इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से हज्ज पाँचवां स्तम्भ है। शक्ति और सुविधा होने के बाद हज्ज का अदा करना ज़रूरी है। यदि कोई हज्ज की अनिवार्यता का इन्कार करते हुए हज्ज नहीं करता है, तब तो वह इस्लाम की सिमा से निष्कासित हो जाएगा। यदि वह हज्ज की अनिवार्यता का प्रतिज्ञा करते हुए सुस्ती और आलस से हज्ज नहीं करता है। तो बहुत बड़े पाप में लिप्त हो गया। क्योंकि अल्लाह तआला ने शक्ति रखने वाले मुसलमानों को आदेश दिया है।
وَلِلَّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ. (آل عمران: 97
अल्लाह का लोगों पर हक़ है कि जिस को वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज्ज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।” (आले इमरानः 97)
गोया कि जो व्यक्ति शक्ति होने के बावजूद हज्ज नही करता है। तो अल्लाह को उसकी कोई आवश्यकता नही है। क्योंकि उसने कुफ्र किया और कुफ्र करके वह स्वयं पर ही बहुत बड़ा अत्याचार कर रहा है। इसी कारण उमर बिन खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो मुसलमान शक्ति प्राप्त होने के बावजूद हज्ज नहीं करता था, ऐसे व्यक्ति को मुसलमान ही नहीं समझते थे। जैसा कि उमर बिन खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) के फरमान से समझ में आता है।
لقد هممت أن ابعث رجلا إلى هذه الأمصار فلينظروا كل من كان له جدة ولم يحج فليضربوا عليهم الجزية، ما هم بمسلمون، ما هم بمسلمون. (الدرر المنثور ، السيوطي: 3/693
उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फरमयाः मैं ने इरादा किया कि हर एक शहर की ओर एक व्यक्ति को भेजूँ, तो वह जांच पड़ताल करे कि जिस के पास हज्ज का सामर्थ्य प्राप्त होने के बावजूद हज्ज नहीं करता है, तो वह उस पर जिज़्या (तावान) लगा दे। ऐसे लोग मुसलमान नहीं हैं, ऐसे लोग मुसलमान नहीं हैं। (अद्दुर अल्मन्सूरः अस्सुसूतीः 3/693)
हज्ज करने की क्षमता और सुविधा प्राप्त होने के बावजूद हज्ज नही करना बहुत बड़ा पाप है। क्योंकि उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के जैसे सम्मानित सहाबी ऐसे लोगों को मुसलमान नहीं समझते हैं जो हज्ज करने का सामर्थ्य और सुविधा रखने के बावजूद हज्ज नहीं करते हैं और उन के साथ काफिरों के जैसा सुलूक करना चाहता थे।
इस लिए हज्ज करने की क्षमता प्राप्त हो तो हज्ज करने में जलदी करना चाहिये। क्योंकि न जाने कब जीवन में दुनिया की अड़चनें आ पड़े और शक्ति प्राप्त होने के बावजूद इस्लाम के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ की पूर्ति से वंचित रह जाए और महा पाप में लिप्त हो जाए।