इस विषय से शायद हमारे पाठकगण सहमत होंगे कि दुनिया समस्सया ही का नाम है। जी हाँ! संकटें, परेशानियाँ, दुख-पीड़ा जीवन का अटूट भाग हैं। अगर हम पर किसी प्रकार का संकट आता है अथवा किसी परेशानी में ग्रस्त होते हैं, काम से वंचित हैं, या वेतन कम है जिससे आवश्यकताओं की पुर्ती नहीं हो पाती। या सालों से बीमार हैं, या जिस्म व जान से मजबूर हैं। जबकि हमारा सम्बन्ध अपने सृष्टिकर्ता के साथ मज़बूत है तो हमें समझ लेना चाहिए कि ईश्वर हम ने प्रेंम करता है। और हमें आज़मा कर अपना करीबी बनाना चाहता है। ईश्वर के अन्तिम संदेषटा मुहम्मद सल्ल0 ने फरमायाः अल्लाह जब अपने बन्दे के साथ भलाई का इरादा करता है तो उसके पापों की सज़ा उसे दुनिया ही में दे देता है। और जब अल्लाह अपने बन्दे के साथ बुराई का इरादा करता है तो उसके पापों की सज़ा रोक लेता है। उसका पूरा पूरा बदला क़यामत के दिन देगा।
इस लिए इनसान को चाहिए कि अल्लाह के फैसले से हर हालत में राज़ी रहे, उसे सोचना चाहिए कि यदि वह किसी संकट में फंसा हुआ है तो उप पर अल्लाह के उपकार भी विभिन्न हैं। यदि बन्दा उन उपकारों में से किसी एक उपकार के महत्व को समझ ले तो उसकी सारी संकटें तुच्छ सिद्ध होंगी।
बड़े सौभाग्य हैं वह लोग जो प्रसनन्नता में उसके कृतज्ञ बजा लाते हैं, संकटों में धैर्य से काम लेते हैं। पाप होने पर क्षमा चाहते हैं, क्रोधित होने पर विनम्रता बरतते हैं। और फैसला में न्याय से काम लेते हैं।
कभी विचार किया कि कितनी बार आपने अपने रब से माँगा और उसने आपको दिया, कितनी बार अपने रब से अनुरोध किया और उसने आपको प्रदान किया, कितनी बार आपने क़दम बहके और उसने क्षमा की, कितनी बार आर्थित संकट में फंसे और उसने आर्थिक सामर्थ्य प्रदान किया, और कितनी बार उसे पुकारा और उसने आपकी पुकार सुनी।
अल्लाह का स्मरण दयालु रब को खुश करता है, इंसान को शान्ति प्रदान करता है। शैतान को अपमानित करता है। शोक दूर करता है। और (प्रलोक में मिलने वाले) प्रतिफल-पत्र को भारी करता है।
बहरापन,गूंगापन,अंधापन से सुरक्षित रहे औऱ पागलपन तथा कुष्ठ रोग से मुक्ति पा गए। क्षय रोग औऱ कैंसर से बच गए तो क्या अल्लाह के कृतधन हुए?
कौन है जो संकटों में फसें हुए की पुकार सुनता है? डूबने वाले को बचाता है और पीड़ित की पीड़ा को दूर करता है जब वह कहे “या अल्लाह”! (हे मेरे पालनकर्ता) वह अल्लाह ही तो है …..