ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को अल्लाह ने कुरआन मजीद में जो स्थान दिया है जो आदर- सम्मान दिया है, बिल्कुल वह इसके अधिकार तथा ह़क़्दार हैं और इस बात की पुष्टि बाइबल भी करता है परन्तु सेकड़ों बाइबल का वजूद बाइबल के असुरक्षित होने का प्रमाण है। लोग अपने स्वार्थ हेतु बाइबल में विभिन्न कालों में परिवर्तन करते रहे। जिस के कारण बाइबल की संख्या बढ़ती गई। बाइबल के असुरक्षित होन की बात को इसाई विद्धवान भी मानते हैं और पवित्र कुरआन के सुरक्षित होने को भी मानते हैं।
प्रोफेसर के एस रामाकृष्णा राव अपनी किताब ” इस्लाम के पैग़म्बर हज़्रत मुहम्मद ” में लिखते हैं: ” मेरे लेख का विषय एक विशेष धर्म के सिद्धान्तों से है। वह धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैगेम्बर का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहां तक कि सर विलियम जैसा इस्लामी विरोधी आलोचक भी कुरआन के बारे में कहता है,” शायाद संसार में (कुरआन के अतिरिक्त ) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो। ” मैं इस में इतना और बढ़ा सतका हूं कि पैगेम्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक व्यक्ति हैं जिन के जीवन की एक एक घटना को बड़ी सावधानी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आने वाली नस्लों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है।” (असली पुस्तक इंलिश में है, इस्लाम के पैग़म्बर हज़्रत मुहम्मद-5) यह है एक हिन्दु और किरिस्चन विद्धवान की टिप्पणी जो कुरआन और इस्लाम के पैगेम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के प्रति दिया है।,
ईसा (अलैहिस्सलाम) दाउद (अलैहिस्सलाम) के वंश में से हैं, और माता का नाम मर्यम और नाना का नाम इमरान है, अल्लाह तआला के कृपा और आदेश से जब मरयम )अलैहस्सलाम( को एक बहुत महान पुत्र जन्म लेने की शुभ खबर दिया तो उस समय मरयम )अलैहस्सलाम( बहुत दुखी और परेशान थीं, चिंतित थीं कि समाज के लोग उस पर आरोप लगाऐंगे, उस की बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, कि यह बच्चा बिना बाप के अल्लाह तआला के आदेश से जन्म लिया है, तो अल्लाह तआला ने चमत्कार करते हुए उस नीव जन्म शीशु को बोलने की क्षमता प्रदान की और अपने माता के निर्दोश और पवित्र होने की घोषणा और भविष्य में अल्लाह का नबी होने का इलान किया जैसा कि मरयम )अलैहस्सलाम( का किस्सा इस प्रकार कुरआन करीम में बयान हुआ है। जब अल्लाह के आदेश से फरिशता मानव रूप में मरयम )अलैहस्सलाम( के पास आये तो मरयम )अलैहस्सलाम( बहुत डर गईं और अल्लाह का वास्ता देने लगी तो फरिशते ने उत्तर दिया तुम डरो मत, हम मानव नहीँ, हम फरिशते है, अल्लाह के आदेश से तुम्हें एक लड़के की शुभ खबर देने आये हैं, उस पर मरयम )अलैहस्सलाम( बहुत आश्चर्य होई,
जैसा कि पवित्र कुरआन में मरयम )अलैहस्सलाम( और फरिशते के बीच होने वाली बात चीत इस प्रकार व्यक्त किया हैः
” और ऐ नबी! इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जब कि वह अपने लोगों से अलग हो कर पुर्व की ओर ( इबादतगाह) एकान्तवासी हो गई थी, – और परदा डाल कर उसने छिप बैठी थी, इस हालत में हमने उसके पास अपनी एक आत्मा ( फरिशता) को भेजा और वह उसके सामने एक पूरे इनसान के रुप में प्रकट हो गया,- मरयम यकायक कहने लगी, कि यदि तू कोई ईश्वर से डरने वाला आदमी है, तो मैं तुझ से करूणामय ईश्वर की पनाह माँगती हूँ,- उसने कहा, मैं तो तेरे रब्ब का भेजा हुआ हूँ, और इसलिए भेजा गया हूँ कि तुझे एक पवित्र लड़का दूँ,- मरयम ने कहा, मुझे कैसे लड़का होगा जब कि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं है, और मैं कोई बदकार औरत नहीं हूँ,- फरिश्ते ने कहा, ऐसा ही होगा, तेरे रब कहता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है और हम यह इस लिए करेंगे कि लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाऐ और अपनी ओर से एक दयालुता। और यह काम होकर रहना है।