रमज़ान की बरकत और पवित्रता से हम उसी समय भली भांती लाभ उठा सकते हैं, जब हम अपने बहुमूल्य समय का सही प्रयोग करेंगे, इस कृपा, माफी वाले महीने में सही से अल्लाह तआला की पुजा-अराधना करेंगे, जिस तरह से प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह तआला की पुजा-अराधना किया है। वह इबादतें करेंगे, जिसके करने से हमें पुण्य प्राप्त हो और हमारी झोली पुण्य से भर जाए और हमारा दामन पापों से पाक साफ हो जाए और उन कामों से दूर रहा जाए जो इस पवित्र महीने की बरकत तथा अल्लाह की कृपा, माफी से वंचित (महरूम) कर दे।
रमज़ान के महीने की सब से महत्वपूर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है। जिसे उसकी वास्तविक हालत से रखा जाए और उन कामों तथा कार्यों से दूर रहा जाए, जो रोज़े को भंग (खराब) कर दे। रोज़े रखने के लिए सब से पहले रात से ही या सुबह सादिक़ से पहले ही रोज़े रखने की नियत किया जाए। इस लिए कि जो व्यक्ति रात में ही रोज़े की नियत न करेगा, उस का रोज़ा पूर्ण न होगा। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)का कथन हैः
مَن لم يُبيِّتِ الصِّيامَ من اللَّيلِ فلا صيامَ لَهُ. (المحلي لإبن حزم: 6/162
” जो व्यक्ति रात ही से रोज़े की नियत न करे, उस का रोज़ा नहीं। ” (अल- मुहल्लाः इब्नि हज़्मः 162/6, व सही अन्नसईः अल्बानीः 2333)
रमज़ान के मुबारक महीने में निम्नलिखित कार्य अल्लाह को खुश करने के लिए की जाए।
1- सेहरीः
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाना चाहिये। क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उपलब्ध हो, उसे रोज़ा रखने की नियत से खा ली जाए। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
تسحَّروا، فإن في السَّحورِ بركةً. – صحيح البخاري: 1923 وصحيح مسلم: 1095
” सेहरी खाओ क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है।” (सही बुख़ारीः 1923, व सही मुस्लिमः 1075)
एक दुसरी हदीस में आया हैः
تسَحَّروا ولو بجَرعةٍ مِن ماءٍ. (صحيح الترغيب: 1071
” सेहरी खाओ यदि एक घोंट पानी ही पी लो।”(सही अत्तरगीबः 1071)
2 – फजर की नमाज़ के बाद से सूर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्र – अज़्कार करनाः
यदि कोई व्यक्ति फजर की नमाज़ के बाद से सूर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्रो अज़्कार करता है। तो उसे बहुत ज़्यादा पुण्य मिलता है। जैसाकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
من صلى الفجرَ في جماعةٍ ثم قعدَ يذكُرُ اللهَ حتى تطلُعُ الشمسُ ثم صلى ركعتين كانت له كأجرِ حَجَّةٍ وعمرةٍ. قال: قال رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: تامَّةٍ، تامَّةٍ، تامَّةٍ. (صحيح الترمذي: 586
“जिस ने फजर की नमाज़ पढ़ा और अपने स्थान पर बैठे ज़िक्रो अज़्कार करता रहा, फिर सूर्य निक्ला और उस ने दो रकआत नमाज़ पढ़ा। तो उसे एक उमरे का पूरा पूरा सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा। (सुनन तिर्मिज़ीः 586)
3 – रोज़े की हालत में गलत सोच – विचार से अपने आप को सुरक्षित रखा जाएः
फजर से पहले से ले कर सूर्य के डुबने तक खाने-पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नहीं बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई, झूट, झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और गलत सोच–विचार तथा अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखे। क्योंकि रोज़े रखने का लक्ष्य है कि मानव तक़्वा इख्तियार करने वाला हो जाए। और उसे पुण्य उसी समय प्राप्त होगा, जब वह इसी तरह रोज़े रखेगा। जैसाकि रसूल (सल्ल) का कथन हैः
مَن لَم يدَع قَولَ الزُّورِ والعمَلَ بِه والجَهلَ ، فليسَ للَّهِ حاجَةٌ أن يدَعَ طعامَه وشرابَهُ. (صحيح البخاري: 6057
” जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे, तो अल्लाह को कोई आवश्यकता नहीं कि वह भूका, पियासा रहे।” (सही बुखारीः 6057 )
यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे, तो वह लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर से कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसाकि रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)का कथन हैः
كلُّ عملِ ابنِ آدمَ له إلَّا الصِّيامُ. فإنَّه لي وأنا أجْزِي به. والصِّيام جُنَّةٌ. فإذا كانَ يومُ صوْمِ أحدِكُم فلا يَرفُثْ يومئذٍ ولا يَسخَبْ. فإن سابَّهُ أحدٌ أو قاتلَهُ، فليقلْ: إنِّي امرؤٌ صائمٌ. والَّذي نفسُ محمَّدٍ بيدِهِ. لخلُوفُ فمِ الصَّائمِ أطيبُ عند اللهِ، يومَ القيامةِ، من ريحِ المسكِ. وللصَّائمِ فرحتانِ يفرَحهُما :إذا أفطرَ فرِحَ بفِطرهِ. وإذا لقِيَ ربَّهُ فرِح بصوْمِهِ. (صحيح البخاري: 1904 و صحيح مسلم: 1151
” मानव के प्रत्येक कर्म का बदला उसे प्रप्त होगा सिवाए रोज़ा के, बेशक रोज़ा मेरे लिए है और उसका बदला केवल मैं ही दूँगा और रोज़ा ढ़ाल है। तो जब तुम में कोइ रोज़े की हालत में हो, तो उस दिन आपत्तिजनक बात न करे, जोर जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे, तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ, उस ज़ात की कसम जिस के हाथ में मुहम्मद की जान है, क़ियामत के दिन अल्लाह के पास रोज़ेदार के मुंह से निकलने वाली खुश्बू कस्तूरी से अधिक खुश्बूदार होगी। और रोज़ेदार को दो खुशी प्राप्त होगी जिस से वह खुश रहेगा, जब वह रोज़ा खोलता है, तो अपना रोज़ा खोलने से खुश होता है, और जब अपने रब्ब से मुलाक़ात करेगा तो अपने रोज़े के कारण खुश होगा।” (सही बुखारीः 1904 व तथा मुस्लिमः 1151)
जो लोग रोज़े की स्थिति में झूट, गाली गलोच, गीबत , चुगलखूरी और दुसरी बुरी आदतों को नहीं छोड़ते तो उन के रोज़े का कोइ लाभ नहीं। जैसा कि रसूल ने खबर दिया है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः
ربَّ صائمٍ ليسَ لَه من صيامِه إلَّا الجوعُ و ربَّ قائمٍ ليسَ لَه من قيامِه إلَّا السَّهرُ. صحيح ابن ماجة: 1380 و صحيح الجامع: 3488
” कितने ही रोज़ेदार एसे हैं, जिन के रोज़े से कोई लाभ नहीं, केवल भुखा और पियासा रहना है।और कितने ही तहज्जुद (तरावीह) पढ़ने वालो एसे हैं, जिन के तहज्जुद (तरावीह) पढ़ने का कोइ लाभ नही सिवाए रात बेदारी के।” (सुनन इब्ने माजाः 1380 व सही अल-जामिअः 3488)
गोया कि रमज़ान महीने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ, उसी समय हम हासिल कर सकते हैं, जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे ।
4 – क़ुरआन करीम की ज़्यादा से ज़्यादा तिलावत किया जाएः
अल्लाह तआला ने पवित्र क़ुरआन इस मुबारक महीने में (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)पर फरिश्ते जिब्रील के माध्यम से उतारा, जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद हैः ” रमज़ान वह महीना है जिस में क़ुरआन उतारा गया जो इनसानों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन है और ऐसी स्पष्ट शिक्षाओं पर आधारित है जो सीधा मार्ग दिखाने वाली और सत्य और असत्य का अन्तर खोलकर रख देने वाली है।” (सूरः बक़राः185)
यही कारण है कि फरिश्ते जिब्रील हर रमज़ान के महीने में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को क़ुरआन का दौरा कराते थे। इस्लामिक विद्ववानों ने भी इस महीने में क़ुरआन बहुत ज़्यादा पढ़ा करते थे। वैसे भी क़ुरआन आम दिनों में पढ़ने से बहुत सवाब प्राप्त होता है। परन्तु जो व्यक्ति रमज़ान के महीने में क़ुरआन ध्यान से पढ़ेगा, उस पर विचार करेगा, उस पर अमल करेगा, एसे व्यक्ति के दामन में नेकियाँ की नेकियाँ होंगी।
