माँ की दया

46533

माँ एक ऐसा शब्द है जो प्रेम के सागर और दयालुता के समुन्दर का नाम है। माता का नाम आते ही मानव को अपने जीवन के सब से सुन्दर दिनों को याद  करना चाहिये जो बालव्यवस्था का समय है। माता की गोद मानव का सर्व प्रथम पाठ्शालय है, जहां वह बिना कुछ खर्च  किये ही बहुत कुछ प्राप्त करता है। माता ही उन्नति तथा प्रगति की पहली सीढ़ी है।  क्योंकि माता ही ने अपने नवजात को नौ महीने तक अपने गर्भ में रखा और गर्भ की कष्ट और दर्द को झेला और जन्म की असहनीय परेशानी को बर्दाश्त किया और बच्चे  के जन्म के समय माँ ने अपने मृत्यु को अपने सामने देखा और फिर तीन वर्ष तक देख रेख और दूध पिलाने की परेशानी झेली, स्वयं ठंडी के मौसम खुद भीगे बिस्तर पर लेटी परन्तु अपने शिशु को गर्म बिस्तर पर लेटाया और अपने बच्चे के व्यस्क होने तक प्रत्येक प्रकार से सुरक्षा किया। इसी कारण अल्लाह तआला  तमाम मानव के बीच एक दुसरे पर कुछ ह़ुक़ूक़ एंव अधिकार को अनिवार्य किया है जिसे पूरा करना ज़रूरी है। इन हुकूक और वाजबात में सब से पहला और बड़ा हक़ अल्लाह का है और वह यह कि केवल अल्लाह की उपासना तथा उसी की पूजा की जाऐ और उसके साथ किसी को भागीदार न ठहराया जाए। एक बार प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मआज़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) से  प्रश्न किया।

يا معاذ .قلت: لبيك رسول الله وسعديك، قال: هل تدري ما حق الله على عباده , قلت: الله ورسوله أعلم، قال: حق الله على عباده أن يعبدوه ولا يشركوا به شيئا.  [صحيح البخاري: 113512 ]

अर्थ ,,ऐ मआज़! , मैं ने कहाः अल्लाह के रसूल हाज़िर हूँ , फरमाईये, आपने कहाः क्या तुम जानते हो कि अल्लाह का अपने दासों पर किया हक़ है ? मैं ने उत्तर दियाः अल्लाह और उस के रसूल अधिक जानते हैं। तो आप ने कहाः अल्लाह का दासों पर हक़ है कि वह केवल अल्लाह की पूजा करें और उस के साथ किसी को उस का साझीदार न बनाऐ ,,  (सही बुखारीः 113512

यह सर्वप्रथम हक़ अल्लाह का उसके दासों पर है।

दुसरा हक प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का है जिन के शिक्षा के कारण हम ने अपने वास्तविक मालिक को पहचाना है और वह हक यह है कि हम अपने जीवन के हर मोड़ पर प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आज्ञा का पालन करें, जिन चीज़ों के करने का हुक्म दिया है वह करें और जिन चीज़ों से रोका है उस से रुक जाएं यही आदेश अल्लाह तआला ने हमें क़ुरआन में दिया है।

” و ما اتاكم الرسول فخذوه و ما نهاكم عنه فانتهوا ”  [ سورة الحشر:7 ]

अर्थः और तुम्हें जो कुछ रसूल दें उसे ले लो और जिस से रोकें रूक जाओ (सूरः हश्रः 7

तीसरे नम्बर पर हम पर हमारे माता पिता के अधिकार प्रचलित होते हैं। जिन के प्रेम तथा मोहब्बत, मेहनत और लगन , उनकी सेवा और स्वार्थ त्याग के कारण ही हमने अपने व्यक्तित्व को विकसित कर पाए हैं और अल्लाह तआला के बाद हमारे उत्पन्न का कारण भी वह दोनों हैं, इस लिए अल्लाह तथा उस के रसूल के बाद हम पर अपने माता पिता का बड़ा अधिकार और ह़क़ है। यही वजह है कि अल्लाह ने उन के पद को काफी ऊंचा और बुलंद किया है। अल्लाह तआला फरमाता हैः

” و اعبدوا الله و لاتشركوا به شيئا و بالوالدين إحسانا ” [النساء : 36 ]

अर्थः  और अल्लाह की इबादत करो और उस के साथ किसी को शरीक़ न करो और माँ-बाप के साथ एहसान करो  (सूरः निसाः 36

