इस्लामी इतिहास में हिजरत एक ऐसा पवित्र और निःस्वार्थ घटना है जिसने सत्य और असत्य में अन्तर उतपन्न किया। जिस ने इस्लाम के प्रगति में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। हिजरत रसूलों (अलैहिमुस्सलाम) की सुन्नत है। जिस पर अमल कर के रसूलों (अलैहिमुस्सलाम) ने अल्लाह तआला की प्रसन्नता प्राप्त की। अपनी दीन की सुरक्षा की खातिर अपने घर तथा परिवार को त्याग दिया। अल्लाह की खुशी के लिए अपने मन को अल्लाह के धर्म के अनुसार चलने के लिए मजबूर कर दिया ताकि अल्लाह की खुशी प्राप्त हो।
अल्लाह तआला ने अपने दासों को आदेश दिया कि यदि वह अल्लाह तआला की इबादत अच्छे तरीके से, अपने गाँव तथा देश में रह कर नहीं कर सकते तो अपना गाँव और देश छोड़ कर दुसरे गाँव तथा देश में हिजरत करे, जहां वह अल्लाह की इबादत अच्छे तरीके से कर सके। जैसा कि अल्लाह का आदेश है।
يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ أَرْضِي وَاسِعَةٌ فَإِيَّايَ فَاعْبُدُونِ. (29- سورة العنكبوت: 56
ऐ मेरे बन्दों, जो ईमान लाए हो! निस्संदेह मेरी धरती विशाल है। अतः तुम मेरी ही इबादत (वंदना) करो। (29-सूरह अन्कबूतः 56)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
أَنا آمرُكُم بخَمسٍ اللَّهُ أمرَني بِهِنَّ، السَّمعُ والطَّاعةُ والجِهادُ والهجرةُ والجمَاعةُ. (صحيح سنن الترمذي: 2863
मैं तुम्हें पांच चीज़ों के करने का आदेश देता हूँ जिसे करने का आदेश मुझे अल्लाह ने दिया हैः अपने शासक की बातों को ध्यानपूर्वक सुनों और उनकी बातें पर अमल करो, अल्लाह के रास्ते में जेहाद करो, और अल्लाह की खुशी प्राप्त करने के लिए हिजरत करो, और मुसलमानों की जमाअत को लाज़िम पकड़ो। (सही सुनन तिर्मिज़ीः2863 )
हिजरत क्या है ?
एक स्थान को छोड़ कर दुसरे स्थान पर जाकर स्थायी रूप से निवास करने को हिजरत कहा जाता है।
परन्तु इस्लामी परिभाषाः अपने धर्म की सुरक्षा के कारण अपने जन्मस्थल को छोड़ कर सही तरीके से अल्लाह की इबादत करने के लक्ष्य से दुसरे स्थान पर स्थायी रूप से निवास करने को हिजरत कहते हैं।
ऐसा हिजरत करने की बहुत ही फज़ीलत आइ है। जो लोग भी अपने दीन की सुरक्षा के लिए अपने धनदौलत, परिवार और घर को त्याग कर दुसरे अपरिचित स्थान पर अल्लाह पर भरोसा करते हुए स्थायी रूप से निवास करते हैं ताकि अल्लाह की इबादत अल्लाह के आज्ञानुसार कर सके। तो ऐसे लोगों को बहुत बड़ी खुश खबरी है जैसा कि अल्लाह तआला ने मुहाजेरीन और अन्सार सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) के प्रति शुभ खबर दिया।
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّـهِ وَالَّذِينَ آوَوا وَّنَصَرُوا أُولَـٰئِكَ هُمُ الْمُؤْمِنُونَ حَقًّا ۚ لَّهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ. – 8- سورة الأنفال: 74
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही सच्चे ईमान वाले हैं। उन्हीं के लिए क्षमा और उत्तम जीविका है। (8-सूरह अन्फालः 74)
अल्लाह की खुशी के लिए और अल्लाह तआला के लिए हिजरत करना ऐसा कर्म है जिस के बराबर कोइ कर्म नहीं हो सकता, उसके जैसा कोइ दुसरा कर्म नहीं हो सकता जैसा कि अबू फातिमा अयादी (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूछाः
أنَّهُ قالَ يا رسولَ اللَّهِ حدِّثني بعملٍ أستَقيمُ علَيهِ وأعملُهُ ، قالَ لهُ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ علَيهِ وسلَّمَ عَليكَ بالهجرةِ فإنَّهُ لا مِثلَ لَها. – السلسلة الصحيحة: العلامة الألباني: 4/573
ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे ऐसा कर्म बयान करें जिस पर अमल करते हुए मैं जमा रहूँ, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः तुम यकीनन हिजरत करो, क्योंकि उस के जैसा कोई कर्म नहीं है। (सिल्सिला अस्सहीहाः अल्लामा अलबानीः 573/4)
अल्लाह तआला की ओर से क्षमा तथा माफी है। ऐसे बन्दों के लिए जो अल्लाह की खातिर , अपने दीन की सुरक्षा के कारण अपने देश को छोड़ कर अन्य देश में हिजरत करते हैं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अम्र बिन आस (रज़ियल्लाहु अन्हु) से फरमायाः
أمَا علِمتَ أنَّ الإِسلامَ يَهْدِمُ ما كان قَبلَهُ، و أنَّ الهِجرَةَ تَهدِمُ ما كان قبْلَها، وأنَّ الحَجَّ يَهدِمُ ما كان قَبلَهُ ؟ – صحيح الجامع: 1329
क्या तुम्हें मालूम नहीं, बेशक इस्लाम अपने से पूर्व के पापों को मिटा देता है और बेशक हिजरत अपने से पूर्व के पापों को समाप्त कर देता है और बेशक हज्ज अपने से पूर्व के पापों को मिटा देता है। (सहीहुल्जामिअः अल्लामा अल्बानीः 1329)
जो लोग अल्लाह तआला को खुश करने के लिए हिजरत करते हैं। अल्लाह के आदेश के अनुसार कर्म करने के लक्ष्य से हिजरत करते हैं। अपन दीन की हिफाज़त के कारण हिजरत करते हैं। अल्लाह की परसन्नता हासिल करने के लिए हिजरत करते हैं और अल्लाह के जन्नत को प्राप्त करने के लक्ष्य से अपनी दुनियावी सब वस्तुओं को त्याग देते हैं तो ऐसे लोगों के लिए अल्लाह तआला ने अपने पास बहुत कुछ सुरक्षित कर रखा है जिस की खुशखबरी क़ुरआन करीम में दिया है। अल्लाह का फरमान है।
الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّـهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ اللَّـهِ ۚ وَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ ﴿٢٠﴾ يُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُم بِرَحْمَةٍ مِّنْهُ وَرِضْوَانٍ وَجَنَّاتٍ لَّهُمْ فِيهَا نَعِيمٌ مُّقِيمٌ. خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ إِنَّ اللَّـهَ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ – سورة التوبة: 20-21
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ उनका बहुत बड़ा पद है और वही सफल होने वाले हैं।- उन्हें उनका रब अपना दयालुता और प्रसन्नता और ऐसे जन्नतों की शुभ-सूचना देता है, जिनमें उनके लिए स्थायी सुख के साधन हैं। जिन में वह सदावासी हेंगे। वास्तव में अल्लाह के पास (सत्यकर्मियें के लिए) बहुत बड़ा प्रतिफल है। (9- सूरह अत्तौबाः 20-21)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने भी हिजरत करने वालों को जन्नत (स्वर्ग) की गारेन्टी दी है। इस हदीस पर विचार करें।
أنَا زَعِيمٌ لِمَنْ آمَنَ بِي وأسلَمَ وهَاجَرَ بِبَيتٍ في رَبَضِ الجنةِ ، وبَيتٍ في وسَطِ الجنةِ وبَيتٍ في أعْلَى غُرَفِ الجنةِ. (صحيح الجامع للعلامة الألباني: 1465
फुज़ाला बिन उबैद (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जो व्यक्ति मुझ पर ईमान लाए और अपने आप को बुराइयों से सुरक्षित रखे, और हिजरत किया तो मैं उस व्यक्ति के लिए जन्नत के किनारे एक घर की गारेन्टी लेता हूँ, और जन्नत के बीच एक घर की गारेन्टी लेता हूँ, और जन्नत के सर्व ऊंचे बाला खानों में एक घर की गारेन्टी लेता हूँ। (सहीहुल्जामिअः अल्लामा अल्बानीः 1465)
हिजरत का मतलब क्या है ?
