शाबान का महीना

शाबान का महीना

अरबी महीने का आठवा महीना शाबान है। जिसका मतलब यह होता हैः लोगों का पानी तलाशने के लिए अलग अलग स्थानों पर जाना या लोगों का गुफाओं में जाना,  इसी लिए इसे शाबान का महीना कहा जाता है। क्योंकि (इस्लाम से बहुत सदियों पहले पूराने अरब वासी ऐसा करते थे) भूतकाल में अरब वासी ऐसा करते थे।

नफली इबादतों के माध्यम से अल्लाह की नजदीकी प्राप्त करनाः

अल्लाह तआला ने लोगों को पुण्य प्रदान करने के लिए विभिन्न तरीका चयन किया है। जिस के लिए उस ने मानव को बहुत से कर्म और कार्य करने के लिए उत्साहित किया है। जो बन्दा बहुत ज़्यादा नफली इबादतों के माध्यम से अल्लाह की नजदीकी और निकटतम चाहता है। अल्लाह उसे अपना सब से अच्छा भक्त बना लेता है और उसकी प्रत्येक प्रकार से मदद करता है और जीवन के हर मोड़ पर अल्लाह की सहायता उस के साथ होती है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमता हैः ” जो मेरे भक्तों से दुशमनी करता है, मैं उस से युद्ध की घोषणा करता हूँ, और मुझे सब से अधिक प्रिय है कि मेरा बन्दा वह कार्य करे, जिसे मैं उस के ऊपर अनिवार्य किया, और निरंतरण के साथ मेरा बन्दा नफली इबादतों के माध्यम से मेरी प्रसन्नता को तलाशतारहता है, यहां तक कि मैं उस से प्रेम करने लगता है और जब मैं उस से प्रेम करने लगता हूँ,……..(सही बुखारीः 6502)

नफली इबादतों में नफली रोज़ो की एक अलग महत्वपूर्णता है, जिस के बहुत ज़्यादा लाभ हासिल होते हैं, इन्हीं नफली रोज़ों में शाबान के महीने के रोज़े भी हैं।

शाबान का महीना रमज़ान के महीने से पहले आता है। गोयाकि शाबान के नफली रोज़े रमज़ान के फर्ज़ रोज़े के स्वागत के लिए है।

शाबान के महीने में नबी (सल्ल) के रोज़ा रखने का तरीकाः

प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़ा रखते थे। जैसा कि आईशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं। ” रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इस प्रकार रोज़े रखते थे कि हम समझने लगते कि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमेशा रोज़े रखेंगे और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इस प्रकार बिना रोज़े के रहते थे कि हम समझने लगते कि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रोज़े नहीं रखेंगे, मैं ने नहीं देखा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रमज़ान महीने के सिवा किसी दुसरे महीना के पूरे महीने का रोज़ा रखा हो, और मैं ने नहीं देखा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) शाबान महीने के सिवा किसी दुसरे महीने के ज़्यादा रोज़े रखा हो।” (सही मुस्लिमः 2028)

हदीस के मश्हूर विद्वान अहमद बिन अली बिन हज्र अल-अस्क़लानी कहते है, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़े रखते थे और शाबान के ज़्यादा दिन रोज़े की हालत में गुज़ारते थे, इस से शाबान के नफली रोज़े की महत्वपूर्णता प्रमाणित होती है। (फतहुल बारी शर्ह सही बुखारी)

इस शाबान महीने के रोज़े की महत्वपूर्णता दुसरे प्रकार से साबित होता है जैसा कि उसामा बिन जैद (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं­ ” मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने आप को शाबान के महीने में बहुत ज़्यादा रोज़े रखते हुए देखा है परन्तु शाबान के सिवाए दुसरे किसी महीने में आप इतना ज़्यादा रोज़ा नहीं रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया। यह वह महीना है जो रजब और रमज़ान के बीच हैं जिस से बहुत से लोग लापरवाही करते हैं, यह वह महीना है जिस में कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते हैं और मैं चाहता हूँ कि मेरा कर्म रोज़े की हालत में पेश किया जाए।” (सुनन नसईः 2356 और हदीस के बहुत बड़े विद्वान अल- अलबानी ने सही कहा है)