इस आयत पर चिंतन मनन करें कि अल्लाह जल्ल शानहु ने अपनी पूजा और उपासना के साथ माता-पिता के साथ उपकार करने का आज्ञा देकर इनसानों को खबरदार किया कि उनके साथ हर प्रकार की भलाई, प्रेम, स्वार्थ त्याग, कृपा का व्यवहार करो।

माता का हक़ पिता के हक से अधिक हैं।

इस्लाम ने माँ-बाप का पद बहुत ऊंचा किया है और उन दोनों के प्रति उत्तम आचरण और उन दोनों का खूब आदर तथा सम्मान करने  का आदेश दिया है। परन्तु उन दोनों में माता का ह़क़ और अधिकार पिता के समक्ष अधिक दिया है क्योंकि माँ ने बच्चे की देख-भाल में काफी कष्ट झेली है। माँ ने संतान के पालन पोषण में बहुत ज़्यादा तकलीफ बर्दाश्त की है। बाल-बच्चे को हर प्रकार के पीड़िता तथा व्याकुलियों से सुरक्षित किया है। माता ने संतान के पालन-पोषण में पिता से अधिक बलिदान प्रत्य्क्ष किया है और बच्चों के लिऐ हर प्रकार का स्वार्थ त्याग दिया है। इस लिऐ  इस्लाम ने माँ को अच्छे व्यवहार का ज़्यादा मुस्तह़िक़ क़रार दिया है।  जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के कथन से प्रमाणित है।

جاء رجل إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم، فقال: يا رسول الله، من أحق الناس بحسن صحابتي؟  قال: أمك ، قال: ثم من ؟  قال: ثم أمك ، قال: ثم من ؟ قال: ثم أمك، قال: ثم من ؟ قال:  ثم أبوك-  صحيح البخاري : رقم الحديث : 113508]

अर्थः  एक आदमी रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! कौन ज़्यादा मेरे अच्छे व्यवहार तथा खूब सेवा का ह़क़दार है? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दियाः तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारा बाप। – सही बुखारीः 113508

अल्लाह तआला माता-पिता के पद, श्रेष्ठा, महानता और सम्मान को बढ़ाते हेतू विभिन्न शैली से मानव को संबोधित करता हैं जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान हैः    और तेरा रब खुला हुक्म दे चुका है कि तुम उसके सिवाय किसी दूसरे की अराधना (इबादत) न करना और माता-पिता के साथ अच्छा सुलूक करना  –  सूरः इस्राः 23

इसी तरह अल्लाह तआला ने मानव को आज्ञा दिया कि वह माता-पिता के साथ उत्तम उपकार तथा भलाई का बरताव करने का आदेश दिया हैः  और हमने मानव को ताकीद से आज्ञा दिया कि वह अपने माता-पिता के साथ उपकार करें – (सूरः अहक़ाफः 15

यदि कोई मनुष्य अल्लाह के वसिय्यत को याद कर के माँ-बाप का आदर और उन का सम्मान करते हुऐ उनकी अधिक सेवा करता है तो अल्लाह उन को अच्छा बदला देगा। परन्तु जो मनुष्य अल्लाह के वसिय्यत को भुला कर माँ-बाप के साथ अशुद्ध व्यवहार करेगा। तो अल्लाह उस अभागी से सख्त प्रश्न करेगा।

अल्लाह तआला ने माता पिता के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है और बहुत से अनिवार्य अधिकार को पूरा करने का आज्ञा दिया है।

निःसंदेह माता-पिता का अपने सपूतों पर अन्गिनित हुक़ूक़ तथा उपकार है। कोई भी मानव अपने माँ-बाप का हक़ अदा नहीं कर सकता और न ही उनके कृपा को गिन सकता है परन्तू उनके कुछ अनीवार्य हुक़ूक़ निम्न में बयान किया जा रहा है।

  •  माता-पिता के साथ हर हाल में उपकार एंव इहसान करना जैसा कि अल्लाह तआला का आदेश हैः   और हम ने हर इंसान को अपने माता-पिता से अच्छा सुलूक करने की शिक्षा दी है। (सूरः अन्कबूतः 8)
  • माता-पिता के आज्ञा का पालन करना जब तक वह आज्ञा प्रमेशवर के आदेश के प्रतिपक्षी और उनके कथन के विरोधी न हो जैसा कि प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया है। < अल्लाह की नाफरमानी में किसी बन्दे की आज्ञाकारी उचित नहीं >  (सहीहुल जामिअः शैख-अल्बानीः 7520)

उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के कि़स़्स़ा से माता-पिता की बात मान्ने की महत्वपु्र्णता स्पष्ट होती है। उमर फारूक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अपने पुत्र अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु) को कहा कि तुम अपनी स्त्री को तलाक़ दो प्रन्तु वह अपने स्त्री से अधिक प्रेम करते थे, उन्हों ने तलाक़ देने से इनकार किया फिर उमर फारूक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से शिकायत किया तो आप नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु) को अपने पिता का कहना मान्ने और स्त्री को तलाक़ देने का आज्ञा दिया फिर अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अपनी स्त्री को तलाक़ दे दिया।

  • अगर माँ-बाप अल्लाह की नाफरमानी , अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा , उस के साथ किसी को भागीदार बनाने का आज्ञा दे तो उनके आज्ञा का पालन न करना ज़रूरी है किन्तु उनके साथ उत्तम व्यवहार के साथ जीवन बिताना चाहिये जैसा कि अल्लाह तआला का ह़ुक्म हैः   और अगर वह दोनों इस बात की अत्यन्त कोशिश करें के तुम मेरे साथ शिर्क करो जिस का तेरे पास ज्ञान नहीं है तो तुम उन दोनों की बात न मानो और संसार में उन के साथ भलाई करते हुऐ जीवन गुज़ारो –  (सूरः लुक़मानः 14)

इस आयत की स्पष्टिकरण में सा़द बिन अबुल वक्का़स (रज़ियल्लाहु अन्हु) के इस्लाम लाने का क़िस्सा बहुत ही शिक्षा और नसीहत से भरा है। जब साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने इस्लाम स्वीकार किया तो उनकी माँ ने कहाः मैं उस समय तक खाना नही खाऊंगी जब तक तुम इस्लाम छोड़ कर अपने पुर्वज धर्म में लौट न आऔ और उनकी माँ ने खाना-पीना त्याग दिया। साद (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने माँ से कहाः ऐ माता , यदि तेरे पास एक सौ प्राण होती और वह एक एक कर के निकलती तब भी मैं इस्लाम नहीं छोड़ूंगा। दो दिन की भूक हडताल के बाद अन्त में उनकी माँ ने खाना-पीना आरंभ कर दिया।

  • माँ-बाप को बुरा-भला न कहना और नहीं डांटना-फटकारना बल्कि उनके किसी बात पर ,, हूँ ,,  तक न कहना जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान हैः   अगर तुम्हारे पास इन में से एक या यह दोनों बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जायें तो उनको ऊफ तक न कहना और नहीं उन्हें डाँटना  (सूरः इस्राः 23)
  • माता-पिता के साथ नीची आवाज़ और इज़्ज़तों एहतेराम से बातचीत करना चाहिये क्योंकि माँ-बाप आदर तथा सम्मान के अधीक हक़दार हैं। अल्लाह तआला ने भी मानव को इसी की ह़ुक्म दिया हैः  और उनके साथ आदर तथा सम्मान से बातचीत करो ”  (सूरः इस्राः 23)
  •  माता-पिता के लिए अल्लाह से रहमतो-मग़फिरत की दुआ करना, अल्लाह तआ़ला सब लोगों से चाहता है कि लोग अपने लिए, माता-पिता के लिए, सर्व लोगों के लिए अल्लाह से ही दुआ करें और अपने माँ-बाप के लिए बहुत दुआ करें। अल्लाह तआ़ला के इस कथन पर ध्यान पूर्वक विचार करें।  और कहोः ऐ मेरे रब, उन दोनों पर वैसे ही कृपा कर जैसा कि उनहों ने बच्पन में हम पर दया और हमारी पालन पोषन किया ।  (सूरः इस्राः 23)

(9)  माता-पिता पर पैसा खर्च करना और उनको जीवन व्यवस्था का सामग्री देना यदि वह मोहताज हों तो अपने पत्नी तथा सपूतों पर उनको तरजीह़ देना जैसा कि प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेश से प्रमाणित है।

