अल्लाह के भेजे हुए नबियों पर विश्वास
ईमान का चौथा स्तम्भः अल्लाह के भेजे हुए नबियों पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह तआला ने अपने कुछ बन्दों को सर्व मनुष्य की ओर नबी और रसूल (दूत्त) बना कर भेजा जो अल्लाह और बन्दों के बीच माध्यम का काम करते थे। अल्लाह का आज्ञा तथा सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे। अल्लाह ने मानव के लिए जो जन्नत (स्वर्ग) बनाया है, उसकी शुभ खबर देने वाला और अल्लाह की अवज्ञाकारी के लिए जो जहन्नम (नरक) बनाया है, उस से डराने वाला बनाकर भेजा है। अल्लाह ने अपने नबियों और रसूलों को विभिन्न चमत्कार दे कर भेजा था। ताकि उन नबियों और रसूलों पर कोई आशंका न करे और झूटे लोग नबी और रसूल होने का ढ़ोंग न रच सके। वह सर्व नबी मानव थे। वह खाते-पीते थे। उन्हें सन्तान तथा माता-पिता थे। उन्हें रोग, परेशानियाँ, दुख दर्द लाहिक होता था। उन सब का देहांत हुआ। किन्तु वह लोग दुसरे सर्व मनुष्य से सम्पूर्ण, सर्वशेष्ट और उत्तम थे। अल्लाह का विशेष कृपा और दया उन पर होता था परन्तु अल्लाह की कोई भी विशेषता उन में न थीं और उन सब नबियों ने केवल एक ईश्वर की पुजा , उपासना और अराधना की ओर निमन्त्रण किये।
नबी और रसूल के बीच अन्तर
(1) रसूल को अल्लाह तआला का इन्कार करने वाले समुदाए में भेजा गया हो और नबी को अल्लाह तआला के आज्ञाकारी समुदाए में भेजा गया हो।
(2) रसूल जो एक नया धर्म लेकर आया और नबी जो अपने से पुर्व रसूल के धर्म का पर्चारक हो और उसी के अनुसार चलता हो।
(3) रसूल जिस पर अल्लाह ने ग्रन्थ (किताब) उतारी हो और नबी जिस पर ग्रन्थ (किताब) न उतारी गई हो, बल्कि वह अपने से पुर्व रसूल के किताब के अनुसार अमल करता हो।
(4) प्रत्येक रसूल नबी हैं परन्तु प्रत्येक नबी रसूल नहीं हो सकता है।
नबी और रसूल इन्सान अपनी प्रयास तथा मेहनत से नहीं बन सकता है और न ही अल्लाह की बहुत ज़्यादा पुजा तथा तपस्या से प्राप्त कर सकता है बल्कि अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी और रसूल चयन करता है। अल्लाह का कथन इस बात की पुष्टी करता है।
” الله يصطفي من الملائكة رسلا و من الناس إن الله سميع بصير” – ( الحج:57
अर्थातः “ वास्तविक्ता यह है कि अल्लाह अपने आदेश को भेजने के लिए फरिश्तों में से सन्देशवाहक चुनता है और इन्सानें में से भी, वह सुनता और देखता है।” (सूरः अल-हज्जः 57)
अल्लाह तआला नबियों और रसूलों की रक्षा करता है। उनको बड़े गुनाहों तथा पापों से सुरक्षित रखता है। जब कभी उन नबियों से छोटी गलती हो जाती हैं जिसका धर्म के पहुंचाने से सम्बंध नहीं परन्तु अल्लाह तआला तुरन्त उस गलती पर उन्हें खबरदार कर देता है और नबी भी अपनी गलती स्वीकार कर के अल्लाह से क्षमा मांगते हैं। अल्लाह तआला भी उनकी छोटी गलती को क्षमा कर देते हैं और नबी और रसूल हर इतबार से पूर्ण होते थे। अल्लाह ने जो अमानत उनके जिम्मा दिया, उसको उन्हों ने सही तरीके से अदा किया और लोगों तक पूरा पूरा पहुंचा दिया।
नबियों और रसूलों के कुछ महत्वपूर्ण काम
अल्लाह ने नबियों तथा रसूलों को बहुत महत्वपूर्ण काम दिये हैं। उन में से कुछ निम्नलिखित हैं।
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लोगों तक अल्लाह के सन्देश को पहुंचाने का काम और लोगों को अल्लाह के सिवा की पुजा से हटा कर एक अल्लाह की उपासना की ओर निमन्त्रण करने का काम दिया जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
ولقد بعثنا في كل أمة رسولا أن اعبدوا الله واجتنبوا الطاغوت ”
النحل: 36
अर्थातः “ हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो ” (सूरः अल-नहलः 36)
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जो धर्म अल्लाह ने लोगों के लिए भेजा उसकी स्पष्टीकरण का काम दिया। लोगों को अल्लाह के आदेश की व्याख्या का कार्य सुपूर्द किया। अल्लाह तआला ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सम्बोधित करते हुए कहा।
” وأنزلنا إليك الذكر لتبين للناس ما نزل إليهم ولعلهم يتفكرون “- [ النحل:44
अर्थातः “ और यह जिक्र तुम पर अवतरित किया है ताकि तुम लोगों के सामने इस शिक्षा की व्याख्या और स्पष्टीकरण करते जाओ जो उन के लिए उतारी गई है और ताकि लोग सोच-विचार कर सके” (सूरः अल-नहलः 36)
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नबियों तथा रसूलों को भेजा गया ताकि वह लोगों को बुराइ से डराए और भलाइ की ओर निमन्त्रण करे और अच्छे कार्यियों पर शुभ खबर दे और पाप तथा अप्राध करने पर अल्लाह के अज़ाब से सुचित करे जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
