मानवता हेतु जीने वाले महापुरुषों का इतिहास
जिस प्रकार एक कम्पनी कोई एलेक्ट्रानिक सामान बनाती है तो उसके प्रयोग करने हेतु एक गाइड बुक भी देती है, उसी प्रकार अल्लाह ने ब्रह्मांड के एक भाग ज़मीन पर मानव का एक जोड़ा बसाया और उसे सारी सृष्टि पर प्रधानता प्रदान की तो उसकी पैदाइस का उद्देश्य क्या था इसे बताने के लिए अल्लाह ने मनुष्यों में से पवित्र लोगों का चयन किया जिन्होंने अल्लाह का संदेश उसके बन्दों तक पहुंचाया, ऐसे ही लोगों को नबी अथवा रसूल कहते हैं, अर्थात् निर्माता और निर्माण के बीच निर्माता के नियम को पहुंचाने का जो माध्यम है उसे इस्लाम में रिसालत और नुबूवत (ईश्दुतत्व) के नाम से जाना जाता है।
रिसालत परिश्रम द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकतीः रिसालत और नुबूवत कोई ऐसा पद नहीं है जिसे सन्यासी बन कर अथवा पूजा तथा परिश्रम द्वारा प्राप्त किया जा सके, बल्कि अल्लाह अपने बनदों में से जिसे चाहता है नुबूवत के लिए चयन करता हैः क़ुरआन कहता हैः
اللَّـهُ أَعْلَمُ حَيْثُ يَجْعَلُ رِسَالَتَهُ ﴿الأنعام: ١٢٤﴾
“अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि वह रिसालत कहाँ रखे।“ (सूरः अल-अनआम 124)
क्या इंसान को रिसालत की आवश्यकता है?
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या वास्तव में इंसान को रिसालत की आवश्यकता है? बौधिक रूप में इसे कैसे प्रमाणित किया जा सकता है? तो इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः
खान-पान की सामग्रियों से अधिक इंसान को रिसालत की जरूरत है, इस लिए कि मानव सृष्टि है और उसकी सबसे अच्छे रूप में बनावट हुई है, उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने निर्माता को जाने।
रिसालत ही हमें बताती है कि हमें किसने पैदा किया, हमारा अपने निर्माता के साथ क्या सम्बन्ध है, हमें कहाँ जाना है. इन प्रश्नों का उत्तर मनुष्य मात्र अपनी सीमित बुद्धि से नहीं प्राप्त कर सकता… जरूरत है ऐसे मार्गदर्शक की जो उसका सही पथ की ओर मार्गदर्शन कर सके।
इसके अंदर जीवन हैः अल्लाह पाक ने सूरः अल-अनआम में कहाः
أَوَمَن كَانَ مَيْتًا فَأَحْيَيْنَاهُ وَجَعَلْنَا لَهُ نُورًا يَمْشِي بِهِ فِي النَّاسِ كَمَن مَّثَلُهُ فِي الظُّلُمَاتِ لَيْسَ بِخَارِجٍ مِّنْهَا كَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِلْكَافِرِينَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴿الأنعام: ١٢٢﴾
“क्या वह व्यक्ति जो पहले मुर्दा था, फिर उसे हमने जीवित किया और उसके लिए एक प्रकाश उपलब्ध किया जिसको लिए हुए वह लोगों के बीच चलता-फिरता है, उस व्यक्ति को तरह हो सकता है जो अँधेरों में पड़ा हुआ हो, उससे कदापि निकलने वाला न हो? ऐसे ही इनकार करने वालों के कर्म उनके लिए सुहाबने बनाए गए है ।“ (सूरः अल-अनआम आयत122) जी हाँ! रिसालत के बिना मनुष्य जीवित होने के बावजूद जीवन से वंचित है।
रिसालत आत्मा के लिए भोजन है, मनुष्य दो तत्वों से मिल कर बना है, आत्मा और शरीर, शरीर तो हर प्राणी के अंदर होता है, यहाँ तक कि पशुओं के अंदर भी, अगर इंसान और पशुओं में अंतर हो सकता है तो आत्मा के द्वारा ही….शरीर के आहार खाप-पान की सामग्रियां हैं जबकि आत्मा का भोजन पैदा करने वाले ने ही तय कर दिया है, और वह है सच्चा धर्म और अच्छा कर्म। इस तरह नबियों का काम आत्मा की शुद्धि और और नफ्स का सुधार है। अल्लाह ने फरमायाः