5- रोज़े की हालत में ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह ही से दुआ किया जाएः
दुआभी एक इबादत है जो केवल अल्लाह से माँगी जाए। अल्लाह तआला रोज़ेदार की दुआ को स्वीकार करता है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)का इरशाद हैः “तीन लोगों की दुआ अल्लाह के पास स्वीकारित हैं , रोज़ेदार की दुआ , मज़्लूम की दुआ और यात्री व्यक्ति की दुआ” (सहीहुल-जामिअः शैख अल्बानीः 3030)
इसी तरह रोज़ा खोलते समय भी ज़्यादा दुआ करना चाहिये, उस समय की दुआ अल्लाह तआला वापस नहीं करता है। जैसा कि हदीसों से वर्णित है।
6 – रातों में क़ियाम और तरावीह पढ़ने का महीनाः
इस मुबारक महीने की रातों को तरावीह पढ़ने का खास इह्तमाम किया जाए। क्योंकि तरावीह पढ़ने का बहुत ज़्यादा सवाब (पुण्य) है। जैसाकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)का कथन हैः ” जो व्यक्ति रमज़ान महीने में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को तरावीह (क़ियाम करेगा) पढ़ेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे।” (सही बुखारीः 2009 तथा सही मुस्लिमः759)
7- रमज़ान में उम्रा का विशेष इह्तिमाम किया जाएः
रमज़ान के महीने में उम्रा करने से भी बहुत ज़्यादा नेकी प्राप्त होती है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)का फरमान हैः ” बेशक हज्ज और उमरा अल्लाह के रास्ते में से है और रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ उम्रा करने के बराबर सवाब (पुण्य) मिलता है।” (सहीहुल-जामिअः शैख अल्बानीः 1599)
दुसरी हदीस में आया है कि ” जैसा की उम्मे सुलैम ने रसूल (सल्ल) से गिला किया कि ऐ अल्लाह के रसूल! अबू तल्हा और उनका बेटा उमरा के लिए चले गए और मुझे छोड़ दिया। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)ने फरमायाः ऐ उम्मे सुलैम! रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ हज्ज करने के बराबर सवाब (पुण्य ) मिलता है।” (तरगीब व तरहीबः 177/2)
8- रमज़ान महीने में अधिक से अधिक सदक़ा- खैरात किया जाएः
इस पवित्र महीने में ग़रीबों और मिस्कीनों की दिल खोल कर सहायता और मदद करना उचित और बहुत ज़्यादा सवाब (पुण्य) का काम है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान हैः” सब से अच्छा दान, रमज़ान में दान देना है।” (सुनन तिर्मिज़ी)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)इस महीने में बहुत दान (सदक़ा–खैरात) किया करते थे। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाह अन्हुमा) वर्णन करते हैं:
كان رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ علي هوسلَّمَ أجودَالناسِ بالخيرِ. وكان أجودَ ما يكون في شهرِ رمضانَ. إنَّ جبريلَ عليه السلام ُكان يلقاه، في كلِّ سنةٍ، في رمضانَ حتى ينسلخَ. فيعرض عليه رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ القرآنَ. فإذا لقِيه جبريلُ كان رسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ أجودَ بالخيرِ من الريح المُرسلة. (صحيح مسلم: 2308
” रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) लोगों में सब सेअधिक दानशील थे और रमज़ान के महीने में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दानशीलता बहुत बढ़ जाती थीं। जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फरिश्ते जिब्रील से मुलाक़ात करते थे। फरिश्ते जिब्रील के साथ आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) क़ुरआन पढ़ते- दोहराते थे। रमज़ान के महीने में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दानशीलता तेज़ हवा से बढ़ जाती थीं।” (सही मुस्लिमः 2308)