عن عبدالله بن عمرو بن العاص أن أعرابيا أتى النبي صلى الله عليه وسلم فقال إن لي مالا وولدا وإن والدي يريد أن يجتاح مالي قال: ” أنت ومالك لأبيك إن أولادكم من أطيب كسبكم فكلوا من كسب أولادكم”   إرواء الغليل:رقم الحديث 148533 ]

अर्थः अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आ़स (रज़ियल्लाहु अन्हुमा)  से वर्णन है कि एक देहाती नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः  बैशक मेरे पास धन-दौलत और बाल-बच्चे हैं। और मेरे पिता मेरा धन-दौलत ले लेते हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया – तुम और तुम्हारी धन-दौलत तुम्हारे पिता की चीज़ है। निःसंदेह संतान तेरी उत्तम कमाई है तो तुम अपने संतान की कमाई खाओ  (इरवाउल-ग़लीलः 148533

नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस कथन से माता-पिता की सेवा , उन पर अपनी संपती खर्च करने का उपदेश मिलता है और उन को हर प्रकार से प्रसन्न रखने का शिक्षण मिलता है।

  • यदि माता-पिता पुकारे तो उनकी पुकार पर परस्तुत होना और उनकी जीवन सामग्रियों को पूरा करना यदि नफ्ली नमाज़ पढ़ रहा हो तो उसे छोड़ कर आना ज़रूरी होता है जैसा कि हमें जुरैज आ़बि़द के कि़स्से़ से शिक्षण मिलता है।

عن أبي هريرة أنه قال : كان جريج يتعبد في صومعة. فجاءت أمه فقالت: ياجريج! أنا أمك.كلمني -فصادفته يصلي . فقال: اللهم! أمي وصلاتي فاختار صلاته. فرجعت ثم عادت في الثانية. فقالت: ياجريج ! أنا أمك. فكلمني. قال: اللهم! أمي وصلاتي.فاختارصلاته. فقالت: اللهم! إن هذا جريج. وهو ابني. وإني كلمته فأبى أن يكلمني .اللهم! فلا تمته حتى تريه المومسات-قال:ولو دعت عليه أن يفتن لفتن. قال:وكان راعي ضأن يأوي إلى ديره  قال فخرجت امرأة من القرية فوقع عليهاالراعي فحملت فولدت غلاما فقيل لها: ما هذا؟ قالت: من صاحب هذا الدير. قال فجاءوا بفؤسهم و مساحيهم فنادوه فصادفوه يصلي . فلم يكلمهم.قال فأخذوا يهدمون ديره. فلما رأى ذلك نزل إليهم. فقالوا له: سل هذه:قال فتبسم ثم مسح رأس الصبي فقال: من أبوك؟ قال: أبي راعي الضأن. فلما سمعوا ذلك منه قالوا: نبني ما هدمنا من ديرك بالذهب والفضة. قال: لا.ولكن أعيدوه ترابا كما كان.ثم علاه [صحيح مسلم : رقم الحديث:175942 ]

अर्थः अबू-होरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं – जुरैज अपने कुट्या में अराधना (इबादत) करता था तो उसकी माँ आई और कहाः ऐ जुरैज! मैं तुम्हारी माँ हूँ, तुम मुझ से बात करो परन्तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो हृदय में विचार किया, ऐ अल्लाह ,मेरी माँ और नमाज़ फिर वे नमाज़ पढ़ते रहे और उसकी माता लौट आई फिर दुसरी बार आई और कहा, ऐ जुरैज ! मैं तुम्हारी माता हूँ , तुम मुझ से बात करो परन्तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो हृदय में विचार किया, ऐ अल्लाह, मेरी माता और नमाज़ फिर वे नमाज़ पढ़ते रहे, तो उसकी माँ ने कहा, ऐ अल्लाह जुरैज मेरा पुत्र है और मैं उस से बात करना चाहती हूँ परन्तु वे बात करना नहीं चाहता, ऐ अल्लाह उसे संभोगिक स्त्री के समक्ष बिना मृत्यु न दे, (रावी कहते हैं) और यदि यौन सम्बंधित की शाप देती तो वे करता! और एक चड़वाहा उसके कुट्या में आता था। तो एक स्त्री ग्राम से निकली और उन दोनों ने यौन सम्बंध किया और औरत गर्भ से हो गई और एक पुत्र जन्म दिया। उस से कहा गया कि यह किस का है? औरत ने उत्तर दियाः यह इस कुटया वाले का है! लोग अपने कुल्हारी और हथौरों से उसके घर को मुन्हदिम करने लगे फिर वह नीचे उत्तरा तो लोगों ने कहा यह क्या है?  जुरैज हंसा फिर बच्चे के सर पर हाथ फैरा और कहाः तुम्हारा बाप कौन है? बच्चे ने उत्तर दियाः मेरा बाप चड़वाहा है। तो जब लोगों ने (जन्म हेतू) बच्चे को बोलते हूऐ सूना तो कहा कि हम आप के घर को सोने-चाँदी से बना देंगे तो उसने उत्तर दियाः नहीं, परन्तु जैसा था वैसा ही बना दो।   (सूरः 175942