هُوَ الَّذِي بَعَثَ فِي الْأُمِّيِّينَ رَسُولًا مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِن كَانُوا مِن قَبْلُ لَفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ (الجمعة 2)
” वही है जिसने उम्मियों में उन्हीं में से एक रसूल उठाया जो उन्हें उसकी आयतें पढ़कर सुनाता है, उन्हें निखारता है और उन्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है, यद्यपि इससे पहले तो वे खुली हुई गुमराही में पड़े हुए थे, –“. ( सूरः अल-जुमा 2)
मनुष्य स्वाभाविक रूप में धार्मिक ठहरा है, उसकी प्रकृति में एक महान महिमा की निगरानी की कल्पना पाई जाती है, ऐसे समय उसे धर्म की जरूरत पड़ती है जिसे वह अपना सके, और धर्म सच्चा भी होना चाहिए, जाहिर है कि धर्म के सच्चा होने के लिए नबियों और रसूलों पर विश्वास रखना आवश्यक है।
मनुष्य ऐसे रास्ते का मोहताज है जो उसे लोक में अल्लाह की आज्ञाकारी तक पहुँचा सके, और प्रलोक में नेमतों भरी जन्नत का हक़दार ठहरा सके, और ऐसे रास्ते की ओर मार्गदर्शन नबी और रसूल ही कर सकते हैं।
व्यक्ति स्वयं कमज़ोर है, उसके दुश्मन उसकी घात में लगे हुए हैं, शैतान है जो उसे गुमराह करना चाहता है, बुरी संगत है जो उसके सामने बुराई को सुंदर बना कर पेश करती है, नफ्से अम्मारा( बुराई पर उकसाने वाला नफ्स) है जो उसे बुराई की ओर निमंत्रण देती है. इस लिए एक व्यक्ति इस बात का ज़रूरतमनद है कि अपने दुश्मन की साज़िश से सुरक्षित रहने के लिए नबियों और रसूलों का अनुसरण करे।
नबी और रसूल इस लिए भी भेजे गए कि कल महा-प्रलय के दिन लोग बहाना न करें कि हमारे बीच कोई रास्ता देखाने वाला नहीं आया था, मानो अल्लाह ने रसोलों को भेज कर लोगों पर हुज्जत स्थापित कर दी. अल्लाह तआला का कथन है:
رُّسُلًا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّـهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ وَكَانَ اللَّـهُ عَزِيزًا حَكِيمًا ﴿النساء: ١٦٥﴾
अनुवाद: ” रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए है, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ( सूरः अल-निसा 165)
अल्लाह ने इंसान को बुद्धि दी, उसके द्वारा वह ज़ाहिरी बातों को तो समझ सकता है मगर बहुत सी बातें वह हैं जिन्हें जानने के लिए ज़ाहिरी ज्ञान काफी नहीं। स्वयं दुनिया की बहुत सारी हक़ीक़तें इंसान की बुद्धि से बाहर हैं जबकि अल्लाह और रसूल का मामला तो दूसरी दुनिया का है जो पूरी तरह आदमी को देखाई नहीं देता। पैगम्बर इस कमी को पूरा करते हैं, उनके द्वारा हमें उन परोक्ष के मामलों का ज्ञान होता है जिनका अनुभव हम अपनी सीमित बुद्धि से नहीं कर सकते, उदाहरणस्वरूपः अल्लाह के असमा व सिफ़ात, (फरिशतों) स्वर्ग-दूतों का वजूद, क्यामत के दिन होने वाले मामले, हिसाब किताब, और जन्नत व जहन्नम आदि।
ईश्दूतों के भेजे जाने का एक उद्देश्य यह था कि वह अपनी उम्मतों के सामने जीवन बिताने का एक अच्छा नमूना पेश करें. अल्लाह तआला ने फरमायाः
لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِيهِمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّـهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ ۚ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّـهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (الممتحنة 6)
अनुवाद: “ निश्चय ही तुम्हारे लिए उनमें अच्छा आदर्श है , हर उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अंतिम दिन की आशा रखता हो। और जो कोई मुँह फेरे तो अल्लाह तो निस्पृह, अपने आप में स्वयं प्रशंसित है “. (सूरः अल-मुमतहिनः 6)
रसूलों का इतिहासः आदमी इस दुनिया में जब से बसा है तभी से पैगम्बरों का सिलसिला शुरू हो गया, सब से पहले नबी आदम अलैहिस्सलाम हैं जो पहले इंसान भी हैं और पहले नबी भी, लेकिन पहले रसूल हज़रत नूह अलैहिस्सालाम हैं, जो आदम अलैहिस्सालाम के दस शताब्दियों बाद जब नूह अलैहिस्सालाम की क़ौम ने नेक लोगों की शान में अतिश्योक्ति की और शिर्क की शुरूआत हुई तो पहले रसूल की हैसियत से भेजे गए। इस प्रकार पहले नबी आदम अलैहिस्सालाम और पहले रसूल अज़रत नूह अलैहिस्सालाम ठहरते हैं।
नबी और रसूल में अंतरः रसूल वह है जिसकी ओर नई शरीअत की वह्य की गई हो, और नबी वह है जो पहले नबी की शरीयत की ओर ही निमंत्रण देने के लिए भेजे गए हों।
नबियों और रसूलों की संख्याः अब सवाल यह है कि नबियों और रसूलों की संख्या कितनी है? तो इस संबंध में मुख्य बात यह है कि अल्लाह ने हर समुदाय में और हर जगह अपने नबियों को भेजा. अल्लाह ने सूरः फ़ातिर में कहा: “हर देश में कोई न कोई मार्गदर्शक जरूर आया है.” उनकी संख्या एक लाख चौबीस हजार तक पहुँचती है जैसा कि मुस्नद अहमद में है हज़रत अबू ज़र रज़ि. से रेवायत है कि मैं ने मुहम्मद सल्ल. से नबियों की संख्या के सम्बन्ध में पूछाः तो आपने फरमायाः “नबियों की संख्या एक लाख चौबीस हजार है, जिन में रसूल तीन सौ पंद्रह की संख्या में एक बड़ी जमाअत हैं “.
कुरान व हदीस में उन सज्जन व्यक्तियों में से कुछ का वर्णन मौजूद है और बहुत से नबियों का वर्णन नहीं है जो अल्लाह के इल्म में है। अल्लाह ने फरमायाः
وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنَاهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ ۚ ﴿سورة النساء 164١٦٤﴾
“ और कितने ही रसूल हुए जिनका वृतान्त पहले हम तुम से बयान कर चुके हैं और कितने ही ऐसे रसूल हुए जिनका वृतान्त हमने तुम से बयान नहीं किया। “. (सूरः अल-निसा 164 )
कुरआन में 25 नबियों के नाम बयान किए गए हैं, जिन में 18 नबियों का वर्णन सूरः अनआम की आयत नंबर 83 से 86 तक आया हैः ( जो यह हैं हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्हाक, हज़रत याकूब, हज़रत नूह, हज़रत दाऊद, हज़रत सुलैमान, हज़रत अय्युब, हज़रत यूसुफ, हज़रत मूसा, हज़रत हारून, हज़रत ज़करिया, हज़रत ईसा, हज़रत यह्या, हज़रत इल्यास, हज़रत इस्माइल, हज़रत यसअ, हज़रत यूनुस, हज़रत लूत अलैहिमुस्सलाम) और सात नबियों और रसूलों के नाम क़ुरआन की विभिन्न सुरतों में आए हैं। जिनके नाम यह हैं (हज़रत मुहम्मद सल्ल., हज़रत आदम, हज़रत सालिह, हज़रत हूद, हज़रत शुऐब, हज़रत इदरिस, हज़रत ज़ुलकिफ्ल अलैहिमुस्सलाम) और अधिकतर लोगों की राय के मुताबिक़ हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम भी अल्लाह के नबी हैं और दो नबियों का वर्णन उल्लेख हदीस में मौजूद है हज़रत शीस अलैहिस्सलाम और हज़रत यूशुअ बिन नून अलैहिस्सलाम. लेकिन ज़ुलकरनैन और तुब्अ के संबंध में ख़ामोशी बेहतर है।
