ईमान के अरकान

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इस्लाम अपने सर्व आज्ञा तथा व्यवहार में अन्य सम्पूर्ण धर्मों से बिल्कुल अलग और उत्तम है। इसी तरह आस्था के बारे में एक अलग स्थान रखता है। इस्लामी आस्था जीवन की नीव है। नीव जितनी गहरी और होगी, इमारत उतनी ही ठोस और मज़बूत  होगी, जिस तरह नीव के बिना कोई बिल्डिंग ठहर नही सकती, ठीक उसी तरह इस्लामी आस्था के बिना जीवन का कोई मूल नहीं, इन्सानी अंगों में सर को जो महत्वपूर्णता प्राप्त है, इसी तरह ईमान की महत्वपूर्णता इस्लामी जीवन में हैं। इस्लाम अपने सर्व शिक्षानुसार उत्तम और बेहतरीन है।

इस लिए अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में ईमान की सर्वश्रेष्ठता बयान किया है और इन्सान के सम्पूर्ण अच्छे कर्मों को ईमान पर आधारित बताया है कि मानव को अच्छे कर्मों का बदला उसी समय हासिल होगा जबकि वह ईमान वाला होगा। जैसा कि अल्लाह तआला ने पवित्र क़ुरआन में फरमाया हैः

  من عمل صالحا من ذكرأو أنثى وهو مؤمن فلنحيينه حياة طيبة ولنجزينه أجرهم بأحسن ما كانوا يعملون -النحل: 97

 “ जो व्यक्ति भी अच्छा कर्म करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत शर्त यह है कि वह मोमिन हो, उसे हम दुनिया में पवित्र जीवनयापन कराएंगे और परलौक में एसे लोगों को उनके उत्तम कर्मों का अच्छा बदला प्रदान करेंगे  ”

जब ईमान संसारिक तथा पारलौकिक जीवन की सफलता के लिए अनिवार्य है तो हमारे लिए ईमान की परिभाषा और उसके अरकान (स्तम्भ) का ज्ञान भी ज़रूरी है। उसी प्रकार ईमान के स्तम्भ का ज्ञान भी ज़रूरी है। ईमान के स्तम्भ की स्पष्टीकरण यह है कि जिस तरह एक घर के लिए कुछ महत्वपूर्ण खम्बों की आवश्यकता होती है और वह घर उस समय तक ही सुरक्षित रहेगा जब तक वह पिलर्स बाकी रहेगा, इसी तरह ईमान के छः स्तम्भ हैं जिस पर ईमान निर्भर करता है। इन छः चीजों पर प्रत्येक मुस्लिम को ईमान रखना अनिवार्य है। जैसा कि मनुष्य के जीवित रहने के लिय भोजन ज़रूरी है।

ईमान और विश्वास किसे कहते हैं ?

ईमान तीन चीज़ों के संग्रह का नाम हैः हृदय में दृढ विश्वास हो, ज़बान से बोला जाए और शरीर के अंग अंग से उस पर अमल किया जाए।

मनुष्य का ईमान उसके कर्मों के आधार पर ज्यादा और कम होता रहता है। यदि उसने अच्छे काम किये,लोगों की भलाई के काम अन्जाम दिये, अल्लाह की उपासना किये, अल्लाह का बार बार नाम लिया, अल्लाह से डरते रहे, अल्लाह के आज्ञानुसार जीवन बिताते रहे तो उस के ईमान में ज़्यादती आएगी जैसा कि अल्लाह तआला का कथन हैः

” إنما المؤمنون الذين إذا ذكر الله وجلت قلوبهم وإذا تليت عليهم آياته زادتهم إيمانا وعلى ربهم يتوكلون ” [الأنفال: 2]

अर्थः “ सच्चे ईमान वाले तो वह लोग हैं जिन के दिल अल्लाह का ज़िक्र सुन कर कांप जाते हैं और जब अल्लाह की आयतें उन के सामने पढ़ी जाती हैं तो उनका ईमान बढ़ जाता है और वह अपने रब पर भरोसा करते हैं ” (सूरःअन्फाल,2)

 इसी तरह प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया “  ईमान के 73 से अधिक भाग हैं। उन में  सब से श्रेष्ठ लाइलाहा इल्लल्लाह (सत्य पुज्य केवल अल्लाह ही) है  और उसका कमतर भाग रास्ते से हानिकारक चीज़ों को हटाना है और लज्जा ईमान का एक भाग  है ” (सहीहुल जामिअः 2800)

यह हदीस खुले शब्दों में ईमान के अधिक और कम होने पर दलालत करती है।

ईमान के छः स्तम्भ ही है।  इस बात की पुष्टि हदीस जिब्रील (अलैहिस्सलाम) से होती है। जिस में जिब्रील (अलैहिस्सलाम) ने प्यारे नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) से प्रश्न किया कि ईमान के बारे में बताओ, तो प्यारे नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने कहा “ तुम अल्लाह पर , उस के फरिश्तों पर, उसकी उतारे हुए ग्रन्थों पर , उसके भेजे हुए नबियों पर, अन्तिम दिन पर और भाग्य की अच्छाई या बुराई पर विश्वास रखो ”   (सही मुस्लिमः 6)

यही छः चीज़ें हैं जिन्हें ईमान के  अर्कान(स्तम्भ) कहा जाता है।

(1)  ईमान का पहला स्तम्भः   अल्लाह पर ईमान लाना है।

(2)  ईमान का दुसरा स्तम्भः   अल्लाह के फरिश्तों पर  ईमान लाना है।

(3) ईमान का तीसरा स्तम्भः  अल्लाह की उतारी हुई पुस्तकों पर ईमान  रखना है।

(4) ईमान का चौथा स्तम्भः   अल्लाह के भेजे हुए नबियों पर ईमान  रखना है।

(5)  ईमान का पांचवा स्तम्भः  आखिरत(महाप्रलय) के दिन पर ईमान रखना है।

(6)  ईमान का छठा स्तम्भः    भाग्य (क़िस्मत) के अच्छे या बुरे होने पर  ईमान रखना है।

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