- मरयम को उस बच्चे का गर्भ रह गया, और वह उस गर्भ को लिए हुए एक दूर के स्थान पर चली गई,- फिर प्रसव- पीड़ा ने उसे एक खजूर के पेड़ के नीचे पहुंचा दिया, वह कहने लगी, क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती, और मेरा नामो-निशान न रहता, फरिश्ते ने पाँयती से उसको पुकार कहा, गम न कर, तेरे रब ने तेरे निचे एक स्त्रोत बहा दिया है,- और तू तनिक इस पेड़ के तने के हिला, तेरे ऊपर रस भरी ताजा खजूरें टपक पड़ेंगी,- अतः तू खा और पी और अपनी आँखे ठण्डी कर, फिर अगर कोई आदमी तुझे दिखाई दे तो उससे कह दे, कि मैं ने करूणामय (अल्लाह) के लिए रोज़े की मन्नत मानी है, इस लिए आज मैं किसी से न बोलूँगी,- फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम में आई, लोग कहने लगे, ऐ मरयम! यह तू ने बड़ा पाप कर डाला,- ऐ हारून की बहन, न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थीं,- मरयम ने बच्चे की ओर इशारा कर दिया, लोगों ने कहा, हम इससे क्या बात करें जो अभी जन्म लिया हुआ बच्चा है,- बच्चा बोल उठा, मैं अल्लाह का बन्दा हूँ, उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया,- और बरकतवाला किया जहाँ भी रहूँ, और नमाज़ और ज़कात की पाबन्दी का हुक्म दिया, जब तक मैं ज़िन्दा रहूँ,- और अपनी माँ का हक अदा करनेवाला बनाया, और मुझ को ज़ालिम और अत्याचारी नहीं बनाया,- और सलाम है मुझ पर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूँ और जबकि मैं ज़िन्दा कर के उठाया जाऊँ,- यह है मरयम का बेटा ईसा और यह है उस के बारे में वह सच्ची बात जिसमें लोग शक रक रहे हैं।” ( सूराः मरयमः 34)
पवित्र कुरआन के अनुसार ईस (यीशु )(अलैहिस्सलाम) की कुछ और विशेषताएः
(1) ईसा ( उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को अल्लाह ने बिना बाप के पैदा किया। अल्लाह का कथन है।
“ إِذْ قَالَتِ الْمَلَائِكَةُ يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللَّـهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُ اسْمُهُ الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ وَجِيهًا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ.- وَيُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلًا وَمِنَ الصَّالِحِينَ – قَالَتْ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي وَلَدٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ ۖ قَالَ كَذَٰلِكِ اللَّـهُ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ إِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ. (سورة آل عمران: 46-47
और जब फरिश्तों ने कहा ऐ मरयम, अल्लाह तुझे अपने एक आदेश की खुशखबरी देता है, उसका नाम मसीह ईसा बिन मरयम होगा, दुनिया और आखिरत में प्रतिष्ठित होगा, अल्लाह के निकटवर्ती बन्दों में गिना जाएगा, लोगों से पालन में (पैदाईश के बाद ही) भी बात करेगा और बड़ी उम्र को पहुंच कर भी और वह एक नेक व्यक्ति होगा। यह सुनकर मरयम बोली, पालनहार, मुझे बच्चा केसे होगा? मुझे किसी मर्द ने हाथ तक नहीं लगाया। उत्तर मिला, ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है पैदा करता है। वह जब किसी काम के करने का फैसला करता है तो कहता है कि, हो जा, और वह हो जाता है।” ( सूराः आलिइमरान, आयत क्रमांकः47)