इबने रजब कहते हैं ” शाबान के रोज़े हुरमत वाले महीने के रोज़े से उत्तम हैं, इसी प्रकार रमज़ान से पहले नफली रोज़े और रमज़ान के बाद नफली रोज़े दुसरे नफली रोज़े से उत्तम और अफज़ल है। यह फर्ज़ नमाज़ के बाद जरुरी सुन्नत की तरह है (लताइफुल मआरिफ)

अल्लाह के पास बन्दों के कर्म तीन तरीके से पेश किये जाते हैं:

(1) प्रत्येक दिन सुबह और शाम में बन्दों के कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते है। जैसा कि अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) हदीस वर्णन करते हैः

يتعاقبونَ فيكم : ملائكةٌ بالليلِ وملائكةٌ بالنهارِ ، ويجتمعون في صلاةِ العصرِ وصلاةِ الفجرِ ، ثم يعرجُ الذين باتوا فيكم ، فيسألُهم ، وهو أعلمُ بكم ، فيقول : كيف تركتُم عبادي ؟ فيقولون : تركناهُمْ وهم يُصلُّونَ ، وأتيناهم وهم يُصلُّونَ.   (صحيح البخاري: 7429 و 7486

रसूल (सल्ल) ने फरमायाः तुम्हारे बीच रात और दिन के फरिश्ते चक्कर लगाते हैं, और अस्र और फज्र की नमाज़ में एकत्र होते हैं, और फिर लोगों के बीच रात गुजारने वाले फरिश्ते आकाश की ओर चढ़ते हैं, तो रब्ब उन से प्रश्न करते हैं, जबकि वह प्रत्येक वस्तु के प्रति सब से अधिक जानने वाला है। तो वह कहते हैः तुम (फरिश्तों) मेरे बन्दों को किसी स्थिति में छोड़ कर आए हो। तो फरिशते उत्तर देते हैं। जब हम गए थे, तो वह लोग नमाज़ पढ़ रहे थे और जब हम आए हैं, तो वह लोग नमाज़ पढ़ रहे थे। (सही बुखारीः 7429 व 7486)

(2) सप्ताह में प्रत्येक सोमवार और बृहस्पतिवार के दिन बन्दों के कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते है। जैसा कि हदीस में वर्णन हुआ है। उसामा बिन ज़ैद (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) हदीस वर्णन करते हैं।

رأيتُ رسولَ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ يصومُ يومَ الاثنينِ والخميسِ فسألتُهُ فقالَ: إنَّ الأعمالَ تُعرَضُ يومَ الاثنينِ والخميسِ، فأحبُّ أن يُرفَعَ عملي وأَنا صائمٌ.     (فتح الباري: 278/4

मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सोमवार और बृहस्पतिवार को रोज़ा रखते हुए देखा, तो मैं ने उन से प्रश्न कियाः तो रसूल ने फरमायाः बेशक बन्दों के कर्म सोमवार और बृहस्पतिवार पेश किया जाता है। तो मैं चाहता हूँ कि रोज़े की स्थिति में मेरा कर्म पेश किया जाए। (फत्हुल बारीः 4/284)

(3) प्रत्येक वर्ष शाबान के महीनें में बन्दों के कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते है।

जैसा हदीस में वर्णन हुआ है। रसूल (सल्ल) ने फरमायाः …………….यह वह महीना है जिस में कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते हैं और मैं चाहता हूँ कि मेरा कर्म रोज़े की हालत में पेश किया जाए।” (सुनन नसईः 2356)