नबियों को एक दूसरे पर फज़ीलत प्राप्त हैः अल्लाह ने कुछ नबियों को कुछ पर फज़ीलत दी है, जैसा कि इरशाद बारी तआला है: “हमने कुछ नबियों को कुछ पर प्रधानता प्रदान की है”. [अल-इसरा: 55] उसी तरह अल्लाह ने रसूलों में से कुछ रसूलों पर फज़ीलत दी है, जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद है: अनुवाद: “यह रसूल हैं जिन में से हमने कुछ को कुछ पर फज़ीलत दी है”. (सूरः अलबक़र: 253)
उन में अफ़ज़ल वह रसूल हैं जो ऊलुल अज़्म (उत्साह और संकल्प वाले पैगम्बर) कहलाते हैं और वह हैं, हज़रत नूह, हज़रत अब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद. (अल्लाह की उन सब पर शान्ति हो) अल्लाह तआला ने फरमाया: “तो ऐ (पैगम्बर!) आप ऐसा सब्र करें जैसा सब्र हिम्मत वाले रसूलों ने किया “. (अल अहक़ाफ़35 )
नबियों का निमंत्रणः सभी नबियों का निमंत्रण एक ही था, जिसका खुलासा यह था कि मानव को दासों की पूजा से निकाल कर दासों के रब की इबादत की ओर अग्रसर करना। इर्शादे रब्बानी है: “और निःसंदेह हम ने हर समुदाय में रसूल भेजा कि) लोगो (केवल सर्वशक्तिमान अल्लाह की इबादत करो और अन्य पुज्यों से बच्चो “. [सूरः नहल : 36] यधपि उनकी शरीअतें और निर्देश अलग थे परन्तु वह सब एक आधार पर सहमत थे जो कि तौहीद है। बुखारी और मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरः रज़ि. बयान करते हैं कि नबी सल्ल. ने इरशाद फरमाया: “सभी नबी आपस में बाप शरीक भाई हैं परन्तु उनकी माताएं अलग हैं, उन सब का दीन एक ही है“.
सारे नबी इंसान थेः जितने भी नबी आए सब के सब इंसान थे, इसमें एक तरफ बनदों पर अल्लाह की कृपा थी कि अल्लाह ने उनके लिए नबियों को उन में से ही भेजा , और यह स्वाभाविक मांग भी थी कि रसूल एक आदर्श और शिक्षक होते हैं तो शिक्षक का क्षात्र के लिंग से होना उचित था ताकि शिक्षा का उद्देश्य पूरा हो सके. इसी लिए अल्लाह ने सूरः अल-इसरा में कहाः
قُل لَّوْ كَانَ فِي الْأَرْضِ مَلَائِكَةٌ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِم مِّنَ السَّمَاءِ مَلَكًا رَّسُولًا ﴿سورة الإسراء 95﴾
कह दो, “यदि धरती में फ़रिश्ते आबाद होकर चलते-फिरते होते तो हम उनके लिए अवश्य आकाश से किसी फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर भेजते।” (सूरः अल-इसरा 95)
वह दूसरे मनुष्यों की तरह मनुष्य ही थे, वे खाते भी थे, पीते भी थे, शादी करते थे, सोते थे, बीमार भी होते थे और थकान भी महसूस करते थे। अल्लाह ने फरमायाः
وَمَا أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ الطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِي الْأَسْوَاقِ (الفرقان 20 )
और तुमसे पहले हमने जितने रसूल भी भेजे हैं, वे सब खाना खाते और बाज़ारों में चलते-फिरते थे। (सूरः अल- फुरक़ान 20)
अल्लाह ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया:
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًا مِّن قَبْلِكَ وَجَعَلْنَا لَهُمْ أَزْوَاجًا وَذُرِّيَّةً (الرعد 30)
” तुमसे पहले भी हम, कितने ही रसूल भेज चुके है और हमने उन्हें पत्नियों और बच्चे भी दिए थे, “. [अल- रअद: 38]
