हज्ज वह महत्वपूर्ण इबादत है जो इस्लाम का पांचवाँ स्तम्भ है, जिस के बिना किसी मानव का इस्लाम पूर्ण नहीं हो सकता, जिस की फर्ज़ीयत में अल्लाह ताआला ने पवित्र क़ुरआन में फरमाया हैः
” ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا ومن كفر فإن الله غني عن الكافرين” – آل عمران:97
” और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज्ज के लिए काबा का यात्री करें और जो इन्कार करेगा तो अल्लाह सारे संसार वालों से बेनेयाज़ है।” (सूरः आले-इमरान,97)
उसी तरह रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
” يا أيها الناس قد فرض الله عليكم الحج فحجوا, فقال رجل أكل عام ؟ يا رسول الله! فسكت. فقالها ثلاثا فقال: لو قلت نعم لوجبت ولما استطعم” – ( رواه مسلم)
” ऐ लोगो, अल्लाह तआला ने तुम्हारे ऊपर हज्ज फर्ज़ (अनिवार्य) किया है, अतः तुम लोग हज्ज करो, तो एक आदमी ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! क्या प्रत्येक वर्ष? तो आप खामूश हो गये, वह व्यक्ति तीन बार यह प्रश्न किया, तब आप ने फरमायाः यदि मैं हाँ कहता तो प्रत्येक वर्ष अनिवार्य हो जाता और तुम इस की क्षमता नहीं रख सकते ” ( सहीह मुस्लिम )
हज्ज की परिभाषाः
एक व्यक्ति का अल्लाह की इबादत की नियत से विशेष महीने और विशेष दिनों में मक्का और हज्ज के स्थानों की यात्रा करना हज्ज कहलाता है।
हज्ज कब अनिवार्य होता है ?
किसी इन्सान पर हज्ज के फर्ज़ होने के लिए उस में पांच शर्तो का पाया जाना ज़रूरी है
(1) मुसलमान होना
हज्ज मुसलमान पर ही अनिवार्य होता है, किसी ने इस्लाम स्वीकार करने से पहले हज्ज किया तो इस्लाम स्वीकार करने बाद भी हज्ज करने की क्षमता हो तो उसे दो बारा हज्ज करना पड़ेगा।
(2) बुद्धिमान होनाः
अल्लाह तआला ने अपने आदेशों का मुकल्लफ बुद्धि रखने वालों को ही किया है, बुद्धिहीन अथवा पागल से शरीअत के किसी भी आदेश का मुतालबा नहीं है, जैसा कि कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः
عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: ” رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ المُبْتَلَى حَتَّى يَبْرَأَ، وَعَنِ الصَّبِيِّ حَتَّى يَكْبُرَ “- سنن أبي داؤد-4/139 وصححه الشيخ الألباني)
आईशा (रज़िल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, ” तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवाले यहाँ तक कि वह निन्द से जाग जाए और पागल यहाँ तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए और बच्चों से यहाँ तक कि वह बालिग हो जाए। – सुनन अबी दाऊद-4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है
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(3) बालिग होनाः
अल्लाह तआला ने धर्म के आदेश को मानना बालिग पर अनिवार्य किया है, कोई भी बालक या बालिका दीन के आदेश तथा आज्ञा पर अमक कर सकता है परन्तु बालिग होने के बाद दीन के आदेश पर अमल करना अनिवार्य हो जाता है यदि बालिग होने के बाद दीन के आज्ञा अनुसार जीवन नहीं बिताता तो वह पापी और गुनह्गार होगा जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने स्पष्ट किया कि बच्चों पर धर्म के आज्ञा का पालन अनिवार्य नहीं है।
عَنْ عَائِشَةَ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: ” رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ الصَّغِيرِ حَتَّى يَكْبَرَ، وَعَنِ الْمَجْنُونِ حَتَّى يَعْقِلَ – (سنن ابن ماجة 1/658 وصححه الشيخ الألباني)
आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः ” तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवालों से यहां तक कि वह निन्द से उठ जाए, और बच्चों से यहां तक कि वह बालिग हो जाए, और पागल से यहां तक कि वह बुद्ध वाला हो जाए, -(सुनन इब्नि माजा -4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है
- (4 ) आज़ाद होनाः गुलाम पर हज्ज फर्ज़ नहीं है।
- (5) क्षमता होनाः
किसी भी मुस्लिम की आर्थिक क्षमता के अनुसार उस पर हज्ज फर्ज़ होता है जैसा अल्लाह तआला ने स्वयं ही क़ुरआन मजीद में कहा है।
” ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا – آل عمران:97
और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज्ज के लिए काबा का यात्रा करे, ( सूरः आले-इमरान,97)
क्षमता का अर्थ यह कि मानव के पास आर्थिक क्षमता हो और साथ साथ शारीरिक क्षमता भी हो यदि किसी के पास शारीरिक क्षमता है परन्तु आर्थिक क्षमता उपलब्ध नहीं तो उस पर हज्ज अनिवार्य नहीं और किसी के पास आर्थिक क्षमता उपलब्ध है परन्तु बुढ़ापे या अधिक बीमारी के कारण शारीरिक क्षमता नहीं तो अपनी ओर से किसी दुसरे मानव को जो अपनी ओर से हज्ज कर चुका हो पूरा खर्च दे कर हज्ज के लिए उसे भेजा सकता है या उस शारीरिक क्षमताहीन मानव की ओर से रिश्तेदार भी हज्ज कर सकते हैं।
हज्ज की क्षमता होने की स्थिति में हज्ज में जल्दी करनाः
जो लोग हज्ज की क्षमता रखते हैं और हज्ज का इरादा भी रखते हैं तो ऐसे लोगों को हज्ज करने की जलदी करना चाहिये, क्योंकि न जाने कब कौन सा नसीब उस के रासते में रोड़े अटका दे और हज्ज जैसी महत्वपूर्ण इबादत से वंचित हो जाए। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लोगों को जलदी हज्ज करने पर उत्साहित करते हुए फरमाया।
وعن بن عباس رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم :” من اراد الحج فليتعجل, فإنه قد يمرض وقد تضل الضالة وتعرض الحاجة ” – مسند أحمد وحسنه الشيخ الألباني في الجامع الصغير وزيادته
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः ” जो हज्ज करने का इच्छा रखे उसे चाहिये कि जलदी से हज्ज कर ले, इस लिए कि वह बीमार हो सकता है और उस के हज्ज करने की क्षमता खत्म हो सकती है और उसे कोई बहुत बड़ी आवश्यक्ता पड़ सकती है।” (मुस्नद अहमद)
हज्ज का महत्व और फज़ीलतः