हज पर जान से पहले निम्नलिखित कुछ बातों को अपने जीवन में लागू करें ताकि अल्लाह तआला आप के हज्ज को स्वीकार करे और आप को हज्ज का पूरा पूरा सवाब और पुण्य प्राप्त हो सके।
(1) हज्ज पर जाने से पहले हाजी अपनी नियत को अल्लाह के लिए निःस्वार्थ कर लेः
हज्ज करने का लक्ष्य केवल अल्लाह को परसन्न करना हो, दुनिया प्राप्त करने, या लोगों को दिखाने या अपना नाम मशहूर करने या घमंड करते हुए हज्ज नहीं करे, क्योंकि प्रत्येक कार्य का स्वीकार होना अल्लाह तआला की परसन्नता पर निर्भर करता है। अल्लाह तआला उसी कार्य को स्वीकार करता है जो केवल अल्लाह को खुश करने के लिए किया जाए। जैसा कि अल्लाह तआला ने सब लोगों को केवल अपनी इबादत करने का आज्ञा दिया है। जो इबादत केवल अल्लाह के लिए हो, और तनिक बराबर भी किसी दुसरे को अल्लाह के साथ भागीदार न बनाया जाए।
” وما أمروا إلا ليعبدوالله مخلصين له الدين حنفاء ويقيموا الصلاة ويؤتوا الزكاة وذلك الدين القيم” – سورة البينة: 1
” और उनको इसके सिवा कोई आदेश नहीं दिया गया कि अल्लाह की बन्दगी करें, अपने दीन को उसके लिए खालिस करके, बिल्कुल एकात्र हो कर और नमाज़ अदा करें, और ज़कात दें, यही अत्यन्त सही और दुरूस्त दीन है।” (सूराः बय्यिना,5)
(2) अल्लाह का शुक्र अदा करे कि अल्लाह ने उसे हज्ज करने की तौफ़ीक़ (हृदय में हज्ज पर जाने का पुख्ता इच्छा डाल दी ) और शक्ति प्रदान की और हज्ज पर जाने के लिए रास्ते और कारण को सरल बना दियाः
अल्लाह का शुक्र अदा करें कि अल्लाह ने उसे धनदौलत दिया और एक महत्वपूर्ण इबादत के लिए उसे चयन किया। क्योंकि बहुत से धनदौलत वाले व्यक्ति हज्ज जैसी बड़ी इबादत से वंचित रहते हैं और दुनिया और आखिरत में घाटा उठाते हैं।
(3) अपने व्यक्तिगत को अल्लाह के आदेश पर चलने वाला बना देः
उस का रूप, उसका कर्म, उसका उठना और बैठना सब अल्लाह को खुश और प्रसन्न करने के लिए हो। क्योंकि वह अल्लाह का मेहमान और कुटुम बन कर जा रहा है। इस लिए वह कार्य न करे जो उस के व्यक्तिगत के विरूद्ध हो, हज्ज पर जाने वाले व्यक्ति के शान के विरोध हो।
(4) हज्ज का खर्च हलाल कमाई से पूरा करेः
क्योंकि अल्लाह तआल अच्छी चीज़ों को पसन्द करता है और बन्दों से अच्छी वस्तुओं को ही स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूलुल्लाह ने फरमाया हैः
و عن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: إن الله طيب ولا يقبل إلا طيبا وأن الله أمر المؤمنين بما أمر به المرسلين فقال تعالى يا أيها الرسل كلوا من الطيبات واعملواصالحا ” وقال تعالى ” يا أيها الذين آمنوا كلوا من الطيبات ما رزقناكم” ثم ذكر الرجل يطيل السفر، أشعث أغبر يمد يديه إلى السماء ، يا رب يارب، ومطعمه حرام ومشربه حرام وملبسه حرام وغذي بالحرام ، فأنى يستجاب له – رواه مسلم
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” अल्लाह तआला पवित्र है और पवित्र वस्तु को स्वीकार करता है और बेशक अल्लाह मुसलमानों को उन्हीं चीज़ों के करने का आदेश देता है जिन चीज़ों के करने का रसूलों को आज्ञा देता है, तो अल्लाह तआला ने फरमायाः ऐ रसूलों, पवित्र वस्तुओं को खाओ और अच्छा कर्म करो, और मूमिनों से फरमाया, ऐ मूमिनों, उन पवित्र चीज़ों को खाओ जो हमने तुमहें रोजी दे रखी है, और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक आदमी की उदाहरण देते हुए कहा, एक आदमी लम्बा यात्रा करता है। उस के बिखरे हुए बाल, धूल से अटा हुआ शरीर, और अपने दोनों हाथों को आकाश की ओर उठाते हुए कहता हैः ऐ रब, ऐ रब, हालाँकि उसका खाना हराम की कमाई से होता है, उसका पीना हराम की कमाई से होता है, उसका पोशाक हराम की कमाई का है, और पूरी जीवन हराम खाते हुए गुज़रा तो फिर उस की दुआ क्यों कर स्वीकारित होगी। (सही मुस्लिम)
जब अल्लाह तआला हराम कमाई करने वालों की दुआऐं स्वीकार नहीं करता तो जो मानव हज्ज जैसी पवित्र इबादत अवैध कमाइ से करने जाऐगा तो अल्लाह ताआला कैसे उस के हज्ज को स्वीकार करेगा ?
(5) हज्ज पर जाने वाला पूर्ण गुनाहों से सच्ची तौबा करेः
यदि उस पर किसी का हक और अधिकार है तो पहले वह इस को अदा कर दे। किसी से कुछ कर्ज़ लिया है तो पहले उसे अदा कर दे या उसे अदा करने के लिए अपने घर वालों को नसीहत कर दे। अपने घर वालों को अल्लाह का भय रखने की नसीहत करे।
(6) हज्ज पर जाने से पहले हज्ज करने का तरीका सिख लेः
हज्ज में कौन सा कर्म करना उचित है ?, कौन सा कर्म अनुचित है ?, कौन सा कार्य करना अनिवार्य है ? और कौन सा काम करने से हज्ज नहीं होता और फिर दुसरे वर्ष हज्ज करना पड़ता है। तमाम चीज़ो को अच्छे तरीके से, सुन्नत के अनुसार अच्छे और ज्ञानी आलिमों और इस्लामिक विद्वानों से ज्ञान प्राप्त कर लें, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने अन्तिम हज्ज में फरमया थाः
عن جابربن عبدالله قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: يا أيها الناس خذوا عني مناسككم ،فإني لا أدري لعلي لا أحج بعد عامي هذا “( صحيح الجامع للشيخ الألباني , الرقم:7882)
जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” ऐ लोगों ! मुझ से हज्ज का तरीका सीख लो, तो मुझे पता नहीं कि इस वर्ष के बाद मैं क्या अगले वर्ष हज्ज कर पाऊंगा, या नहीं ? (सही अल्जामिअ, शैख अलबानी)