रमज़ान महीने की बर्कत और पवितर्ता से हम उसी समय लाभ उठा सकते हैं, जब हम अपने बहुमूल्य समय का सही प्रयोग करेंगे, इस कृपा, माफी वाले महीने में सही से अल्लाह तआला की पुजा-अराधना करेंगे, जिस तरह से प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह तआला की पुजा- अराधना किया है। वह इबादतें करेंगे जिसके करने से हमें पुण्य प्राप्त हो और हमारी झोली पुण्य से भर जाए और हमारा दामन पापों से पाक साफ हो जाए और उन कामों से दुर रहा जाए जो इस पवित्र महीने की बर्कत तथा अल्लाह की कृपा, माफी से हमें महरूम (वंचित) कर दे।
रमज़ान के महिने की सब से महत्वपूर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है, जिसे उसकी वास्तविक हालत से रखा जाए और उन कामों तथा कार्यों से दूर रहा जाए जो रोज़े को भंग (खराब) कर दे। रोज़े रखने के लिए सब से पहले रात से ही या सुबह सादिक़ से पहले ही रोज़े रखने की नियत किया जाए। इस लिए कि जो व्यक्ति रात में ही रोज़े की नियत नही करेगा, उस का रोज़ा ही न होगा। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः ” जो व्यक्ति रात ही से रोज़े की नियत न करे , उस का रोज़ा नही।” ( अल- मुहल्लाः इब्नि हज़्म, अल-इस्तिज़्कारः इब्नि अब्दुल्बिर)
इसी तरह उन सर्व वस्तु से दूर रहा जाए जो रोज़े को भंग (खराब) कर दे।
जिन वस्तुओं के करने से रोज़ा भंग हो (टूट) जाता है।
(1) जान बुझ कर कुछ खाना–पीना, इसी प्रकार जो खाने पीने की सूची में आता है, जैसे कि शक्ति प्रदान करने वाली दवा या इन्जक्शन या नाक के माध्यम से दवा का प्रयोग करना इत्यादि।
(2) जान बुझ कर उल्टी करनाः
जैसा कि रसूल का फरमान हैः
مَنْ ذرعَه القيءُ فليسَ عليهِ قضاءٌ، ومَنْ استقاءَ عمدًا فليقضِ. (صحيح الترمذي: 720
अबू हुरैरा (रज़ि) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाःजिसे उल्टी हो गई तो उस पर रोज़े की कज़ा नही है और जो जानबूझ कर उल्टी करता है, तो वह उस के बदले कज़ा रोज़ा रखेगा। (सही अत्तिर्मज़ीः 720)
(3) गुप्तांग से वीर्य का निकालना, चाहि वह महिलाओं के प्रति विचार करने या हाथमिथुन के माध्यम से हो।
(4) रोज़े तोड़ने की नियत करनाः
इन चीज़ों से रोज़े टूट जाते हैंऔर रोज़ा को भंग ( खराब) करने वाला पापी होगा और टूटे हुए रोज़े के बदले एक रोज़ा रमज़ान महीने के बाद कज़ा के तौर पर रखेगा।
(5) पोछना लगवानाः
इसी प्रकार रक्त दान करना भी रोज़े तोड़ने के आदेश में आएगा। जैसा कि हदीस में वर्णन हैः
أفْطرَالحاجمُوالمحجومُ. (سنن الترمذي: 774
राफिअ बिन खदीज (रज़ि) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल) ने फरमायाः पोंछना करने वाला और पोंछना करवाने वाला दोनों ने रोज़ा छोड़ दिया। (सुनन तिर्मिज़ीः 774)
इब्ने बाज और मुहम्मद बिन सालिह अलउसैमीन (रहिम0) ने यही फत्वा दिये हैं।