शब्दकोश के अनुसार हिजरत का अर्थ होता है छोड़ना , अलग होना, इत्यादि
परिभाषिक अर्थः अपने धर्म की सुरक्षा के खातिर अपने गाँव या देश को छोड़ कर जहां वह अल्लाह की इबादत अल्लाह के आज्ञानुसार न कर सकता तो दुसरे देश में स्थायी रूप में आवास करना, जहां वह अल्लाह की इबादत अल्लाह के आज्ञानुसार कर सकते हों, हिजरत कहलाता है।
हिजरत दो प्रकार के होते हैं। जैसा कि नबी से हदीस में प्रमाणित है।
النبيَّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ قال إنَّ الهجرةَ خَصلتانِ إحداهما أن تهجرَ السَّيِّئاتِ والأُخرى أن تهاجرَ إلى اللهِ ورسولِه ولا تنقطعُ الهجرةُ ما تُقُبِّلتِ التوبةُ ولا تزالُ التوبةُ مقبولةً حتى تطلعَ الشمسُ من الغربِ فإذا طلعتْ طُبِعَ على كلِّ قلبٍ بما فيه وكفى الناسُ العملَ. (إرواء الغليل: الشيخ الألباني: 5/33)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः बेशक हिजरत दो प्रकार के होते हैं। पहलाः बुरे कर्मों, आदतों और व्यवहार को छोड़ दिया जाए और दुसरा कि अल्लाह और उसके रसूल के खातिर हिजरत किया जाए और हिजरत उस समय तक बाक़ी है जब तक कि बन्दों से उस का तौबा स्वीकारित है और बन्दों का तौबा सूर्य के पच्छिम से उदय होने से पूर्व तक ही स्वीकारित है। तो जब सूर्य पच्छिम से उदय हो जाएगा तो प्रत्येक हृदय को उसी के अनुसार मोहर लगा दिया जाएगा और लोगों के अमल के अनुसार बदला मिलेगा। (इरवाउल गलीलः अल्लामा अलबानीः 33/5)
(1) भावनात्मक हिजरतः अर्थात कि मानव कुफ्र को छोड़ कर इस्लाम में दाखिल हो जाए, शिर्क को छोड़ कर तौहीद में प्रवेश कर जाए, बिदआत को छोड़ कर सुन्नत के अनुसार जीवन व्यतीत करे, और बुराइ से अलग थलग हो कर अच्छाई और नेक कर्मों का चयन करे। यह हिजरत प्रत्येक व्यक्ति पर अनिवार्य है चाहे वह इस्लामी देश में हो या गैर इस्लामी देश में हो। सब लोगों के साथ रहता हो या तन्हा अलग थलग रहता हो, गाँव का निवासी हो या शहर में रहने वाला हो। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया गया कि सर्वेत्तम हिजरत किया है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया।
عن عبد الله بن حبشي الخثعمي أنَّ النَّبيَّ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ سُئِلَ أيُّ الأعمالِ أفضَلُ ؟ قالَ : إيمانٌ لا شَكَّ فيهِ وجِهادٌ لا غلولَ فيهِ وحجَّةٌ مبرورةٌ ……… فأيُّ الهجرةِ أفضلُ قالَ من هجرَ ما حرَّمَ اللَّهُ عزَّ وجلَّ …… (صحيح النسائ: 2525)
अब्दुल्लाह बिन हब्शी अल्खस्अमी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया गया कि सब से उत्तम कर्म क्या है ?, आप ने फरमायाः ऐसे ईमान जिस में शक न हो, ऐसा जिहाद जिस में धोखा न हो, और हज्जे मबरूर (स्वीकारित हज्ज) …. फिर सर्वेत्तम हिजरत क्या है. तो आप ने फरमायाः जो व्यक्ति उन चीज़ों को छोड़ दे जिन्हें अल्लाह तआला ने हराम किया है। ………. (सही अन्नसईः 2525)
