भारतीय उपमहाद्वीप के हाजी सामान्यतः हज्जे तमत्तुअ करते हैं और हज्जे तमत्तुअ यह है कि हाजी अपने देश से जाते हुए जब मीक़ात पर पहुंचे तो इहराम का वस्त्र पहन कर वहाँ से मात्र उमरा की नीयत करे और मक्का में पहुंच कर उमरा अदा कर ले, उसके बाद इहराम की पाबंदियों से स्वतंत्र हो जाए फिर ज़ुलहिज्जा की 8 तिथि को अपने निवास स्थान से दो बारा इहराम पहन कर हज्ज की नीयत करे और मिना चला जाए। तो लीजिए प्रस्तुत है हज्जे तमत्तुअ का तरीक़ाः
(1) आठ ज़िलहिज्जः (तर्विया का दिन)
मक्का में जहाँ ठहरे हुए हों वहीं से हज्ज का इहराम बांध लें। हज्ज का इहराम बांधने का नियम वही है जो उमरा के इहराम का है। सफाई और स्नान करके इहराम का कपड़ा पहन लें शरीर मे सुगंध भी लगालें फिर:
लब्बैक अल्लाहुम्म हज्जन
कहते हुए हज्ज की नीयत कर लें और तल्बिया पढ़ना शुरु कर दें, और दस ज़िलहिज्ज़ः को कंकड़ियाँ मारने तक निरन्तर पढ़ते रहें। इहराम बांधने के बाद ज़ुह्र से पूर्व मिना की ओर प्रस्थान कर जायें। मिना की ओर जाने से पहले तवाफ़ करना सही नही।
वहाँ ज़ुह्र, अस्र मग़रिब, ईशा और फज्र की नमाज़ें कस्र (चार रकअत की नमाज़ों को दो रकअत पढ़ना) करके पढ़ें और रात को वहीं पर ठहर जायें।
यदि किसी स्त्री को मासिक चक्र आगया हो तो वह भी इहराम बांध कर मिना जाएगी।
हज्ज की इस यात्रा में प्रत्येक लोगों से निवेदन है कि बेकार बातों में व्यस्त न रहें, बल्कि अधिक से अधिक तल्बिया पढ़ते रहें, अल्लाह का ज़िक्र करते रहें, कुरआन पढ़ते रहें और भलाइयों का आदेश देते रहें, और बुराइयों से रोकते रहें।
(2) नौ ज़िलहिज्जः (अर्फा का दिन)
9 तारीख़ को सूर्योदय होने के बाद तक्बीर और तल्बिया कहते हुए अर्फात की ओर प्रस्थान कर जायें। अर्फात के निकट पहुंचकर नमेरः घाटी में पड़ाव डालें। सुर्य ढ़लने पर अर्फात के अन्दर आ जायें और इस बात का विश्वास कर लें कि आप अर्फात की सीमा के अन्दर हैं फिर यदि सम्भव हो तो एमाम का भाषण (ख़ुत्बा) सुनें और एमाम के साथ ज़ुह्र, अस्र की नमाज़ें एक अज़ान तथा दो इक़ामतों से दो दो रकअतें करके ज़ुह्र ही के समय पढ़ें, यदि ऐसा सम्भव न हो सके तो अपने ख़ीमे ही में दोनों नमाज़ें दो दो रकअत कर के जमाअत से अदा कर लें।
सूर्यास्त होने तक ज़िक्र, दुआ, तल्बिया और कुरआन के पठन में लगे रहें और दुआ भी बार बार करें:
لااله الا الله وحده لا شرىك له ،له المك وله الحمد يحي ويميت وهو على كل شيئ قدير
“ लाइला’ह इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु लहुल मुल्को व लहुल हम्दु युहयी व युमीतो व हु’व अला कुल्ले शैईन क़दीर“
अपनी ग़लतियों और त्रुटियों को स्वीकार करते हुए अल्लाह के सामने झुक जायें और हाथ उठाकर लोक तथा प्रलोक मे सफलता की दुआ करें।
उस दिन अल्लाह तआला अत्यधिक लोगों को नरक से मुक्त करता है और फरिश्तों के समक्ष अर्फात के उपस्थितजनों पर गर्व करता है। एक हदीस क़ुदसी में आता है कि अल्लाह तआला उस दिन अपने निकटवर्ती फ़रिश्तों से कहता है:
أنظروا إلى عبادي أتوني شعثا غبرا ضاجين من كل فج عميق أشهدكم أني قد غفرت لهم
“मेरे दासों को देखो! ये दूर दूर से मेरे पास नंगे सर और परेशान हाल आए हैं, मेरी दया चाहते हैं तुम सब साक्षी रहो कि मैं ने उन्हें क्षमा कर दिया“।
