”मैंने जिन्नात और इनसानों को मात्र इस लिए पैदा किया है कि वह केवल मेरी इबादत करें।” [सूरः अज़्ज़ारियात: 56]
और अल्लाह की इबादत (पूजा) उसकी निर्धारित की हुई चीजों द्वारा ही की जाएगी। उसने अपने संदेष्टाओं को इसी लिए भेजा है ताकि वह लोगों के समक्ष उन आदेशों को स्पष्ट कर दें जो उसने अपने भक्तों के लिए निर्धारित की है। क्योंकि अल्लाह की पूजा उस के निर्धारित किये हुए नियम के अतिरिक्त किसी अन्य तरीक़े से करना बातिल है। फिर अल्लाह ने अपने संदेष्टाओं के क्रम को अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर समाप्त कर दिया और समस्त संसार पर उनका अनुसरण जरूरी ठहराया। अल्लाह का आदेश है:
” आप कह दीजिए कि ऐ लोगो! मैं तुम सब की ओर अल्लाह का भेजा हुआ हूँ, जिसका राज्य आकाश और पृथ्वी में है, उसके सिवा कोई पूजा के योग्य नहीं, वही जीवन देता है और वही मृत्यु देता है, अतः अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो कि अल्लाह पर और उसके आदेशों पर ईमान रखते हैं और उनका अनुसरण करो ताकि तुम मार्ग पर आ जाओ। ‘ [सूरः अल-आराफ़: 158]
इस लिए जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रिलातल पर ईमान नहीं लाया वह काफिर है और मुहम्मद (स.अ.व.) का धर्म यही इस्लाम है, जिसके अलावा कोई अन्य धर्म अल्लाह स्वीकार नहीं करेगा, अल्लाह का आदेश हैः
” जो व्यक्ति इस्लाम के सिवा किसी अन्य धर्म की खोज करे, उसका वह धर्म स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह परलोक में हानि उठाने वालों में से होगा।” [सूरः आले इमरान: 85]
मुहम्मद (स.अ.व.) जो इस्लाम लेकर आए हैं उसके पांच स्तम्भ हैं:
1-शहादतैन का एक़रार करना अर्थात् इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूज्य योग्य नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।
2-सलात स्थापित करना।
3- ज़कात देना।
4- रमज़ान का रोज़ा रखना।
5-यदि सामर्थ्य प्राप्त हो तो अल्लाह के प्रिय घर काबा का हज करना।
इस्लाम में प्रवेश करने वाले के लिए किन चीजों का करना आवश्यक है:
शहादतैन (लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह) ज़ुबान से कहने के बाद इस्लाम के पांच स्तम्भों को निम्न रूप में निभाये:
1- ज़ुबान से यह घोषणा करे कि (” अश्हदु अल्लाइलाह अल्लाल्लाहु अश्हदु अन्न मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह) यानी मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूजा योग्य नहीं, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।
2- पूरी ज़ींदगी रात और दिन में पाँज समय (फ़जर, ज़ुहर, असर, मग़्रिब और ईशा) की नमाज़ों की पाबंदी करे।
पांच समय की नमाज़ों की रकआत: फजर दो रकअत, ज़ुहर चार रकअत, अस्र चार रकअत, मग़्रिब तीन रकअत और ईशा चार रकअत है। और उन नमाज़ों को वुज़ू करने के बाद ही अदा किया जा सकता है, वह इस तरह कि शुद्ध जल से पूरा चेहरा धोए, दोनों हाथों को कोहनी सहित धोए, सिर का मसह करे और दोनों पैरों को टखनों सहित धोए।
3-अगर उसके पास उसकी आवश्यकता से अधिक माल हो तो उसमें से ढाई प्रतिशत हर साल फकीरों और निर्धनों के लिए ज़कात निकाले, और अगर माल उसकी जरूरत से ज्यादा न हो तो उस पर ज़कात अनिवार्य नहीं है।
4-रमज़ान का जो कि हिजरी वर्ष का नवां महीना है, रोज़ा रखे। (यानी फजर उदय होने से लेकर सूर्यास्त तक खाने पीने और पत्नी से सहवास करने से रुका रहे।) और केवल रात में खाए पिए और अपनी पत्नी से सम्भोग करे।
5-अगर उस के पास आर्थिक और शारीरिक सामर्थ्य हो तो पवित्र काबा का जीवन में एक बार हज करे और अगर आर्थिक शक्ति प्राप्त तो हो लेकिन बुढ़ापा या निरंतर बीमारी की वजह से शारीरिक शक्ति प्राप्त न हो तो वह किसी व्यक्ति को अपना वकील बना दे (जो उसकी ओर से एक बार हज करे)।
6 उनके अलावा जो बाकी नेकियों के काम हैं वह सब उन स्तम्भों की पूर्ति करने वाले हैं।
मुसलमान के लिए किन चीजों का छोड़ना ज़रूरी है:
1-शिर्क की सभी किस्मों को त्याग दे, और यह ग़ैरुल्लाह की पूजा करने का नाम है, और शिर्क में से ही मुर्दों को पुकारना, उनके लिए जानवर ज़बह करना और मन्नत मानना है।
2- बिदआत से बचे, और यह ऐसी इबादतें हैं जिन्हें अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निर्धारित नहीं किया है, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशाद है: ” जिसने कोई ऐसा काम किया, जिस पर हमारा आदेश नहीं है तो वह मरदूद है। ” यानी स्वीकार नहीं किया जाएगा।
3-ब्याज, जुआ, रिश्वत, मामलों में झूठ बोलने, हराम वस्तुयें और हराम सामान खरीदने और बेचने से बचे।
4-व्यभिचार से दूर रहे, और व्यभिचार यह है कि अपनी धर्म-पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला से सम्भोग करना, और लिवातत यानी समलैंगिकता से दूर रहे।
5-शराब पीना, सुअर का मांस खाना और अल्लाह के इलावा किसी अन्य के नाम पर ज़बह किए गए जानवर का मांस खाना और मृत का मांस खाना छोड़ दे।
6-अह्लि किताब (यानी यहूदी और ईसाई) के अलावा काफिरा महिलाओं से शादी न करे।
7-पत्नी यदि यहूदी या इसाई न हो बल्कि अन्य काफिरा हो तो उसे छोड़ दे, हाँ अगर वह काफिरा औरत भी उसके साथ इस्लाम स्वीकार कर ले, या अपनी इद्दत के बीच इस्लाम ले आए तो उसके साथ वह रह सकता है।
8 अगर खतना कराना उसके लिए हानिकारक न हो, तो वह किसी मुसलमान डॉक्टर के पास जाकर अपना खतना करवाए।
9.अगर वह काफिरों के देश से इस्लामी देश की ओर हिजरत कर सकता है तो कर जाए, अन्यथा अपने धर्म पर कायम रहते हुए उसी देश में रहे।