2) आदम और ईसा (उन दोनों पर अल्लाह की शान्ती हो) के बीच समानता भी है और फर्क यह कि अल्लाह तआला ने आदम को मिट्टी अर्थात बिना माता-पिता के उत्पन्न किया और ईसा (उन दोनों पर अल्लाह की शान्ती हो) को बिना पिता के उत्पन्न किया। अल्लाह तआला का कथन हैः
إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ اللَّـهِ كَمَثَلِ آدَمَ ۖ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثُمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ. – سورة آل عمران: 59
“ अल्लाह के नजदीक ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि अल्लाह ने उसे मिट्टी से पैदा किया और आदेश दिया कि हो जा और वह हो गया।” (आले-इमरानः59)
(3) निःसंदेह ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) अल्लाह के कलमे और (रूह़) हुक्म से पैदा हुए थे। अल्लाह तआला का कथन हैः
إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللَّـهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ ۖ – سورة النساء: 171
“ मरयम का बेटा मसीह ईसा इसके सिवा कुछ न था कि अल्लाह का रसूल था और एक आदेश था जो अल्लाह ने मरयम की ओर भेजा और एक आत्मा थी अल्लाह की ओर से (जिसने मरयम के गर्भ में बच्चे का रूपधारण किया)” (सूराः अन्निसाः 171)
(4) अल्लाह तआला ने ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को संबोधित करते हुए अपने कृतज्ञा को याद दिलाया जो एहसान अल्लाह ने उन पर तथा उनके माता पर किया था। अल्लाह का कथन हैः
إِذْ قَالَ اللَّـهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَىٰ وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلًا ۖ وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالْإِنجِيلَ ۖ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي ۖ وَتُبْرِئُ الْأَكْمَهَ وَالْأَبْرَصَ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوْتَىٰ بِإِذْنِي ۖ وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ إِنْ هَـٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ . (سورة المائدة: 110
“ फिर कल्पना करो उस अवसर की जब अल्लाह कहेगा कि ऐ मरयम के बेटे ईसा, याद कर मेरी उस नेमत को जो मैं ने तुझे और तेरी माँ को प्रदान की थी। मैं ने पवित्र आत्मा से तेरी सहायता की, तू पालने में भी लोगों से बातचीत करता था और बड़ी उम्र को पहुंचकर भी, मैं ने तुझको किताब और गहरी समझ और तौरात और इंजील की शिक्षा दी, तू मेरी अनुमति से मिट्टी का पुतला पंक्षी के रूप का बनाता और उस में फूंकता था और वह मेरी अनुमति से पंक्षी बन जाता था, तू पैदाइशी अंधे और कोढ़ी को मेरे अनुमति से अच्छा करता था, तू मुर्दों को मेरे अनुमति से जिन्दा करता था, फिर जब तू बनी इस्राईल के पास खुली निशानियाँ लेकर पहुँचा और जिन लोगों को सत्य से इन्कार था उन्होंने कहा कि ये निशानियाँ जादुगिरी के सिवा और कुछ नहीं है” (सूराः अल-माइदाः 110)
(5) जो लोग अल्लाह को छोड़ कर ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) की पूजा तथा इबादत करते हैं। तो अल्लाह ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) से प्रश्न करेंगे कि तुमने लोगों को अपनी इबादत की ओर निमन्त्रित किया। तो ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) इस का इन्कार करेंगे और लोगों को ही दोषी ठहराएंगे। अल्लाह तआला ने पवित्र कुआन में फरमायाः
وَإِذْ قَالَ اللَّـهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَـٰهَيْنِ مِن دُونِ اللَّـهِ ۖ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ ۚ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ ۚ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلَا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ ۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ. (سورة المائدة: 116