वुकूफे अर्फा (अर्फा में ठहरने) का समय सूर्य ढ़लने से लेकर दसवीं की रात को फज्र उदय होने तक रहता है, इस दौरान हाजी एक पल के लिए भी अर्फात मे चला जाए तो हज्ज का यह स्तम्भ पूरा हो जाता है।
मुज़दलफा की ओर :
सूर्यस्त होने के बाद अर्फात से पूर्ण शान्ति के साथ मुज़दलफा की ओर प्रस्थान कर जायें, वहाँ पहुंच कर सर्वप्रथम मग़रिब तीन तथा ईशा दो रकअत एक अज़ान तथा दो इक़ामतों से जमाअत के साथ पढ़ें फिर अपनी आवश्यकतायें पूरी करके सो जायें।
फज्र की नमाज़ सुन्नत सहित अदा करें। फिर अपने स्थान पर ही ख़ूब अल्लीह का ज़िक्र और उसकी तस्बीह बयान करते रहें।
सुविधा हेतु महिलाओं, बच्चों तथा कमज़ोर लोगों के लिए जाइज़ है कि रात के अन्तिम भाग में मुज़दलफा से मिना की ओर प्रस्थान कर जाऐं और वहाँ पहुंच कर रात ही में बड़े जमड़ा को कंकरी मार लें।
(3) दस तारीख़ (ईद का दिन)
मुज़दलफा मे फज्र की नमाज़ के बाद उजाला होने पर सूर्योदय से पूर्व तल्बिया पढ़ते हुए मिना की ओर रवाना हो जायें, रास्ते में महसर घाटी को पार करते हूए तेज़ तेज़ चलें, मिना पहुंच कर तल्बिया कहना बन्द कर दें। इस दिन चार काम करने के हैं :
(1)कंकरी मरना
(2) कुर्बानी करना
(3) सर का बाल कटवाना
(4) तवाफ करना
कंकरी मारना
सर्वप्रथम बड़े जमड़ा को जो कि मक्का की ओर है सात कंकरियाँ एक एक कर के मारें और हर कंकरी के साथ ” अल्लाहु अकबर“ कहें। कंकरियों का अपने स्थान पर गिरना ज़रुरी नहीं बल्कि शर्त यह है कि उसकी सीमा में गिरे।
कमज़ोर पुरुषों तथा महिलाओं, बीमारों और बच्चों के लिए जाइज़ है कि वह कंकरियाँ मारने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को वकील बना दें।
क़ुर्बानी
फिर क़ुर्बानी का पशु ज़ब्ह करें जो कि हर प्रकार के ऐब एवं दोष से पाक हो, मतलूबा आयु के अनुसार हो। कुर्बानी का गोश्त अपने लिए भी ले आयें। और ग़रीबों मे बांट दे, यदि आप वहा की संस्था मे अपना पैसा जमा कर दें जो आप की ओर सो कुर्बानी करने की पाबंद हो तब भी कोई बात नहीं।
यदि कोई व्यक्ति क़ुर्बानी करने का सामर्थ्य नही रखता तो दस रोज़े रखने होंगो, तीन हज्ज के दिनों में और सात वतन लौटने के पश्चात।
सर के बाल मुंडवाना
उसके बाद सर के बाल मुंडवा लें और यह श्रेष्ठ है, क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सर मूंडवाने वालों के लिए दया और क्षमा की तीन बार दुआ की, या पूरे सर का बाल छोटा करवायें और यह जाइज़ है। जबकि महिलायें अपने सिर के बालों के किनारे से ऊंगली की पोर के समान बाल कटवायें। इसके साथ ही आप हलाल हो जायेंगे, अब जो काम इहराम के कारण अवैध थे सब वैध हो गए, केवल स्त्री से सम्भोग नहीं कर सकते जब तक कि तवाफे इफ़ाज़ा न कर लें।
अतः आप स्नान करके अपना पोशाक पहन लें तथा तवाफे इफाज़ा के लिए काबा की ओर प्रस्थान कर जाएँ।
तवाफे इफाज़ा :
तवाफे इफाज़ा हज्ज का स्तम्भ है। यदि आप किसी कारणवश 10 ज़िल-हिज्जः को तवाफे इफाज़ा नहीं कर सकते तो उसे बाद में भी कर सकते हैं। यदि महिलायें मासिक धर्म की स्थिति मे हों तो वह पवित्रता के पश्चात तवाफ करेंगी।
