तो फिर यह हमें किस प्रकार हानी पहुंचा सकते हैं ? किस प्रकार लाभ पहुंचा सकते हैं ? परन्तु परिवार और समाज के रीतिरिवाज के अनुसार मैं भी अमल करता था।
इसी प्रकार मेरा एक ईसाई मित्र था जो हमेशा मुझे बाइबल पढ़ने की ओर निमन्त्रण करता था और कहता था कि ईसाइ धर्म ही सब से अच्छा है, तुम भी ईसाइ बन जाओ। मैं बाइबल पढ़ने लगा और मेरे दिल में भी बाइबल पढ़ने की रूचि बढ़ने लगी, यह सब बातों का मेरे परिवार वालों को पता न था।
मुझे यह प्रतीत होने लगा कि ईसाइ धर्म हिन्दु धर्म से बहुत उत्तम और अच्छा है। क्योंकि हिन्दु धर्म में बहुत ज़्यादा भगवान माना जाता है जो कि बुद्घि के विरोध है और जीवन कानून व्यवस्था भी अनुपलब्ध है। क्रिश्चियन धर्म की ओर मेरा झुकाव बढ़ने लगा, परन्तु हृदय को जो सुकून शान्ति प्राप्त होना चाहिये, वह उसे प्राप्त न हुआ, दिल से दुःख तथा परेशानी खत्म नहीं हो रही थी। समस्याओं और संकट का कोई समाधान नहीं मिल रहा था। हृदय में बार बार बुराई और अशुद्ध कार्य का बहुत विचार आता था। नेकी और पुण्य के कार्य से हृदय भागता था। ऐसी स्थिति में कुवैत पहुंच गया।
जब मुसलमानों को देखा तो उनसे भय तथा डर मालूम होता था। परन्तु धीरे धीरे यह विचार हृदय में उतपन्न हुआ कि मुसलमान मस्जिद में क्या करने जाते हैं। मस्जिद में किस की पूजा करते हैं ? इन मुसलमानों का भगवान कौन तथा कैसा होगा ?, मेरे मन में बहुत से प्रश्न घूम रहा था। इसी कारण इस्लाम धर्म के अध्ययन करने का उत्तेजना बढ़ गई, फिर मेर एक मित्र सुलैमान ने खबर दिया कि इस्लाम धर्म सब से अच्छा धर्म है और ईश्वरीय धर्म है और जन्नत केवल उसी व्यक्ति को प्राप्त होगा जो इस्लाम धर्म के अनुसार जीवन बिताएगा। मेरे दोस्तों ने बताया कि आकाश तथा धरती के अन्दर जितनी भी चीज़ें हैं, सब का सृष्ठिकर्ता और इनका मालिक केवल एक अल्लाह तआला ही है। वह अल्लाह बहुत ही महान है, वह देखता है, वह सुनता है, हमारे हृदय में जो बात आती है, उसे भी वह जानता है, वह सातों आकाश के ऊपर है परन्तु शक्ति और ज्ञान के अनुसार हमारे सांस की नाली से निकट है। हम सब मानव को उसी अल्लाह ने पैदा किया है और एक दिन हम सब को मृत्यु देगा, हम सब उसी के पास जाना है और हमारे कर्म के अनुसार बदला देगा तो हमें सीधे उसी से मांगना चाहिये. हमें उस तक पहुंचने के लिए किसी वास्ता और माध्यम की आवश्यक्ता नहीं है, तो मैं इस्लाम के प्रति अधिक जानकारी का इच्छुक हुआ तो मेरे एक दोस्त मुझे IPC ले कर आए और मुझे कुछ पुस्तकें दी और मैं ने उन पुस्तकों को बहुत अच्छे से अध्ययन किया। जूं जूं पुस्तक पढ़ता था, इस्लाम की शिक्षा की ओर आकर्षक होता गया। यहां तक अल्लाह ने इस्लाम स्वीकार करने की शक्ति प्रदान की। शैतान ने बहुत डराया और बहुत से बुरे विचार दिल और दिमाग में डालने की कोशिश की और वास्तविक्ता भी यही है कि इस्लाम स्वीकार करने वालों को बहुत कठीनाइ आती है, परन्तु जिसे अल्लाह शक्ति दे उसे कौन पराजीत कर सकता है। अब इस धर्म के लिए जीना और मरना है। चाहे उस के लिए जितनी भी परेशानी और कष्ठ और संकट झेलना पड़े चाहे मुझे शहीद होना पड़े।
जब से मैं इस्लाम धर्म स्वीकार किया हूँ, तब से मेरा हृदय बहुत शान्तिपूर्ण रहता है। जब भी मुझे छोटी या बड़ी परेशानी और संकट आती है तो मैं दो रकआत अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ता हूँ और अल्लाह से दुआ करता हूँ तो अल्लाह मेरी उस परेशानी और संकट से मुक्ति देता है और कुछ हृदय को ठेस पहुंचाने वाली बातों पर सबर करता हूँ। केवल आवश्यक्ता है कि हमारा सम्बन्ध अल्लाह से शक्तिशाली होना चाहिये। ताकि परेशानी और मुसीबत के समय अल्लाह हमारी सहायता करे।
अन्त में गैर मुस्लिमों भाईयों से निवेदन है कि वह इस्लाम धर्म की शिक्षा को न्यायिक और शान्ति पूर्ण जहन से अध्ययन करें क्योंकि इस्लाम ही मुक्ति मार्ग है जो मानव को जन्नत के रास्ते पर ले जाता है।
मुस्लिम भाईयों से कहता हूँ कि हम अपनी जीवन में अल्लाह की पुस्तक क़ुरआन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत को अपनाऐं और इस्लाम धर्म का प्रचार करें और उन लोगों तक पहुंचाऐं जो इस महान धर्म के मुल्यों और शिक्षा के ज्ञान से वंचित हैं।