बलात्कार का सही समाधान इस्लाम में है

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दिल्ली में चलती बस में वहशी दरिंदों की सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई छात्रा की मौत पर हम सब लगता है जाग गए हैं। हर ओर से इस अपराध का विरोद्ध हो रहा है और अपराधी को सख्त से सख्त सज़ा देने की माँग की जा रही है। पर यहाँ भी जो प्रतिक्रायें सामने आ रही हैं इस से मानव की सीमित बुद्धि और तंग विचार का भली-भांति अनुभव किया जा सकता है। 
कुछ लोग पश्चिमी देशों से प्रभावित होने के कारण अपराधियों की सज़ा का मुतालबा तो कर रहा है पर महिलाओं को वस्त में बिल्कुल स्वतंत्र देखना चाहते हैं। कुछ लोग बिना किसी प्रतिबंध के अपराधियों के लिए फांसी की सज़ा नियत कर रहे हैं। परन्तु इस लेख में हम यह बताने की कोशिश करेंगे कि इस प्रकार की समस्याओं का समाधान इस्लाम क्या पैश करता है। वास्तविकता यह है कि जो लोग जिस चीज़ के बनाने वाले होते हैं उसकी वास्तविकता को अन्य की तुलना में अधिक समझते हैं ।
मानव की रचना अल्लाह ने की है और रचयिता ही सृष्टि के हित को अन्य की तुलना में अधिक समझ सकता है। इसी लिए इस्लाम चुंकि प्राकृतिक धर्म है जिसने पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान रूप में नियम दिया ताकि समाज में अशान्ति पैदा न हो। आज ज़रूरत है कि इस्लाम की शिक्षाओं की ओर झाँक कर देखा जाए जो मानव के सृष्टा की ओर से अवतरित हुआ है कि सृष्टा ही सृष्टि के हित को सही रूप में समझ सकता है।
इस सम्बन्ध में हम इस्लाम के तीन नियमों पर प्रकाश डालेंगेः
प्रथम नियमः 
हृदय में एक ईश्वर की निगरानी का भय और उसके पास उपस्थित हो कर एक एक कर्मों के लेखा-जोखा देने का सही अनुभवः 
(1) इस्लाम एक मुसलमान के हृदय में जिस अल्लाह की कल्पना पैदा करता है वह उसको देख रहा है, उसकी बातों को सुन रहा है, उसके एक एक कर्मों को जान रहा है, और मानव उसकी निगरानी से एस छण के लिए भी निकल नहीं सकता।
(2) फिर यह विश्वास पैदा किया कि मनुष्य के एक एक काम को उस पर तयनात फरिश्ते नोट कर रहे हैं और कल महाप्रलय के दिन उसके समक्ष उसकी सारी मूभी पले कर दी जाएगी जिसे वह अपनी आंखों के सामने देख रहो होंगे। 

(3) फिर यह विश्वास पैदा की कि महाप्रलय के दिन उसकी ज़बान पर मुहर लगा दी जाएगी और उसके प्रत्यक अंगों को ज़बान दे दी जाएगी जो अल्लाह के समक्ष मानव के खेलाफ गवाही देंगे।
(4) फिर यह विश्वास पैदा की कि जिस धरती पर उसने पाप किया था वह धरती भी उसके विरोद्ध में महाप्रलय के दिन गवाही देगी। 

