इस्लाम ही वह सर्वश्रेष्ठ धर्म है, जो हर मनुष्य को उसके उचित स्थान पर रखता है। जब संतान छोटा होता है, तब माता-पिता को अल्लाह ने यह आज्ञा दिया कि तुम अपने संतान की अच्छी पालण पोशन करो, उसे उत्तम शिक्षा दिलाओ, उस पर हर प्रकार से ध्यान दो, और जब माँ पाप बुढ़ापे के आयु को पहुंचे, तो संतान अपने माता पिता की खुब सेवा करे। हमेशा उन्हें खुश रखने की कोशिश में लगा रहे। उनकी बातों पर न झिल्झिलाए बल्कि खुशी प्रकट करे और उन्हें उफ तक न कहे। क्योंकि उन्हें उफ कहना. या डांटना भी महा पाप हैं। क्योंकि अल्लाह तआला ने माँ – बाप को डांटने और उफ कहने से मना किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है।
” إمّا يبلغنّ عندك الكبر أحدهما أو كلاهما فلا تقل لهما أف ولا تنهر هما” – الإسراء: 23
” अगर तुम्हारे पास इन में से एक या यह दोनों बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जायें तो उनको ऊफ तक न कहना और नहीं उन्हें डाँटना “। (सूरः इस्राः 23)
बल्कि उनके लिए अल्लाह से हमेशा दुआ करते रहे किः ऐ अल्लाह! तुम उन दोनों पर वैसे ही दया और कृपा कर जिस प्रकार उन्हें ने शिशू आयु में हम पर दया किया है। यही अल्लाह का आदेश है। जो अल्लाह के आदेश के अनुसार अमल करेगा, तो बहुत पूण्य प्राप्त करेगा। जो अल्लाह के आदेश की अवहिलना करेगा, तो अल्लाह उसे सख्त सज़ा देगा।
इस्लाम इस गैर मानवता रितिरिवाज के विरूद्ध है कि माता पिता को वृद्धाआश्रम में डाल दिया जाए और वर्ष में एक दिन नियुक्त कर लिया, जिसे माँ के खुशी का दिन या माँ के तैहार का दिन मनाया जाए। जिस में माँ को उपहार या तौहफा दे दिया जाए, बल्कि इस्लाम ने प्रति दिन माँ के खुश रखने का आदेश दिया है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नेफरमायाः माँ बाप की खुशी में अल्लाह की खुशी है और माँ बाप की नाराजगी मेंअल्लाह की नाराजगी है। माता पिता की सेवा करना बहुत सवाब का कार्य है और माँ बाप की सेवा से अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होती है और माता पिता की सेवा न करना बहुत बड़ा पाप का कार्य है।
माँ-बाप की अवज्ञा और उनकी नाफरमानी महा पापों में से है। जिस में लिप्त व्यक्ति को बहुत पाप तथा हानि पहुंचता है। ऐसा व्यक्ति दुनिया तथा आखिरत में बहुत ज़्यादा घाटा उठाता है। जैसा कि रसुल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया हैः किया तुम्हें पापों में बड़े पापों के बारे में ज्ञान न दूँ , तीन बार कहा, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथियों ने उत्तर दियाः क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः अल्लाह के साथ किसी दुसरे को साझीदार बनाना और माता पिता की अवज्ञा करना, और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) टेक लगाऐ थे, ठीक से बैठ गए, और फरमाया! सुनो, झूटी गवाही देना, (रावी कहते हैं) आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इसे बार बार दोहरा रहे थे, यहाँ तक कि हमने (दिल में) कहाः काश कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खामूश हो जाते। (सही बुखारीः 2654)
यदि माँ-बाप नाराज़, अप्रसन्न हो, तो अल्लाह भी नाराज़ होगा और वह बदबख्त होगा, जिस से अल्लाह नाराज़ हो, इसी लिए माँ-बाप की खूब सेवा करके उनको खूश रखें। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः अल्लाह की खुशी माता-पिता की प्रसन्नता में गुप्त है और अल्लाह की अप्रसन्नता माँ-बाप के क्रोध में है। (सही इब्ने हब्बानः 33459)