इसी प्रकार रसूल ने भी दुसरे स्थान पर फरमायाः
المسلمُ من سلِم المسلمون من لسانِه ويدِه ، والمهاجرُ من هجر ما نهى اللهُ عنه. (صحيح البخاري: 6484)
वास्तविक मुसलमान वह है जिस के ज़बान और हाथ के कष्टों से दुसरे मुसलमान सुरक्षित रहें और वास्तविक मुहाजिर वह है जो उन वस्तुओं को छोड़ दे जिन से अल्लाह तआला ने मना किया है। (सही बुखारीः 6484)
गोया कि जो मुसलमान भी अपने पापों और गुनाहों को छोड़ देता है तो वह भी हिजरत करने वालों के आदेश में आता है और उसे भी बहुत ज़्यादा सवाब प्राप्त होगा। अल्लाह हम सब को इसकी तौफीक दे ताकि हम तौबा कर के बुराइ से नेकी की ओर हिजरत करें और अल्लाह की खुशी और प्रसन्नता प्राप्त कर सकें।
(2) भौतिक हिजरतः धर्म की सुरक्षा के कारण एक शहर या देश को छोड़ कर दुसरे मुस्लिम देश में जा कर स्थायी रूप में निवास करना हिजरत कहलाता है।
इस हिजरत की चार स्थिति हो सकती हैं।
(1) वह हिजरत जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में था। जिस का आरम्भ अल्लाह के अनुमति से हुआ था और मक्का विजय तक बाकी था। मक्का विजय होने के बाद यह हिजरत समाप्त हो गया जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से हिजरत के प्रति प्रश्न किया गया, तो आप ने फरमायाः मक्का विजय के बाद हिजरत नहीं है। परन्तु अल्लाह के रास्ते में जिहाद और नियत है। जब तुम से जिहाद में निकलने के लिए कहा जाए तो जिहाद के लिए निकल पड़ो। (सही मुस्लिमः1864)
यही हिजरत सब से उत्तम और सर्वश्रेष्ट हिजरत था जिस पर अमल कर के सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने दिखाया जिस का पूरा पूरा सवाब उसके करने वाले को प्राप्त होगा जैसा कि अल्लाह तआला का वचन है।
(2) कुफ्फार के देश से इस्लामी देश की ओर हिजरत करना जिस का आगे विस्तार से विवरण आ रहा है।
(3) मुस्लिम देश में हो परन्तु बुराइयों एवं पापों का प्रचलन बहुत ही सार्वजनिक हो तो अपने और अपने परिवार के धर्म की सुरक्षा के कारण वहाँ से हिजरत करना मुस्तहब (उत्तम) है। जैसा कि हदीस में वर्णन हुआ है।
(4) अन्तिम समय में क़ियामत से पहले और फितने के जमाने में दुसरे देशों से शाम (सिरिया) की ओर हिजरत करना अच्छा है। जैसा कि हदीस में वर्णन है।
जब मुसलमान किसी गैर मुस्लिम देश का निवासी हो और वहां निवास करने की स्थिति में उन्हें निम्न की चार स्थिति पेश आती हों तो उन में से जिस स्थिति से दोचार हो, उसी के अनुसार वह अमल करेगा।