और उन्हें भी इंसानों की तरह खुशी गमी, परेशानी और आसानी का सामना करना पड़ता था।
सभी नबी पुरुष थेः जितने भी नबी आए सभी पुरुष थे, नुबुवत पुरुषों के साथ विशेष है, अल्लाह ने सूरः अम्बिया में फरमाया:
وَمَا أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ إِلَّا رِجَالًا نُّوحِي إِلَيْهِمْ (سورة الأنبياء 7 )
“हमने आप से पहले जितने भी नबी भेजा वह पुरुष होते थे जिनकी ओर हम वह्य करते थे।” और नुबूवत की मांग है कि निमंत्रण को फैलाया जाए, लोगों से मुलाक़ात की जाए, विरोधियों से निमटा जाए, और यह सब महिलाओं के लिए उचित न था।
नबियों के पास परोक्ष का ज्ञान नहीं होताः नबी परोक्ष का ज्ञान भी नहीं रखते सिवाए उसके जिसकी अल्लाह उन्हें खबर दे दे । अल्लाह ने फरमाया:
عَالِمُ الْغَيْبِ فَلَا يُظْهِرُ عَلَىٰ غَيْبِهِ أَحَدًا ﴿٢٦﴾ إِلَّا مَنِ ارْتَضَىٰ مِن رَّسُولٍ (سورة الجن 26،27)
अनुवाद: “ “परोक्ष का जानने वाला वही है और वह अपने परोक्ष को किसी पर प्रकट नहीं करता, (26) सिवाय उस व्यक्ति के जिसे उसने रसूल की हैसियत से पसन्द कर लिया हो “. [सूरः अल-जिन्न: 26, 27]
रसूलों की कुछ प्रमुख विशेषताएं: रसूलों की कुछ विशेषताएं होती हैं:
उन पर वह्य का अवतरण होता हैः उनकी सब से पहली विशेषता उन पर वह्य का अवतरण है, जो भी समस्या पैदा होता है नबी को वह्य द्वारा उसकी सूचना दे दी जाती है. अल्लाह ने फरमायाः
قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ (سورة الكهف 110)
कह दो, “मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है (सूरः अल-कहफ 110) “
रसूल मासूम होते हैं: रसूल की दूसरी विशेषता यह है कि रसूल मासूम होते हैं, संदेश को अपनाने में मासूम होते हैं, संदेश को पहुंचाने में मासूम मासूम होते हैं , उसी तरह बड़े बड़े पापों तथा बुरे अख़लाक़ और अश्लील कामों से निर्दोष होते हैं। लेकिन उनसे कुछ ग़लतियां हो जाना यह नबूवत के खिलाफ नहीं क्यों कि वह भी इंसान थे, हां वह अपनी क़ाएम नहीं रहते, जब कभी किसी नबी से कोई मामूली गलती हुई जिसका दीन से कोई संबंध नहीं होता था, अल्लाह ने उसे उनके सामने स्पष्ट कर दिया, और उन्होंने तुरंत तौबा कर ली और अल्लाह की ओर झुक गए अतः वह मामूली ग़लती ऐसी हो गई मानो उनका अस्तित्व ही नहीं था।
रसूलों को मोजज़ात दिए जाते हैं: रसूलों की तीसरी विशेषता: यह है कि उनको मुजज़ा (चमत्कार) से नवाज़ा जाता थाः मुजज़ा वह आदत के खिलाफ़ चीज़ जिसे अल्लाह रसूलों के हाथों पर दिखाता है जिसके ज़ाहिर करने से दुनिया के लोग असमर्थ होते हैं, ताकि लोग उनको देख कर उस नबी की नुबूवत का समर्थन करें और सब के सामने रसूल की सच्चाई प्रकट हो सके। रसोलों को चमत्कार उनकी क़ौम में जिस चीज़ का ज्यादा चलन था उसी के अनुसार दिए गए, अतः हम देखते हैं कि मूसा अलैहिस्सलाम के युग में जादूगरी चरम पर थी तो अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को उसी प्रकार का चमत्कार दिया था, अतः हज़रत मूसा अलैहिस्सालाम की लाठी साँप का रूप धरण कर के जादूगरों के जादुई सांपों को निगल गई, और सब जादूगर असमर्थ हो कर मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आए। उसी प्रकार हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के अल्लाह के हुक्म से समुद्र में लाठी मारी जिस से 12 चश्मे फूट निकले।