जो लोग माता-पिता के साथ अप्रिय व्यवहार करते हैं। उनको कष्ट देते, उन पर अत्याचार करते, उनको सताते हैं। तो एसे लोगों को, उनकी संतान भी उनके साथ अप्रिय व्यवहार करती है, उनको कष्ट देती है। यह बात अनुभव से साबित है और आप लोग ने भी अन्गनित वाक़ियात देखे होंगे। बेशक जो जैसा बीज बोऐगा, वैसा फल काटेगा, और प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान हैः अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, तुमहारी संतान तुम्हारे साथ उत्तम व्यवहार करेगी……….. (तर्ग़ीब व तर्हीबः 294/3 )
जो लोग माँ-बाप के साथ अनुचित व्यवहार और अशुद्ध सुलूक तथा अत्याचार करते हैं। अल्लाह तआला एसे व्यक्ति को संसार में ही अपमानित करता है। वह व्यक्ति लोगों की नज़र में नीच, कमीना और बेइज़्ज़त होता है और मृत्यु के पश्चात भी अल्लाह उसे सख्त दंडित करेगा। बल्कि जिबरील(अलैहिस्सलाम) की धिक्कार और नबी(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की धिक्कार उस व्यक्ति पर होता है, जो बूढ़े माता पिता की सेवा कर के अपने आप को जहन्नम (नर्क) से सुरक्षित न कर ले।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस कथन पर विचार करें। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मिंबर पर चढ़े, तो जब पहली सीढी चढ़े, कहाः आमीन, फिर दुसरी सीढी चढ़े तो कहाः आमीन, फिर तीसरी सीढी चढ़े, तो कहाः आमीन, फिर फरमायाः मेरे पास जिबरील (अलैहिस्साम) आये और कहाः ऐ मुहम्मद, जो रमज़ान पाये तो उसे माफ नहीं किया गया, तो अल्लाह की उस पर धिक्कार हो, जिबरील ने कहाः आमीन कहो, तो मैं ने कहाः आमीन। जिबरील ने कहाः और जो अपने माँ-बाप या उन दोनों में से एक को पाये तो जहन्नम (नर्ग) में दाखिल हूआ तो अल्लाह की उस पर धिक्कार हो, मैं ने कहाः आमीन। जिबरील ने कहाः और जिस के समक्ष आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का नाम आये और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दरूदन पढ़े, तो अल्लाह की उस पर धिक्कार हो तो मैं ने कहाः आमीन। (अत्तरगीब वत्तरहीबः 406/2)
क्या ही अभागी व्यक्ति होगा, जो फरिश्ते जिबरील और नबी (सल्ल) के बद्दुआ का भागिदार होगा, निस्संदेह जिसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और जिबरील की बद्दुआ लगेगी, वह इस लोक और परलोक में बहुत ज़्यादा हाणि उठाएगा और कदापि सफल नहीं होगा।
माता-पिता के अवज्ञा कारी को अल्लाह तआला क़ियामत के दिन कृपा की दृष्टि से नहीं देखेगा और जिस से अल्लाह नज़र मोड़ ले, वह बहुत बड़ा अभागी है। एसे बद नसीब शख्स के बारे में रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन पढ़ेः क़ियामत के दिन अल्लाह तआला तीन व्यक्तियों की ओर कृपा की नज़र से नहीं देखेगा, अपने माता पिता की अवज्ञा करने वाले, बहुत ज़्यादा मदिरा सेवन करने वाले, भलाइ कर के उपकार जताने वाले। (किताबुत्तौहीदः इब्ने ख़ुज़ैमाः 859/2)
इसी प्रकार उन लोगों के लिए हलाकत है, जो अपने बूढ़े माता-पिता या उन में से एक को पाए और उनकी खूब सेवा करके जन्नत में दाखिल न हो सके। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सुचित किया है।
“رغم أنف، ثم رغم أنف، ثم رغم أنف قيل: من؟ يا رسول الله! قال: من أدرك أبويه عند الكبر، أحدهما أو كليهما فلم يدخل الجنة” (لمسلم: 1880
उस व्यक्ति का सत्यनाश हो, फिर उस व्यक्ति का सत्यनाश हो, फिर उस व्यक्ति का सत्यनाश हो, कहा गया, कौन, ऐ अल्लाह के रसूल! तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जिस व्यक्ति ने अपने माता-पिता को या उन दोनों में से किसी एक को बूढ़ापे की आयु में पाया और उनकी खिदमत कर के जन्नत में दाखिल न हो सका। (सही मुस्लिमः 1880)
इस्लाम ने माता पिता के स्थान को बहुत ऊंचा किया है और माता पिता कि सेवा जन्नत में दाखिल होने के कारण बनता है और माता पिता की नाफरमानी और उनकी सेवा न करना जहन्नम में प्रवेश होने का कारण बनता है। अल्लाह हम सब को माता पिता की सेवा करने की शक्ति दे और ऐ अल्लाह, माता पिता को हमारे लिए जन्नत में दाखिल करने का करण बना दे। आमीन।।।।।।।।।।