जो लोग माता पिता को परेशान करते है तो उन्हें माँ-बाप के अवज्ञा एंव कृतनिंदा के कारण बहुत से हानि तथा घाटा प्राप्त होता है।

  माँ-बाप की अवज्ञा और उनकी नाफरमानी महा पापों में से है । जैसा कि रसुलूल्लाह ने फरमाया है।

ألا أنبئكم بأكبرالكبائر. ثلاثا، قالوا : بلى يا رسول الله، قال: الإشراك بالله، وعقوق الوالدين وجلس وكان متكئا، فقال- ألا وقول الزور, قال: فما زال يكررها حتى قلنا: ليته يسكت” [صحيح البخاري: 2654]

अर्थः   किया तुम्हें पापों में बड़े पापों के बारे में ज्ञान न दूँ ,तीन बार कहा, आप के साथियों ने उत्तर दियाः क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूलः आप ने फरमायाः अल्लाह के साथ किसी दुसरे को साझीदार बनाना और वालिदैन की नाफरमानी करना, और आप टेक लगाऐ थे, बैठ गऐ, तो फरमाया, सुनो, झूटी गवाही देना, (रावी कहते हैं) आप इसे बार बार दोहरा रहे थे यहाँ तक कि हमने (दिल में) कहाः काश कि आप खामूश हो जाते।  (सही बुखारीः 2654)

 यदि माँ-बाप नाराज़,अप्रसन्न हो तो अल्लाह भी नाराज़ होगा।और वह बद बख्त होगा जिस से अल्लाह नाराज़ हो, इसी लिए माँ-बाप की खूब सेवा करके उनको खूश रखें। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया,

” رضى الله في رضى الوالدين، وسخط الله في سخط الوالدين ” [صحيح ابن حبان: 33459]

अर्थः अल्लाह की खुशी माता-पिता की प्रसन्नता में गुप्त है और अल्लाह की अप्रसन्नता माँ-बाप के क्रोध में है।   (सही इब्ने हब्बानः 33459

 जो लोग माता-पिता के साथ अप्रिय व्यवहार करते हैं। उनको कष्ट देते , उन पर अत्याचार करते, उनको सताते हैं। उनकी संतान भी उनके साथ अप्रिय व्यवहार करते, उनको कष्ट देते हैं। और यह बात अनुभव से साबित है। और आप लोग ने भी अन्गनित वाक़ियात देखे होंगे। बेशक जो जैसा बीज बोऐगा, वैसा फल काटेगा, और प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान है।

” بروا آباءكم تبركم أبنائكم …………….”  [ الترغيب والترهيب : 3/294 ]

अर्थः अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, तुमहारी संतान तुम्हारे साथ उत्तम व्यवहार करेगी………..   (तर्ग़ीब व तर्हीबः 294/3

 जो लोग माँ-बाप के साथ अनुचित व्यवहार और अशुद्ध सुलूक तथा अत्याचार करते हैं। अल्लाह तआला एसे व्यक्ति को संसार में ही अपमानित करता है। वह व्यक्ति लोगों की नज़र में नीच , कमीना और बेइज़्ज़त होता है और मृत्यु के पश्चात भी अल्लाह उसे सख्त दंडित करेगा।

 माता-पिता के अवज्ञा कारी को अल्लाह तआला क़ियामत के दिन कृपा की दृष्टि से नहीं देखेगा और जिस से अल्लाह नज़र मोड़ ले, वह बहुत बड़ा अभागी है। एसे बद नसीब शख्स के बारे में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन पढ़ेः

” ثلاثة لا ينظر الله إليهم يوم القيامة: العاق لوالديه ، ومدمن خمر ، والمنان بما أعطى ” [كتاب التوحيد لإبن خزيمة: 2/859 ]