शबे बरात की हकीकतः

शाबान महीने की पंद्रहवी रात जिसे उर्फ आम में शबे बरात कहा जाता है। जिस की फज़ीलत और उत्तमता के प्रति सीमा का उल्लंघण किया गया है। शबे बरात के प्रति जितनी भी हदीसें बयान की जाती हैं, सब हदीसें बहुत ही ज़ईफ तथा कम्ज़ोर और मन्घड़त हैं। जैसा कि हदीसों के बड़े बड़े विद्वानों ने कहा है। केवल एक हदीस जो शबे बरात के प्रति आइ है और उसे इमाम अलबानी ने हसन हदीस कहा है।

عَنْ أَبِي مُوسَى الأَشْعَرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّه عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ : إِنَّ اللَّهَ لَيَطَّلِعُ فِي لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ فَيَغْفِرُ لِجَمِيعِ خَلْقِهِ إِلا لِمُشْرِكٍ أَوْ مُشَاحِنٍ.   (رواه ابن ماجه – 1380 ،وحسنه الألباني في صحيح الجامع : 1819

अबू मूसा अल-अश्अरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “बेशक अल्लाह शाबान के पंद्रहवी रात को देखता है, तो अपने सब बन्दो को क्षमा कर देता है, सिवाए अल्लाह के साथ शिर्क करने वालों और एक दुसरे के लिए दुश्मनी, कीना कपट रखने वालों को।” (सुनन इब्ने माजा, हदीस संख्याः 1380)

इस हदीस में शाबान की पन्दर्वहीं रात में अल्लाह के क्षमा करने का ज्ञात हुआ। इस के अलावा इबादात और दुसरे आमाल का ज्ञात नहीं है।  इस्लामिक इबादतों में सब से महत्वपूर्ण दो शर्ते हैं, जिस का पाया जाना प्रत्येक कर्म या इबादत और पुण्य के लिए किये जाने वाले सम्पूर्ण कामों में अनिवार्य हैं। तभी अल्लाह के पास वह इबादत और कर्म स्वीकारित होगी।

(1)  वह कर्म और तथा इबादत निः स्वार्थ हो, दुनिया की लालच या लोगों को दिखाने के लिए न हो बल्कि केवल अल्लाह तआला को खुश करने के लिए किया जाए और केवल अल्लाह के लिए ही की जाए, उस इबादत में अल्लाह के साथ किसी को तनिक भी भागीदार और साझीदार नहीं बनाया जाए।

(2)  वह कर्म और पूजा तथा इबादत अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सुन्नत के अनुसार हो और वह सुन्नत सही हदीसों के शर्तों पर उतरती हों।

तभी हमारी कोई भी इबादत और पुण्य का कार्य अल्लाह के पास स्वाकारित होगी और हमें उस कार्य पर सवाब और पुण्य प्राप्त होगा। वर्ना हमारे कार्य पर पाप या गुनाह मिलेगा।

बिदआत में लिप्त वक्ति हौज़े कौसर से पानी पीने से वंचित होंगेः

नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह भविष्यवाणी भी कर दिया था कि कुछ लोग होंगे जो दीन में अपनी ओर से मिलावट करेंगे, चाहे उस की नियत अच्छी हो या बुरी, दोनों कारणों में उसे पाप ही प्राप्त होगा और जन्नत में दाखिल होने से वंचित होंगे,रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ हौज़ कौसर के स्वादिष्ट पानी के पीने से वंचित होंगे। सही बुखारी की इस हदीस पर विचार करें।

عنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ قَالَ : قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : إِنِّي فَرَطُكُمْ عَلَى الْحَوْضِ مَنْ مَرَّعَلَيَّ شَرِبَ، وَمَنْ شَرِبَ لَمْ يَظْمَأْ أَبَدًا ، لَيَرِدَنَّ عَلَيَّ أَقْوَامٌ أَعْرِفُهُمْ وَيَعْرِفُونِي، ثُمَّ يُحَالُ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ، فَأَقُولُ: إِنَّهُمْ مِنِّي، فَيُقَالُ: إِنَّكَ لَاتَدْرِي مَا أَحْدَثُوا بَعْدَكَ، فَأَقُولُ: سُحْقًا، سُحْقًا، لِمَنْ غَيَّرَبَعْدِي.    (رواه البخاري: 7050 و   6583 صحيح مسلم: 2290