(1) कुफ्फार के देश से इस्लामी देश की ओर हिजरत करना जो कि क़ियामत तक बाकी है। जब भी किसी कुफ्फार देश में मुसलमानों को अपने धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करना असम्भ हो जाए। किसी देश का राजा, मुख्मन्त्री या संविधान या शासक मुसलमानों को इस्लामी सिक्षानुसार जीवन गुज़ारने नहीं दे, अल्लाह की इबादत अल्लाह के आदेशानुसार करने नहीं दे, इस्लामी पहचान आज्ञाओं पर चलने नहीं दे तो उस देश से अपने धर्म की हिफाज़त के खातिर दुसरे इस्लामी देश या ऐसे देश की ओर जहां स्वतंत्रता के साथ अल्लाह के आदेश अनुसार जीवन गुज़ार सकता हो, हिजरत करना अनिवार्य हो जाता है जब कि वह लोग वहां से हिजरत करने की क्षमता भी रखते हैं। यदि वे लोग वहां से हिजरत नहीं करते और कुफ्फार के रंग में अपने आप को रंग लेते हैं और कुफ्फार की ही तरह कर्म करना आरम्भ करते हैं तो ऐसे लोग अल्लाह के पास सख्त अज़ाब में ग्रस्त होंगे और मजबूरी और कमजोरी का बहाना काम न आएगा। अल्लाह के इस कथन पर विचार किया जाए।
إِنَّ الَّذِينَ تَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ ظَالِمِي أَنفُسِهِمْ قَالُوا فِيمَ كُنتُمْ ۖ قَالُوا كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ قَالُوا أَلَمْ تَكُنْ أَرْضُ اللَّـهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُوا فِيهَا ۚ فَأُولَـٰئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا. – سورة النساء: 97
जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, “तुम किस दशा में पड़े रहे ?” वे कहते है, “हम धरती में निर्बल और बेबस थे।” फ़रिश्ते कहते हैं, “क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उस में घर-बार छोड़ कर कहीं ओर हिजरत कर जाते ?” तो ये वही लोग हैं जिनका ठिकाना जहन्नम है। – और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है। (4- सूरह अन्निसाः 97)
(2) परन्तु जब किसी कुफ्फार देश में मुसलमानों को अपने धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करना असम्भव हो जाए और वे लोग हिजरत करने की क्षमता नहीं रखते हैं तो वे उसी देश में हिजरत करने की शक्ति प्राप्त होने तक या हिजरत करने के तरीका सरल होने तक ठहर सकते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने अनुमति दी है। अल्लाह का फरमान है।
إِلَّا الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًا ﴿٩٨﴾ فَأُولَـٰئِكَ عَسَى اللَّـهُ أَن يَعْفُوَ عَنْهُمْ ۚ وَكَانَ اللَّـهُ عَفُوًّا غَفُورًا. – سورة النساء: 98-99
सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न ही हिजरत करने का कोई राह पा रहे है; तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को माफ कर दे; क्योंकि अल्लाह बहुत माफ करने वाला और बड़ा क्षमाशील है। (4- सूरह अन्निसाः 98-99)
(3) ऐसे देश में हो जहाँ अल्लाह की इबादत करने की आजादी हो परन्तु वहां बहुत पाप होता हो, शिर्क बिदआत ज़्यादा होता हो जिस कारण अपने और अपने घर वालें को पापों में ग्रस्त होने की सम्भावना अधिक हो तो अपने धर्म की सुरक्षा के खातिर वहां से हिजरत करना अच्छा है। जहां नेक लोग ज़्यादा हो और नेकी का कार्य अधिक प्रचलित हो। जैसा कि हदीस से प्रमाणित होता है।