इस प्रकार उसके पास अल्लाह की पकड़ से निकलने का कोई रास्ता न होगा और वह चाहे अनचाहे अल्लाह के समक्ष उपस्थित हो कर अपने कर्मों को लेखा जोखा देने के बाद स्वर्ग के सुख अथना नरक की यातना से दोचार हो कर रहेगा। यह है वह विश्वास जो इस्लाम सर्व-प्रथम एक व्यक्ति के हृदय में पैदा करता है जिसके फल-स्वरूप इनसान ऐसा फरिश्ता बन जाता है जो एक एक क़दम फूंक फूंक कर डालता है कि ऐसा न हो कि कल क्यामत के दिन अल्लाह की पकड़ में आ जाएं।
महिलाओं और पुरुषों के प्रति इस्लाम की पवित्र शिक्षाः 
अल्लाह ने स्वाभाविक रूप में पुरुष के हृदय में महिलाओं के प्रति प्रेम और ख़िंचाव  की भावना रखी और महिलाओं के हृदय में पुरुषों के प्रति प्रेम और ख़ीचाव की भावना रखी परन्तु इसका समाधान विवाह के रूप में पेश किया ताकि दोनों शान्तिपूर्ण व्यवाहिक जीवन से लाभांवित हों, बुराइयों से बच जाएं और उनके माध्यम से ऐसे बच्चे पैदा हों जो धरती की रक्षा और शोभा का सामान बन सकें। इस के लिए महिलाओं को परिवार का दीप बनाया जिन से घर का पूरा वातावरण प्रकाशमान रहे और पुरुषों के कंधे पर घर से बाहर का अधिकार रखा ताकि दोनों अपने अपने दायित्व को भली भांति अदा कर सकें। इसके बावजूद इस्लाम ने महिलाओं को इस बात की अनुमति दी कि पर्दा का ख्याल रखते हुए अपनी स्वभाव के अनुकूल जो काम चाहें कर सकती हैं यह आदेख महिलाओं की प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल है क्यों कि बहुमूल्य वस्तुएं हमेशा छुपा कर रखी जाती हैं, सोना और हीरे जवाहरात को यदि सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाए तो उनको चोरी से हम नहीं बचा सकते। मीठाइयाँ अगर खुली होंगी तो उन पर मक्खियाँ छुकेंगी ही…आप स्वयं सोचें कि यदि आपका लड़का शाम 4 बजे घर से बाज़ार जाता है और दस बजे रात में लौटता है तो क्या आपके अंदर चिंता जागेगी ? नहीं  बल्कि आप इसे  स्वाभावित समझेंगें परन्तु हमें उत्तर दीजिए कि यदि आपकी जवान बेटी 4 बजे बाज़ार जाती है और दस बजे रात से पहले बाज़ार से लौट कर नहीं आती तो आपकी कैसी भावना होगी इसका अनुभव आप स्वयं कर सकते है। और  इस्लाम ने महिलाओं और मुरुषों को मानव प्रकृति की रिआयक करते हुए पैदा किया 
इस्लाम महिला को ऐसे वस्त्र पहनने से रोकता है जिस से पुरुषों के जज़बात भर्कें। फिर पुरुषों तथा महिलोओं दोनों को भी निगाह नीची रखने का आदेश देता है।

उसके बाद भी यदि कोई व्यभीचार करता है तो इस्लाम का आदेश यह है कि यदि वह विवाहित है तो उसे पत्थर से मार मार कर नष्ट कर दिया जाए और यदि विवाहित नहीं है तो उसे 100 कुड़े मारे जाएं और एक वर्ष के लिए देश निकाला दिया जाए।

 जिस समय यह नियम पूर्ण रूप में लागू था इस्लामी इतिहास साक्षी है कि इस प्रकार के दुष्कर्म बिल्कुल देखने को नहीं मिले। और यदि एकांत में एक व्यक्ति से ऐसा अपराध हुआ भी तो वह दौड़ा दोड़ा मुहम्मद सल्ल0 की सेवा में उपस्थित हुआ कि उसे पवित्र कर दिया जाए।

 इस लिए कि इस्लाम सब से पहले हृदय को बदलता है। आज बलात्कारियों के लिए कैसे भी नियम बना दिए जाएं जब तक दिल नहीं बदलेगा, अपने प्रभु के समक्ष उपस्थित होने का भय पैदा न होगा जब तक नियम और क़ानून बनाने के बावजूद  किसी भी अपराध पर नियंत्रण पाना असम्भव है। 
इस अवसर पर भारत सरकार के नाम हमारा संदेश होगा किः
1.
       मौजूदा केस और इस प्रकार के अन्य प्रत्येक केसों में अपराधियों की सज़ा मौत अर्थात् फांसी ही हो। अपराधी चाहे नशा की स्थिति में ही क्यों न हो।
2.       छोटी, कम-उम्र और ना-बालिग़ बच्चियों से बलात्कार सम्बन्धित केसों में अपराधियों को फांसी की सज़ा हो। 
3.       दोनों यदि बालिग़ हों तो लड़की और उसके माता पिता की रज़ामंदी की सूरत में दोनों की शादी कर दी जाए, इस शर्त के साथ कि दोनों एक ही धर्म के हों। और अगर लड़की और उसके माता पिता इसके लिए तैयार न हों तो लड़के को फांसी ही दी जाए।
4.       यदि जांच से पता चले कि लड़के ने ज़बरदस्ती विवाह के इरादे से रेप किया है तो इस स्थिति में भी फांसी दी जाए।
5.       यदि दोनों के धर्म में अंतर हो तो विवाह न होगा और लड़का आजीवन-काल के लिए जेल में होगा, यहाँ तक कि जेल में ही उसकी मृत्यु हो जाए, और उसे किसी कानूनी कारवाई की अनुमति प्राप्त न होगी।
6.       प्रत्येक केसों की कारवाई स्पेशल फास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा हो जिसकी अवधि एक महीना से अधिक न हो और इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स भी तैनात किए जाएं।

 7.       लड़की के साथ छेड़खानी की सज़ा आजीवन काल के लिए जेल हो।

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