” رسلا مبشرين ومنذرين ” [ النساء: 165]
अर्थः ” यह सारे रसूल शुभ खबर देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए ” (सूरः अन-निसाः 165)
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क़ियामत के दिन नबियों तथा रसूलों अपने अनुयायियों पर गवाह होंगे कि उन्हों ने अल्लाह का सन्देश लोगों तक सही तरिके से पहुंचा दिये। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
” فكيف إذا جئنا من كل أمة بشهيد و جئنا بك على هولاء شهيدا ” (النساء: 41)
अर्थः ” फिर सोचों कि उस समय यह किया करेंगे जब हम हर समुदाए में से एक गवाह लाऐंगे और उन लोगों पर तुम्हें गवाह की हैसियत से खड़ा करेंगे ” (सूरः अन-निसाः 41)
नबियों तथा रसूलों की संख्याँ
नबियों की संख्याँ एक लाख चौबिस हज़ार थीं और उन में से रसूलों की संख्याँ 315 हैं। जैसा कि हदीस में वर्णन है।
عن أبي ذرٍّ، قال : قلتُ : يا رسولَ اللهِ ! أيُّ الأنبياءِ كان أولُ ؟ ! قال : آدمُ، قلتُ : يا رسولَ اللهِ ! ونبيٌّ كان ؟ ! قال : نعم نبيٌّ مُكلَّمٌ، قلتُ : يا رسولَ اللهِ : كم المرسلونَ ؟ ! قال : ثلاثُ مئةٍ وبضعةَ عشرَ ؛ جمًّا غفيرًا – تخريج مشكاة المصابيح– الرقم:5669- صححه الشيخ الألباني)
अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) वर्नण करते हैं कि उन्हों ने प्रश्न किया,” ऐ अल्लाह के रसूल? सर्व प्रथम नबी कौन हैं ? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया, आदम, मैं ने कहाः और वह नबी हैं, तो आप ने फरमायाः हाँ, नबी जिन से बात किया गया। मैं ने कहाः रसूलों की संख्याँ कितनी थीं? तो आप ने फरमायाः उनकी संख्याँ तीन सौ तैरा से कुछ ज़्यादा, बहुत बड़ी संख्याँ हैं।” ( मिशकातुल-मसाबीहः 5669
दुसरी रिवायतों में एक लाख चौबीस हज़ार नबी और 315 रसूलों की स्पष्ठिकरण है।
परन्तु क़ुरआन में अल्लाह तआला ने पचीस नबियों का नाम बयान किया है। किन्तु हम सर्व नबियों पर ईमान और विश्वास रखते हैं, जिसे अल्लाह ने इस धरती पर नबी बना कर भेजा था, चाहे उन के नाम तथा किस्से हमें बताया गया हो या उन के नाम तथा किस्से गुप्त रखा गया हो।
रसूलों के बीच उत्तमता
अल्लाह ने कुछ रसूलों को कुछ रसूलों पर उत्तमता दी है जैसा कि अल्लाह तआला ने स्वयं फरमा दिया है।
” تلك الرسل فضلنابعضهم على بعض – منهم من كلمهم الله ورفع بعضهم درجات ” – [ البقرة:253
“ यह रसूलें हैं, हम्ने इन्को एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर पद प्रदान किया। उन में से कोई ऐसा था जिसे अल्लाह ने स्वयं बात की, किसी को उस ने दुसरी हैसियत से ऊंचा दर्जा दिया।” ( सूरः बकराः 253)
इन सब नबियों और रसूलों में सब से उत्तम और सर्वशेष्ट पुख्ता और कठोर इरादो वाले रसूल हैं और वह पांच हैं। नूह (अलैहिस्सलाम), इब्राहीम (अलैहिस्सलाम), मूसा (अलैहिस्सलाम), ईसा (अलैहिस्सलाम) और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और इन सब के सर्दार मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं जैसा कि अन्तिम नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
“ أنا سيد ولد آدم يوم القيامة و لا فخر ، و بيدي لواء الحمد و لا فخر ، و ما من نبي يومئذ آدم فمن سواه إلا تحت لوائي ، و أنا أول شافع ، و أول مشفع ،و لا فخر – صحيح الجامع-:1468- الشيخ الألباني)
” क़ियामत के दिन मैं आदम के सन्तान का सर्दार हूँ और कोई गर्व की बात नहीं और प्रसंशा का झंडा मेरे हाथ में होगा और कोई गर्व की बात नहीं, उस दिन आदम और प्रत्येक नबी मेरे झंडा के नीचे होंगे, और मैं ही सब से प्रथम सिफारिश करूंगा और मेरी ही सिफारिश सर्व प्रथम स्वीकारित होगी और कोई गर्व की बात नहीं है।” (सही जामिअः 1468)
क्योंकि यह उच्च स्थान अल्लाह ने ही मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दिया है।
नबियों तथा रसूलों पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
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अल्लाह का अपने बन्दों के साथ खास कृपा और दया कि उस ने लोगों के मार्गदर्शन और कल्याण के लिए आदर्नीय नबियों तथा रसूलों को भेजा।
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अल्लाह के इस महत्वपूर्ण पुरस्कार पर उसका बहुत ज्यादा शुक्र अदा किया जाए।
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अल्लाह के रसूलों का आदर-सम्मान किया जाए, उन से प्रेम किया जाए उन के लिए प्रार्थना किया जाए और उनकी परशंसा किया जाए कि उन्होंने अल्लाह के सन्देश को बहुत ही अच्छे ढ़ंग से और अमानत के साथ लोगों तक पहुंचाया और इस रास्ते में मिलने वाली परेशानियों पर सब्र किया