(4) ऐसे कुफ्फार के देश का निवासी हो, जहाँ के लोग अच्छे हों और सत्य के स्वीकार करने में साक्ष्यम हों यदि वे वहां रह कर लोगों को अल्लाह के दीन की दावत दे तो लोग उस की दावत को स्वीकार करेंगे तो ऐसे इलाके से हिजरत करना वर्जित होगा। ज्ञानी व्यक्तियों तथा विद्वानों पर वहां निवास करना अनिवार्य होगा ताकि लोग अल्लाह की इबादत के रास्ते पर लग जाए। लोग अपने सृष्टिकर्ता का परिचय करके उसी की इबादत करे और यह बहुत ही पूण्य का कार्य होगा। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) से फरमायाः इस हदीस पर गम्भीरता से विचार करेः
قال النبيُّ (صلَّى اللهُ عليه وسلَّم) يومَ خيبرَ: لأُعْطيَنَّ الرايةَ غدًا رجلًا يُفْتَحُ علَى يديهِ، يُحبُّ اللَّهَ ورسولهُ ويُحِبُّهُ اللَّهُ ورسولهُ. فباتَ الناسُ ليلتَهُم: أيُّهُم يُعْطَى، فغدَوْا كُلُّهُم يَرْجوهُ، فقال: أينَ عَلِيٌّ ؟. فقيل: يشتكي عَيْنَيْهِ، فبصَقَ في عَيْنَيْهِ ودَعا لهُ، فبرَأ كأنْ لم يكُن بهِ وجَعٌ، فأعْطاهُ،فقال: أُقاتِلُهُم حتى يَكونوا مِثْلَنَا؟ فقال: انْفُذْ علَى رِسلِكَ حتى تنزِلَ بساحَتِهِم، ثم ادْعُهُم إلى الإسلامِ، وأخبِرْهُم بما يجبُ عليهِم، فواللَّهِ لأنْ يهدِيَ اللَّهُ رجلًا بك، خيرٌ لك مِن أنْ يكونَ لك حُمْرُ النَّعَمِ. (صحيح البخاري: 3009)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने खैबर के दिन फरमायाः कल मैं झंडा ऐसे व्यक्ति को दुंगा जिस के हाथ पर अल्लाह ने विजय अंकित कर दिया है जो व्यक्ति अल्लाह और उसके रसूल से प्रेम करता है और अल्लाह और उसका रसूल भी उस से प्रेम करते हैं। लोग इस शौक में पूरी रात बिताया कि कल झंडा किस भाग्यशाली को मिलेगा। सुबह इस आशा से आए कि सम्भव है कि वह भाग्यशाली वही हो। तो रसूल ने फरमायाः अली कहाँ है ?, तो कहा गया, उनके आँख में तक्लीफ है। तो उनके आँख में अपना थूक लगाया और दुआ किया तो उनकी आँख की तक्लीफ खत्म हो गइ। जैसेकि तक्लीफ ही नहीं थी। तो आप ने उन्हें झंडा दिया तो अली ने कहा कि हम उन से जिहाद करेंगे यहाँ तक कि वे लोग हमारी तरह हो जाए। तो आप फरमायाः शान्ति से जाओ यहां तक के उन के निकट पहुंच जाओ फिर उन्हें इस्लाम की ओर बुलाओ, और उन्हें अल्लाह की अनिवार्य वस्तुओं के प्रति खबर दो, अल्लाह की कसम, यदि अल्लाह तुम्हारे माध्यम से एक व्यक्ति को भी इस्लाम में दाखिल करवा दे तो यह तुम्हारे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। (सही बुखारीः 3009)
यह हदीस हमें गैर मुस्लिम देश में रह कर अल्लाह के दीन को अल्लाह के सब बन्दों तक पहुंचाने पर उत्साहित करता है। ताकि लोग अपने सृष्टिकर्ता को पहचान कर उसी की इबादत करें। जो कि बहुत सवाब और पूण्य कार्य होगा।