परन्तु यदि वह यात्रीगण के प्रस्थान तक पवित्र नही होती और यात्रीगण भी उनका प्रतिक्षा नही कर सकते तो वह स्नान कर के लंगौट कस लें, फिर इसी स्थिति में तवाफे इफाज़ा से फारिग़ हो जायें। तवाफ के बाद मक़ामे इब्राहीम के पीछे दो रकअत नमाज़ अदा करें फिर यदि हाजी हज्जे तमत्तो करने वाला है तो उसे चाहिए कि तवाफे इफाज़ा के साथ सफा व मर्वा की सई भी करे। यदि क़िरान व इफ्राद करने वाले पहले सई कर चुके हों तो पुनः सई करने की आवश्यकता नही ।
10ज़िलहिज्जः के चार काम (कंकरियँ मारना, क़ुर्बानी करना, सर के बाल मूंडवाना, या कतरवाना, और तवाफ व सई) का जिस क्रम से वर्णन हुआ है, उसी क्रम के अनुसार करना मस्नून है। किन्तु यदि कोई काम आगे पीछे हो जाए तो उस मे कोई हानी नहीं।
(5) 11, 12, 13, ज़िलहिज्जः
11 तथा 12 की रातें मिना में गुज़ारना अनिवार्य है, यदि चाहें तो 13 तक भी ठहर सकते हैं क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम 13 ज़िलहिज्जः तक ठहरे रहे। इन दिनों मे तीनों जमरात को कंकरियाँ मारना होता है। कंकरी मारने का समय सूर्य ढलने से आरम्भ होता है तथा आधी रात तक रहता है। इन दिनों मे हाजियों को चाहिए कि सर्वप्रथम बड़े जमड़ा को सात कंकरियाँ एक एक करके मारें, तथा हर कंकरी के साथ ” अल्लाहु अकबर “ कहें। उसी प्रकार दूसरे जमरा को सात कंकरियाँ मारने के बाद काबा की ओर मुख कर के दुआ करें।
फिर बड़े जमड़े को भी उसी प्रकार कंकरियाँ मारें। परन्तु उसके बाद दुआ न करें, क्योंकि अल्लह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम से ऐसा ही साबित है। कंकरियाँ मारते समय यदि मुख बायें ओर और मिना दायें ओर हो तो उत्तम है।
ज्ञात होना चाहिए कि तीनों जमरात को कंकरियाँ मारने के लिए कंकरियाँ मिना के किसी भी स्थान से उठाई जा सकती है।
कुछ व्यक्ति जमरात को शैतान समझ कर उन्हें गालियाँ देना या जूते लगाना शुरु कर देते हैं, हालाँकि ऐसा करना सही नहीं है।
इन दिनों में हाजियों को चाहिए कि खाली समय अल्लाह ताआला की आज्ञापालन, उसका अधिक से अधिक ज़िक्र, तथा जमाअत के साथ नमाज़ों की पाबन्दी मे गुज़ारें।
यदि कोई व्यक्ति 12 ज़िलहिज्जः को कंकरियाँ मारने के बाद निकलना चाहे उसे चाहिए कि वह सूर्यास्त से पूर्व ही निकल जाए परन्तु 13 ज़िलहिज्जः तक ठहर कर कंकरियाँ मारना श्रेष्ठ है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम 13 तक ठहरे थे।
वैसे 11, 12 तिथि को मिना में रात गुज़ारना अनिवार्य है। यदि कोई रात का अधिक भाग वहाँ पर गुज़ार ले रहा है तब भी कोई बात नही।
उसी प्रकार ऐसे लोग जो किसी उचित कारण से वहाँ न ठहर सकते हों जैसे हाजियों की देख रेख करने वाले, यदि वहाँ रात न गुज़ार सकें तो इस में कोई हर्ज नही है।
विदाई तवाफ (रवानगी का तवाफ)
मक्का से लिकलने से पुर्व विदाई तवाफ करना अनिवार्य है। किन्तु मासिक चक्र एवं निफास वाली महिलाओं पर विदाई तवाफ नही है। यदि कोई तवाफे इफाज़ा देर से करना चाहे तो यात्रा के समय उसी मे तवाफे विदा की भी नीयत कर सकता है।
ज्ञात होना चाहिए कि विदाई तवाफ हज्ज के प्रत्येक कामों को समाप्त कर के यात्रा का संकल्प करते समय होता है। यदि किसी ने यात्रा करने से एक दिन पूर्व ही कर लिया तो उसे विदाई तवाफ की संज्ञा नही दी जाएगी।