(6) रक्त परिवर्तन भी रोज़े टूटने के कारण में से है। जैसा कि इब्ने बाज और मुहम्मद बिन सालिह अलउसैमीन (रहिम0) ने यही फत्वा दिये हैं।
(7) महिलाओं को मासिक चक्र का आना अथवा बच्चे जन्म हेतु रक्त का आना। इन चीज़ों से रोज़े टूट जाते हैं और टूटे हुए रोज़े के बदले रमज़ान महीने के बाद कज़ा के तौर पर छूटे हुए रोज़े रखेगी और महिला पापी न होगी।
(8) जो व्यक्ति रोज़े की हालत में पत्नी से सम्भोग करेगा, तो उस का रोज़ा भंग (खराब) हो गया और उसने बहुत बड़ा पाप किया। इस लिए उसे कफ्फारा देना होगा। कफ्फारा यह है कि एक दास स्वतंत्र करेगा (चूंकि वर्तमान काल में यह रेवाज स्माप्त हो गया है) यदि इस की क्षमता नहीं तो साठ (60) दिनों का निरंतर के साथ रोज़ा रखेगा यदि इस की शक्ति नहीं तो साठ (60) गरीबों को खान खिलाऐगा और उस दिन का कज़ा रोज़ा भी रखेगा।
जैसा कि हदीस में वर्णन हैः
جاء رجلٌ إلى النبيِّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ. فقال: هلكتُ. يا رسولَ اللهِ! قال “وما أهلككَ؟ ” قال:وقعتُ على امرأتي في رمضانَ. قال:”هل تجدُ ما تُعتقُ رقبةً؟” قال:لا. قال:”فهل تستطيعُ أن تصومَ شهرين متتابعينِ؟” قال: لا، قال:فهل تجدُ ما تُطعمُ ستين مسكينًا؟ ” قال: لا. قال: ثم جلس. فأتي النبيُّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ بعرقٍ فيهِ تمرٌ. فقال:”تصدق بهذا “قال: أفقرُ منا؟ فما بين لابتيهاأهلُبيتٍأحوجُإليهِمنا.فضحك النبيُّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ حتى بدت أنيابُه. ثم قال”اذهب فأطْعِمْه أهلك.(صحيح مسلم: 1111 و صحيح البخاري: 2600
एक व्यक्ति नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूलः मैं नष्ट हो गया, तो रसूल(सल्ल) ने पूछाः किस चीज़ ने तुम्हें नष्ट किया। तो उस व्यक्ति ने कहाः मैं ने रमज़ान में पत्नी से स्मपर्क किया। तो आप (सल्ल) ने फरमायाः क्या तुम एक दास स्वतन्त्र कर सकते हो ?, तो उसने कहाः नहीं, तो आप (सल्ल) ने फरमायाः तो क्या तुम निरंतरण से दो महीने का रोज़ा रख सकते हो ?, तो उसने कहाः नही, तो आप (सल्ल) ने फरमायाः क्या तुम साठ गरीबों को भोजन खिला सकते हो ?, तो उसने कहाः नहीं, फिर वह बैठ गया, तो रसूल (सल्ल) के पास एक खुजूर से भरा बर्तन आया, तो आप (सल्ल) ने उस से फरमायाः यह खुजूर से भरा बर्तन अपनी ओर से दान कर दो। तो उसने कहाः क्या मदीने में कोई हम से ज़्यादा गरीब परिवार है ?, (जो इस दान का हम से ज़्यादा मुस्तहिक़ होगा), तो आप (सल्ल) हंसने लगे और हंसने के कारण आप के दाँत दिखने लगे फिर आपने फरमायाः यह ले कर जाओ और अपने परिवार के साथ खाओ। (सही मुस्लिमः 1111 व सही बुखारीः 2600)
इस हदीस से इस्लाम के आदेशों की सरलता और निम्रता प्रमाणित होती है। इस्लाम में मानव की शक्ति और उसकी स्थिति के अनुसार आदेश दिया जाता है और मानव के छति और अधिक कष्ट होने से सुरक्षित किया जाता है।