सहल बिन साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः बेशक मैं कौसर कुंवाँ पर तुम्हारा स्वागत करूंगा। जो भी वहां मेरे पास से गुज़रेगा, वह उस कौसर कुंवाँ से पानी पीयेगा और जो उसका पानी पी लिया, वह कभी पियासा नहीं होगा, यक़ीनन कुछ लोग मेरे पास आएंगे और मैं उन्हें पहचान लूंगा और वह लोग भी मुझ से परिचित होंगे, फिर उन्हें मेरे पास आने से रोक दिया जाएगा। तो मैं कहुंगा, बेशक वह मेरे अनुयायी हैं, उसे मेरे पास आने दिया जाए। तो कहा जाएगा, बेशक आप नहीं जानते कि आप के बाद इन लोगों ने दीन (धर्म) में नई नई चीज़ (बिदअत) ले कर आ गए। तो मैं कहुंगा, दूर हो जाओ, दूर हो जाओ, जिन लोगों ने मेरे बाद दीन (धर्म) में नई नई चीज़ों (बिदअतों) पर अमल किया।        (सही बुखारीः 7050 व सही मुस्लिमः 2290)

बिदआत और मुहदसात वह घातक बीमारी है, जिस में मुस्लिम समाज लिप्त है। आश्चर्य जनक बात यह है कि बहुत सारे लोग अतिप्रेम से बहुत कुछ इबादतें दीन के नाम पर करते हैं। परन्तु उनकी यह कोशिश अकारत हो जाएगी और नेकियों की जगह गुनाहों से अपने दामन को भरते हैं, इस लिए हम सब को अपनी इबादतों के लिए चिंतित रहना चाहिये और केवल वही काम करना चाहिये जो सही हदीसों और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से प्रमाणित हो।

संछिप्त में कुछ बिद्अतों का वर्णनः

शबे बरात में हमारे बहुत से मुसलमान भाई सौ रकात वाली नमाज पढ़ते हैं, जब हम हदीसों की महत्वपूर्ण पुस्तकों और मुहद्देसीन उलमा के अकवाल (हदीस के बहुत बड़े बड़े विद्वानों के कथन) पढ़ते हैं, तो वह कहते हैं कि शबे बरात में की जाने वाली इबादतें बिदअत और खुराफात है जो जाइज नहीं और सही हदीसो से साबित नहीं है। मुस्लिम विश्व के सब से मश्हुर मुफ्ती अल्लामा इब्ने बाज़ (रहमतुल्लाह अलैहि) से प्रश्न किया गयाः क्या शबे बरात की कोई खास नमाज हदीसों की रोशनी में प्रमाणित हैं ? तो उन्हे ने उत्तर दियाः शाबान की पंदर्हवी रात (शबे बरात) के बारे में आई सब हदीस ज़ईफ और निहायत कमज़ोर है। बल्कि वह मौज़ूअ और मन्घड़त है। इस रात में न कोइ खास इबादत और न ही तिलावत, और न जमाअत है, जिन उलमा ने इस की अहमीयत बयान किया है, उनकी बात कमज़ोर है, इस रात में कोइ खास अमल जाइज़ नही है। ( मज्मूअ फतावा इब्ने बाज़)

शबे बरात के दिन का रोज़ा रखना भी साबित नहीं, इसी प्रकार कब्रिस्तान की ज़िरात और रूहों का आना और उन के लिए खाना और हल्वे और दुसरी चीज़ें तैयार करके उस पर फातिहा पढ़ाना इत्यादि सब बिदअत और खुराफात के सूची में आता है। जैसा के मुहद्देसीन उलमा ने फरमा दिया है।

अल्लाह हम सब को सीधे रासते पर चलने की क्षमता प्रदान करे और दीन की सही समझ दे और हमें दीन और दुनिया दोनों में सफल जीवन प्रदान करे। आमीन।।।।।।।।।।।।।।।।

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