हजरत ईसा अलैहिस्सलाम के युग में चिकित्सा का प्रचलन था, अतः वह अल्लाह के आदेश से मृतकों को जीवित कर देते, पैदाइशी अंधों की आँखें कीठ कर देते, कोढ़ियों को अच्छा कर देते और मिट्टी की चिड़िया बनाकर जिंदा कर के उसे उड़ा देते थे।
स्वयं अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल. के हाथों पर विभिन्न चमत्कार प्रकट हुए, आपका सबसे बड़ा और महा-प्रलय के दिन तक जीवित रहने वाला चमत्कार कुरआन है। दुनिया के बड़े बड़े विद्वान और अरबी के साहित्यकार अपनी पूरी कोशिश के बावजूद उसकी छोटी सूरत के समान भी कोई सूरः अथवा आयत पेश करने से असमर्थ्य रहे और महा प्रलय के दिन तक असमर्थ्य रहेंगे। उसी तरह इसरा और मेराज आपका चमत्कार है, और मक्का के काफिरों की तलब पर आप सल्ल. की उंगली के इशारे से चाँद दो टुकड़े हो गए – एक टुकड़ा पूर्व में और दूसरा टुकड़ा पश्चिम में चला गया और बिल्कुल अंधेरा हो गया – सब उपस्थितगणों ने उसे देख लिया, फिर दोनों टुकड़े आपस में मिल गए और चंद्रमा वास्तविक स्थिति में आ गया।
उसके अतिरिक्त आपकी उंगलियों की बरकत से पानी का उबलना, वृक्षों, पत्थरों और पशुओं का आपको सलाम करना करना, कनकरियों का कलमा पढ़ना आदि आपके विभिन्न चमत्कार हैं।
रसूलों पर ईमान का अर्थ : अब सवाल यह है कि रसूलों पर ईमान का मतलब क्या है? तो रसूलों पर ईमान चार चीज़ों को शामिल है:
पहली चीज़: इस बात पर विश्वास रखना कि सारे नबियों की रिसालत सत्य है और अल्लाह की ओर से है, जिस ने उन रसूलों में से किसी की भी रिसालत का इनकार किया उसने मानो उन सब का इनकार किया। अल्लाह तआला ने फरमायाः
كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ الْمُرْسَلِينَ ﴿الشعراء: ١٠٥﴾
अनुवादः नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया; (सूरः अल-शुअरा 105)
विचार कीजिए कि अल्लाह ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के क़ौम को प्रत्येक रसूलों को झुठलाने वाली क़ौम सिद्ध किया, हालांकि जिस समय उन्हों ने झुठलाया था उस समय तक नूह अलैहिस्सलाम के अतिरिक्त कोई अन्य रसूल उनके हां न आया था। उसी प्रकार यदि किसी मुसलमान ने मूसा अलैहिस्सलाम अथवा ईसा अलैहिस्सलाम की नुबूवत का इनकार तो उसने मानो अल्लाह के रसूल सल्ल. की नुबूवत का भी इनकार किया कि किसी एक नबी का भी इनकार हमें इस्लाम की सीमा से निकाल देता है।
दूसरी चीज़: जिन नबियों के नाम हमें पता हैं उन पर विस्तृत रूप में ईमान लाना जैसे हज़रत मुहम्मद सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम, हज़रत अब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, यह पांच उलुल अज़्म (साहस वाले) रसूल हैं। उन सज्जन रसूलों के अतिरिक्त जिन नबियों के नाम का हमें ज्ञान नहीं उन पर भी संक्षिप्त में विश्वास करना हम पर अनिवार्य है।
तीसरी चीज़: उनकी जो खबरें सही हैं उनकी पुष्टि करना ज़रूरी है।
