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أكاديمية سبيلي Sabeeli Academy

रमज़ान का स्वागत कैसे करें ?

ramdhan 12रमज़ान महीना जिस में जन्नत (स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं तथा जहन्नम (नरक) के द्वार बन्द कर दिये जाते है, सर्कश जिन और शैतान को जकड़ दिया जाता है और अल्लाह की ओर से पुकारने वाला पुकारता है!  हे! नेकियों के काम करने वालों, पुण्य के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, और हे! पापों के काम करने वालों, अब तो इस पवित्र महीने में पापों से रुक जा, और अल्लाह तआला नेकी करने वालों को प्रति रात जहन्नम (नरक) से मुक्ति देता है। तो प्रत्येक मुस्लिम के लिए उचित है कि आने वाले पवित्र और पुण्य वाले महीने में ज़्यादा से ज़्यादा नेकी और पुण्य के कार्य करे, कोई समय नष्ट न करे, बल्कि रमज़ान महीने के एक एक क्षण को महत्वपूर्ण समझते हुए फर्ज़ नमाज़ को उसके असल समय में अदा करें, तरावीह और नफली नमाज़ें ज़्यादा से ज़्यादा पढ़े, बेकार के गपशप में समय बर्बाद न किया जाए, अल्लाह तआला की इबादत के साथ लोगों के कल्याण और भलाई का कर्म ज़्यादा से ज़्यादा किया जाए, पुण्य और भलाई के कार्य में बढ़ चढ़ कर भाग लिया जाए, ताकि जन्नत प्राप्त हो सके, अल्लाह तआला ने इसी की ओर उत्साहित किया है, “ जो लोग दूसरों पर बाज़ी ले जाना चाहते हों, वे इस चीज़ को प्राप्त करने में बाज़ी ले जाने का प्रयास करें।” (सूरः अल-मुतफ्फिफीनः 26)