9 – रोज़ेदार को इफतार कराया जाएः
भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसन किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से जल पिलाएगा। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान हैः ” जिस किसी मूमिन ने किसी भूखे मूमिन को खिलाया। तो अल्लाह उसे जन्नत के फलों से खिलाएगा और जिस किसी मूमिन ने किसी पियासे मूमिन को पिलाया। तो अल्लाह उसे जन्नत के बिल्कुल शुद्ध पैक शराब पिलाएगा।” (सुनन तिर्मिज़ी )
जो रोज़ेदार को इफतार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान हैः” जिसने किसी रोज़ेदार को इफतार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कुछ भी कमी न होगी।” (मुस्नद अहमद तथा सुनन नसई )
10- रमज़ान के महीने में इतिकाफ़ किया जाएः
इतिकाफ़ अर्थात, मानव इबादत की नियत से मस्जिद में प्रवेश हो और दुनिया दारी को छोड़ कर केवल अल्लाह की इबादत, क़ुरआन की तिलावत और दुआ और अपने गलतियों पर अल्लाह से माफी मांगे। इसी तरह जितने समय या जितने दिन के इतिकाफ़ की नियत किया है। वह अवधि पूरा करे और मानवीय आवश्यकता के सिवाए मस्जिद से बाहर न निकले। इतिकाफ़ रमज़ान और रमज़ान के अलावा महीने में भी किया जा सकता है। परन्तु रमज़ान के महीने में इतिकाफ़ करना ज़्यादा उत्तम है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रमज़ान के महीने में इतिकाफ़ करते थे। जैसाकि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैः” रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने 11 रमज़ान से ले कर बीस रमज़ान तक इतिकाफ़ किया फिर बीस रमज़ान से ले कर तीस रमज़ान तक इतिकाफ़ किया और फिर इसी पर जमे रहे और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पत्नियों ने भी आखीरी दस दिनों का इतिकाफ़ किया। (बुखारी तथा मुस्लिम)
11- शबे क़दर की रातों की खोज की जाए और उन रातों में बहुत ज़्यादा इबादत की जाएः
यह वह मुबारक और पवित्र रात है, जिस की महत्वपूर्णतापवित्र क़ुरआन तथा सही हदीसों से प्रमाणित है। यही वह रात है जिस में पवित्र क़ुरआन को उतारा गया। यह रात हज़ार रातों से उत्तम है। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद हैः ” हम्ने इस (कुरआन) को कद्र वाली रात में अवतरित किया है। और तुम किया जानो कि कद्र की रात क्या है ? कद्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है। फ़रिश्ते और रूह उस में अपने रब्ब की आज्ञा से हर आदेश ले कर उतरते हैं। वह रात पूरी की पूरी सलामती है, उषाकाल के उदय होने तक। ” (सुराः कद्र)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के प्रवचनों से भी इस रात की बरकत और फज़ीलत साबित होती है। इसी लिए रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शबे क़द्र की रातों को तलाशने का आदेश दिया है। जैसा कि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक वाली रातों में तलाशों। (बुखारी तथा मुस्लिम)
12- अल्लाह से क्षमा और माफी माँगी जाएः
यह महीना पापों, गुनाहों, गलतियों से मुक्ति और छुटकारा का महीना है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। विशेष रूप से इस महीने के अन्तिम दस रातों में अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगी जाए। जैसा कि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न क्या कि यदि मैं क़द्र की रात को पालूँ तो क्या दुआ करू तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” ऐ अल्लाह! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तो मेरे गुनाहों को माफ कर दे।”
अल्लाह हमें और आप को इस महीने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन…………