चौथी चीज़: इस बात पर विश्वास रखना कि अल्लाह के रसूल सल्ल. से पहले आने वाले पैगम्बरों का प्रामाणिक रिकार्ड बाक़ी नहीं रहा, उनकी किताबें भी विकृत का शिकार हो गईं इस लिए अंत में अललाह ने सारी मानवता के लिए मुहम्मद सल्ल. को नबी बना कर भजा। अब आपकी शरीअत पर अमल करना और यह अक़ीदा रखना आवश्यक है कि आपके आने के बाद पिछली सारी शरीअतें निरस्त हो गईं, अब किसी के लिए वैध नहीं है कि वह अल्लाह का पालन नबी सल्ल. के अरितिक्त किसी अन्य के बताए हुए तरीके़ के अनुसार करे कि अन्तिम संदेष्टा और सारी मानवता के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. आ गए। अब दुनिया के लिए कुरआन final authority है। और मुहम्मद (सल्ल.) महा-प्रलय के दिन तक अल्लाह के एक मात्र प्रतिनिधि हैं। यह बात तर्क और बुद्धि से भी लगती है।
आप स्वयं विचार करें कि एक सरकार किसी देश में अपने आदमी को राजदूत बनाकर भेजती है तो ज़ाहिर है कि राजदूत का प्रतिनिधित्व तब तक के लिए होगा जब तक वह अपने पद पर नियुक्त रहेगा. जब उसकी अवधि समाप्त हो जाए और दूसरे आदमी को इस पद पर नियुक्त कर दिया जाए तो उसके बाद वही राजदूत सरकार का प्रतिनिधि होगा जिस को सब से अंत में राजदुतत्व का अवसर मिला है। इस तरह अल्लाह के रसूल अंतिम राजदूत हैं, आप के बाद कोई राजदूत आने वाले नहीं हैं।,आप ही फ़ारक़लीत हैं, आप ही कल्कि अवतार हैं, आप ही नराशंस हैं, और आप ही जगत-पति हैं।
आप सब रसूलों में सब से उत्तम रसूल हैं, आप नबियों के कम्र को समाप्त करने वाले हैं, आप मुत्तक़ियों के इमाम आदम की संतान के नायक हैं, जब सभी नबी इकट्ठे होंगे तो आप उनके इमाम और जब वह उपस्थित होंगे तो आप आप उनके धर्मोपदेश होंगे, आप ही मक़ामे महमूद पर स्थित होने वाले हैं, जिस पर पहले और बाद में सभी आने वाले रश्क करेंगे, आप लेवाउल-हम्द वाले हैं अर्थात् वह जिनके पास प्रशंसा का झंडा होगा और आप ही हौज़े-कौसर के मालिक हैं जहां लोग उपस्थित होंगे। अल्लाह आपको अपने दीन की सब से उत्तम शरीअत दे कर भेजा और आपकी उम्मत को जो लोगों के लिए भेजी गई, उत्तम उम्मत बनाया, आपको और आपकी उम्मत को उत्तम और श्रेष्ठ गुणों और विशेषताओं से सुसज्जित फरमाया जो कि आपको और आपकी उम्मत को पिछली उम्मतों से अलग करती हैं, और आपकी उम्मत दुनिया में आने के एतबार से सबसे अंतिम उम्मत है लेकिन क्यामत के दीन सब से पहले उठाई जाने वाली है।
नबी का हम पर और हमारा नबी पर हकः हमारे नबी मुहम्मद सल्ल. पर उम्मत का अधिकार यह था कि वह उम्मत की परेशानियों में भाग लें, उम्मत की भलाई के इच्छुक रहें, और उम्मत के लिए नरम और दयालु बनें, और वास्तव में अल्लाह के रसूल सल्ल.ने उन अधिकारों को पूर्ण रूप में अदा किया, यहां तक कि अल्लाह ने इसकी गवाही दी:
لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِّنْ أَنفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُم بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ ﴿التوبة: ١٢٨﴾
“ तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आ गया है। तुम्हारा मुश्किल में पड़ना उसके लिए असह्य है। वह तुम्हारे लिए लालयित है। वह मोमिनों के प्रति अत्यन्त करुणामय, दयावान है।“ (सूरः अल-तौबा 128)
परन्तु हम पर हमारे नबी का अधिकार यह है कि हम उनका अनुसरण करें, उनके के सामने किसी की कथनी और करनी को कोई महत्व न दें, आप पर दरुद और सलाम भेजें, और आप की विश्वव्यापी शिक्षाओं को स्वयं में, अपने समाज में और अन्य समुदायों में फैलाने की कोशिश करें।