“ सारांश यह कि जब अल्लाह कहेगा कि, ऐ मरयम के बेटे ईसा, क्या तूने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी माँ को भी इश्वर बना लो, तो वह जवाब में कहेंगे कि, पाक है अल्लाह, मेरा यह काम न था कि वह बात कहता जिसके कहने का मुझे अधिकार न था, अगर मैं ने ऐसी बात कही होती तो आप को जरूर मालूम होता, आप जानते हैं जो कुछ मेरे दिल में है और मैं नहीं जानता जो कुछ आपके दिल में है, आप तो सारी छिपी हकीकतों के ज्ञात है।” (सूरह माइदाः 116)
(6) ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने लोगों को एक अल्लाह की पूजा तथा इबादत की ओर निमन्त्रण किया था। पवित्र कुरआन में अल्लाह और ईसा (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) के बीच होने वाली बात चीत को इस प्रकार बयान किया है।
مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلَّا مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُوا اللَّـهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ ۚ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ ۖ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ – إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ ۖ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ. (سورة المائدة: 117-118
“ मैं ने उनसे उसके सिवा कुछ नहीं कहा जिसका आपने आदेश दिया था, यह कि अल्लाह की इबादत करो जो मेरा रब्ब भी है और तुम्हारा रब्ब भी। मैं उसी समय तक उनका निगराँ था जब तक मैं उनके बीच था। जब आपने मुझे वापस बुला लिया तो आप उनपर निगराँ थे और आप तो सारी ही चीजों पर निगराँ हैं। अब अगर आप उन्हें सजा दें तो वे आपके बन्दें हैं और अगर माफ कर दें तो आप प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी हैं।” (सूराः अल-माइदाः 118)
(7) ईसा (यीशु या जीसस) – (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने अपने सन्देष्टा होनो का एलान किया और भविष्यवाँणी की कि मेरे पक्षपात एक सन्देष्टा आने वाला होगा जिस का नाम“अहमद” होगा।
وَإِذْ قَالَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ إِنِّي رَسُولُ اللَّـهِ إِلَيْكُم مُّصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيَّ مِنَ التَّوْرَاةِ وَمُبَشِّرًا بِرَسُولٍ يَأْتِي مِن بَعْدِي اسْمُهُ أَحْمَدُ ۖ فَلَمَّا جَاءَهُم بِالْبَيِّنَاتِ قَالُوا هَـٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ. (سورة الصف: 6
“ और याद करो मरयम के बेटे ईसा की वह बात जो उसने कही थी कि ऐ, इसराइल के बेटों, मैं तुम्हारी ओर अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूँ, पुष्टि करनेवाला हूँ, उस तौरात की जो मुझ से पहले आई हुई मौजूद है, और खुशखबरी देने वाला हूँ, एक रसूल की जो मेरे बाद आएगा जिसका नाम अहमद होगा।” (सूराः अस-सफ्फ,6)
(8) जब ईसा (यीशु या जीसस)-(उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने अपने अनुयायियों से भय और अधर्मपन को महसूस किया तो ऐलान किया कि कौन धर्म के लिए मेरी सहायता करेगा? गोया कि ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) भी मानव और मनुष्य थे जिन्हें सहायक की आवश्यकता थी ताकि धर्म के प्रचार के लिए उनके मददगार और सहयोगी रहेः
فَلَمَّا أَحَسَّ عِيسَىٰ مِنْهُمُ الْكُفْرَ قَالَ مَنْ أَنصَارِي إِلَى اللَّـهِ ۖ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ نَحْنُ أَنصَارُ اللَّـهِ آمَنَّا بِاللَّـهِ وَاشْهَدْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ. (سورة آل عمران: 59