हम इस महीने का स्वागत निम्नलिखित तरीके से कर सकते हैं।

ताकि हम अधिक से अधिक पुण्य के कार्य कर के अपने झोली को नेकियों से भर सकें।
(1)  सब से पहले अल्लाह का शुक्र और उसकी तारीफ और प्रशंसा के माध्यम से रमज़ान महीने का स्वागत करें कि जिस ने हमें यह मुबारक महीने की बरकतों को प्राप्त करने का शुभ अवसर दिया और फिर इस महीने का स्वागत खूशी के साथ करें, एक दुसरे को इस महीने की बरकतों को प्राप्त करने के लिए उभारें, एक दूसरों को दुआ दी जाए, रमज़ान की खुश खबरी दी जाए। जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम) ने अपने साथियों को शुभ खबर देते हुए फरमाया है ” तुम्हारे पास रमज़ान का महीना आया है, यह बरकत वाला महीना है, अल्लाह तआला की रहमतें तुम्हें इस महीने में ढ़ाप लेंगी, वह रहमतें उतारता है, पापों को मिटाताहै और दुआ स्वीकार करता है और इस महीने में तुम लोगों का आपस में इबादतों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने को देखता है, तो फरिश्तों के पास तुम्हारी तारीफ और प्रशंसा बयान करता है, तो तुम अल्लाह तआला को अच्छे कार्ये कर के दिखाओ, निःसन्देह बदबख्त वह है जो इस महीने की रहमतों से वंचित रहे।” (अल–तबरानी)
(2)  इन्सान को अल्लाह तआला ने ऐसा बनाया ही है कि उस से भूल चुक, गलती, अपराध और पाप के कार्य हो जाता है, परन्तु सब से अच्छा मानव वह है जो अपने गलती और पाप के कार्य पर शर्मिन्दा हो, अल्लाह से तौबा और माफी माँगता हो, उस पाप के प्रायाश्चाताप के लिए बेकरार हो और रमज़ान कामहीना ही तो माफी का महीना है, गुनाहों और जहन्नम (नरक) से मुक्ति का महीना है, अल्लाह तआला ने गुनाहों से तौबा करने का हमें आज्ञा भी दिया है और बेशक तौबा करने वाले लोग सफलपूर्वक होंगे जैसा कि अल्लाह का कथन हैः” ऐ ईमानवालों, तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, आशा है कि सफलता प्राप्त करोगे। ” (सूरा अन्नूरः 31)
अल्लाह तआला हदीस कुद्सी में फरमाता हैः” ऐ इनसानों! तू जब तक मुझे पुकारता रहेगा और मुझ से उम्मीद रखेगा, मैं तुझे बख्शता रहूंगा, चाहि तू किसी हालत में हो और मुझे कुछ परवाह न होगी, ऐ इनसानों! यदि तेरे गुनाह आसमान की ऊंचाई तक पहुंच जाए और तू मुझ से क्षमा की प्रार्थना करोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा, ऐ इनसानों! यदि तुम मेरे पास धरती के बराबर पाप ले कर आए और तुम ने मेरे साथ किसी को शरीक (साझीदार) न किया है, तो धरती के बराबर मैं तुझे माफी दे दुंगा।” (सुनन तिर्मिज़ीः सही हदीस)
अल्लाह तआला बहुत ज़्यादा माफ करने वाला और बहुत ज़्यादा कृपयालु है। यदि बन्दा सच्चे हृदय के साथ अल्लाह की ओर लौटता है, तो अल्लाह उस बन्दे से खुश होता है और रमज़ान का महीना ही माफी का महीना है, रहमतों, बरकतों, जहन्नम से मुक्ति और जन्नत में प्रवेश होने का महीना है। इसी लिए इस पवित्र महीने में रो रो कर अल्लाह से माफी मांगी जाए। अपने गुनाहों से बख्शीश तलब की जाए, ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह से दुआ की जाए। तो अल्लाह तआला माफी से उस के झोली को भर देगा,
(3)  आप पुख्ता इरादा कर लें कि इस पवित्र महीने में ज़्यादा से ज़्यादा पुण्य का काम करेंगे, इस पूरे महीने का रोज़ा रखेंगे, नमाज़ों और अल्लाह के ज़िक्रो अज़्कार और तिलावते कुरआन में अपना पुरा समय लगाऐंगे, लोगों की भलाई और कल्याण के कार्य मे भाग लेंगे, गरीबों और मिस्किनों की सहायता करेंगे, बुराईयों और गुनाहों और पापों से दूर रहेंगे, गाली गुलूच, गीबत, ईर्श्या और लड़ाइ और झगड़ा से दूर रहेंगे, तब ही किसी मानव का रोज़ा स्वीकारित होगा।  जैसा अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमाता हैः ” मानव के प्रत्येक कर्म का बदला मिलता है, सिवाए रोज़े के, तो बेशक रोज़ा मेरे लिए है और रोज़ा का बदला मैं दुंगा, रोज़ा ढ़ाल है और जब तुम में से कोई रोज़े की हालत में हो, तो बुरा विचार दिलो दिमाग में न लाए और न ही चिखे चिल्लाए, यदि कोई उस से गाली गुलूच करे या लड़ाई झगड़ा करे, तो वह इस से दूर रहे और उत्तर दे कि मैं रोज़े से हूँ।” (सही बुखारी)
(4)  रमज़ान के महीने के समय को मुनज़्ज़म करले कि फजर की नमाज़ से पहले उठकर सेहरी खना है फिर नमाज़ पढ़ कर कुरआन की तिलावत करना है। दिन रात के समय को विभिन्न कार्यों, इबादतों और ज़रूरी कामों में बांट दें। ताकि समय नष्ट न हो और पूरे समय का सही उपयोग हो सके। बेकार की गप शपसे दूर रहा जाए। ताकि पूरा रमज़ान का महीना इबादतों में बीते।
(5)  रमज़ान के महीने के अहकाम को सिखा जाए। रमज़ान में किन चीज़ो के करने से रोज़ा खराब हो जाता है ? किन चीज़ो के करने से कुछ नही होता ? कौन सा काम और इबादतें करना चाहिये और कैसे करन चाहिये ?, कौन सा काम रोज़े की हालात में नहीं करना चाहिये ?, रमज़ान में कौन सा कार्य अल्लाह को सब से ज़्यादा प्रिय है ? रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रमज़ान का महीना कैसे गुज़ारते थे ?, इन सब चीज़ों का ज्ञान लेना ज़रूरी है। ताकि रमज़ान महीने को अच्छे तरीके से गुज़ारा जाए, रमज़ान महीने की बरकतों और रहमतों को प्राप्त किया जा सके।
(6)  रमज़ान में लोगों के लेन देन को अदा कर दिया जाए। क्योंकि लोगों के हुकूक और अधिकार को पूरा करना अनिवार्य है। किसी के लिए हृदय में दुश्मनी, कीना कपट, हसद, जलन न रखा जाए। क्योंकि ऐसे लोगों की माफी नहीं है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः बन्दों के कर्म सोमवार और शुक्रवार को अल्लाह के पास पेश किये जाते हैं, तो अल्लाह अज़्ज़ वजल्ल हर उस बन्दे को माफ कर देता है, जो अल्लाह के साथ शिर्क न किया हो सिवाए उस मानव को जिस के और उस के भाई के बीच कीना कपट और दुशमनी हो, तो कहा जाता है, इन दोनों को छोड़ दो, यहाँ तक कि दोनों सुलह सफाई करले, इन दोनों को छोड़ दो यहाँ तक कि दोनो सुलह सफाई कर ले।” (सही मुस्लिम)

अल्लाह तआला से दुआ है कि हमे इस बरकत और नेकियों वाले महीने मेंअपने दामन को बुराईयों से बचाने और जन्नत में जाने वाले कार्य करने की शक्ति प्रदान करे। आमीन….. या रब्बल आलमीन।

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