अल्लाह की अवतरित की हुई पुस्तकों पर विश्वास
ईमान का तीसरा स्तम्भः अल्लाह की अवतरित पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह ने अपने बन्दों की मार्गदर्शन के लिए समय समय पर छोटी बड़ी पुस्तकें अपने दूतों और सन्देष्टाओं पर अवतरित किया। उन पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान रखना अनिवार्य है कि वह सम्पूर्ण पुस्तकें सत्य हैं। अल्लाह ने इन पुस्तकों को सन्देष्टाओं पर उतारा था, जिस समुदाए पर वह ग्रंथ उतारी गई थी। उस समुदाए के लिए वह पुस्तक रोश्नी और सही मार्गदर्शन के लिए काफी था। इसी तरह उस सम्पूर्ण पुस्तकों पर विश्वास रखा जाए जिसे सन्देष्टाओं पर उतारा गया था और जिसका नाम हमें बताया गया है या नहीं बताया गया है। जैसा कि अल्लाह तआला का आदेश है।
” يا أيها الذين آمَنوا آمِنوا بالله ورسوله و الكتاب الذي نزل على رسوله والكتاب الذي أنزل من قبل ومن يكفر بالله وملائكته و كتبه و رسله و اليوم الآخر فقد ضل ضلالا بعيدا ” -النساء: 136
इस आयत का अर्थः “ ऐ लोगो जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (पवित्र क़ुरआन) पर जिसे उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों के ऊपर ईमान लाओ जो इस से पहले उतारी गयी और जिस ने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन को नहीं माने तो वह बहुत दूर बहक गया ”। ( सूराः निसा,136)
इन्सानी बुद्धी को स्वार्थ और घमंड तथा इच्छा घेरे होती हैं और जिस तरह चाहे नचाती हैं। यदि उसे मनमानी करने दिया जाए और जिस तरह इच्छा हो करे तो वह सत्य रासते से भटक जाएगी और मानव अपने लिए हानी के पद को चुन लेगा और वास्तविक सफलता को छोड़ देगा। इस लिए अल्लाह तआला ने मानव के मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें उतारी ताकि मानव का सही मार्गदर्शन हो सके और उनको लाभदायक वस्तु के करने का आदेश दे और हानी कारण वस्तु से रोके, उन में से महत्वपूर्ण किताबें निम्न हैं।
(1) तौरात, मूसा (अलैहिस्सलाम) को दिया गया।
(2) ज़बूर, दाऊद (अलैहिस्सलाम) को दिया गया।
(3) इन्जील, ईसा (अलैहिस्सलाम) को दिया गया।
(4) क़ुरआन, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दिया गया ।
तो इन सब किताबों पर विश्वास रखना प्रति मुस्लिम के लिए अनिवार्य है।
परन्तु क़ुरआन से पहले जितनी भी पुस्तकें उतारी गई। उन के अनुयायियों ने उस किताब का सही ख़्याल नहीं रखा, उसकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया, जिस के कारण बीते समय के साथ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस में परिवर्तन कर दिया रहे।
इसी लिए इन सम्पूर्ण किताबों को अल्लाह तआला ने मन्सूख करके उन्की जगह क़ुरआन को उतारा और स्वयं इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले ली और अब क़ुरआन करीम हमेशा हमेश के लिए सुरक्षित हो गया। इस में किसी प्रकार की फेर बदल संभव नहीं है, जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
” إنا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون ” – الحجر:9
अर्थः “ रहा यह ज़िक्र( क़ुरआन) तो इसको हम्ने उतारा है और हम ही खुद इसके रक्षक हैं।” (सूरः अल-हज्रः 9)
इसी लिए प्रत्येक मनुष्य के लिए अब मुक्तिमार्ग केवल क़ुरआन करीम ही है. क़ुरआन पर ईमान लाना और क़ुरआन पर अमल करने में ही अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी।
जैसा कि अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम के माध्यम से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को सारे संसार वालों के लिए सुचित करने वाला बनाया।
“ تبارك الذي نزل الفرقان على عبده ليكون للعالمين نذيرا ” -الفرقان: 1
बहुत ही बरकत वाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान (क़ुरआन) अपने बन्दों पर अवतरित किया ताकि सारे जहांवालों के लिए सावधान कर देनेवाला हो, (सूरः फ़ुरक़ानः 1)
क़ुरआन पर ईमान लाना से ही मानव की मुक्ति है। क़ुरआन के अनुसार जीवन गुज़ारने पर ही अल्लाह तआला की प्रसन्नता प्राप्त होगी और अल्लाह के क्रोध से छुटकारा मिलेगा।
अल्लाह तआला ने क़ुरआन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के प्रित स्पष्ट रुप से बयान कर दिया है।
يا أهل الكتاب قد جاءكم رسولنا يبين لكم كثيرا مما كنتم تخفون من الكتاب ويعفوا عن كثير، قد جاءكم من الله نور وكتاب مبين ، يهدي به الله من اتبع رضوانه سبل السلام ويخرجهم من الظلمات إلى النور بإذنه و يهديهم إلى صراط مستقيم ” – المائدة: 15-16
ऐ किताबवालों, हमारा रसूल तुम्हारे पास आ गया है जो ईश्वरीय ग्रन्थ की बहुत सी उन बातों को तुम्हारे सामने खोल रहा है जिन पर तुम परदा डाला करते थे, और बहुत सी बातों को जाने भी देता है, तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश आ गया है, और एक ऐसी स्पष्ट किताब जिसके द्वारा अल्लाह उन लोगों को जो उसकी प्रसन्नता के इच्छुक हैं, सलामती की राहें बताता है, और अपनी अनुमति से उनको अँधेरे से निकाल कर उजाले की ओर लाता है और सीधे मार्ग की तरफ उनका पथ-प्रदर्शन करता है।
किताबों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ दया और कृपा करने का पता चलता है कि उसने प्रत्येक समुदाए में पुस्तक उतारी जो उन लोगों के लिए मार्गदर्शनीय था।
(2) अल्लाह की हिक्मत का प्रकट होना कि उसने इन किताबों में प्रति समाज के लिए उचित धर्म उतारा जो उस समयानुसार अनुकूल था और सब से अन्त में पवित्र क़ुरआन उतारा जो सर्व मनुष्य के लिए मार्गदर्शनीय और मुक्तिमार्ग है।
(3) इस महान पुरस्कार पर हम इश्वर का शुक्र अदा करें और इसी अनुसार अमल करें।