, क़ियामत के दिन अल्लाह तआला तीन शख्सों की ओर दया की नज़र से नहीं देखेगाः अपने माता-पिता की नाफरमानी करने वाले , खूब दारू पीने वाले , भलाई करके उपकार जताने वाले – (किताबुत्तौहीदः इब्ने ख़ुज़ैमाः 859/2

  बरबादी और हलाकत है उस आदमी के लिए जो बूढ़े माता-पिता की सेवा और खिदमत करके जन्नत (स्वर्ग) में दाखिल न हो सका

“رغم أنف ، ثم رغم أنف ، ثم رغم أنف قيل : من ؟ يا رسول الله ! قال : من أدرك أبويه عند الكبر ، أحدهما أو كليهما فلم يدخل الجنة ” [الصحيح لمسلم :  1880 ]

 उस व्यक्ति का सत्यानाश हो , फिर उस व्यक्ति का सत्यानाश हो , फिर उस व्यक्ति का सत्यानाश हो, कहा गया , कौन ? ऐ अल्लाह के रसूल ! आप ने फरमायाः जो अपने माता-पिता में से एक या दोनों को बूढ़ापे की उम्र में पाये और जन्नत में दाखिस न हो सका।  (सही मुस्लिमः 1880)

 जिबरील (अलैहिस्सलाम) की धिक्कार और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)  की धिक्कार उस व्यक्ति पर हो जो बूढ़े माता-पिता को पाये और उनकी सेवा न किया, उनको खूश न कर सका जिस के कारण जहन्नम (नर्ग) में प्रवेश हो गया।

صعد رسول الله صلى الله عليه وسلم المنبر فلما رقي عتبة قال: آمين ثم رقي أخرى فقال: آمين ثم رقي عتبة ثالثة فقال: آمين ثم قال : ” أتاني جبريل عليه السلام فقال: يا محمد من أدرك رمضان فلم يغفر له فأبعده الله , فقلت: آمين قال: ومن أدرك والديه أو أحدهما فدخل النار فأبعده الله , فقلت: آمين  قال: ومن ذكرت عنده فلم يصل عليك فأبعده الله , قل : آمين  فقلت: آمين”  [الترغيب والترهيب: للمنذري : 2/406]

अर्थः रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मिंबर पर चढ़े तो जब पहला ज़ीना चढ़े , कहाः आमीन , फिर दुसरा ज़ीना चढ़े तो कहाः आमीन , फिर तीसरा ज़ीना चढ़े तो कहाः आमीन , फिर फरमायाः मेरे पास जिबरील (अलैहिस्साम) आये और कहाः ऐ मुहम्मद जो रमज़ान पाये तो उसे माफ नहीं किया गया तो अल्लाह उसे दूर करे , मैं ने कहाः आमीन , जिबरील ने कहाः और जो अपने माँ-बाप या उन दोनें में से एक को पाये तो जहन्नम (नर्ग) में दाखिल हूआ तो अल्लाह उसे दूर करे , मैं ने कहाः आमीन , जिबरील ने कहाः और जिस के समक्ष आप का नाम आये और आप पर दरूद न पढ़े तो अल्लाह उसे दूर करे , आमीन कहो , तो मैं ने कहाः आमीन।    (तर्ग़ीब व तर्हीबः 406/2)

इस्लाम ही वह महान एंव सर्वश्रेष्ठ धर्म है जो हर मनुष्य को उसके उचित स्थान पर रखता है। जब संतान छोटा होता है तब माता-पिता को अल्लाह ने यह आज्ञा दिया कि तुम अपने संतान की अच्छी पालण पोशन करो, उसे उत्तम शिक्षा दिलाओ, उस पर हर प्रकार से ध्यान दो,

यह नहीं कि माता पिता को वृद्धाआश्रम में फेंक दिया जाए और वर्ष में एक दिन नियुक्त कर लिया जिसे माँ के खुशी का दिन या माँ के तैहार का दिन जिस में माँ को उपहार या तौहफा दे दिया बल्कि इस्लाम ने प्रति दिन माँ के खुशी का दिन क़रार दिया है। रसूल (सल्लम) ने फरमायाः माँ बाप की खुशी में अल्लाह की खुशी है। और माँ बाप की नाराजगी में अल्लाह की नाराजगी है।

Related Post