“ जब ईसा ने महसूस किया कि इसराईल की संतान अधर्म और इनकार पर आमादा हैं तो उनेहों ने कहाः कौन अल्लाह के मार्ग में मेरा सहायक होता है? हवारियों (साथियों) ने उत्तर दिया, हम अल्लाह के सहायक हैं, हम अल्लाह पर ईमान लाए, गवाह रहो कि हम मुस्लिम (अल्लाह के आज्ञाकारी) हैं।” (सूराः आले-इमरानः52)
(9) अल्लाह तआला ने ईसा (अलैहिस सलाम) को खबर दे दिया था कि तुम को हम अपने पास बुलाने वाले हैं। और लोगों के षड़यन्त्र से सुरक्षित रखेंगे जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
إِذْ قَالَ اللَّـهُ يَا عِيسَىٰ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۖ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ. (سورة آل عمران: 55
“ जब उसने कहा ऐ, ईसा अब मैं तुझे वापस ले लूंगा और तुझको अपनी ओर उठा लूंगा और जिन्हों तेरा इनकार किया है उनसे ( उनकी संगत से और उनके गंदे वातावरण में उनके साथ रहने से) तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत तक उन लोगों के ऊपर रखूँगा जिन्होंने तेरा इनकार किया है।” (सूराः आले-इमरानः 55)
(10) अल्लाह तआला ने यहुदीयों के आस्था का इनकार किया जो वह कहते हैं कि यीशु (जीसस) को हमने क़त्ल कर दिया और क्रिस्चन के आस्था का भी इनकार किया जो वह कहते हैं कि यीशु (जीसस) लोगों को पापों से मुक्ति देने के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया बल्कि इन चिज़ों से ऊंचा और बेहतर आस्था पेश किया जो यीशु (जीसस) के स्थान को प्रमेश्वर के पास बड़ा करता है। अल्लाह तआला का कथन कुरआन शरीफ में है।
وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللَّـهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَـٰكِن شُبِّهَ لَهُمْ ۚ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ ۚ مَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ ۚ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًا- بَل رَّفَعَهُ اللَّـهُ إِلَيْهِ ۚ وَكَانَ اللَّـهُ عَزِيزًا حَكِيمًا- وَإِن مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا. ( سورة النساء: 157- 159
“ और वह खुद कहा कि हमने मसीह ईसा (यीशु या जीसस) मरयम के बेटे अल्लाह के रसूल का क़त्ल कर दिया, हालाँकि वास्तव में इन्हों ने न उनकी हत्या की, न सूली पर चढ़ाया बल्कि मामला इनके लिए संदिग्ध कर दिया गया, और जिन लोगों ने इसके विषय में मतभेद किया है वह भी वास्तव में शक में पड़े हुए हैं, उनके पास इस मामले में कोई ज्ञान नहीं हैं, केवल अटकल पर चल रहे हैं, उन्हों ने मसीह को यक़ीनन क़त्ल नहीं किया – बल्कि अल्लाह ने उसको अपनी ओर उठा लिया, अल्लाह ज़बरदस्त त़ाक़त रखने वाला और तत्त्वदर्शी है।” (सूराः अन्निसाः157- 158)
एक संदेश
सम्पूर्ण धर्म वालों के लिए कल्याण इसी में है कि केवल एक अल्लाह की उपासना में सब यकजुट हो कर सहमत हो जाए। और अपने सृष्टिकर्ता के साथ किसी को भी तनिक साझीदार और हिस्सेदार न बनाएँ। जैसा कि अल्लाह ने आदेश दिया है।
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَىٰ كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا اللَّـهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّـهِ ۚ فَإِن تَوَلَّوْا فَقُولُوا اشْهَدُوا بِأَنَّا مُسْلِمُونَ. (سورة آل عمران: 64
कहो, ” ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।” फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, “गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।” (सूराः आले-इमरानः 64)